Friday 30 December 2011

रूबाइ


हमर करेज संगे खेलाईत रहलौं, इ कोन खेल अछि।
मिलन अहाँ सँ हमर खुजल आँखिक सपना भेल अछि।
जाडक रौद कहै छलौं हमरा, इ एखन धरि मोन अछि,
अनचिन्हार छी आब, अहाँ लग लोकक ठेलम-ठेल अछि।

मैथिली गजल


मोनक मोन सँ चलि केँ केहेन हाल केने छी।
प्रेम मे अपन जिनगी हम बेहाल केने छी।

करेज हमर छल उद्गम प्रेमक गंगा केँ,
विरह-नोर मे सानि करेज केँ थाल केने छी।

जकर प्रेम-ताल पर हम नाचैत रहलौं,
हमरा वैह कहै छै एना किया ताल केने छी।

एके बेर हरि केँ प्राण, झमेला खतम करू,
जे बेर-बेर आँखिक छुरी सँ हलाल केने छी।

अहाँक मातल चालि सँ "ओम"क मोन मतेलै,
ऐ मे दोख हमर की, अहाँ आँखि लाल केने छी।
---------------- वर्ण १७ ------------------

Thursday 29 December 2011

मैथिली गजल


टुकडी-टुकडी मे जिनगी बीताबैत रहलौं।
सुनलक नै कियो जे बेथा सुनाबैत रहलौं।

अपन आ आनक भेद इ दुनिया बुझौलक,
इ भेद सदिखन मोन केँ बुझाबैत रहलौं।

ऐ मोन मे पजरल आगि धधकैत रहल,
हम पेट मे लागल आगि मिझाबैत रहलौं।

अपन अटारी सभ सँ सुन्नर बनाबै लेल,
कोन-कोन नै जोगाड हम लगाबैत रहलौं।

दुनियाक खेला मे "ओम" बन' चाहल मदारी,
बनि गेलौं जमूरा सभ केँ रीझाबैत रहलौं।
-------------- वर्ण १७ ---------------

Thursday 22 December 2011

मैथिली गजल


आकाश बड्ड छै शांत, भरिसक बिहाडि आबै छै।
ओंघरैत सब एहि मे बलौं ओहार ओढाबै छै।

पोछि दियौ झहरैत नोर अहाँ निशब्द आँखिक,
आँखिक नोर थीक लुत्ती झट सँ आगि लगाबै छै।

चिन्है छै सब ओकरा कतेक स्वाँग रचेतै आब,
तखनो ओ सभ केँ बिपटा बनि नाच देखाबै छै।

नंगटे भेल छै तखनो कुर्सीक मोह नै छूटल,
कुर्सीक इ सौख ओकरा किछ सँ किछ कराबै छै।

रोकि सकै छै कियो नै, सागर मे जौं उफान एलै,
परतारै लेल देखियौ माटिक बान्ह बनाबै छै।
--------------- वर्ण १८ -----------------

Wednesday 21 December 2011

मैथिली गजल


बनि जेतै घर, एखन धरि जे छै हमर मकान प्रिये।
घोरि दितियै हमर प्रेम मे अहाँ अपन जौं प्राण प्रिये।

एक मीसिया इजोत चानक चमकाबै छै पूरा दुनिया,
अहाँ बिन अछि घर अन्हार, छत जकर छै चान प्रिये।

आँखि मुनल हमर जरूर छै, मुदा हम छी नै सूतल,
अहाँक प्रेमक वाहक मुस्की दिन-राति लै ए जान प्रिये।

कखनो देखाबी प्रेम अहाँ, बनै छी कखनो अनचिन्हार,
प्रेमक खेल मे अहाँक नुका-छिपी केने ए हरान प्रिये।

जिनगीक रौदी छै प्रचण्ड, शीतल अहाँक केशक छाह,
विश्राम ओहि छाह मे करै ले डोलै "ओम"क ईमान प्रिये।
---------------------- वर्ण २१ ---------------------

Tuesday 20 December 2011

मैथिली गजल


डूबैत रहलौं हरदम हम, आर कहिया धरि इ अन्हेर हेतै।
खाली मझधारे नै हेतै कपार हमर, हमरो कोनो कछेर हेतै।

सब लेल बाँतर कात राखल छी कियो त' कखनो ताकत एम्हरो,
खूब गजल सब ले कहल गेल, हमरो लेल ककरो 'शेर' हेतै।

सुख-दुख जीवन-क्रम मे लागल, कखनो मीठ कखनो तीत भेंटै,
बड्ड अन्हरगर साँझ भेलै, कहियो इजोत भरल सबेर हेतै।

सब मिल भिडल छै माथापच्ची केने एकटा कानून बनबै लेल,
केहनो कानून बनि जाओ मुदा ओहि मे संशोधन बेर-बेर हेतै।

आब नै लुटेतै देशक वैभव, नै क' सकतै खजाना केँ चोरी कियो,
सोनक चिडै छल देश हमर, पुरना वैभव वापस फेर हेतै।
-------------------- वर्ण २५ -------------------------

Monday 19 December 2011

लोकतन्त्रक माने (कथा)


लोकतन्त्रक माने (कथा)

शैलेश बाबू अपन मिनी लाइब्रेरी मे बैसल किछ पोथी सबहक पन्ना उन्टेने जाइ छलाह। हुनकर कनियाँ सुनन्दा आबि केँ कहलखिन्ह- "कोन खोज मे लागल छी अहाँ। तीन घण्टा सँ अपस्याँत भेल छी।" शैलेश बाबू बजलाह- "लोकतन्त्रक माने ताकि रहल छी।" सुनन्दा हँसैत बजलीह- "हुँह, कथी केँ प्रोफेसर छी अहाँ यौ। लोकतन्त्रक माने होइ छै, बाई द पीपुल, औफ द पीपुल, फौर द पीपुल। इ गप त' बच्चा-बच्चा बूझै छै।" शैलेश बाबू बजलाह- "इ माने त' हमरो बूझल छल। हम लोकतन्त्रक आधार बनल किछ गोटेक हरकत केँ व्याख्या करबाक फेर मे एकर विशिष्ट अर्थ ताकि रहल छी। जतय जाइ छी किछ ने किछ विचित्र हरकत करैवला लोक सब सँ भेँट भ' जाइ ए। हुनकर सबहक लीला लोकतन्त्रक परिभाषा मे आबै छै वा नै, यैह खोज मे तबाह छी।" सुनन्दा कहलखिन्ह- "छोडू एखन इ सब आ चलू किछ पनपियाई क' लिय'।"

शैलेश बाबू पनपियाई करैत छलाह तखने हुनकर मित्र मनोज चौधरीक फोन एलन्हि- "कहिया पूर्णिया आबै छी प्रोफेसर साहेब? एहि बेरक दुर्गा पूजा मे हमर गामक प्रोग्राम फाईनल अछि ने?" शैलेश बाबू बजलाह- "हम काल्हि चलै छी।" दोसर दिन शैलेश बाबू पूर्णिया गेलाह आ ओतय सँ मनोज जीक संग हुनकर गाम गेलाह। ओतय हुनकर गाम पर जलखै क' केँ साँझ मे दुनू दोस्त मेला घूमै लेल निकललाह। मेला मे एहि बेर नौटंकीक वेवस्था सेहो छलै। सभ ठाम सँ घूमि दुनू गोटे नौटंकी देखबा लेल पंडाल मे पहुँचि अपन स्थान ग्रहण केलैथि। नौटंकीक बीच मे बाईजीक नाचक सेहो प्रबन्ध छलै। एकटा बाईजी स्टेज पर आबि अपन लटका झटका देखबैत कोनो फिल्मी गाना पर नाच कर' लगलै। शैलेश बाबू मनोज जी केँ कहलखिन्ह जे चलू, इ नाच हम नै देखब। ताबे एकटा घटना भेल, जे देखि ओ ठमकि गेलाह। नाचक बीचे मे दर्शक मे आगू मे बैसल एक गोटे उठलाह आ नाच कर' लागलाह। ओ साँवर रंग केँ उज्जर कुरता पायजामा पहीरने एकटा दाढीदार लोक छलाह आ हाथ मे एकटा नलकटुआ रखने फायरिंग सेहो करै छलाह। मनोज जी बाजलाह- "इ हमर सबहक विधायक छैथ आ सबटा आयोजन हुनके सौजन्ये छैन्हि।" तावत ओ विधायक मन्च पर चढि गेल आ बाईजी संगे फूहड भाव-भंगिमा मे नाच कर' लागल। शैलेश बाबू खिसियाइत बजलाह- "चलू तुरन्त। हम नै रूकब आब। इ किरदानी विधायक केँ, राम-राम।" ओतय सँ दुनू गोटे गाम पर एलाह आ शैलेश बाबू रातिये पटना केँ बस पकडि विदा भ' गेलाह। दोसर दिन भोरे पटना पहुँचलाह। डेरा पर बैसि चाह पीबै छलाह, तखने सुनन्दा बजलीह- "केहेन जमाना आबि गेलै। विधायक नर्तकी संगे स्टेज पर नाच करै छलै। पूरा समाचार मे यैह सब देखा रहल छै।" शैलेश बाबू तुरंत टी.वी. दिस भगलाह आ एकटा न्यूज चैनल लगेलाह। ओहिठाम यैह समाचार बेर बेर देखबै छलै। ओहि चैनलक स्टूडियो मे ऐ विषय पर बहस चलै छलै। किछ राजनीतिक लोक सब आ किछ बुद्धिजीवी लोक सब चर्चा मे लीन छलाह। विधायक जीक पार्टीक नेता केँ छोडि बाकी लोक एहि कृत्यक घोर निन्दा करै छलाह। बीच बीच मे प्रचार आ चैनेल दिस सँ इ उद्घोषणा कि सब सँ पहिने वैह इ समाचार देखौलक। इ विषय गरीबी आ भूखमरीक समस्या केँ कतौ बिला देलकै। एना लागय लागल जे देश मे आब एकमात्र यैह समस्या रहि गेलै। शैलेश बाबू चैनल बदललाह। सभ ठाम वैह देखबै छलै। ओ बडबडाय लागलाह- "कते महत्वपूर्ण समाचार भ' गेलै इ।" ताबत एकटा चैनल पर विधायक जीक बयान आबि गेलै- "इ सब विरोधी पार्टीक दुष्प्रचार थीक। हम ओहि नर्तकी केँ पुरस्कार देबा लेल स्टेज पर गेल छलहुँ। वीडियो मे छेडछाड कैल गेल अछि। इ हमरा बदनाम करै लेल विरोधी सबहक चालि थीक। हम जाँच लेल तैयार छी। एकटा कमीशन बैसायल जाओ।" शैलेश बाबू सुनन्दा केँ कहलखिन्ह- "इ झूठ बाजै ए। हम अपनहि आँखि सँ इ कृत्य देखलौं।" सुनन्दा बजलीह- "चुप रहू आ इ गप आन ठाम नै बाजब। छोडू ने, सिनेमाक चैनल लगाउ।"

साँझ मे एकटा चैनल पर "विधायक जी स्टेज पर" एहि विषय पर जनताक बीच विधायक जी केर प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम छल। शैलेश बाबू इ देख' लागलाह। विधायक जी साफ-साफ कहलखिन्ह जे ओ स्टेज पर नर्तकी केँ ईनाम दै लेल गेल छलाह। हुनकर कहनाई रहैन्हि जे वीडियो मे छेडछाड कैल गेल। जनताक बीच सँ ढेरो सवाल पूछल गेल आ विधायक जी बिना तमसायल मुस्की दैत शांत जवाब दैत रहलाह। शैलेश बाबू कुनमुनाब' लागलाह। बाजय लागलाह जे केहेन झूठ बाजै छै। मुदा हुनकर के सुनै छैन्हि। सुनन्दा केँ इ गप बूझल छलैन्हि जे शैलेश बाबू जोश मे ओतय जा सकै छैथ, तैं ओ हुनकर पहरेदारी मे मुस्तैद छलीह। एकाएक जनता केँ बीच सँ एकटा युवक उठलै आ हाथ मे एकटा चप्पल लेने मन्च दिस दौडि गेलै। ओ चप्पल सोझे मन्च दिस फेंकलक जकरा विधायक जीक अंगरक्षक सभ लोकि लेलकै। ओहि युवक केँ पुलिस पकडि लेलक आ धुनाई करय लागल। विधायक जी बाजय लगलाह जे देखू विरोधी सबहक कुकृत्य। हमरा नै फँसा सकल त' आब अपन पार्टीक लुच्चा सभ केँ पठा केँ हमरा बेइज्जत करबाक प्रयास करै जाइ ए। शैलेश बाबू धेआन सँ ओहि युवक केँ देखलाह त' हुनकर मुँह सँ निकललैन्हि- "अरे इ त' धनन्जय छै। अपन फूलधर बाबूक जेठका बेटा। इ कोनो पार्टीक लोक नै अछि। इ त' डिग्री ल' केँ घूमैत एकटा बेरोजगार युवक अछि।"

शैलेश बाबू टी.वी. बन्न क' केँ माथ पर हाथ धेने बैस गेलाह आ सुनन्दा सँ कहलखिन्ह- "कनी एक गिलास पानि पियैबतहुँ। हम फेर लाइब्रेरी जा रहल छी, लोकतन्त्रक माने ताकबा लेल।"

मैथिली गजल


सदिखन स्वार्थक चिन्तन करैत रहै ए मोन हमर।
इ गप नै बूझि जाइ कियो, डरैत रहै ए मोन हमर।

अपन खेतक हरियरी बचा केँ रखबाक जोगार मे,
आनक जरल खरिहानो चरैत रहै ए मोन हमर।

विचार अपन गाडने दोसरक छाती पर खाम जकाँ,
इ खाम उखडबाक डरे ठरैत रहै ए मोन हमर।

हृदयक भाव अछि तरंगहीन पोखरिक पानि भेल,
गन्हाईत जमल भाव सँ सडैत रहै ए मोन हमर।

अन्तर्विरोधक द्वन्द्व युद्ध मे बाझल अछि "ओम"क मोन,
अपना केँ जीयेबाक लेल मरैत रहै ए मोन हमर।
------------------- वर्ण २१ -------------------

Friday 16 December 2011

मैथिली गजल


ओकर गाँधी-टोपी कतौ हरेलै, आब ओ हमरे टोपी पहिराबै छै।
सेवक सँ बनि बैसलै स्वामी हमरे छाती पर झण्डा फहराबै छै।

चुनाव-काल मे मुस्की द' हमर दरबज्जाक माटि खखोरलक जे,
भेंट भेला पर परिचय पूछै, देखियो कतेक जल्दी बिसराबै छै।

दंगा भेल वा बाढि-अकाल, सब मे मनुक्खक दाम तय करैवाला,
पीडाक ओ मोल की बूझतै, जे मौका भेंटते कुहि-कुहि कुहराबै छै।

जनता केँ तन नै झाँपल, पेटक आँत सटकि केँ पीठ मे सटल,
वातानुकूल कक्ष मे रहै वाला फूसियों कानि केँ नोर झहराबै छै।

डारि-डारि पर उल्लू बैसल, सौंसे गाम बेतालक नाच पसरलै,
एखनो आसक छोट किरण "ओम"क मोन मे भरोस ठहराबै छै।
------------------------ वर्ण २५ -----------------------

Thursday 15 December 2011

मैथिली गजल


अन्हरिया राति मे सँ भोर कखनो निकलबे करतै।
दुखक अनन्त मेघ केँ चीर सुरूज उगबे करतै।

सब फूल बागक झरि गेल सुखा केँ एकर की चिन्ता,
नब कोढी फूटलै कहियो सुवास पसरबे करतै।

टूटल प्याली पर कहाँ कानैत छै मय आ मयखाना,
प्याली फेर कीनेतै, मयखाना मे मस्ती रहबे करतै।

सागर मे सदिखन बिला जाइत छै धारक अस्तित्व,
तैं की धार रूकै छै, बिन थाकल देखू बहबे करतै।

काल्हि "ओम"क नाम लेबाक ककरो फुरसति नै हेतै,
आइ कान किछ ठोढ सँ हमर नाम सुनबे करतै।
------------------ वर्ण २० -------------------

Wednesday 14 December 2011

मैथिली गजल


काल्हि १३.१२.२०११ केर राति हमर छोटका बाबा(हमर पितामहक अनुज) 88 बरखक अवस्था मे स्वर्गवासी भ' गेलाह। हुनकर स्मृति मे हम अपन भावांजलि ऐ गजलक माध्यमे प्रकट क' रहल छी। दिवंगत आत्माक शांति भेटैन्हि, यैह परमात्मा सँ प्रार्थना अछि।
मैथिली गजल
सब कहै ए पंचतत्व मे आइ अहाँ विलीन भ' गेलौं।
हम निशब्द भेल ठाढ छी, देखियौ वाणी-हीन भ' गेलौं।

नब वस्त्र पहीरि अहाँ कोन जतरा पर निकललौं,
बाट जोहैत छी एखनो, अपस्याँत राति-दिन भ' गेलौं।

अंगुरी अहाँक पकडि बाध-बोन हम घूमैत छलौं,
आब कहाँ ओ अंगुरी, हम बाट नापि अमीन भ' गेलौं।

जेनाई छल निश्चित, यौ दिन तकेने अजुके छलियै,
बंधन कोना केँ तोडलियै, कानैत आब बीन भ' गेलौं।

चिंतित "ओम"क तन्नुक कन्हा आब कोना बोझ उठेतै,
गेल आब अहाँक छाहरि, हम छत-विहीन भ' गेलौं।
------------------- वर्ण २० --------------------

Tuesday 13 December 2011

रूबाई

अहाँक दुनू नैन बनल अछि हमर जिनगीक सम्बल।
मुस्की अहाँक करैत रहै अछि हमरा सदिखन शीतल।
भेंटतौं अहाँ जौं नै, हमर जिनगी मे सोआद कहाँ रहितै,
अहीं प्रेरणा बनल रहै छी, देखि अहीं केँ लिखै छी गजल।

मैथिली गजल


कोनो खसैत केँ जे लियै सम्हारि, यैह थीक जिनगी।
डूबैत केँ जौं दियौ पार उतारि, यैह थीक जिनगी।

भाव कोनो हुए मोन मे, शब्द होइत छै संवाहक,
जे बाजै सँ पहिने लेब विचारि, यैह थीक जिनगी।

मान-अपमान दुनू भेंटै छै, इ मायाक थीक लीला,
अन्याय केँ सदिखन दी मोचाडि, यैह थीक जिनगी।

भाँति-भाँति केँ मेघ विचारक मोनक भीतर घूमै,
सुविचार सँ राखू मोन पजारि, यैह थीक जिनगी।

आन दिस अपन काँच अंगुरी कोना उठेतै "ओम",
पहिने लितौं अपना केँ सुधारि, यैह थीक जिनगी।
------------------ वर्ण १९ -----------------

Monday 12 December 2011

मैथिली गजल


अपने खोज मे अपन मोन हम धुनैत रहै छी।
छिडियैल मोती आत्माक सदिखन चुनैत रहै छी।

आनक की बनब, एखन धरि अपनहुँ नै भेलौं,
मोन मारि केँ सब गप पर आँखि मुनैत रहै छी।

कहियो भेंटबे करतै आत्माक गीत एहि प्राण मे,
छाउर भेल जिनगी केँ यैह सोचि खुनैत रहै छी।

झाँपै लेल भसियैल जिनगीक टूटल धरातल,
सपनाक नबका टाट भरि दिन बुनैत रहै छी।

बूझि सोहर-समदाउन जिनगीक सभ गीत केँ,
मोन-मगन भेल अपने मे, हम सुनैत रहै छी।
---------------- वर्ण १९ ----------------

Friday 9 December 2011

मैथिली गजल


हेतै की आब बूझाय नै एहि देश मे।
देश फँसल अछि घोटाला आ केसमे।

कोना केँ बचायब आब घर चोरी सँ,
फिरै छै चोर सगरो साधुक भेष मे।

जरै छै गाम, तखनो बंसी बजाबै ओ,
बूझै नै लिखल देबालक सनेस मे।

शिकारी मनुक्खक बनल छै मनुक्खे,
गोंतै छै सब बाट आ घरो कलेश मे।

बेईमानीक पताका फहरै आकाश,
पाकै ईमान आब पसरल द्वेष मे।
---------- वर्ण १४ ------------

Thursday 8 December 2011

मैथिली गजल


हम त' केने बहाना राम केर, अहींक नाम लैत छी।
बनि गेलौं हम चर्चा गाम केर, अहींक नाम लैत छी।

रखने छी करेज सँ सटा केँ यादि अहाँक सदिखन,
हमरा काज की ताम-झाम केर, अहींक नाम लैत छी।

ताकि दितिये कनी नजरि सँ मुस्कीया केँ जे एक दिन,
काज पडितै नै कोनो जाम केर, अहींक नाम लैत छी।

हमर काशी, मथुरा, काबा सब अहीं मे अछि बसल,
जतरा भ' गेल चारू धाम केर, अहींक नाम लैत छी।

रोकि सकतै नै जमाना इ मोन सँ मोनक मिलनाई,
मोन कहाँ छै कोनो लगाम केर, अहींक नाम लैत छी।
--------------------- वर्ण २० --------------------

Wednesday 7 December 2011

मैथिली गजल


देखि हुनकर असल रंग, भक हमर टूटि गेल।
पोखरि मे सब नंग-धडंग, भक हमर टूटि गेल।

सभ आँखिक नोर सुखायल, आगि एहेन छै लागल,
देखि केँ कानैत यमुना-गंग, भक हमर टूटि गेल।

बूझलौं अपना केँ कपरगर, एकटा संगी भेंटल,
छोडि देलक ओ जखन संग, भक हमर टूटि गेल।

कते बियोंत लगाबै छलौं अहाँ केँ अंग लगाबै लेल,
जखन लगेलौं अंग सँ अंग, भक हमर टूटि गेल।

मस्तीक नाव भसिया गेल छै समयक ऐ प्रवाह मे,
छलौं यौ हमहुँ मस्त-मलंग, भक हमर टूटि गेल।
----------------- वर्ण २० --------------------

Monday 5 December 2011

बुढिया मैंया


बुढिया मैंया (कथा)
मोबाईल पर बाबूजीक फोन आयल। हम उठेलौं त' कुशल क्षेमक बाद बाबूजी कहलैथ- "बुढिया मैंया स्वर्गवासी भ' गेलीह।" हम धक् रहि गेलौं। एखने दू मास पहिने गाम गेल छलौं, त' बुढिया मैंया स्वस्थ छलीह। ओना हुनकर अवस्था ९५ बर्ख छलैन्हि। पता चलल जे हर्ट अटैक आबि गेल छलैन्हि आ दरिभंगा ल' जैत बाटे मे हुनकर देहान्त भ' गेलैन्हि। बाबूजीक निर्देशानुसार हम तुरत गाम चलि देलियै। राति मे गाम पहुँचलौं, त' पता चलल जे दाह संस्कार लेल कठियारी गेल छैथ सब। माताजीक निर्देशक मोताबिक काठी चढेबा लेल हमहुँ कठियारी भागलौं। बुढिया मैंयाक दिव्य आ शान्त मुख देखि एना लागल जे ओ आब उठि बैसतीह। हुनका सानिध्य मे बिताओल समय मोन मे घूरिया लागल। एक दिन सब एहीना शांत भ' जैत। बुढिया मैंया कखनो केँ कहैथ रहथिन जे बौउआ, आब कते दिन बुढिया मैंया, हमर जे पार्ट छल से हम खेला लेलौं, आब अहाँ सभ अपन पार्ट खेलाइ जाइ जाउ। ठीके कहै छलखिन्ह ओ। अपन पार्ट खेला केँ कते दिन सँ हमरा सबहक पूर्वज एहीना शांत होइत रहलाह आ नबका पात्र सब मनुक्ख आ मनुक्खता केँ आगू बढबैत रहलाह। इ खेल सतत चलैत रहत। नब नब पौध आंगन मे आबैत रहत आ पुरान गाछ सब एहीना धाराशायी होइत रहत। मायाक जंजाल मे बान्हल हम सब एहीना मुँह ताकैत रहब। कतेक असहाय भ' जाइ छै मनुक्ख, जखन कियो अपन सामने सँ चलि जाइ छै आ ओ किछ करबा मे असमर्थ रहैत छै। एहने विचार सब मोन मे आबैत रहल आ हुनकर चिता जरैत रहलैन्हि। जखन दाह संस्कार पूर्ण भ' गेलै त' हरिदेव कक्का कहलैथ- "कोन विचार मे हरायल छी ओम बौउआ। चलू आब नहा केँ गाम पर चली। ओहिनो भोर भ' गेल। नहा-सोना केँ कनी सुतब, रतिजग्गा भ' गेल।" हम कहलियैन्हि- "कक्का, बुढिया मैंया बड्ड मोन पडै छैथ।" हरिदेव कक्का बजलाह- "छोडू ने इ सब गप, हमरा की नै मोन पडै छैथ। ऐ लेल गाम नै जैब की। मोन खराप क' ली बिना सुतने। अरे भेलै चलू, ९५ बरख केर पाकल उमैर मे गेलैथ, कते शोक मनायब।" हम चुपचाप चलि देलियै गाम दिस। आबि केँ नहा-सोना केँ सुतै लेल गेलौं। ओतय आँखि मुइन सुतबाक उपक्रम कर' लागलौं। आँखि मुनैत देरी बुढिया मैंया सामने ठाढ भ' गेलीह। हमरा दिस सिनेह सँ ताकैत वैह पुरना सवाल पूछ' लागली जे बौउआ खेलौं। हम हुनका एकटक ताकैत रहि गेलौं।
बुढिया मैंया हमर बाबाक काकी छलीह। हमर प्रपितामही लागैत छलीह। पूरा आंगन मे सब सँ जेठ आ आब त' बच्चा सभक संग सब गोटे हुनका बुढिया मैंया कह' लागल रहैन्हि। पूरा आंगनक बच्चा सभक सम्पूर्ण भार हुनके पर रहै छलैन्हि आ ओ एकरा पसिन्न करै छलखिन्ह। बच्चा सभ सँ खूब सिनेह रहै छलैन्हि हुनका। हमरा सभ केँ खुएनाई हुनके जिम्मा रहै छलैन्हि। जखने हम सब खाई मे एको रत्ती हिचकिचाइ छलियै की ओ तुरते तोता कौर आ मैना कौर बना केँ खुआब' लागै छलीह। माताजी गाम पर पहुँचैत देरी हमरा सब केँ हुनकर संग लगा दैत छलीह। जेना हमरा बूझल ए, बुढिया मैंया ३५ बरखक आयु मे वैध्वय प्राप्त केने छलैथ। हुनका तीन गोट पुत्र श्रीदेव, रामदेव आ विष्णुदेव छलखिन्ह। विष्णुदेव बाबाक पुत्र हरिदेव कक्का छलाह जिनका सँ हमरा बड्ड पटै छल। श्रीदेव बाबा खेती पथारी करै छलाह। रामदेव बाबा आ विष्णुदेव बाबा नौकरी करै छलाह आ आब रिटायर भ' केँ गामे मे रहै छलाह। बुढिया मैंयाक तीनू पुत्र आ तीनू पुतौह जीबते छलखिन्ह। हम नौकरी भेंटलाक बाद कखनो काल गाम जाइत छलौं त' बुढिया मैंया कहैथ जे भगवान हमरा उठबै मे किया देरी लगा रहल छैथ, हम चाहै छी जे तीनू पुत्रक सामने आँखि मुनी। पूरा आंगनक बच्चा बच्चा बुढिया मैंयाक चेला छल। हमहुँ छलौं। कियाक नै रहितौं, ओ निश्छल प्रेम, ओ देखभाल, सब गोटे केँ हुनका दिस आकर्षित करै छलै। सब पुतौह हुनका लग नतमस्तक रहैत छलीह। बुढिया मैंयाक हुकुमक अवहेलना कियो नै करैत छल। सबहक लेल हुनका मोन मे नीक भावना छलैन्हि। हम त' हुनकर जाउतक पोता छलौं, मुदा कहियो आन नै बूझलैथ। एहेन बुढिया मैंयाक पौत्र हरिदेव कक्का केर गप सँ हमरा बड्ड छगुनता लागल छल। हम सोचैत रही जे एखन चौबीसो घण्टा नै भेल हुनका मरल आ इ सब हुनका बिसरै मे लागि गेलाह। कियाक एना कियाक। ठीक छै जन्म मरण पर अपन बस ककरो नै छै, मुदा जे एतेक बर्ख धरि हमर धेआन राखलक, की हम ओकरा लेल किछो दिन, किछो बर्ख धरि नै सोची।
यैह सब सोचैत कखनो आँखि लागि गेल। एकाएक हंगामा सँ निन्न टूटल। जल्दी कोठली सँ बहरेलौं। आँगन मे बुढिया मैंयाक तीनू पुतौह वाक् युद्ध मे लीन छलैथ। पता चलल जे बुढिया मैंयाक गहना गुडिया पर बहस होइत छल। श्रीदेव बाबाक कनियाँ एक दिस छलखिन्ह आ रामदेव बाबा आ विष्णुदेव बाबा केर कनियाँ एक दिस। बहसक विषय वस्तु छल एकटा अशर्फी। बुढिया मैंयाक पेटी मे १६ गोट अशर्फी छलै। तीनू पुतौह ५-५ टा हिस्सा लेलाक बाद सोलहम अशर्फी पर भीडल छलीह। पहिने कहा सुनी भेल आओर बाद मे व्यंग्य आ गारिक समायोजन सेहो भेल। हम जल्दी सँ आँगन सँ बाहर दलान पर चलि एलहुँ। ओतुक्का दृश्य कोनो नीक नै छल। बुढिया मैंयाक तीनू पुत्र हुनकर कोठलीक अधिकार एहि विषय पर धुरझार वाक् युद्ध मे लागल छलाह। हमरा इ सीन किछ किछ संसद आ विधान सभाक सीन जकाँ लागै छल। तीनू भाई अपन अपन कण्ठक उच्च स्वर प्रवाह सँ लाउडस्पीकर केँ मात देने रहथिन्ह। एना लागै छल जे एकटा लहाश आइ खसिये पडतै। हम बड्ड डरि गेलौं आ बाबू केँ फोन लगेलियेन्हि- "बाबूजी, एतय त' मारा मारीक भयंकर दृश्य उपस्थित भेल अछि। आब की हेतै।" बाबूजी कहलाह- "अहाँ नै किछ बाजब। यौ दियादी झगडा एहीना होइ छै। फेर मेल भ' जेतैन्हि।" मुदा हमरा नै रहल गेल आ झगडाक स्थान पर जा केँ हम कहलियैन्हि जे बाबा अहाँ सब क्रिया-कर्म हुए दियौ, तकर बाद एहि मुद्दाक समाधान क' लेब। विष्णुदेव बाबा बजलैथ- "समाधान त' आइये हेतै। हमहुँ तैयारे छी।" हम बजलौं- "एना नै भ' सकै ए जे ओहि कोठली केँ बुढिया मैंयाक स्मृति बनाओल जाइ।" एहि बेर श्रीदेव बाबा बजलाह- "बडका ने एला स्मृति बनबाबै वाला। बुढिया की कोनो चीफ मिनिस्टर छलै आ की कतौक प्रेसीडेण्ट।" हम गोंगियाइत बजलौं- "मुदा बाबा ओ हमरा सभक एकटा स्तम्भ छलीह। मजबूत स्तम्भ।" रामदेव बाबा मुस्की दैत हमरा दिस ताकैत बजलाह- "इ छौंडा चारि लाईन बेसी पढि केँ भसिया गेलै हौ। इ नै बूझै छै जे पुरना घर खसैत रहै छै आ नबका घर उठैत रहै छै। बुढिया बड्ड दिन राज केलकै नूनू, आब हमर सबहक राज भेल, हम सब फरिछा लेब।" तीनू गोटे हमरे पर भिड गेलाह। हम तुरत ओहिठाम सँ गाछी दिस निकलि गेलौं, जतय बुढिया मैंया केँ जराओल गेल छलैन्हि। साराझपी नै भेल छल। ओहि स्थान पर छाउर छल, जतय हुनका जराओल गेल छल। हमरा लागल जेना बुढिया मैंया ओहि छाउर मे सँ निकलि हमरा सामने ठाढ भ' गेलीह आ कह' लागलीह- "बउआ अही माटि सँ एकदिन हम निकलल छलौं आ अही माटि मे फेर सँ चलि एलहुँ। अहाँ कथी लेल चिन्तित होइ छी। हमर स्मृति अहाँक मोन मे अछि, सैह हमर पैघ स्मृति अछि। जखन पुरना घर खसै छै ने, त' ओकर मलबा एहिना कात क' देल जाइ छै। ओहि जगह पर नबका घर बनाओल जाइत अछि। हम पुरान घर छलहुँ, खसि परलौं, अहाँ सब नब घर छी, जाउ उठै जाउ आ नाम करू। एहि सँ हमरो आत्मा तृप्त रहत। बिसरि गेलौं, बच्चा मे अहाँ सब केँ घुआँ मुआँ खेलबैत छलौं त' की कहै छलौं नब घर उठै, पुरान घर खसै।" हमरा अपन नेनपनक खेल मोन पडय लागल। बुढिया मैंया अपन ठेहुँन पर चढा केँ घुआँ मुआँ खेलबै छलीह। की इ संसार एकटा घुआँ मुआँक खेल थीक। एहि मे एहिना पुरना घर खसा केँ बिसरि देल जाइ ए आ नबका घर सभ अपन चमक देखबैत रहै ए। हम ओहिठाम सँ सोझे बाजार दिस विदा भ' गेलौं इ बडबडाईत जे नब घर उठै, पुरान घर खसै।

मैथिली गजल


हमरा सँ की नै करेलक सिहन्ता हमर।
सदिखन खाली कनेलक सिहन्ता हमर।

अहाँ भेंटतौं, से हमर कहाँ इ भाग्य छलै,
मुदा अहीं दिस बढेलक सिहन्ता हमर।

सुरूजक आगि सँ बचू, यैह जमाना कहै,
बाट सुरूजक धरेलक सिहन्ता हमर।

चान मुट्ठी मे बन्न कैल ककरो सँ नै भेलै,
हमरा यैह नै सिखेलक सिहन्ता हमर।

"ओम"क सिहन्ता जेना कतौ मरि-हरि गेलै,
सबटा सिहन्ता जरेलक सिहन्ता हमर।
--------------- वर्ण १६ ---------------

Friday 2 December 2011

मैथिली गजल


आउ मजा लिय' शुरू फेर खेल भ' गेलै।
देखू खेलनिहार सब मे मेल भ' गेलै।

कोनो नियम-निष्ठाक जरूरति नै एत',
कोनो दोग सँ ढुकु, ठेलम-ठेल भ' गेलै।

जकरा किछ लागल नै हाथ, हल्ला करै,
जे लेलक मजा ओकरा त' जेल भ' गेलै।

टिकट बाँटै आ काटै केर कबड्डी शुरू,
चुनाव भेलै नै जेना कोनो रेल भ' गेलै।

जीतला पर सुन्नर कोठा-गाडी भेंटत,
बाटक इ धूरि जनताक लेल भ' गेलै।
-------------- वर्ण १५ ------------

Wednesday 30 November 2011

रूबाई


संगी सभ सँ नीक शराब छै, देखू कहियो नै बदलै छै।
एकर निशाँक नै जवाब छै, देखू कहियो नै बदलै छै।
टूटल करेज जोडि दै ए, दुखक ताप केँ करै शीतल,
फेर कहियै कोना खराब छै, देखू कहियो नै बदलै छै।

मैथिली गजल


वाह कतेक मजा अबै छै उठा-पटक मे।
नब-नब दाँव देखबै छै उठा-पटक मे।

सभक मुँह भेलै लाल-लाल कुश्ती लडैत,
सब जोर कते लगबै छै उठा-पटक मे।

छै के संगी, के शत्रु बनल, इ पता नै चलै,
छै अपन मुदा खसबै छै उठा-पटक मे।

प्राण हतने कोना सभ भिडल छै देखियो,
कियो माल देखू बनबै छै उठा-पटक मे।

ककरो हारि गेला सँ बन्न नै भेल दंगल,
हारि झट मुँह उठबै छै उठा-पटक मे।
----------- वर्ण १६ ---------------

मैथिली गजल


पता नै कोन आगि मे जरैत रहल करेज हमर।
पानि नै खाली घीए टा चाहैत रहल करेज हमर।

आनक मरल आत्मा केँ जीया केँ राखैक फेर मे फँसि,
नहुँ-नहुँ सुनगैत मरैत रहल करेज हमर।

एतेक मारि खेलक झूठ प्रेमक खेल मे जमाना सँ,
कियो देखलक नै कुहरैत रहल करेज हमर।

फेर कतौ नै कियो बम फोडि केँ अनाथ करै ककरो,
सूर्योदय होइते धडकैत रहल करेज हमर।

अपना केँ नित जीयाबै मे करेजक खून करैत छी,
खसि-खसि केँ देखू सम्हरैत रहल करेज हमर।

दुख आ सुख मे अंतर करै मे नै ओझरा केँ कखनो,
नब गीत सदिखन गबैत रहल करेज हमर।
---------------- वर्ण २० -----------------------
गुरूदेव आशीष जी केँ सादर समर्पित।

Tuesday 29 November 2011

मैथिली गजल


आईना सदिखन हमरा सत्ते कहै छै।
हमर रूप हमरे देखबैत रहै छै।

चलि गेलौं त' बूझलौं अहाँ हमर नै छी,
बनल विश्वासक किला एहीना ढहै छै।

धार केँ कोन मतलब भूमिक दर्द सँ,
जेम्हरे मोन भेल धार ओम्हरे बहै छै।

देखू प्रेमक अकाल नै छै एहि गाम मे,
उधारक प्रेमक बाढि सँ गाम दहै छै।

ककरो मारबाक चोट सहि लेत "ओम",
मुदा बूझै नै प्रेमक मारि कोना सहै छै।
-------------- वर्ण १५ ---------------

रूबाई


पीनाई त' हम छोडि देब, मुदा पीनाई हमरा नै छोडै ए।
जीनाई त' हम छोडि देब, मुदा जीनाई हमरा नै छोडै ए।
होश मे आबै ले पीनाई छै बड्ड जरूरी, सुनि लिय' यौ दोस्त,
पीबि केँ हम होश मे छी, ढनमनेनाई हमरा नै छोडै ए।

Monday 28 November 2011

मैथिली गजल


आइ-काल्हि सदिखन हम अपने सँ बतियाईत रहै छी।
लोक कहै ए जे हम नाम अहींक बडबडाईत रहै छी।

सब बैसार मे आब चर्चा कर' लागलौं अहींक नाम केर,
सुनि केँ कहै छै सब जे निशाँ मे हम भसियाईत रहै छी।

हमरा लागै ए निशाँ आब टूटि गेल छै पीबि लेला केँ बाद,
सोझ रहै मे छलौं अपस्याँत, आब डगमगाईत रहै छी।

एते बेर नाम लेलौं अहाँक हम, कहियो त' सुनने हैब,
कोन कोनटा मे नुकेलौं अहीं केँ ताकैत बौआईत रहै छी।

एक चुरू अपने हाथ सँ आबि केँ पीया दितिये जे "ओम" केँ,
मरि जइतौं आराम सँ हम, जाहि लेल टौआईत रहै छी।
----------------------- वर्ण २२ -----------------------

Friday 25 November 2011

मैथिली गजल


नित पूछै छै किछ सवाल इ जिनगी।
करै सदिखन नब ताल इ जिनगी।

कखनो बनि दुखक घुप्प अन्हरिया,
लागै मारि सँ फूलल गाल इ जिनगी।

सुखक राग कखनो सुनाबै एना केँ,
रंगल बनि कतेक लाल इ जिनगी।

कहै जिनगी होइत छै जीबैक नाम,
ककरो लेल होइ ए काल इ जिनगी।

जिनगी केँ बूझै मे "ओम" ओझरायल,
जतबा बूझलौं लागै जाल इ जिनगी।
------------- वर्ण १४ -------------

Thursday 24 November 2011

मैथिली गजल


एकटा खिस्सा बनि जइते अहाँ संकेत जौं बुझितहुँ।
हमही छलहुँ अहाँक मोन मे कखनो त' कहितहुँ।

लोक-लाजक देबाल ठाढ छल हमरा अहाँ केँ बीच,
एको बेर इशारा दितियै हम देबाल खसबितहुँ।

अहाँक प्रेमक ठंढा आगि मे जरि केँ होइतौं शीतल,
नहुँ-नहुँ भूसाक आगि बनि केँ किया आइ जरितहुँ।

सब केँ फूल बाँटै मे कोना अपन जिनगी काँट केलौं,
कोनो फूल नै छल हमर, काँटो त' अहाँ पठबितहुँ।

जाइ काल रूकै लेल अहाँ "ओम" केँ आवाज नै देलियै,
बहैत धार नै छलहुँ हम जे घुरि केँ नै अबितहुँ।
------------------ वर्ण २० ---------------------

Wednesday 23 November 2011

मैथिली गजल


हमर नजरि मे पैसि केँ हमर नजरि बनि फडकि रहल छी।
पोर-पोर मे अहीं समेलौं, सीना मे हमर अहीं धडकि रहल छी।

विरह-विष सँ मोन पीडित छल, अहाँक प्रेमक अमृत भेंटल,
प्रेम-सुधा सँ मोन नै भरै, जतबा पीबि ओतबा परकि रहल छी।

हृदयक छल बाट सुखायल, जेकरा सिनेह अहाँक भीजायल,
छन-छन भीजि प्रेमक बरखा मे, तखनो किया झरकि रहल छी।

जिनगीक रौदी केँ अहीं भगेलौं, अहाँ प्रेम-मेघ केर छाहरि केलौं,
भरल हमर आकाश प्रेम सँ, अहाँ छी बिजुरि तडकि रहल छी।

भाव-शून्य "ओम"क छल जे अंतर, जिनगी मे आबि मारि केँ मंतर,
अहीं बनलौं गजल कविता, बनि भाव मोन मे बरकि रहल छी।
--------------------------- वर्ण २५ ---------------------------

Tuesday 22 November 2011

मैथिली गजल


भेंटलै जखने नबका मीत पुरना केँ कोना छोडि देलक।
जकरा सँ छल ठेहुँन-छाबा, हमर मोन के तोडि देलक।

सपथक नै कोनो मालगुजारी, सपथक नै बही बनल,
संग जीबै-मरैक सपथ खा केँ जीबतै डाबा फोडि देलक।

ओकरा लग छै ढेरी चेहरा, हमरा लग बस एके छल,
अपन भोरका मुँह पर नब मुँह साँझ मे जोडि देलक।

जिनगी-खेत मे विश्वास-खाद द' प्रेमक बीया हम बुनल,
धोखा केर कोदारि चला केँ देखू लागल खेती कोडि देलक।

"ओम" प्रेमक घर बनेलक, ओकरा बिन छै सून पडल,
बाट जे जाइ छल ओहि घर मे, कोनो जोगारे मोडि देलक।
---------------------- वर्ण २२ --------------------

Friday 18 November 2011

मैथिली गजल


कतौ छै रौदी प्रचंड, कतौ बरखा सँ हरान छै।
कतौ छै फूजल मोन, कतौ बन्न पेटी मे प्राण छै।

ककरो भेल अपच, कियो देखू भूखले मरल,
कतौ छै होइत भोज, कतौ उजडल दोकान छै।

एके कलम सँ लिखलक किया भाग्य नै विधाता,
कतौ छै तृप्त हृदय, कतौ छूछे टा अरमान छै।

कियो मुट्ठी मे समेटने कते इजोत छै बैसल,
कतौ छै जे सून घर, कतौ भरल इ दलान छै।

अचरज सँ देखै छै "ओम" लीला एहि दुनियाक,
कतौ छै इ मौनी खाली, कतौ बखारी भरि धान छै।
------------------- वर्ण १८ ------------------

Thursday 17 November 2011

डीहक जमीन


डीहक जमीन
ट्रेन सकरी टीशन सँ फूजल आ पूब दिस घुसक' लागल। नरेश एकटा बोगी मे अपना सीट पर बैसल अपन गामक बात सब मोन पाडैत विचारमग्न भ' गेल। बहुत दिनक बाद ओ अपन गाम जा रहल छल। भरिसक १० बरखक बाद। ओ एखन भोपाल मे शिक्षा विभाग मे नौकरी करैत छल अधिकारीक पद पर। गाम जाय लेल चिकना टीशन उतरि क' जाय पडै छलै। सकरी तक बडी लाईनक ट्रेन चलैत अछि। ओतय सँ फेर छोटी लाईनक ट्रेन सँ। ओकरा बोगी मे पूरा लोक कोंचल छल। चारि पसिन्जरक सीट पर सात-आठ लोक बैसल छल। हो-हल्ला आओर गप-शप सँ पूरा डिब्बा मे कोलाहल जकाँ छलै। मुदा ओकर दिमाग मे अपन पुरनका दिन घुरिया लगलै। सबटा दृश्य चलचित्र जकाँ ओकर आँखिक आगाँ घूम' लगलै। ओ अपना केँ २० बरख पहिनुका स्कूल मे देख' लागल। बस्ता ल' के नित भोरे पाठशाला जेबाक दृश्य आगाँ मे नाच लगलै। ओकर पिता फेंकन मरड हरवाह छला आओर गाम मे भुटकुन बाबू ओतय खेतीक आ माल-जालक काज करै छला। किछ बटाई पर खेती सेहो करै छला। अपन जमीनक नाम पर पाँच कट्ठा खेतीक जमीन आ आठ धूरक घरारी छलैन्हि। हुनकर माय 'मरौनावाली' केर नाम सँ जानल जाईत छलीह। भरि दिन मरौनावाली भुटकुन बाबू ओतय घरेलू काज मे मदति करैत छलीह आ साँझे घर आबै छलीह। नरेश बच्चा छलाह आ भरि दिन एम्हर ओम्हर खेलाइत रहैत छलाह। एक दिन भुटकुन बाबू फेंकन केँ कहलखिन्ह जे नरेशवा भरि दिन टौआइत रहै छौ, कियाक नै ओकरा हमरा एहिठाम चरवाही मे पठा दैत छी। फेंकन बजलाह- "गिरहत, ई गप नै कहियौ, ओ एखन मात्र चारि बरख के छै। ओकरा अगिला बरख सँ स्कूल पठेबै।" भुटकुन बाबू व्यंग्य मे बजलाह- "तौं त' एतबे टा सँ हमरा एहिठाम चरवाही करै छलैं। तखन तोहर बाबू हरवाही करै छलखुन्ह, मोन छौ ने।" फेंकन कहलक- "जी ओ जमाना आब नै छै गिरहत। मरौनावाली एकदम जिद केने छै जे नरेशबा केँ स्कूल पठबियो। किछ दिन पहिने बिसेसर बाबू मास्टर साहब भेंटल छलाह। ओ कहलथि जे पढेनाई बड्ड जरूरी छै तैं नरेशबा केँ स्कूल पठाबहक।" भुटकुन बाबू- "जे तोहर इच्छा। हम त' तोरे दुआरे कहलियो। तोहर काज किछ हल्लुक भ' जइतो।" फेंकन- "गिरहत, हम जा धरि सकब, ता धरि अहाँ केँ काज करैत रहब।"
अगिला साल नरेशक नाम स्कूल मे लिखाओल गेल। नरेश पढै मे नीक छलाह आ जल्दिये मास्टर सबहक प्रिय भ' गेलाह। दसवीं बोर्ड मे ओकरा अस्सी प्रतिशत अंक आयल। ओ काओलेज मे पढै लेल दरिभंगा चलि आयल आओर ट्यूशन पढा केँ अपन खर्च निकालैत पढ' लागल। ओम्हर गाम मे फेंकन आओर मरौनावाली भुटकुन बाबूक काज मे लागल रहल। नरेशक पढाई पूरा भेलै आ मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोगक इम्तिहान पास क' के शिक्षा विभाग मे नौकरी भेंटलै। नियुक्ति पत्र गामक पता पर आयल छल आओर सौंसे गाम अनघोल भ' गेल रहै। ओहि दिन नरेश अपना केँ आकाश मे उडैत पाओलक। भुटकुन बाबू जे आब वृद्ध भ' गेल छलाह ओहो नरेश केँ बजा के आशीर्वाद देलखिन्ह। मरौनावाली त' कानैत बेहाल छल जे बेटा आब नजरि सँ दूर भ' जायत। किछ दिनक बाद नरेशक बियाह भ' गेलै। किछ दिन कनियाँ गामे मे रहलैन्हि। फेर जयबाक जिद क' देलकै। नरेश कनियाँ केँ ल' के भोपाल चलि गेल। मरौनावाली ओहि दिन बड्ड कानल रहै। नरेश अपन माता पिता कैँ संगे रहै लेल बहुत आग्रह केलक, मुदा फेंकन साफ मना क' देलकै। ओकर कहनाई रहै जे पुरखाक डीह छोडि नै जायब। नरेश कहलक जे ई आठ धूर डीह अहाँ केँ एतेक प्रिय भ' गेल जे अपन एकलौता संतान संगे रहै लेल तैयार नै छी। ओतय नाना प्रकारक सुविधाक गप सेहो नरेश कहलकै, मुदा फेंकन अपन जिद पर अडल रहलाह। मरौनावाली कनी जिद केलखिन्ह, त' फेंकन खिसिया गेला आओर कहलखिन्ह जे अहाँ चलि जाउ, हम असगरे रहब। मरौनावाली धर्मसंकट मे पडि गेली आ अंत मे गामे मे रहै केँ निर्णय लेलथि। नरेश नियमित रूप सँ गाम पाई पठबैत रहै आओर फेंकन के हरबाही जबरदस्ती छोडा देलक। फेंकन साल दू साल पर नरेश लग जाइत रहै छलाह आओर नरेश काजक अधिकता आओर बच्चा सबहक पढाई दुआरे गाम कहियो नै आबैत छलाह। आब मोबाइलक जमाना मे नरेश फेंकन केँ मोबाइल सेहो कीन देने छलखिन्ह, जाहि सँ ओ सब नियमित रूप सँ सम्पर्क मे रह' लगलाह। एक दिन फेंकन मोबाइल सँ नरेश केँ फोन केलखिन्ह आ कहलखिन्ह- "बौउआ, अपन डीह सँ सटल भुटकुन बाबू केर दू कट्ठा जमीन परती पडल छै। ओ ओहि जमीन केँ बेच' चाहैत छैथ। हमरा कहलैथ जे तौं ओ जमीन कीनब' त' हम तोरा पच्चीसे हजार मे द' देब'। बौउआ ओहि जमीनक कीमत चालीस हजार सँ कम नै छै। नीक मौका छै। पाई पठा दितहक त' हम तोरे नाम सँ वा तोहर कनियाँक नाम सँ जमीन कीन दितिय'।" नरेश चोट्टे खिसिया गेल आ बाजल- "हमरा गाम सँ कोनो मतलब नै अछि। अहाँ बलौं जमीन कीन' चाहै छी। हम त' सोचै छी जे आठ धूरक डीह आ पाँच कट्ठा खेतीवाला जमीन बेची आओर गाम सँ पिण्ड छोडाबी।" फेंकन- "हमरा जीबैत ई काज नै हेतौ। पुरखाक जमीन बेचबाक बात तोहर मोन मे कोना केँ एलौ। तू ओहि गाम सँ पिण्ड छोडेबाक गप करै छ, जतय नेना मे खेलेलह, जतुक्का पानि पीबि केँ नमहर भेल', जतय तोहर बाप-दादा केर सारा छ। तू डीहक नबका जमीन नै कीन, मुदा पुरनका बेचै केँ गप नै कर।" अस्तु नबका घरारी कीनबाक गप एतहि खतम भ' गेल।
एक दिन नरेशक बडकी बेटी सुनन्दा, जे चौथा मे पढै छल, नरेश केँ कहलक- "पापा, जेना हम अहाँ संगे रहै छी, अहूँ त' बच्चा मे बाबा संगे रहैत हैब।" नरेश- "हाँ, रहैत छलहुँ। सब रहैत अछि।" सुनन्दा- "अहाँ के सब गप मानैत हेता बाबा।" नरेश- "हाँ यथासम्भव मानैत छलाह।" सुनन्दा- "अहाँ बड्ड नीक छी पापा। हमर सब गप पूरा करै छी। हमहुँ नमहर भ' केँ अहाँक सब गप जरूर मानब।" ई कहैत ओ खेलाई लेल चलि गेल। ओकर अन्तिम वाक्य सुनि नरेश धक् रहि गेल। ओकरा अपन नेनपनक सब गप मोन पडय लागलै, जे कोना फेंकन फाटल धोती पहिरैत रहल, कोना मरौनावाली फाटल नुआ पहिरैत रहलीह, मुदा नरेशक पढाई मे कोनो बिथुत नै हुअ देलखिन्ह। एक बेर त' नरेश केँ फार्म आ किताब लेल पाँच सय टका भुटकुन बाबू सँ पैंच लेबा मे कोन कोन गप नै फेंकन केँ सुन' पडल छलै। नरेशक मोन मे विचारक तूफान उठि गेल। ओ घर सँ बाहर निकलि केँ घूम' लागल। घूमैत पार्क दिस चलि गेल। ओतय एकटा गाछ पर एकटा चिडै अपन बच्चा सब केँ चोंच मे दाना दैत छल। ओकर हृदय फाट' लागलै। पण्डितजी केर संस्कृतक कक्षा मोन पड' लागलै जाहि मे ओ "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि" पर लगातार दू घन्टी पढबैत रहि गेल छलखिन्ह। ओ कक्षा नरेश केँ बड्ड नीक लागल रहै। कतेक दिन धरि ओ एहि श्लोकक पाठ करैत रहै छल। एहि विषय पर वाद विवाद प्रतियोगिता मे सेहो ओ नीक बाजल छल आओर जिला स्तर पर पुरस्कार सेहो भेंटल छलै। ओ एकटा निर्णय लेलक आओर डेरा आबि केँ कनियाँ सँ कहलक- "हमर अटैची तैयार क' दिय'। हम गाम जायब।" कनियाँ बाजलैथ- "इ की बाजै छी। ओतय एखन जा क' की करब? दस बरख सँ उपर भेल गाम गेला। के चिन्हत? बाबूजी सँ नित गप होयते अछि।" नरेश- "डीहक जमीन कीनै लेल जाइत छी।" कनियाँ- "इ कोन बतहपनी धेलक अहाँ केँ।" नरेश- "बताह त' एखन धरि छलहुँ। आब ठीक भ' गेलौं। जाहि मातृभूमि केर माटि-पानि सँ हमर देह पोसल अछि, जे मातृभूमि हमरा हमर पहचान देलक, ओकरा हम बिसरि गेल छलौं। माय-बाबूक आकांक्षा आ मनोरथ बिसरि गेल छलौं। एतय भोपाल मे सब सुविधा अछि, मुदा जे अपनैती हमरा गाम मे भेंटैत रहै तकर अभाव बुझाइत रहै ए। आब गाम साल मे एक बेर त' जरूर जायब।" कनियाँ कनी काल घमर्थन केलकैन्हि, मुदा हुनकर जिद आ दृढताक आगाँ चुप भ' गेलै।
एकाएक नरेशक भक् टूटल। बगलक यात्री, जिनका सँ सकरी मे परिचय भेल रहैन्हि, हुनका हिलबैत कहैत रहै जे श्रीमान् चिकना आबि गेलै, कतेक सुतब, उतरू नै त' ट्रेन फूजि जैत। मुस्की मारैत नरेश बजलाह- "नै यौ, आब जागि गेल छी। एखन धरि सुतल छलहुँ।" इ कहैत ओ टीशन पर उतरि गेल आ गाम दिस चलि देलक। डेग जेना हल्लुक भ' गेल रहै आ तुरन्ते गाम पहुँचि गेल। फेंकन एकाएक नरेश केँ देखलक त' आश्चर्य भेलै आओर मरौनावाली भरि पाँज मे बेटा केँ पकडि कान' लागल। नरेश फेंकन के गोर लागि केँ कहलक- "बाबू, हम आबि गेलौं डीहक जमीन कीनबाक अछि ने।"
साँझ मे दुनू बापूत भुटकुन बाबू लग गेलाह। भुटकुन बाबू नरेश केँ आशीर्वाद दैत कहलखिन्ह- "गाम केँ कोना बिसरि गेलहक?" नरेश- "नै बाबा, बिसरल नै छलौं, कतौ हरा गेल छलौं। आब आबि गेलौं। डीहक जमीन कीनै लेल।" भुटकुन बाबू हँसैत बजलाह- "चल काल्हिये रजिस्ट्री क' दैत छियो। पाई आगाँ पाँछा द' दिह'।" नरेश- "पाई आनने छी बाबा।"
साँझ मे फेंकनक छोट दलान लोक सँ भरल छल। मरौनावाली रहि रहि के चाह बनाबैत छल। नरेशक गाम मे आओर ओकर घर मे जेना पावनि-तिहारक चुहचुही छलै।

Wednesday 16 November 2011

मैथिली गजल


पिया जुनि करू बलजोरी, लोक की कहत।
प्रेम करू मुदा चोरी-चोरी, लोक की कहत।

तन्नुक शरीर मोरा यौवन उफनायल,
चुप्पे बान्हू अहाँ प्रेम-डोरी, लोक की कहत।

थमल नै डेग, अहाँ प्रेम-नोत पठाओल,
हम आब बनलौं चकोरी, लोक की कहत।

श्याम रंग मे अहाँक मोर अंग रंगायल,
दीयाबाती मे खेललौं होरी, लोक की कहत।

"ओम"क प्रिया इ आतुर मोन केँ बुझाओल,
कतेक कहब कर जोडि, लोक की कहत।
-------------- वर्ण १६ --------------

Tuesday 15 November 2011

मैथिली गजल


ओ हमरा बिसरि गेल जे गाबैत रहै छल हमर गीत।
शहरक हवा लागि गेलै आब भेल शहरी हमर मीत।

मोनक कोनटा मे नुकेलक नेनपनक सभ क्रीडा-खेल,
खाइ छलै संगे पटुआ, ओकरा लागै मधुर हमर तीत।

छल जुटल जकरा संग हृदय हमर, रहितो काया दू,
हमरा हरबैथ आब, अपमान बूझैथ ओ हमर जीत।

दोस्तीक सपथ खाइत नै छलै अघाइत ओ हमरा संग,
भसकेलक घर दोस्तीक, द्वेषक बनि गेल हमर भीत।

मीत घुरि आबू, एखनहुँ "ओम"क हृदय मे अहींक वास,
फेर बहाबियो धार दोस्तीक, जे छल अहाँक हमर रीत।
-------------------- वर्ण २२ ---------------------
(हमर नेनपनक मीत केँ समर्पित, जे हमरा बिसरि गेला)

Monday 14 November 2011

मैथिली गजल


घोघ तर सँ चान उगल, अँगना मे इजोर पसरि गेलै।
मोन हमर छल बान्हल, किया आइ अपने पिछडि गेलै।

मृगनयनी, मोनमोहनी, चंचल नयन सँ प्राण हतल,
मुख पर नयन-कमल, जै सुरभि सँ मोन पजरि गेलै।

सुनि अहाँक वचन, भ' प्रेम मगन, मोन-मयूर नाचल,
प्रेम-बोली तोहर सुनल, इ हृदय नाचि केँ ससरि गेलै।

हिय-आँगन, पायल झन-झन, संगीत मधुर छै बाजल,
रोकि कोना जे मोन नाचल, नै कहब किया नै सम्हरि गेलै।

अहाँक अजगुत रूप देखि केँ, भाव "ओम" रोकि नै सकल,
जे किछ छल मोन राखल, कोना देखू सबटा झहरि गेलै।
---------------------- वर्ण २२ ---------------------

Friday 11 November 2011

मैथिली गजल


कर जोडै छी सरकार आब रह' दियौ।
कते करब भ्रष्टाचार आब रह' दियौ।

'टू जी', चारा, खान घोटाला, किछो नै छूटल,
भरि गेल अछि 'तिहाड' आब रह' दियौ।

मुखिया बनै सँ पहिने चलै छलौं पैरे,
कोना चढ' लगलौं कार आब रह' दियौ।

कण्ठ मोकि जनताक कते राज करब,
जनता नै छै यौ लाचार आब रह' दियौ।

कोना फूसि बाजि अहाँ "ओम" केँ ठकि लै छी,
केलियै लाजक संहार आब रह' दियौ।
----------- वर्ण १५ ----------------

Thursday 10 November 2011

मैथिली गजल


मिझबै लेल पेटक आगि देखू पजरि रहल छै आदमी।
जीबाक आस धेने सदिखन कोना मरि रहल छै आदमी।

डेग-डेग मँहगी केर निर्दय जाँत मे पीसल राति दिन,
पीयर मुँह बिहुँसि केँ उठौने कुहरि रहल छै आदमी।

जनसंख्याक नांङरि कियाक बढले जाइ ए बिन थाकल,
फसिलक उपजा कम भेल, सौंसे फरि रहल छै आदमी।

स्वार्थक एहन बिहाडि चलल छै आइ मनुक्खक गाम मे,
सम्बन्धक झरकल गाछ सँ आब झरि रहल छै आदमी।

कहियो हँसीक ईजोर पसरतै "ओम"क अन्हार टोल मे,
यैह सोचैत सलाई विश्वासक रगडि रहल छै आदमी।
-------------------- वर्ण २२ ---------------------

Wednesday 9 November 2011

मैथिली गजल


हमर हृदयक कुंज-गली मे विचरैत मोनक मीत अहीं छी।
गाबि-गाबि जे मोन सुनाबै सदिखन ओ राग अहीं गीत अहीं छी।

जिनगी हमर पहिने कहियो एते सोअदगर किया नै छल,
सबटा सोआद अहीं मे छै बसल, मीठ, नोनगर, तीत अहीं छी।

आँखिक बाट मोन मे ढुकि केँ प्रेमक घर आलीशान बनेलियै,
ओहि घरक कण-कण मे छै नाम अहींक, ओकर भीत अहीं छी।

जुग-जुग सँ प्रेमक धार मे अहीं हमर पतवार बनल छी,
हमर प्रेमक दुनियाक सुन्नर रंग सबटा आ रीत अहीं छी।

"ओम"क मोन केर कोन-कोन मे बसल रहै छै अहींक सुरभि,
आब ई जमाना सँ की लेनाई प्रिये, हमर हार आ जीत अहीं छी।
------------------------- वर्ण २४ --------------------------

Tuesday 8 November 2011

मैथिली गजल


गजल

बालुक भीत  बनल  जिनगी चमकै छै कोना।
सुखायल ई  फूल  सम्बन्धक गमकै छै कोना।

नकली मुस्कीक  भीड मे  हरायल कतौ हँसी,
चिन्ता भरल मुँह पर मुस्की  दमकै छै कोना।

पैघ भेल  जाइ छै  मनुक्ख,  झूस विचार भेलै,
कर्म-धार  मे हल्लुक  विचार जमकै छै कोना।

भ'  रहलै  तमाशा  नाचक  बिना सुर-ताल के,
सरगम  कतौ नै  मुदा  पैर  झमकै छै कोना।

काठक  बनल  लोक  रहै छै  ऊँच  मकान मे,
जे सुनै छै कियो नै किछ, "ओम" बमकै छै कोना।
------------------- वर्ण १७ ------------------

Friday 4 November 2011

मैथिली गजल


किया एना ई भ' गेल छै देखू उनटा व्यवहार।
हर वहै से खढ खाय छै, बकरी खाय अचार।

ककरो तन नै झाँपल, कियो आडम्बर छै केने,
कियो तरसल बूँद लेल, लागल कतौ सचार।

रामनामा ओढि केँ आबै भीतर रखने खंजर,
छै जकर मोन दरिद्र, हमरा देलक हकार।

महगी केर बाण चलै छै चाम देहक नोचैत,
जन-जन ओ बाण सहै भूशायी पडल लाचार।

जीबै केर अधिकार छिनायल "ओम" देखू कोना,
'सुनामी' बनि तडपैत मोन मे भरल विचार।
--------------- वर्ण १८ -----------------

Thursday 3 November 2011

मैथिली गजल


धरल रहि जैत होशियारी, मोटरी बान्हने की हैत।
जखन टूटल अछि केवाडी, यौ ताला भरने की हैत।

नीमक पात तर चानन कानै ई कोन रीत रचेलै,
जे ई सवार बनल सवारी, नाक रगडने की हैत।

केहेन गाछी अहाँ लगेलौं जे भूताहि भेल जाइ ए यौ,
बढबै लागै जखन बेमारी, दवाई कीनने की हैत।

झरकल मुँह केँ झाँपने नीक होइत छै सदिखन,
राखले रहि जैत ई तैयारी, मुँह केँ रँगने की हैत।

शीशा महग भेल हीरा सँ "ओम" केँ अचरज लागल,
राखले घर भरल बखारी, सगरो कानने की हैत।
------------------ वर्ण २० -------------------

Friday 28 October 2011

मैथिली गजल


आगि पजरलै जखन, धुआँ उठबे करत यौ।
इ प्रेम मे डूबल मोन खिस्सा रचबे करत यौ।

किया करेज पर खंजर नैनक अहाँ चलेलौं,
ककरो खून भेलै इ दुनिया बूझबे करत यौ।

होइ छै प्रेमक डोरी तन्नुक, एकरा जूनि तोडू,
जोडबै तोडल डोरी गिरह बनबे करत यौ।

राम-नाम मुख रखने प्रेमक बाट नै धेलियै,
प्रेमक बाट जे चलबै मुक्ति भेंटबे करत यौ।

बीत-बीत दुनियाक प्रेमक रंग मे रंगि दियौ,
"ओम"क इ सपना अहाँ संग पूरबे करत यौ।
---------------- वर्ण १८ ----------------

Tuesday 25 October 2011

मैथिली गजल


मुस्की अहाँक हमर काल बनल अछि।
नैनक चालि जी केँ जंजाल बनल अछि।

अहाँ केँ देखि सुरूज कोनटा नुका गेल,
लाल अहाँक एहन गाल बनल अछि।

लिखते रहै छी पाती अहाँ केँ प्रिये हम,
राखै छी घरे पातीक टाल बनल अछि।

हमरो सुधि कखनो लियौ ने प्रियतम,
अहीं केँ सुमिरैत की हाल बनल अछि।

"ओम" दीप बनि जरै इजोत अहीं लग,
देखू प्रेमक खिस्सा विशाल बनल अछि।
-------------------वर्ण १५--------------------

मैथिली गजल


आउ मिल मोनक दीप जराबी दियाबाती आबि गेलै।
सिनेह तेल, हिया बाती बनाबी दियाबाती आबि गेलै।

अंगना मे फेरता ऊक बाबा दुख रोग भगाबै लेल,
डाह-घृणा केँ हम ऊक घुमाबी दियाबाती आबि गेलै।

दरिद्रा आब कतौ नै रहतै जे सूप डेंगाओल जैत,
मैंया संगे सगरो सूप डेंगाबी दियाबाती आबि गेलै।

हलुआ-पूडी, लड्डू-बताशा सबहक घर बनल छै,
आइ खूब प्रेम-मधुर खुआबी दियाबाती आबि गेलै।

मँहगी, गरीबी, बेरोजगारी, हिंसा केँ नाच पसरल,
"ओम" संग इ सब दूर भगाबी दियाबाती आबि गेलै।
-------------------वर्ण २०--------------------

Monday 24 October 2011

मैथिली गजल


पिया हमर रूसल जाइत किछ नै बजै छैथ।
करब हम कोन उपाय ककरो नै सुनै छैथ।

बड्ड जतन सँ कोठा बनल जे सून पडल छै,
कत' सँ भेंटल हकार पिया घुरि नै तकै छैथ।

आउ सखि शृंगार करू मोर पिया केँ मोन भावै,
कोन निन्न मे सूतला हमरा किया नै देखै छैथ।

चानन काठ केर महफा छै बहुत सजाओल,
ओहि मे ल' चलल पिया केँ कनियो नै कनै छैथ।

सासुरक सनेस पर "ओम" केँ लागल उजाही,
नैहरक सखा सभ छूटल यादि नै आबै छैथ।
----------------वर्ण १८-----------------

मैथिली गजल


धार नहि होइ ए मुक्त, बान्ह केँ कोना के तोडब।
बहैत हवा मुट्ठी मे बन्न हम कोना के करब।

सपना होइ छै सपना कतबो सोहाओन हुए,
निन्न टूटै पर ओकरा अपन कोना के कहब।

अनकर आस बेनियाक बसात सत्ते कहै छै,
ककरो मुँह केँ ताकैत आस मे कोना के रहब।

नोंचि लेलियै कियाक अहाँ सुन्नर पंख चिडै केँ,
बिन पंख आकाशक नोत आब कोना के पूरब।

बिलमि जइयो कनी "ओम"क गाम मे किछ खन,
केहन छै गाम हमर से अहाँ कोना के बूझब।
-----------------वर्ण १८-----------------

Thursday 20 October 2011

हिन्दी गजल


रुखसत की इजाजत क्यों हमसे माँगते हैं वो।
नहीं रुखसत का चलन यहाँ ये जानते हैं वो।

चस्पा हैं उनकी यादें दिल के अन्दर करीने से,
इन यादों को दिल से मिटाना कहाँ जानते हैं वो।

उनके रहते हम बहुत निश्चिन्त रहते थे,
अब होगा क्या मेरा खूब मुझे पहचानते हैं वो।

खुश रहें फूले-फलें, हमको याद करते रहें,
यकीन है कि हमको अपना साया मानते हैं वो।

फूलों की तरह खिलते रहें, "ओम" की यही दुआ,
नम आँखों से निकली दुआ पढना जानते हैं वो।

Wednesday 19 October 2011

सफल अधिकारी


एकटा लघुकथा प्रस्तुत करैत छी। एहि कथाक सबटा पात्र आओर घटना काल्पनिक अछि। जौं किनको सँ कोनो साम्यता हैत त' इ मात्र संजोग हैत, जाहि लेल हम अग्रिम क्षमाप्रार्थी छी।

                                                    सफल अधिकारी
वातानूकुलित चैम्बरक शीतल हवा मे रिवॉल्विंग चेयर पर आराम से अर्द्धलेटल अवस्था मे बैसल छलाह श्री बिमलेश चन्द्र। जी हाँ श्री बिमलेश चन्द्र, जे हमर विभागक एकटा सफल आयकर अधिकारी मानल जायत छैथ। हुनकर प्रभावी व्यक्तित्वक आगाँ पूरा विभाग नतमस्तक रहैत अछि। जतय ककरो कोनो काज अटकल कि श्री बिमलेश तुरत यादि कैल जायत छैथ। की अधिकारी आओर की कर्मचारी, सभ गोटे हुनकर काज कराबै केर क्षमता आओर हुनकर व्यक्तित्वक लोहा मानैत छैथ। आई वैह बिमलेश जी किछ शोचपूर्ण मुद्रा मे अपन कुर्सी मे घोंसियायल छलाह। हम भीतर ढुकबाक आज्ञा माँगलियैन्ह त' बिना डोलल संकेत सँ बजेलाह आओर हम ओहि सुन्नर वातानूकुलित कक्ष मे प्रवेश कय गेलहुँ। एतय इ बता दी जे जहिया सँ हमर विभाग मे कम्प्यूटर जीक पदार्पण भेलन्हि, तहिया सँ सभ अधिकारीक कक्ष वातानूकुलित भ' गेल अछि। ओना इ अलग गप थीक जे इ वातानूकुलन कम्प्यूटर जी लेल भेल छैन्ह। हम बिमलेश जी सँ चिन्ताक कारण पूछलियैन्हि। ओ बजलाह- "जहिया सँ मयंक सर गेलाह आओर खगेन्द्र सर एलाह, तहिया सँ हम चिन्तित छी।" मयंक शेखर हमर सभक आयकर आयुक्त छलाह जिनकर बदली भ' गेलन्हि आओर हुनका स्थान पर खगेन्द्र नाथ जी नबका आयुक्तक पदभार ग्रहण केलखिन्ह। हम कहलियैन्ह- "यौ एहि गप सँ चिन्ताक कोन सम्बन्ध? कियो आयुक्त रहथि, अपना सभ केँ त' काज करै केँ अछि, से करैत रहब।" बिमलेश- "अहाँ एहि दुआरे फिसड्डी छी आओर सदिखन अहिना फिसड्डी रहब।" हम चुप रहि केँ पराजय स्वीकार केलहुँ आ एहि सँ आओर उत्साहित होयत ओ बजलाह- "अहाँ बुडिराज छी। इ जनतब राखनाई बड्ड जरूरी अछि जे नबका सर कोन मिजाजक लोक छैथ।" हम- "से कियाक?" ओ अपन ज्ञान सँ हमरा आलोकित करैत कहलाह- "मिजाजक पता रहत तहन ने ओहि अनुरूपे काज कैल जेतई।" फेर ओ सोझ भ' केँ बैस गेलाह आओर एकटा नम्बर दूरभाष पर डायल करैत बजलाह जे मयंक सर केँ फोन करै छियैन्हि। ओकरा बाद एकटा चुप्पी आओर फेर बिमलेश जी मुस्की दैत विनीत भाव मे दूरभाषक चोगा पर बाजलैथ- "प्रणाम सर। हम बिमलेश।"
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"जी सब नीके छै अपनेक आशीर्वाद सँ।"
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"जी अहाँ संगे काज करय केर आनन्द किछ आओर छल। अहाँक विषयक पकड आओर अहाँक ज्ञान------- ओह सभ मोन पडैत अछि।"
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"झूठ नै कहै छी। अच्छा सर अहाँक सामान सभ पहुँचल की नै? सॉरी सर, एक दिन बिलम्ब भ' गेल, ट्रान्सपोर्ट मे ट्रक खाली नै छल।"
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"जी इ अपनेक महानता अछि। नहि त' हम कोन जोगरक लोक छी। कोनो आओर काज हुए त' कहब जरूर सर।"
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"जी प्रणाम सर।" इ कहैत ओ दूरभाषक सम्बन्ध विच्छेद करैत हमरा पर विजयी मुस्की फेंकलैथ आओर अपन आँखि हमर आँखि मे ढुकबैत कहलैथ जे कहू आर की हाल चाल। हम- "नीके छी यौ। बजबय लेल आयल छलहुँ। चलू नबका आयुक्तक चैम्बर मे मीटिंग अछि।" ओ तुरत हमरा संगे चलि देलैथ आओर हम सब आयुक्त महोदयक चैम्बर पहुँचलहुँ जतय सभ अधिकारी बैसल छलाह। मीटिंग शुरू भेल। एकटा चुप्पी ओहि कक्ष मे पसरि गेल। हमरो विभाग मे आन सरकारी विभाग जकाँ भरि साल मीटिंग चलैत रहैत अछि। एहि विषय पर एकटा ग्रन्थ लिखल जा सकैत अछि जे मीटिंगक कतबा फायदा अछि। खैर मीटिंग मे आयुक्त महोदय अधिकारी सभ केँ खूब पानि पियेलखिन्ह आओर खराब प्रदर्शनक लेल पुरकस डाँट सेहो भेंटल। कहुना मीटिंग खतम भेल आओर हम सभ ओहिना पडेलहुँ जेना बिलाडिक डर सँ मूस परायत अछि। मुदा बिमलेश जी फेर सँ अनुमति ल' केँ भीतर ढुकलाह आओर आयुक्त सँ कहलखिन्ह- "प्रणाम सर, हम बिमलेश।" आयुक्त भावरहित बजलाह- "बैसू।" हमर विभाग मे कोनो नबका अफसर आबैत छैथ त' विभिन्न अधिकारी आओर कर्मचारी केर खासियत सँ हुनका परिचित करेबा मे किछ लोक आगाँ रहैत छैथ। बिमलेश जीक (कु)ख्याति सँ आयुक्त महोदय नीक जकाँ परिचित क' देल गेल छलाह। भाव विहीन चेहरा सँ आयुक्त महोदय बिमलेश जी केँ कहलखिन्ह- "अहाँक रेकॉर्ड त' बड्ड खराब अछि। किछ काज नै भेल अछि।" बिमलेश जी पैंतरा बदलैत बजलाह- "सच पूछू सर त' एहि लेल अपनेक मार्गदर्शन लेल हम आयल छी। एहि चार्ज मे कहियो ठीक सँ काज नहि भेल। आब अहाँ केँ अयला केँ बाद सभ ठीक भ' जेतै।" आयुक्त महोदय कनी नरम भेलाह आओर अपन योजना पर चर्चा करय लगलाह। बिमलेश जी मन्त्र मुग्ध भ' केँ मुस्की दैत हाँ हूँ करैत सुनैत रहलाह। गप खतम भेला केँ बाद बिमलेश जी कहलखिन्ह- "सर अहाँक डेरा पर सामान उतारबाक लेल ५ टा लोक पठा देने छी आओर रातिक खेनाई डिलाईट होटल मे आर्डर क' देने छी।" आयुक्त महोदय किछ नहि बजलाह। ओकर बाद पता चलल जे बिमलेश जी केँ नियमित बोलाहट होबय लागलैन्हि आयुक्त महोदय लग। दू मासक बाद आयकर अधिकारीक बदलीक आर्डर आयुक्त महोदय केँ आफिस सँ निकलल। श्री बिमलेश जी केँ अपन कार्यालय मे छोडैत एकटा आओर कार्यालय केर अतिरिक्त प्रभार देल गेलन्हि। संगहि आयकर अधिकारी (मुख्यालय) केँ अतिरिक्त प्रभार सेहो देल गेलन्हि। हमर पदस्थापन एकटा दूरक जिला मे क' देल गेल छल। साँझ मे बिधुआयल मुँह लेने घर पहुँचलहुँ। कनियाँ मुँह फुलेने बैसल छलीह, कियाक त' हुनका पहिने बदलीक समाचार भेंट गेल छलैन्हि। हमरा दिस तिरस्कार केँ संग देखैत बजलीह- "अहाँ त' ओहिना बुडिबक रहि गेलहुँ। बिमलेश जी केँ देखियौन्ह, कतेक सफल अधिकारी छैथ। सभक पसिन्न छैथ।" हम मौन रहि केँ हुनकर गप सुनैत अपन पराजय स्वीकार केलहुँ।

Monday 17 October 2011

मैथिली गजल


रूसल छै कपार कहियो बौंसेबे करतै।
मोन रहतै टूटल कते जोडेबे करतै।

सागरक कात सीप बिछैत रहब हम,
कोनो सीप मे कखनो मोती भेंटेबे करतै।

क्षितिजक बाट केँ हम धेने छी सदिखन,
आकाश मे हमरो हिस्सा कनी हेबे करतै।

सजबै छी अपन उपवन एहि आस मे,
उजडल घर मे सुगंध भरेबे करतै।

कियो मानै नै मानै "ओम" इ कहिते रहत,
नैन रहतै नै पियासल जुडेबे करतै।
.......................वर्ण १६.......................

Friday 14 October 2011

मैथिली गजल


जखन मोन मे प्रेमक आँकुर फूटल, तखन प्रेमक गाछ निकलबे करत।
जखन जवानीक ककरो लुत्ती लागल, तखन प्रेमक धधरा उठबे करत।

प्रेम छै रामायण, प्रेम छै गीता पुराण, प्रेम छै पूजा-पाठ, प्रेम ईश-भगवान,
जखन इ मोन पवित्र मंदिर बनल, तखन प्रेमक मुरूत बसबे करत।

जिनगी कछेर बनल इ प्रेम छै धार, प्रेम इ समाज बनबै प्रेम परिवार,
जखन हिय सिनेहक संगम रचल, तखन प्रेमक इ गंगा बहबे करत।

प्रेम केँ बान्हत डोरी एखन नै बनल, प्रेम मुक्त छै सदिखन सहज सरल,
जखन जिनगी-आकाशक सीमा हटल, तखन प्रेमक चिडैयाँ उडबे करत।

"ओम"क निवेदन अहाँ कते नै सुनब, एना अहाँ चुप रहि कते मूक बनब,
जखन याचना अहाँक मोन मे ढुकल, तखन प्रेमक भिक्षा त' भेटबे करत।

Wednesday 12 October 2011

मैथिली गजल


ताकलौं एना किया कोनो पैघ बात भय गेलै।
मोन डोलै हमर पीपरिक पात भय गेलै।

बिन पीने इ निशाँ किया हमरा लागै लागल,
हमरा बूझि केँ शराबी लोक कात भय गेलै।

हमरा हमरे सँ चोरी अहाँ कोना कय लेलौं,
बन्न छल हिय-खिडकी कोनो घात भय गेलै।

प्रेमक सींचल जिनगी आब भेलै रसगर,
सुखायल चाउर छलै मीठ भात भय गेलै।

सभ ओझरी सँ हम भिन्ने नीक रहैत रही,
नैन-ओझरी लागल "ओम"क मात भय गेलै।

Tuesday 11 October 2011

मैथिली गजल


आगि लागल मोनक धाह केँ रोकि देलियै।
कोनो दुख गहीर छल, मुस्की मारि देलियै।

अपन मोनक धार कियो कोना के रोकत,
इयाद जे हमरा करेज मे भोंकि देलियै।

आँखिक कोर भीजल नोर किया नै खसल,
कृपणक सोन जकाँ ओकरा राखि देलियै।

नोर इन्होर होइ छै एहि सँ बाँचि के रहू,
फेर कहब नै अहाँ किया नै टोकि देलियै।

"ओम"क फाटल छाती कियो देख नै सकल,
कोनो जतन सँ ओकरा हम सीबि देलियै।

Monday 3 October 2011

मैथिली गजल


मोनक आस आब टुअर भेल।
तृष्णा एखनहुँ नै दुब्बर भेल।

अन्हार सँ झरकैत रहलहुँ,
इजोत नै कखनो हमर भेल।

मधुमाछी मधु बनबैत रहै,
मधु सदिखन अनकर भेल।

कुहेसक मारल बाट कानैए,
रौद नै एखन सनगर भेल।

चीनी फाँकैत तबाह भेल "ओम",
मधुर कियाक नोनगर भेल।

Thursday 29 September 2011

मैथिली गजल



थान केँ नापबाक फेर मे गज फेंकल जाइ ए।
आकाश छूबाक फेर मे जमीन छूटल जाइ ए।

भाँति-भाँति के सुन्नर फूल लागल फुलवारी मे,
कमल लगेबाक फेर मे गेना टूटल जाइ ए।

चानी सँ संतोख भेल नै, आब सोनक पाँछा भागू,
सोन कीनबाक फेर मे इ चानी रूसल जाइ ए।

दूरक चमकैत वस्तु अंगोरा भय सकै अछि,
मृगतृष्णाक फेर मे देखू मृग कूदल जाइ ए।

चानक इजोरिया मे काज "ओम"क होइते छल,
भोर-इजोरियाक फेर मे चान डूबल जाइ ए।
------------- वर्ण १८ -----------------

Wednesday 28 September 2011

मैथिली गजल


समाज छै थाकल, बड्ड शांत लगैए इ।
विचार छै भूखल, बड्ड क्लांत लगैए इ।

द्रौपदीक भ' रहल चीरहरण देखू,
छै कौरवक बडका बैसार लगैए इ।

सीता कानथि अशोकक छाहरि मे किया,
छै रावणक अशोक वाटिका लगैए इ।

धेने रहू इजोरिया के नांगरि कहुना,
पसरल अन्हरिया केँ बाट लगैए इ।

बान्ह बनौने रूकत नै "ओम" सँ इ धार,
छै हहराइत राक्षसी धार लगैए इ।

मैथिली गजल


हवा मे अहाँ लात चलबैत रहू, हमरा की।
आकाश पर भात बनबैत रहू, हमरा की।

हम गामक पोखरि मे माछ मारैत रहब,
जाउ अहाँ समुद्र उपछैत रहू, हमरा की।

एखन धरि हम खम्भा गाडै मे परेशान छी,
बडका महल अहाँ ठोकैत रहू, हमरा की।

हमर आँखिक सपना आँखिये मे मरि गेल,
अहाँ जागले सपना देखैत रहू, हमरा की।

"ओम" कहैत रहत अहिना सोझ-सोझ गप्प,
अहाँ सभ केँ टेढे सुनाबैत रहू, हमरा की।

Tuesday 27 September 2011

मैथिली गजल


हम कात सँ सदिखन देखते रहलियै।
हम नै बजलियै, अहुँ किछ नै सुनेलियै।

नैनक धार अहाँ केँ जे उफनैत रहल,
चुप रहि हम ओहि मे हेलैत रहलियै।

मदमस्त नैना अहाँक जुलुम क' रहल,
बिजुरी खसेनाई अहाँ कत' सँ सीखलियै।

शुरू भेल इ खिस्सा हमर जे अहीं सँ प्रिये,
सब किछ बूझैत किया अहाँ नै बूझलियै।

एना अन्हार केने "ओम"क प्रेम-संसार मे,
मुख-चान कत' अहाँ नुकबैत रहलियै।

Monday 26 September 2011

मैथिली गजल


टूटल मोन केँ हम बुझावैत रहि गेलौं।
एक मीसिया हँसी हम ताकैत रहि गेलौं।

फूलक मुस्की कैद छै काँटक महाजाल मे,
जाल सँ मुस्की केँ हम छोडाबैत रहि गेलौं।

सूरज केँ हँसी हरायल मेघ केँ ओट मे,
फूँकि के मेघ हम उधियाबैत रहि गेलौं।

निर्झर अछि शांत भेल पाथरक चोट सँ,
चोटक दाग मोन सँ मेटाबैत रहि गेलौं।

छिडियायल छै हँसी, "ओम"क वश नै चलै
हाथक सफाई हम देखाबैत रहि गेलौं।

Friday 23 September 2011

मैथिली गजल


कियो किछ नै सुनै छै अहाँ करै छी बवाल।
अहाँ नै बूझै छी बहिरा नाचै अपने ताल।

ककरा सँ माँगै छी अहाँ अपन जबाव यौ,
बाजत कोना एखन नै बूझलक सवाल।

हुनकर मुस्की के देखि अहाँ की बूझि गेलौं,
चवन्नियाँ मुस्की हुनकर अदा के कमाल।

नीतिशास्त्र के हुनका पाठ बुझौने हैत की,
ओ जेबी मे रखै छथि नीति बूझि के रूमाल।

देखैत अछि नौटंकी "ओम" हुनकर चुप्पे,
लागै हुनका जे हम छी तिरपित निहाल।

Wednesday 21 September 2011

मैथिली गजल


डेग दैत पूरब अहाँ पच्छिम पताइत छी।
चढल मस्ती जवानी के अहाँ अगधाइत छी।

बिना पुजारी के मन्दिरक शोभा नै भावै अछि,
हम छी प्रेम-पुजारी अहाँ नै पतियाइत छी।

नैनक इशारा सँ जे अहाँ किछ कहि देलियै,
ओ सभक सोझाँ सुनाबै मे किया लजाइत छी।

संकेत अहाँ के हम अपन प्रेमक पठेलौं,
कहलौं अहाँ, देखू किया एना भसियाइत छी।

"ओम" लुटेने अछि पूरा जिनगी अहीं पर यै,
मोन-आँगन मे रहियौ किया खिसियाइत छी।

Tuesday 20 September 2011

मैथिली गजल


माटिक बासन मे भय गेल भूर, ओकरा फोडिये देनाई नीक।
जखन विश्वास भय गेल चूर, ओ रिश्ता के तोडिये देनाई नीक।

फरियाद सुनावैत पूरा जीवन ताकैत छी किया रखने आस,
कान मे ठूँसने रहैथ जे तुर, ओ हाकिम छोडिये देनाई नीक।

बिना मिलेने ताल-मात्रा कखनो सु-संगीत कहाँ अछि निकलल,
ककरो सँ मिलल नहि जे सुर, महफिल छोडिये देनाई नीक।

अपस्याँत भेल छी मरखाह बडद के खूँटा मे बान्हि राखय मे,
बेसी चलबय लागै जे खुर, ओ बडद के खोलिये देनाई नीक।

फाटल वस्त्र कहुना पैबंद लगा के पहरि सकैत अछि "ओम",
मुदा जाहि मे सगरो अछि भूर, ओ कपडा फेंकिये देनाई नीक।

Monday 19 September 2011

मैथिली गजल


अहाँ कतेक बहायब अपन नोर, दुख कियो नहि बाँटत।
जाहि खदहा के ओर नञ छोर, ओकरा कोना के पाटत।

देखू गुलाब के चिर-मुस्की उपवन के भेल छै शोभा,
डारि मे काँट छै पोरे-पोर, इ दुख ककरा से बाजत।

टूटल माला के मोती तकै मे बालु किया फँकैत छी,
कतबो कियो लगाबय जोर, मोती घुरि नहि आयत।

लड्डू, बर्फी, रसगुल्ला सन मधुर के लागल चस्का,
चखियो कनी पटुआ के झोर, मधुर बेसी मीठ लागत।

घुप्प अन्हरिया राति मे "ओम" के मोन मे छै इ आस,
साँझ के पाछाँ हेतै भोर, अन्हरिया कोना नहि फाटत।

Thursday 16 June 2011

BHRASHTACHAR PAR BHRASHT ACHRAN

Aajkal pure BHARAT me Bhrashtachar raag ki alaap sunai par rahi hai. Bhrashtachar raag alapne ke liye sabhi apni daphali lekar kood pade hain. Anna Hazare, Baba Ramdev, Arvind Kejriwal.................. aur idhar Diggi Raja, Pranav Da Aadi. Ab to Jaylalita Uvach bhi hua hai. Jaylalita ne Chidambaram par yun ungli uthayi mano sabse imandar wo hi hain. Khair is relam pel me asli mudda chhoot gaya hai. Dar asal Bhrashtachar ko door karne ka koi irada nahi hai kisi ka. Desh ki karoron bhukhi adhnagi janta ki kaun sunta hai bhai. Kuchh log bina kisi chunav ya nomination ke civil society ke neta ghoshit ho chuke hain. Unki baat hi abhi is kranti ka mool adhar hai. Lokpal ka halla mucha hua hai. Lokpal se pahle bhi kai kanoon the aur hain. Kya Bhrashtachar mita? nahi, kyonki kanoon banane se bhrashtachar nahi mitne wala hai bhai. Ise mitane ke liye samajik jagrukta ki avashyakata hai. Aaj jan jan me bhrasht achran ka pravesh ho chuka hai. NAREGA ki sthiti dekhiye. kya aaram se loot ho rahi hai. Koi bolta tak nahi. Upar se niche sab is baat ko jante hain, par koi action nahi. Jameen ki registry undervalue me karwane me adhiktar log safe samajhate hain. Train me beticket chalna shaan ki baat hoti hai. Pairavi se aage badhne ki hod lagi hai. Capitation fee par padhai legalise kar di gayi hai aur humare bhrashtachar virodhi neta is par kuchh bolte hi nahi. Capitation fee ka underhand payment bina bhrashtachar ke sabhi ke liye sambhav nahi hai. Dar asal is desh me rajniti ke liye ek naya mudda mila hai aur neta gan ke saath is baar kuchh gair neta type log bhi lag gaye hain. Main kahta hun Lokpal tum bana loge to us kanoon ka palan isi desh ke log karayenge na. Woh to pehle ke kanoon me bhi ho raha hai. Kuchh chhoti Machhaliyon ko pakda jata hai aur hulla hone par kuchh badi machhaliyon ko bhi. Baad me kuchh ko saja bhi mil jati hai. Lekin bhrashtachar badstoor jaari hai. Is desh me dahej virodhi kanoon bhi laagoo hai, kya dahej samapt ho gaya? Isiliye bandhuon samaj ki mansikta ko badalne ki jaroorat hai aur iske liye samajik andolan ki avashyakta hai. Isise bhrashtachar mitega aur kitna bhi hard kanoon bana lo, chahe phansi par latkane ka provision kar do, kuchh fayda nahi honewala hai. Bhrashtachar par samajik andolan na chalakar hurdang karna, chahe wo Ramdev ho ya Diggi Raja, apne aap bhrasht acharan hai. Ant me ek sawal, Ek garib aadmi ko apni Beti ke liye Achchha var Lane me agar uski haisiyat se jyada dahej liya jaa raha hai ya ek maa ko apne bete ki jaan bachane ke liye mahangi medical sewa leni par rahi hai, jo uske pahunch ke bahar hai to aise me agar woh chori ya bhrashtachar nahi kare to samaj uski madad ke liye taiyar hai kya?

Monday 30 May 2011

O. P. Jha: Electricity Problem in Bhagalpur

O. P. Jha: Electricity Problem in Bhagalpur: "These days the city of Bhagalpur is in lantern era. The electricity comes only for 2 hours per day. The one of the towers of main transmissi..."

Sunday 29 May 2011

Electricity Problem in Bhagalpur

These days the city of Bhagalpur is in lantern era. The electricity comes only for 2 hours per day. The one of the towers of main transmission line was fallen on 21.05.2011 in storm. The electricity deptt. was able to remove debris in 8 days and now they are planning to construct new tower which will consume another 10 days. The deptt. told that it will take 15 to 20 days in all this. I wonder that in this advance scientific era, replacement of a tower would take such a long time. The Bihar govt. is not taking any serious initiative to solve the problem of electricity and water. The people's representatives of Bhagalpur are not taking any interest in earliest solving of this problem. They enjoy Generator service and A.C. fitted house and vehicle. They are not interested even a little bit in suffering of common people. If you will tell any problem, the answer is fixed that due to inaction and apathy of Central Govt. the all problems are there. These days political leaders of Bihar are holding two "JHUNJHUNAS" of special status and coal linkage. If you will tell any problem they will play these two jhunjhunas and we the people will continue to suffer as we are destined for it.