Wednesday 30 November 2011

रूबाई


संगी सभ सँ नीक शराब छै, देखू कहियो नै बदलै छै।
एकर निशाँक नै जवाब छै, देखू कहियो नै बदलै छै।
टूटल करेज जोडि दै ए, दुखक ताप केँ करै शीतल,
फेर कहियै कोना खराब छै, देखू कहियो नै बदलै छै।

मैथिली गजल


वाह कतेक मजा अबै छै उठा-पटक मे।
नब-नब दाँव देखबै छै उठा-पटक मे।

सभक मुँह भेलै लाल-लाल कुश्ती लडैत,
सब जोर कते लगबै छै उठा-पटक मे।

छै के संगी, के शत्रु बनल, इ पता नै चलै,
छै अपन मुदा खसबै छै उठा-पटक मे।

प्राण हतने कोना सभ भिडल छै देखियो,
कियो माल देखू बनबै छै उठा-पटक मे।

ककरो हारि गेला सँ बन्न नै भेल दंगल,
हारि झट मुँह उठबै छै उठा-पटक मे।
----------- वर्ण १६ ---------------

मैथिली गजल


पता नै कोन आगि मे जरैत रहल करेज हमर।
पानि नै खाली घीए टा चाहैत रहल करेज हमर।

आनक मरल आत्मा केँ जीया केँ राखैक फेर मे फँसि,
नहुँ-नहुँ सुनगैत मरैत रहल करेज हमर।

एतेक मारि खेलक झूठ प्रेमक खेल मे जमाना सँ,
कियो देखलक नै कुहरैत रहल करेज हमर।

फेर कतौ नै कियो बम फोडि केँ अनाथ करै ककरो,
सूर्योदय होइते धडकैत रहल करेज हमर।

अपना केँ नित जीयाबै मे करेजक खून करैत छी,
खसि-खसि केँ देखू सम्हरैत रहल करेज हमर।

दुख आ सुख मे अंतर करै मे नै ओझरा केँ कखनो,
नब गीत सदिखन गबैत रहल करेज हमर।
---------------- वर्ण २० -----------------------
गुरूदेव आशीष जी केँ सादर समर्पित।

Tuesday 29 November 2011

मैथिली गजल


आईना सदिखन हमरा सत्ते कहै छै।
हमर रूप हमरे देखबैत रहै छै।

चलि गेलौं त' बूझलौं अहाँ हमर नै छी,
बनल विश्वासक किला एहीना ढहै छै।

धार केँ कोन मतलब भूमिक दर्द सँ,
जेम्हरे मोन भेल धार ओम्हरे बहै छै।

देखू प्रेमक अकाल नै छै एहि गाम मे,
उधारक प्रेमक बाढि सँ गाम दहै छै।

ककरो मारबाक चोट सहि लेत "ओम",
मुदा बूझै नै प्रेमक मारि कोना सहै छै।
-------------- वर्ण १५ ---------------

रूबाई


पीनाई त' हम छोडि देब, मुदा पीनाई हमरा नै छोडै ए।
जीनाई त' हम छोडि देब, मुदा जीनाई हमरा नै छोडै ए।
होश मे आबै ले पीनाई छै बड्ड जरूरी, सुनि लिय' यौ दोस्त,
पीबि केँ हम होश मे छी, ढनमनेनाई हमरा नै छोडै ए।

Monday 28 November 2011

मैथिली गजल


आइ-काल्हि सदिखन हम अपने सँ बतियाईत रहै छी।
लोक कहै ए जे हम नाम अहींक बडबडाईत रहै छी।

सब बैसार मे आब चर्चा कर' लागलौं अहींक नाम केर,
सुनि केँ कहै छै सब जे निशाँ मे हम भसियाईत रहै छी।

हमरा लागै ए निशाँ आब टूटि गेल छै पीबि लेला केँ बाद,
सोझ रहै मे छलौं अपस्याँत, आब डगमगाईत रहै छी।

एते बेर नाम लेलौं अहाँक हम, कहियो त' सुनने हैब,
कोन कोनटा मे नुकेलौं अहीं केँ ताकैत बौआईत रहै छी।

एक चुरू अपने हाथ सँ आबि केँ पीया दितिये जे "ओम" केँ,
मरि जइतौं आराम सँ हम, जाहि लेल टौआईत रहै छी।
----------------------- वर्ण २२ -----------------------

Friday 25 November 2011

मैथिली गजल


नित पूछै छै किछ सवाल इ जिनगी।
करै सदिखन नब ताल इ जिनगी।

कखनो बनि दुखक घुप्प अन्हरिया,
लागै मारि सँ फूलल गाल इ जिनगी।

सुखक राग कखनो सुनाबै एना केँ,
रंगल बनि कतेक लाल इ जिनगी।

कहै जिनगी होइत छै जीबैक नाम,
ककरो लेल होइ ए काल इ जिनगी।

जिनगी केँ बूझै मे "ओम" ओझरायल,
जतबा बूझलौं लागै जाल इ जिनगी।
------------- वर्ण १४ -------------

Thursday 24 November 2011

मैथिली गजल


एकटा खिस्सा बनि जइते अहाँ संकेत जौं बुझितहुँ।
हमही छलहुँ अहाँक मोन मे कखनो त' कहितहुँ।

लोक-लाजक देबाल ठाढ छल हमरा अहाँ केँ बीच,
एको बेर इशारा दितियै हम देबाल खसबितहुँ।

अहाँक प्रेमक ठंढा आगि मे जरि केँ होइतौं शीतल,
नहुँ-नहुँ भूसाक आगि बनि केँ किया आइ जरितहुँ।

सब केँ फूल बाँटै मे कोना अपन जिनगी काँट केलौं,
कोनो फूल नै छल हमर, काँटो त' अहाँ पठबितहुँ।

जाइ काल रूकै लेल अहाँ "ओम" केँ आवाज नै देलियै,
बहैत धार नै छलहुँ हम जे घुरि केँ नै अबितहुँ।
------------------ वर्ण २० ---------------------

Wednesday 23 November 2011

मैथिली गजल


हमर नजरि मे पैसि केँ हमर नजरि बनि फडकि रहल छी।
पोर-पोर मे अहीं समेलौं, सीना मे हमर अहीं धडकि रहल छी।

विरह-विष सँ मोन पीडित छल, अहाँक प्रेमक अमृत भेंटल,
प्रेम-सुधा सँ मोन नै भरै, जतबा पीबि ओतबा परकि रहल छी।

हृदयक छल बाट सुखायल, जेकरा सिनेह अहाँक भीजायल,
छन-छन भीजि प्रेमक बरखा मे, तखनो किया झरकि रहल छी।

जिनगीक रौदी केँ अहीं भगेलौं, अहाँ प्रेम-मेघ केर छाहरि केलौं,
भरल हमर आकाश प्रेम सँ, अहाँ छी बिजुरि तडकि रहल छी।

भाव-शून्य "ओम"क छल जे अंतर, जिनगी मे आबि मारि केँ मंतर,
अहीं बनलौं गजल कविता, बनि भाव मोन मे बरकि रहल छी।
--------------------------- वर्ण २५ ---------------------------

Tuesday 22 November 2011

मैथिली गजल


भेंटलै जखने नबका मीत पुरना केँ कोना छोडि देलक।
जकरा सँ छल ठेहुँन-छाबा, हमर मोन के तोडि देलक।

सपथक नै कोनो मालगुजारी, सपथक नै बही बनल,
संग जीबै-मरैक सपथ खा केँ जीबतै डाबा फोडि देलक।

ओकरा लग छै ढेरी चेहरा, हमरा लग बस एके छल,
अपन भोरका मुँह पर नब मुँह साँझ मे जोडि देलक।

जिनगी-खेत मे विश्वास-खाद द' प्रेमक बीया हम बुनल,
धोखा केर कोदारि चला केँ देखू लागल खेती कोडि देलक।

"ओम" प्रेमक घर बनेलक, ओकरा बिन छै सून पडल,
बाट जे जाइ छल ओहि घर मे, कोनो जोगारे मोडि देलक।
---------------------- वर्ण २२ --------------------

Friday 18 November 2011

मैथिली गजल


कतौ छै रौदी प्रचंड, कतौ बरखा सँ हरान छै।
कतौ छै फूजल मोन, कतौ बन्न पेटी मे प्राण छै।

ककरो भेल अपच, कियो देखू भूखले मरल,
कतौ छै होइत भोज, कतौ उजडल दोकान छै।

एके कलम सँ लिखलक किया भाग्य नै विधाता,
कतौ छै तृप्त हृदय, कतौ छूछे टा अरमान छै।

कियो मुट्ठी मे समेटने कते इजोत छै बैसल,
कतौ छै जे सून घर, कतौ भरल इ दलान छै।

अचरज सँ देखै छै "ओम" लीला एहि दुनियाक,
कतौ छै इ मौनी खाली, कतौ बखारी भरि धान छै।
------------------- वर्ण १८ ------------------

Thursday 17 November 2011

डीहक जमीन


डीहक जमीन
ट्रेन सकरी टीशन सँ फूजल आ पूब दिस घुसक' लागल। नरेश एकटा बोगी मे अपना सीट पर बैसल अपन गामक बात सब मोन पाडैत विचारमग्न भ' गेल। बहुत दिनक बाद ओ अपन गाम जा रहल छल। भरिसक १० बरखक बाद। ओ एखन भोपाल मे शिक्षा विभाग मे नौकरी करैत छल अधिकारीक पद पर। गाम जाय लेल चिकना टीशन उतरि क' जाय पडै छलै। सकरी तक बडी लाईनक ट्रेन चलैत अछि। ओतय सँ फेर छोटी लाईनक ट्रेन सँ। ओकरा बोगी मे पूरा लोक कोंचल छल। चारि पसिन्जरक सीट पर सात-आठ लोक बैसल छल। हो-हल्ला आओर गप-शप सँ पूरा डिब्बा मे कोलाहल जकाँ छलै। मुदा ओकर दिमाग मे अपन पुरनका दिन घुरिया लगलै। सबटा दृश्य चलचित्र जकाँ ओकर आँखिक आगाँ घूम' लगलै। ओ अपना केँ २० बरख पहिनुका स्कूल मे देख' लागल। बस्ता ल' के नित भोरे पाठशाला जेबाक दृश्य आगाँ मे नाच लगलै। ओकर पिता फेंकन मरड हरवाह छला आओर गाम मे भुटकुन बाबू ओतय खेतीक आ माल-जालक काज करै छला। किछ बटाई पर खेती सेहो करै छला। अपन जमीनक नाम पर पाँच कट्ठा खेतीक जमीन आ आठ धूरक घरारी छलैन्हि। हुनकर माय 'मरौनावाली' केर नाम सँ जानल जाईत छलीह। भरि दिन मरौनावाली भुटकुन बाबू ओतय घरेलू काज मे मदति करैत छलीह आ साँझे घर आबै छलीह। नरेश बच्चा छलाह आ भरि दिन एम्हर ओम्हर खेलाइत रहैत छलाह। एक दिन भुटकुन बाबू फेंकन केँ कहलखिन्ह जे नरेशवा भरि दिन टौआइत रहै छौ, कियाक नै ओकरा हमरा एहिठाम चरवाही मे पठा दैत छी। फेंकन बजलाह- "गिरहत, ई गप नै कहियौ, ओ एखन मात्र चारि बरख के छै। ओकरा अगिला बरख सँ स्कूल पठेबै।" भुटकुन बाबू व्यंग्य मे बजलाह- "तौं त' एतबे टा सँ हमरा एहिठाम चरवाही करै छलैं। तखन तोहर बाबू हरवाही करै छलखुन्ह, मोन छौ ने।" फेंकन कहलक- "जी ओ जमाना आब नै छै गिरहत। मरौनावाली एकदम जिद केने छै जे नरेशबा केँ स्कूल पठबियो। किछ दिन पहिने बिसेसर बाबू मास्टर साहब भेंटल छलाह। ओ कहलथि जे पढेनाई बड्ड जरूरी छै तैं नरेशबा केँ स्कूल पठाबहक।" भुटकुन बाबू- "जे तोहर इच्छा। हम त' तोरे दुआरे कहलियो। तोहर काज किछ हल्लुक भ' जइतो।" फेंकन- "गिरहत, हम जा धरि सकब, ता धरि अहाँ केँ काज करैत रहब।"
अगिला साल नरेशक नाम स्कूल मे लिखाओल गेल। नरेश पढै मे नीक छलाह आ जल्दिये मास्टर सबहक प्रिय भ' गेलाह। दसवीं बोर्ड मे ओकरा अस्सी प्रतिशत अंक आयल। ओ काओलेज मे पढै लेल दरिभंगा चलि आयल आओर ट्यूशन पढा केँ अपन खर्च निकालैत पढ' लागल। ओम्हर गाम मे फेंकन आओर मरौनावाली भुटकुन बाबूक काज मे लागल रहल। नरेशक पढाई पूरा भेलै आ मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोगक इम्तिहान पास क' के शिक्षा विभाग मे नौकरी भेंटलै। नियुक्ति पत्र गामक पता पर आयल छल आओर सौंसे गाम अनघोल भ' गेल रहै। ओहि दिन नरेश अपना केँ आकाश मे उडैत पाओलक। भुटकुन बाबू जे आब वृद्ध भ' गेल छलाह ओहो नरेश केँ बजा के आशीर्वाद देलखिन्ह। मरौनावाली त' कानैत बेहाल छल जे बेटा आब नजरि सँ दूर भ' जायत। किछ दिनक बाद नरेशक बियाह भ' गेलै। किछ दिन कनियाँ गामे मे रहलैन्हि। फेर जयबाक जिद क' देलकै। नरेश कनियाँ केँ ल' के भोपाल चलि गेल। मरौनावाली ओहि दिन बड्ड कानल रहै। नरेश अपन माता पिता कैँ संगे रहै लेल बहुत आग्रह केलक, मुदा फेंकन साफ मना क' देलकै। ओकर कहनाई रहै जे पुरखाक डीह छोडि नै जायब। नरेश कहलक जे ई आठ धूर डीह अहाँ केँ एतेक प्रिय भ' गेल जे अपन एकलौता संतान संगे रहै लेल तैयार नै छी। ओतय नाना प्रकारक सुविधाक गप सेहो नरेश कहलकै, मुदा फेंकन अपन जिद पर अडल रहलाह। मरौनावाली कनी जिद केलखिन्ह, त' फेंकन खिसिया गेला आओर कहलखिन्ह जे अहाँ चलि जाउ, हम असगरे रहब। मरौनावाली धर्मसंकट मे पडि गेली आ अंत मे गामे मे रहै केँ निर्णय लेलथि। नरेश नियमित रूप सँ गाम पाई पठबैत रहै आओर फेंकन के हरबाही जबरदस्ती छोडा देलक। फेंकन साल दू साल पर नरेश लग जाइत रहै छलाह आओर नरेश काजक अधिकता आओर बच्चा सबहक पढाई दुआरे गाम कहियो नै आबैत छलाह। आब मोबाइलक जमाना मे नरेश फेंकन केँ मोबाइल सेहो कीन देने छलखिन्ह, जाहि सँ ओ सब नियमित रूप सँ सम्पर्क मे रह' लगलाह। एक दिन फेंकन मोबाइल सँ नरेश केँ फोन केलखिन्ह आ कहलखिन्ह- "बौउआ, अपन डीह सँ सटल भुटकुन बाबू केर दू कट्ठा जमीन परती पडल छै। ओ ओहि जमीन केँ बेच' चाहैत छैथ। हमरा कहलैथ जे तौं ओ जमीन कीनब' त' हम तोरा पच्चीसे हजार मे द' देब'। बौउआ ओहि जमीनक कीमत चालीस हजार सँ कम नै छै। नीक मौका छै। पाई पठा दितहक त' हम तोरे नाम सँ वा तोहर कनियाँक नाम सँ जमीन कीन दितिय'।" नरेश चोट्टे खिसिया गेल आ बाजल- "हमरा गाम सँ कोनो मतलब नै अछि। अहाँ बलौं जमीन कीन' चाहै छी। हम त' सोचै छी जे आठ धूरक डीह आ पाँच कट्ठा खेतीवाला जमीन बेची आओर गाम सँ पिण्ड छोडाबी।" फेंकन- "हमरा जीबैत ई काज नै हेतौ। पुरखाक जमीन बेचबाक बात तोहर मोन मे कोना केँ एलौ। तू ओहि गाम सँ पिण्ड छोडेबाक गप करै छ, जतय नेना मे खेलेलह, जतुक्का पानि पीबि केँ नमहर भेल', जतय तोहर बाप-दादा केर सारा छ। तू डीहक नबका जमीन नै कीन, मुदा पुरनका बेचै केँ गप नै कर।" अस्तु नबका घरारी कीनबाक गप एतहि खतम भ' गेल।
एक दिन नरेशक बडकी बेटी सुनन्दा, जे चौथा मे पढै छल, नरेश केँ कहलक- "पापा, जेना हम अहाँ संगे रहै छी, अहूँ त' बच्चा मे बाबा संगे रहैत हैब।" नरेश- "हाँ, रहैत छलहुँ। सब रहैत अछि।" सुनन्दा- "अहाँ के सब गप मानैत हेता बाबा।" नरेश- "हाँ यथासम्भव मानैत छलाह।" सुनन्दा- "अहाँ बड्ड नीक छी पापा। हमर सब गप पूरा करै छी। हमहुँ नमहर भ' केँ अहाँक सब गप जरूर मानब।" ई कहैत ओ खेलाई लेल चलि गेल। ओकर अन्तिम वाक्य सुनि नरेश धक् रहि गेल। ओकरा अपन नेनपनक सब गप मोन पडय लागलै, जे कोना फेंकन फाटल धोती पहिरैत रहल, कोना मरौनावाली फाटल नुआ पहिरैत रहलीह, मुदा नरेशक पढाई मे कोनो बिथुत नै हुअ देलखिन्ह। एक बेर त' नरेश केँ फार्म आ किताब लेल पाँच सय टका भुटकुन बाबू सँ पैंच लेबा मे कोन कोन गप नै फेंकन केँ सुन' पडल छलै। नरेशक मोन मे विचारक तूफान उठि गेल। ओ घर सँ बाहर निकलि केँ घूम' लागल। घूमैत पार्क दिस चलि गेल। ओतय एकटा गाछ पर एकटा चिडै अपन बच्चा सब केँ चोंच मे दाना दैत छल। ओकर हृदय फाट' लागलै। पण्डितजी केर संस्कृतक कक्षा मोन पड' लागलै जाहि मे ओ "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि" पर लगातार दू घन्टी पढबैत रहि गेल छलखिन्ह। ओ कक्षा नरेश केँ बड्ड नीक लागल रहै। कतेक दिन धरि ओ एहि श्लोकक पाठ करैत रहै छल। एहि विषय पर वाद विवाद प्रतियोगिता मे सेहो ओ नीक बाजल छल आओर जिला स्तर पर पुरस्कार सेहो भेंटल छलै। ओ एकटा निर्णय लेलक आओर डेरा आबि केँ कनियाँ सँ कहलक- "हमर अटैची तैयार क' दिय'। हम गाम जायब।" कनियाँ बाजलैथ- "इ की बाजै छी। ओतय एखन जा क' की करब? दस बरख सँ उपर भेल गाम गेला। के चिन्हत? बाबूजी सँ नित गप होयते अछि।" नरेश- "डीहक जमीन कीनै लेल जाइत छी।" कनियाँ- "इ कोन बतहपनी धेलक अहाँ केँ।" नरेश- "बताह त' एखन धरि छलहुँ। आब ठीक भ' गेलौं। जाहि मातृभूमि केर माटि-पानि सँ हमर देह पोसल अछि, जे मातृभूमि हमरा हमर पहचान देलक, ओकरा हम बिसरि गेल छलौं। माय-बाबूक आकांक्षा आ मनोरथ बिसरि गेल छलौं। एतय भोपाल मे सब सुविधा अछि, मुदा जे अपनैती हमरा गाम मे भेंटैत रहै तकर अभाव बुझाइत रहै ए। आब गाम साल मे एक बेर त' जरूर जायब।" कनियाँ कनी काल घमर्थन केलकैन्हि, मुदा हुनकर जिद आ दृढताक आगाँ चुप भ' गेलै।
एकाएक नरेशक भक् टूटल। बगलक यात्री, जिनका सँ सकरी मे परिचय भेल रहैन्हि, हुनका हिलबैत कहैत रहै जे श्रीमान् चिकना आबि गेलै, कतेक सुतब, उतरू नै त' ट्रेन फूजि जैत। मुस्की मारैत नरेश बजलाह- "नै यौ, आब जागि गेल छी। एखन धरि सुतल छलहुँ।" इ कहैत ओ टीशन पर उतरि गेल आ गाम दिस चलि देलक। डेग जेना हल्लुक भ' गेल रहै आ तुरन्ते गाम पहुँचि गेल। फेंकन एकाएक नरेश केँ देखलक त' आश्चर्य भेलै आओर मरौनावाली भरि पाँज मे बेटा केँ पकडि कान' लागल। नरेश फेंकन के गोर लागि केँ कहलक- "बाबू, हम आबि गेलौं डीहक जमीन कीनबाक अछि ने।"
साँझ मे दुनू बापूत भुटकुन बाबू लग गेलाह। भुटकुन बाबू नरेश केँ आशीर्वाद दैत कहलखिन्ह- "गाम केँ कोना बिसरि गेलहक?" नरेश- "नै बाबा, बिसरल नै छलौं, कतौ हरा गेल छलौं। आब आबि गेलौं। डीहक जमीन कीनै लेल।" भुटकुन बाबू हँसैत बजलाह- "चल काल्हिये रजिस्ट्री क' दैत छियो। पाई आगाँ पाँछा द' दिह'।" नरेश- "पाई आनने छी बाबा।"
साँझ मे फेंकनक छोट दलान लोक सँ भरल छल। मरौनावाली रहि रहि के चाह बनाबैत छल। नरेशक गाम मे आओर ओकर घर मे जेना पावनि-तिहारक चुहचुही छलै।

Wednesday 16 November 2011

मैथिली गजल


पिया जुनि करू बलजोरी, लोक की कहत।
प्रेम करू मुदा चोरी-चोरी, लोक की कहत।

तन्नुक शरीर मोरा यौवन उफनायल,
चुप्पे बान्हू अहाँ प्रेम-डोरी, लोक की कहत।

थमल नै डेग, अहाँ प्रेम-नोत पठाओल,
हम आब बनलौं चकोरी, लोक की कहत।

श्याम रंग मे अहाँक मोर अंग रंगायल,
दीयाबाती मे खेललौं होरी, लोक की कहत।

"ओम"क प्रिया इ आतुर मोन केँ बुझाओल,
कतेक कहब कर जोडि, लोक की कहत।
-------------- वर्ण १६ --------------

Tuesday 15 November 2011

मैथिली गजल


ओ हमरा बिसरि गेल जे गाबैत रहै छल हमर गीत।
शहरक हवा लागि गेलै आब भेल शहरी हमर मीत।

मोनक कोनटा मे नुकेलक नेनपनक सभ क्रीडा-खेल,
खाइ छलै संगे पटुआ, ओकरा लागै मधुर हमर तीत।

छल जुटल जकरा संग हृदय हमर, रहितो काया दू,
हमरा हरबैथ आब, अपमान बूझैथ ओ हमर जीत।

दोस्तीक सपथ खाइत नै छलै अघाइत ओ हमरा संग,
भसकेलक घर दोस्तीक, द्वेषक बनि गेल हमर भीत।

मीत घुरि आबू, एखनहुँ "ओम"क हृदय मे अहींक वास,
फेर बहाबियो धार दोस्तीक, जे छल अहाँक हमर रीत।
-------------------- वर्ण २२ ---------------------
(हमर नेनपनक मीत केँ समर्पित, जे हमरा बिसरि गेला)

Monday 14 November 2011

मैथिली गजल


घोघ तर सँ चान उगल, अँगना मे इजोर पसरि गेलै।
मोन हमर छल बान्हल, किया आइ अपने पिछडि गेलै।

मृगनयनी, मोनमोहनी, चंचल नयन सँ प्राण हतल,
मुख पर नयन-कमल, जै सुरभि सँ मोन पजरि गेलै।

सुनि अहाँक वचन, भ' प्रेम मगन, मोन-मयूर नाचल,
प्रेम-बोली तोहर सुनल, इ हृदय नाचि केँ ससरि गेलै।

हिय-आँगन, पायल झन-झन, संगीत मधुर छै बाजल,
रोकि कोना जे मोन नाचल, नै कहब किया नै सम्हरि गेलै।

अहाँक अजगुत रूप देखि केँ, भाव "ओम" रोकि नै सकल,
जे किछ छल मोन राखल, कोना देखू सबटा झहरि गेलै।
---------------------- वर्ण २२ ---------------------

Friday 11 November 2011

मैथिली गजल


कर जोडै छी सरकार आब रह' दियौ।
कते करब भ्रष्टाचार आब रह' दियौ।

'टू जी', चारा, खान घोटाला, किछो नै छूटल,
भरि गेल अछि 'तिहाड' आब रह' दियौ।

मुखिया बनै सँ पहिने चलै छलौं पैरे,
कोना चढ' लगलौं कार आब रह' दियौ।

कण्ठ मोकि जनताक कते राज करब,
जनता नै छै यौ लाचार आब रह' दियौ।

कोना फूसि बाजि अहाँ "ओम" केँ ठकि लै छी,
केलियै लाजक संहार आब रह' दियौ।
----------- वर्ण १५ ----------------

Thursday 10 November 2011

मैथिली गजल


मिझबै लेल पेटक आगि देखू पजरि रहल छै आदमी।
जीबाक आस धेने सदिखन कोना मरि रहल छै आदमी।

डेग-डेग मँहगी केर निर्दय जाँत मे पीसल राति दिन,
पीयर मुँह बिहुँसि केँ उठौने कुहरि रहल छै आदमी।

जनसंख्याक नांङरि कियाक बढले जाइ ए बिन थाकल,
फसिलक उपजा कम भेल, सौंसे फरि रहल छै आदमी।

स्वार्थक एहन बिहाडि चलल छै आइ मनुक्खक गाम मे,
सम्बन्धक झरकल गाछ सँ आब झरि रहल छै आदमी।

कहियो हँसीक ईजोर पसरतै "ओम"क अन्हार टोल मे,
यैह सोचैत सलाई विश्वासक रगडि रहल छै आदमी।
-------------------- वर्ण २२ ---------------------

Wednesday 9 November 2011

मैथिली गजल


हमर हृदयक कुंज-गली मे विचरैत मोनक मीत अहीं छी।
गाबि-गाबि जे मोन सुनाबै सदिखन ओ राग अहीं गीत अहीं छी।

जिनगी हमर पहिने कहियो एते सोअदगर किया नै छल,
सबटा सोआद अहीं मे छै बसल, मीठ, नोनगर, तीत अहीं छी।

आँखिक बाट मोन मे ढुकि केँ प्रेमक घर आलीशान बनेलियै,
ओहि घरक कण-कण मे छै नाम अहींक, ओकर भीत अहीं छी।

जुग-जुग सँ प्रेमक धार मे अहीं हमर पतवार बनल छी,
हमर प्रेमक दुनियाक सुन्नर रंग सबटा आ रीत अहीं छी।

"ओम"क मोन केर कोन-कोन मे बसल रहै छै अहींक सुरभि,
आब ई जमाना सँ की लेनाई प्रिये, हमर हार आ जीत अहीं छी।
------------------------- वर्ण २४ --------------------------

Tuesday 8 November 2011

मैथिली गजल


गजल

बालुक भीत  बनल  जिनगी चमकै छै कोना।
सुखायल ई  फूल  सम्बन्धक गमकै छै कोना।

नकली मुस्कीक  भीड मे  हरायल कतौ हँसी,
चिन्ता भरल मुँह पर मुस्की  दमकै छै कोना।

पैघ भेल  जाइ छै  मनुक्ख,  झूस विचार भेलै,
कर्म-धार  मे हल्लुक  विचार जमकै छै कोना।

भ'  रहलै  तमाशा  नाचक  बिना सुर-ताल के,
सरगम  कतौ नै  मुदा  पैर  झमकै छै कोना।

काठक  बनल  लोक  रहै छै  ऊँच  मकान मे,
जे सुनै छै कियो नै किछ, "ओम" बमकै छै कोना।
------------------- वर्ण १७ ------------------

Friday 4 November 2011

मैथिली गजल


किया एना ई भ' गेल छै देखू उनटा व्यवहार।
हर वहै से खढ खाय छै, बकरी खाय अचार।

ककरो तन नै झाँपल, कियो आडम्बर छै केने,
कियो तरसल बूँद लेल, लागल कतौ सचार।

रामनामा ओढि केँ आबै भीतर रखने खंजर,
छै जकर मोन दरिद्र, हमरा देलक हकार।

महगी केर बाण चलै छै चाम देहक नोचैत,
जन-जन ओ बाण सहै भूशायी पडल लाचार।

जीबै केर अधिकार छिनायल "ओम" देखू कोना,
'सुनामी' बनि तडपैत मोन मे भरल विचार।
--------------- वर्ण १८ -----------------

Thursday 3 November 2011

मैथिली गजल


धरल रहि जैत होशियारी, मोटरी बान्हने की हैत।
जखन टूटल अछि केवाडी, यौ ताला भरने की हैत।

नीमक पात तर चानन कानै ई कोन रीत रचेलै,
जे ई सवार बनल सवारी, नाक रगडने की हैत।

केहेन गाछी अहाँ लगेलौं जे भूताहि भेल जाइ ए यौ,
बढबै लागै जखन बेमारी, दवाई कीनने की हैत।

झरकल मुँह केँ झाँपने नीक होइत छै सदिखन,
राखले रहि जैत ई तैयारी, मुँह केँ रँगने की हैत।

शीशा महग भेल हीरा सँ "ओम" केँ अचरज लागल,
राखले घर भरल बखारी, सगरो कानने की हैत।
------------------ वर्ण २० -------------------