Friday 30 December 2011

रूबाइ


हमर करेज संगे खेलाईत रहलौं, इ कोन खेल अछि।
मिलन अहाँ सँ हमर खुजल आँखिक सपना भेल अछि।
जाडक रौद कहै छलौं हमरा, इ एखन धरि मोन अछि,
अनचिन्हार छी आब, अहाँ लग लोकक ठेलम-ठेल अछि।

मैथिली गजल


मोनक मोन सँ चलि केँ केहेन हाल केने छी।
प्रेम मे अपन जिनगी हम बेहाल केने छी।

करेज हमर छल उद्गम प्रेमक गंगा केँ,
विरह-नोर मे सानि करेज केँ थाल केने छी।

जकर प्रेम-ताल पर हम नाचैत रहलौं,
हमरा वैह कहै छै एना किया ताल केने छी।

एके बेर हरि केँ प्राण, झमेला खतम करू,
जे बेर-बेर आँखिक छुरी सँ हलाल केने छी।

अहाँक मातल चालि सँ "ओम"क मोन मतेलै,
ऐ मे दोख हमर की, अहाँ आँखि लाल केने छी।
---------------- वर्ण १७ ------------------

Thursday 29 December 2011

मैथिली गजल


टुकडी-टुकडी मे जिनगी बीताबैत रहलौं।
सुनलक नै कियो जे बेथा सुनाबैत रहलौं।

अपन आ आनक भेद इ दुनिया बुझौलक,
इ भेद सदिखन मोन केँ बुझाबैत रहलौं।

ऐ मोन मे पजरल आगि धधकैत रहल,
हम पेट मे लागल आगि मिझाबैत रहलौं।

अपन अटारी सभ सँ सुन्नर बनाबै लेल,
कोन-कोन नै जोगाड हम लगाबैत रहलौं।

दुनियाक खेला मे "ओम" बन' चाहल मदारी,
बनि गेलौं जमूरा सभ केँ रीझाबैत रहलौं।
-------------- वर्ण १७ ---------------

Thursday 22 December 2011

मैथिली गजल


आकाश बड्ड छै शांत, भरिसक बिहाडि आबै छै।
ओंघरैत सब एहि मे बलौं ओहार ओढाबै छै।

पोछि दियौ झहरैत नोर अहाँ निशब्द आँखिक,
आँखिक नोर थीक लुत्ती झट सँ आगि लगाबै छै।

चिन्है छै सब ओकरा कतेक स्वाँग रचेतै आब,
तखनो ओ सभ केँ बिपटा बनि नाच देखाबै छै।

नंगटे भेल छै तखनो कुर्सीक मोह नै छूटल,
कुर्सीक इ सौख ओकरा किछ सँ किछ कराबै छै।

रोकि सकै छै कियो नै, सागर मे जौं उफान एलै,
परतारै लेल देखियौ माटिक बान्ह बनाबै छै।
--------------- वर्ण १८ -----------------

Wednesday 21 December 2011

मैथिली गजल


बनि जेतै घर, एखन धरि जे छै हमर मकान प्रिये।
घोरि दितियै हमर प्रेम मे अहाँ अपन जौं प्राण प्रिये।

एक मीसिया इजोत चानक चमकाबै छै पूरा दुनिया,
अहाँ बिन अछि घर अन्हार, छत जकर छै चान प्रिये।

आँखि मुनल हमर जरूर छै, मुदा हम छी नै सूतल,
अहाँक प्रेमक वाहक मुस्की दिन-राति लै ए जान प्रिये।

कखनो देखाबी प्रेम अहाँ, बनै छी कखनो अनचिन्हार,
प्रेमक खेल मे अहाँक नुका-छिपी केने ए हरान प्रिये।

जिनगीक रौदी छै प्रचण्ड, शीतल अहाँक केशक छाह,
विश्राम ओहि छाह मे करै ले डोलै "ओम"क ईमान प्रिये।
---------------------- वर्ण २१ ---------------------

Tuesday 20 December 2011

मैथिली गजल


डूबैत रहलौं हरदम हम, आर कहिया धरि इ अन्हेर हेतै।
खाली मझधारे नै हेतै कपार हमर, हमरो कोनो कछेर हेतै।

सब लेल बाँतर कात राखल छी कियो त' कखनो ताकत एम्हरो,
खूब गजल सब ले कहल गेल, हमरो लेल ककरो 'शेर' हेतै।

सुख-दुख जीवन-क्रम मे लागल, कखनो मीठ कखनो तीत भेंटै,
बड्ड अन्हरगर साँझ भेलै, कहियो इजोत भरल सबेर हेतै।

सब मिल भिडल छै माथापच्ची केने एकटा कानून बनबै लेल,
केहनो कानून बनि जाओ मुदा ओहि मे संशोधन बेर-बेर हेतै।

आब नै लुटेतै देशक वैभव, नै क' सकतै खजाना केँ चोरी कियो,
सोनक चिडै छल देश हमर, पुरना वैभव वापस फेर हेतै।
-------------------- वर्ण २५ -------------------------

Monday 19 December 2011

लोकतन्त्रक माने (कथा)


लोकतन्त्रक माने (कथा)

शैलेश बाबू अपन मिनी लाइब्रेरी मे बैसल किछ पोथी सबहक पन्ना उन्टेने जाइ छलाह। हुनकर कनियाँ सुनन्दा आबि केँ कहलखिन्ह- "कोन खोज मे लागल छी अहाँ। तीन घण्टा सँ अपस्याँत भेल छी।" शैलेश बाबू बजलाह- "लोकतन्त्रक माने ताकि रहल छी।" सुनन्दा हँसैत बजलीह- "हुँह, कथी केँ प्रोफेसर छी अहाँ यौ। लोकतन्त्रक माने होइ छै, बाई द पीपुल, औफ द पीपुल, फौर द पीपुल। इ गप त' बच्चा-बच्चा बूझै छै।" शैलेश बाबू बजलाह- "इ माने त' हमरो बूझल छल। हम लोकतन्त्रक आधार बनल किछ गोटेक हरकत केँ व्याख्या करबाक फेर मे एकर विशिष्ट अर्थ ताकि रहल छी। जतय जाइ छी किछ ने किछ विचित्र हरकत करैवला लोक सब सँ भेँट भ' जाइ ए। हुनकर सबहक लीला लोकतन्त्रक परिभाषा मे आबै छै वा नै, यैह खोज मे तबाह छी।" सुनन्दा कहलखिन्ह- "छोडू एखन इ सब आ चलू किछ पनपियाई क' लिय'।"

शैलेश बाबू पनपियाई करैत छलाह तखने हुनकर मित्र मनोज चौधरीक फोन एलन्हि- "कहिया पूर्णिया आबै छी प्रोफेसर साहेब? एहि बेरक दुर्गा पूजा मे हमर गामक प्रोग्राम फाईनल अछि ने?" शैलेश बाबू बजलाह- "हम काल्हि चलै छी।" दोसर दिन शैलेश बाबू पूर्णिया गेलाह आ ओतय सँ मनोज जीक संग हुनकर गाम गेलाह। ओतय हुनकर गाम पर जलखै क' केँ साँझ मे दुनू दोस्त मेला घूमै लेल निकललाह। मेला मे एहि बेर नौटंकीक वेवस्था सेहो छलै। सभ ठाम सँ घूमि दुनू गोटे नौटंकी देखबा लेल पंडाल मे पहुँचि अपन स्थान ग्रहण केलैथि। नौटंकीक बीच मे बाईजीक नाचक सेहो प्रबन्ध छलै। एकटा बाईजी स्टेज पर आबि अपन लटका झटका देखबैत कोनो फिल्मी गाना पर नाच कर' लगलै। शैलेश बाबू मनोज जी केँ कहलखिन्ह जे चलू, इ नाच हम नै देखब। ताबे एकटा घटना भेल, जे देखि ओ ठमकि गेलाह। नाचक बीचे मे दर्शक मे आगू मे बैसल एक गोटे उठलाह आ नाच कर' लागलाह। ओ साँवर रंग केँ उज्जर कुरता पायजामा पहीरने एकटा दाढीदार लोक छलाह आ हाथ मे एकटा नलकटुआ रखने फायरिंग सेहो करै छलाह। मनोज जी बाजलाह- "इ हमर सबहक विधायक छैथ आ सबटा आयोजन हुनके सौजन्ये छैन्हि।" तावत ओ विधायक मन्च पर चढि गेल आ बाईजी संगे फूहड भाव-भंगिमा मे नाच कर' लागल। शैलेश बाबू खिसियाइत बजलाह- "चलू तुरन्त। हम नै रूकब आब। इ किरदानी विधायक केँ, राम-राम।" ओतय सँ दुनू गोटे गाम पर एलाह आ शैलेश बाबू रातिये पटना केँ बस पकडि विदा भ' गेलाह। दोसर दिन भोरे पटना पहुँचलाह। डेरा पर बैसि चाह पीबै छलाह, तखने सुनन्दा बजलीह- "केहेन जमाना आबि गेलै। विधायक नर्तकी संगे स्टेज पर नाच करै छलै। पूरा समाचार मे यैह सब देखा रहल छै।" शैलेश बाबू तुरंत टी.वी. दिस भगलाह आ एकटा न्यूज चैनल लगेलाह। ओहिठाम यैह समाचार बेर बेर देखबै छलै। ओहि चैनलक स्टूडियो मे ऐ विषय पर बहस चलै छलै। किछ राजनीतिक लोक सब आ किछ बुद्धिजीवी लोक सब चर्चा मे लीन छलाह। विधायक जीक पार्टीक नेता केँ छोडि बाकी लोक एहि कृत्यक घोर निन्दा करै छलाह। बीच बीच मे प्रचार आ चैनेल दिस सँ इ उद्घोषणा कि सब सँ पहिने वैह इ समाचार देखौलक। इ विषय गरीबी आ भूखमरीक समस्या केँ कतौ बिला देलकै। एना लागय लागल जे देश मे आब एकमात्र यैह समस्या रहि गेलै। शैलेश बाबू चैनल बदललाह। सभ ठाम वैह देखबै छलै। ओ बडबडाय लागलाह- "कते महत्वपूर्ण समाचार भ' गेलै इ।" ताबत एकटा चैनल पर विधायक जीक बयान आबि गेलै- "इ सब विरोधी पार्टीक दुष्प्रचार थीक। हम ओहि नर्तकी केँ पुरस्कार देबा लेल स्टेज पर गेल छलहुँ। वीडियो मे छेडछाड कैल गेल अछि। इ हमरा बदनाम करै लेल विरोधी सबहक चालि थीक। हम जाँच लेल तैयार छी। एकटा कमीशन बैसायल जाओ।" शैलेश बाबू सुनन्दा केँ कहलखिन्ह- "इ झूठ बाजै ए। हम अपनहि आँखि सँ इ कृत्य देखलौं।" सुनन्दा बजलीह- "चुप रहू आ इ गप आन ठाम नै बाजब। छोडू ने, सिनेमाक चैनल लगाउ।"

साँझ मे एकटा चैनल पर "विधायक जी स्टेज पर" एहि विषय पर जनताक बीच विधायक जी केर प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम छल। शैलेश बाबू इ देख' लागलाह। विधायक जी साफ-साफ कहलखिन्ह जे ओ स्टेज पर नर्तकी केँ ईनाम दै लेल गेल छलाह। हुनकर कहनाई रहैन्हि जे वीडियो मे छेडछाड कैल गेल। जनताक बीच सँ ढेरो सवाल पूछल गेल आ विधायक जी बिना तमसायल मुस्की दैत शांत जवाब दैत रहलाह। शैलेश बाबू कुनमुनाब' लागलाह। बाजय लागलाह जे केहेन झूठ बाजै छै। मुदा हुनकर के सुनै छैन्हि। सुनन्दा केँ इ गप बूझल छलैन्हि जे शैलेश बाबू जोश मे ओतय जा सकै छैथ, तैं ओ हुनकर पहरेदारी मे मुस्तैद छलीह। एकाएक जनता केँ बीच सँ एकटा युवक उठलै आ हाथ मे एकटा चप्पल लेने मन्च दिस दौडि गेलै। ओ चप्पल सोझे मन्च दिस फेंकलक जकरा विधायक जीक अंगरक्षक सभ लोकि लेलकै। ओहि युवक केँ पुलिस पकडि लेलक आ धुनाई करय लागल। विधायक जी बाजय लगलाह जे देखू विरोधी सबहक कुकृत्य। हमरा नै फँसा सकल त' आब अपन पार्टीक लुच्चा सभ केँ पठा केँ हमरा बेइज्जत करबाक प्रयास करै जाइ ए। शैलेश बाबू धेआन सँ ओहि युवक केँ देखलाह त' हुनकर मुँह सँ निकललैन्हि- "अरे इ त' धनन्जय छै। अपन फूलधर बाबूक जेठका बेटा। इ कोनो पार्टीक लोक नै अछि। इ त' डिग्री ल' केँ घूमैत एकटा बेरोजगार युवक अछि।"

शैलेश बाबू टी.वी. बन्न क' केँ माथ पर हाथ धेने बैस गेलाह आ सुनन्दा सँ कहलखिन्ह- "कनी एक गिलास पानि पियैबतहुँ। हम फेर लाइब्रेरी जा रहल छी, लोकतन्त्रक माने ताकबा लेल।"

मैथिली गजल


सदिखन स्वार्थक चिन्तन करैत रहै ए मोन हमर।
इ गप नै बूझि जाइ कियो, डरैत रहै ए मोन हमर।

अपन खेतक हरियरी बचा केँ रखबाक जोगार मे,
आनक जरल खरिहानो चरैत रहै ए मोन हमर।

विचार अपन गाडने दोसरक छाती पर खाम जकाँ,
इ खाम उखडबाक डरे ठरैत रहै ए मोन हमर।

हृदयक भाव अछि तरंगहीन पोखरिक पानि भेल,
गन्हाईत जमल भाव सँ सडैत रहै ए मोन हमर।

अन्तर्विरोधक द्वन्द्व युद्ध मे बाझल अछि "ओम"क मोन,
अपना केँ जीयेबाक लेल मरैत रहै ए मोन हमर।
------------------- वर्ण २१ -------------------

Friday 16 December 2011

मैथिली गजल


ओकर गाँधी-टोपी कतौ हरेलै, आब ओ हमरे टोपी पहिराबै छै।
सेवक सँ बनि बैसलै स्वामी हमरे छाती पर झण्डा फहराबै छै।

चुनाव-काल मे मुस्की द' हमर दरबज्जाक माटि खखोरलक जे,
भेंट भेला पर परिचय पूछै, देखियो कतेक जल्दी बिसराबै छै।

दंगा भेल वा बाढि-अकाल, सब मे मनुक्खक दाम तय करैवाला,
पीडाक ओ मोल की बूझतै, जे मौका भेंटते कुहि-कुहि कुहराबै छै।

जनता केँ तन नै झाँपल, पेटक आँत सटकि केँ पीठ मे सटल,
वातानुकूल कक्ष मे रहै वाला फूसियों कानि केँ नोर झहराबै छै।

डारि-डारि पर उल्लू बैसल, सौंसे गाम बेतालक नाच पसरलै,
एखनो आसक छोट किरण "ओम"क मोन मे भरोस ठहराबै छै।
------------------------ वर्ण २५ -----------------------

Thursday 15 December 2011

मैथिली गजल


अन्हरिया राति मे सँ भोर कखनो निकलबे करतै।
दुखक अनन्त मेघ केँ चीर सुरूज उगबे करतै।

सब फूल बागक झरि गेल सुखा केँ एकर की चिन्ता,
नब कोढी फूटलै कहियो सुवास पसरबे करतै।

टूटल प्याली पर कहाँ कानैत छै मय आ मयखाना,
प्याली फेर कीनेतै, मयखाना मे मस्ती रहबे करतै।

सागर मे सदिखन बिला जाइत छै धारक अस्तित्व,
तैं की धार रूकै छै, बिन थाकल देखू बहबे करतै।

काल्हि "ओम"क नाम लेबाक ककरो फुरसति नै हेतै,
आइ कान किछ ठोढ सँ हमर नाम सुनबे करतै।
------------------ वर्ण २० -------------------

Wednesday 14 December 2011

मैथिली गजल


काल्हि १३.१२.२०११ केर राति हमर छोटका बाबा(हमर पितामहक अनुज) 88 बरखक अवस्था मे स्वर्गवासी भ' गेलाह। हुनकर स्मृति मे हम अपन भावांजलि ऐ गजलक माध्यमे प्रकट क' रहल छी। दिवंगत आत्माक शांति भेटैन्हि, यैह परमात्मा सँ प्रार्थना अछि।
मैथिली गजल
सब कहै ए पंचतत्व मे आइ अहाँ विलीन भ' गेलौं।
हम निशब्द भेल ठाढ छी, देखियौ वाणी-हीन भ' गेलौं।

नब वस्त्र पहीरि अहाँ कोन जतरा पर निकललौं,
बाट जोहैत छी एखनो, अपस्याँत राति-दिन भ' गेलौं।

अंगुरी अहाँक पकडि बाध-बोन हम घूमैत छलौं,
आब कहाँ ओ अंगुरी, हम बाट नापि अमीन भ' गेलौं।

जेनाई छल निश्चित, यौ दिन तकेने अजुके छलियै,
बंधन कोना केँ तोडलियै, कानैत आब बीन भ' गेलौं।

चिंतित "ओम"क तन्नुक कन्हा आब कोना बोझ उठेतै,
गेल आब अहाँक छाहरि, हम छत-विहीन भ' गेलौं।
------------------- वर्ण २० --------------------

Tuesday 13 December 2011

रूबाई

अहाँक दुनू नैन बनल अछि हमर जिनगीक सम्बल।
मुस्की अहाँक करैत रहै अछि हमरा सदिखन शीतल।
भेंटतौं अहाँ जौं नै, हमर जिनगी मे सोआद कहाँ रहितै,
अहीं प्रेरणा बनल रहै छी, देखि अहीं केँ लिखै छी गजल।

मैथिली गजल


कोनो खसैत केँ जे लियै सम्हारि, यैह थीक जिनगी।
डूबैत केँ जौं दियौ पार उतारि, यैह थीक जिनगी।

भाव कोनो हुए मोन मे, शब्द होइत छै संवाहक,
जे बाजै सँ पहिने लेब विचारि, यैह थीक जिनगी।

मान-अपमान दुनू भेंटै छै, इ मायाक थीक लीला,
अन्याय केँ सदिखन दी मोचाडि, यैह थीक जिनगी।

भाँति-भाँति केँ मेघ विचारक मोनक भीतर घूमै,
सुविचार सँ राखू मोन पजारि, यैह थीक जिनगी।

आन दिस अपन काँच अंगुरी कोना उठेतै "ओम",
पहिने लितौं अपना केँ सुधारि, यैह थीक जिनगी।
------------------ वर्ण १९ -----------------

Monday 12 December 2011

मैथिली गजल


अपने खोज मे अपन मोन हम धुनैत रहै छी।
छिडियैल मोती आत्माक सदिखन चुनैत रहै छी।

आनक की बनब, एखन धरि अपनहुँ नै भेलौं,
मोन मारि केँ सब गप पर आँखि मुनैत रहै छी।

कहियो भेंटबे करतै आत्माक गीत एहि प्राण मे,
छाउर भेल जिनगी केँ यैह सोचि खुनैत रहै छी।

झाँपै लेल भसियैल जिनगीक टूटल धरातल,
सपनाक नबका टाट भरि दिन बुनैत रहै छी।

बूझि सोहर-समदाउन जिनगीक सभ गीत केँ,
मोन-मगन भेल अपने मे, हम सुनैत रहै छी।
---------------- वर्ण १९ ----------------

Friday 9 December 2011

मैथिली गजल


हेतै की आब बूझाय नै एहि देश मे।
देश फँसल अछि घोटाला आ केसमे।

कोना केँ बचायब आब घर चोरी सँ,
फिरै छै चोर सगरो साधुक भेष मे।

जरै छै गाम, तखनो बंसी बजाबै ओ,
बूझै नै लिखल देबालक सनेस मे।

शिकारी मनुक्खक बनल छै मनुक्खे,
गोंतै छै सब बाट आ घरो कलेश मे।

बेईमानीक पताका फहरै आकाश,
पाकै ईमान आब पसरल द्वेष मे।
---------- वर्ण १४ ------------

Thursday 8 December 2011

मैथिली गजल


हम त' केने बहाना राम केर, अहींक नाम लैत छी।
बनि गेलौं हम चर्चा गाम केर, अहींक नाम लैत छी।

रखने छी करेज सँ सटा केँ यादि अहाँक सदिखन,
हमरा काज की ताम-झाम केर, अहींक नाम लैत छी।

ताकि दितिये कनी नजरि सँ मुस्कीया केँ जे एक दिन,
काज पडितै नै कोनो जाम केर, अहींक नाम लैत छी।

हमर काशी, मथुरा, काबा सब अहीं मे अछि बसल,
जतरा भ' गेल चारू धाम केर, अहींक नाम लैत छी।

रोकि सकतै नै जमाना इ मोन सँ मोनक मिलनाई,
मोन कहाँ छै कोनो लगाम केर, अहींक नाम लैत छी।
--------------------- वर्ण २० --------------------

Wednesday 7 December 2011

मैथिली गजल


देखि हुनकर असल रंग, भक हमर टूटि गेल।
पोखरि मे सब नंग-धडंग, भक हमर टूटि गेल।

सभ आँखिक नोर सुखायल, आगि एहेन छै लागल,
देखि केँ कानैत यमुना-गंग, भक हमर टूटि गेल।

बूझलौं अपना केँ कपरगर, एकटा संगी भेंटल,
छोडि देलक ओ जखन संग, भक हमर टूटि गेल।

कते बियोंत लगाबै छलौं अहाँ केँ अंग लगाबै लेल,
जखन लगेलौं अंग सँ अंग, भक हमर टूटि गेल।

मस्तीक नाव भसिया गेल छै समयक ऐ प्रवाह मे,
छलौं यौ हमहुँ मस्त-मलंग, भक हमर टूटि गेल।
----------------- वर्ण २० --------------------

Monday 5 December 2011

बुढिया मैंया


बुढिया मैंया (कथा)
मोबाईल पर बाबूजीक फोन आयल। हम उठेलौं त' कुशल क्षेमक बाद बाबूजी कहलैथ- "बुढिया मैंया स्वर्गवासी भ' गेलीह।" हम धक् रहि गेलौं। एखने दू मास पहिने गाम गेल छलौं, त' बुढिया मैंया स्वस्थ छलीह। ओना हुनकर अवस्था ९५ बर्ख छलैन्हि। पता चलल जे हर्ट अटैक आबि गेल छलैन्हि आ दरिभंगा ल' जैत बाटे मे हुनकर देहान्त भ' गेलैन्हि। बाबूजीक निर्देशानुसार हम तुरत गाम चलि देलियै। राति मे गाम पहुँचलौं, त' पता चलल जे दाह संस्कार लेल कठियारी गेल छैथ सब। माताजीक निर्देशक मोताबिक काठी चढेबा लेल हमहुँ कठियारी भागलौं। बुढिया मैंयाक दिव्य आ शान्त मुख देखि एना लागल जे ओ आब उठि बैसतीह। हुनका सानिध्य मे बिताओल समय मोन मे घूरिया लागल। एक दिन सब एहीना शांत भ' जैत। बुढिया मैंया कखनो केँ कहैथ रहथिन जे बौउआ, आब कते दिन बुढिया मैंया, हमर जे पार्ट छल से हम खेला लेलौं, आब अहाँ सभ अपन पार्ट खेलाइ जाइ जाउ। ठीके कहै छलखिन्ह ओ। अपन पार्ट खेला केँ कते दिन सँ हमरा सबहक पूर्वज एहीना शांत होइत रहलाह आ नबका पात्र सब मनुक्ख आ मनुक्खता केँ आगू बढबैत रहलाह। इ खेल सतत चलैत रहत। नब नब पौध आंगन मे आबैत रहत आ पुरान गाछ सब एहीना धाराशायी होइत रहत। मायाक जंजाल मे बान्हल हम सब एहीना मुँह ताकैत रहब। कतेक असहाय भ' जाइ छै मनुक्ख, जखन कियो अपन सामने सँ चलि जाइ छै आ ओ किछ करबा मे असमर्थ रहैत छै। एहने विचार सब मोन मे आबैत रहल आ हुनकर चिता जरैत रहलैन्हि। जखन दाह संस्कार पूर्ण भ' गेलै त' हरिदेव कक्का कहलैथ- "कोन विचार मे हरायल छी ओम बौउआ। चलू आब नहा केँ गाम पर चली। ओहिनो भोर भ' गेल। नहा-सोना केँ कनी सुतब, रतिजग्गा भ' गेल।" हम कहलियैन्हि- "कक्का, बुढिया मैंया बड्ड मोन पडै छैथ।" हरिदेव कक्का बजलाह- "छोडू ने इ सब गप, हमरा की नै मोन पडै छैथ। ऐ लेल गाम नै जैब की। मोन खराप क' ली बिना सुतने। अरे भेलै चलू, ९५ बरख केर पाकल उमैर मे गेलैथ, कते शोक मनायब।" हम चुपचाप चलि देलियै गाम दिस। आबि केँ नहा-सोना केँ सुतै लेल गेलौं। ओतय आँखि मुइन सुतबाक उपक्रम कर' लागलौं। आँखि मुनैत देरी बुढिया मैंया सामने ठाढ भ' गेलीह। हमरा दिस सिनेह सँ ताकैत वैह पुरना सवाल पूछ' लागली जे बौउआ खेलौं। हम हुनका एकटक ताकैत रहि गेलौं।
बुढिया मैंया हमर बाबाक काकी छलीह। हमर प्रपितामही लागैत छलीह। पूरा आंगन मे सब सँ जेठ आ आब त' बच्चा सभक संग सब गोटे हुनका बुढिया मैंया कह' लागल रहैन्हि। पूरा आंगनक बच्चा सभक सम्पूर्ण भार हुनके पर रहै छलैन्हि आ ओ एकरा पसिन्न करै छलखिन्ह। बच्चा सभ सँ खूब सिनेह रहै छलैन्हि हुनका। हमरा सभ केँ खुएनाई हुनके जिम्मा रहै छलैन्हि। जखने हम सब खाई मे एको रत्ती हिचकिचाइ छलियै की ओ तुरते तोता कौर आ मैना कौर बना केँ खुआब' लागै छलीह। माताजी गाम पर पहुँचैत देरी हमरा सब केँ हुनकर संग लगा दैत छलीह। जेना हमरा बूझल ए, बुढिया मैंया ३५ बरखक आयु मे वैध्वय प्राप्त केने छलैथ। हुनका तीन गोट पुत्र श्रीदेव, रामदेव आ विष्णुदेव छलखिन्ह। विष्णुदेव बाबाक पुत्र हरिदेव कक्का छलाह जिनका सँ हमरा बड्ड पटै छल। श्रीदेव बाबा खेती पथारी करै छलाह। रामदेव बाबा आ विष्णुदेव बाबा नौकरी करै छलाह आ आब रिटायर भ' केँ गामे मे रहै छलाह। बुढिया मैंयाक तीनू पुत्र आ तीनू पुतौह जीबते छलखिन्ह। हम नौकरी भेंटलाक बाद कखनो काल गाम जाइत छलौं त' बुढिया मैंया कहैथ जे भगवान हमरा उठबै मे किया देरी लगा रहल छैथ, हम चाहै छी जे तीनू पुत्रक सामने आँखि मुनी। पूरा आंगनक बच्चा बच्चा बुढिया मैंयाक चेला छल। हमहुँ छलौं। कियाक नै रहितौं, ओ निश्छल प्रेम, ओ देखभाल, सब गोटे केँ हुनका दिस आकर्षित करै छलै। सब पुतौह हुनका लग नतमस्तक रहैत छलीह। बुढिया मैंयाक हुकुमक अवहेलना कियो नै करैत छल। सबहक लेल हुनका मोन मे नीक भावना छलैन्हि। हम त' हुनकर जाउतक पोता छलौं, मुदा कहियो आन नै बूझलैथ। एहेन बुढिया मैंयाक पौत्र हरिदेव कक्का केर गप सँ हमरा बड्ड छगुनता लागल छल। हम सोचैत रही जे एखन चौबीसो घण्टा नै भेल हुनका मरल आ इ सब हुनका बिसरै मे लागि गेलाह। कियाक एना कियाक। ठीक छै जन्म मरण पर अपन बस ककरो नै छै, मुदा जे एतेक बर्ख धरि हमर धेआन राखलक, की हम ओकरा लेल किछो दिन, किछो बर्ख धरि नै सोची।
यैह सब सोचैत कखनो आँखि लागि गेल। एकाएक हंगामा सँ निन्न टूटल। जल्दी कोठली सँ बहरेलौं। आँगन मे बुढिया मैंयाक तीनू पुतौह वाक् युद्ध मे लीन छलैथ। पता चलल जे बुढिया मैंयाक गहना गुडिया पर बहस होइत छल। श्रीदेव बाबाक कनियाँ एक दिस छलखिन्ह आ रामदेव बाबा आ विष्णुदेव बाबा केर कनियाँ एक दिस। बहसक विषय वस्तु छल एकटा अशर्फी। बुढिया मैंयाक पेटी मे १६ गोट अशर्फी छलै। तीनू पुतौह ५-५ टा हिस्सा लेलाक बाद सोलहम अशर्फी पर भीडल छलीह। पहिने कहा सुनी भेल आओर बाद मे व्यंग्य आ गारिक समायोजन सेहो भेल। हम जल्दी सँ आँगन सँ बाहर दलान पर चलि एलहुँ। ओतुक्का दृश्य कोनो नीक नै छल। बुढिया मैंयाक तीनू पुत्र हुनकर कोठलीक अधिकार एहि विषय पर धुरझार वाक् युद्ध मे लागल छलाह। हमरा इ सीन किछ किछ संसद आ विधान सभाक सीन जकाँ लागै छल। तीनू भाई अपन अपन कण्ठक उच्च स्वर प्रवाह सँ लाउडस्पीकर केँ मात देने रहथिन्ह। एना लागै छल जे एकटा लहाश आइ खसिये पडतै। हम बड्ड डरि गेलौं आ बाबू केँ फोन लगेलियेन्हि- "बाबूजी, एतय त' मारा मारीक भयंकर दृश्य उपस्थित भेल अछि। आब की हेतै।" बाबूजी कहलाह- "अहाँ नै किछ बाजब। यौ दियादी झगडा एहीना होइ छै। फेर मेल भ' जेतैन्हि।" मुदा हमरा नै रहल गेल आ झगडाक स्थान पर जा केँ हम कहलियैन्हि जे बाबा अहाँ सब क्रिया-कर्म हुए दियौ, तकर बाद एहि मुद्दाक समाधान क' लेब। विष्णुदेव बाबा बजलैथ- "समाधान त' आइये हेतै। हमहुँ तैयारे छी।" हम बजलौं- "एना नै भ' सकै ए जे ओहि कोठली केँ बुढिया मैंयाक स्मृति बनाओल जाइ।" एहि बेर श्रीदेव बाबा बजलाह- "बडका ने एला स्मृति बनबाबै वाला। बुढिया की कोनो चीफ मिनिस्टर छलै आ की कतौक प्रेसीडेण्ट।" हम गोंगियाइत बजलौं- "मुदा बाबा ओ हमरा सभक एकटा स्तम्भ छलीह। मजबूत स्तम्भ।" रामदेव बाबा मुस्की दैत हमरा दिस ताकैत बजलाह- "इ छौंडा चारि लाईन बेसी पढि केँ भसिया गेलै हौ। इ नै बूझै छै जे पुरना घर खसैत रहै छै आ नबका घर उठैत रहै छै। बुढिया बड्ड दिन राज केलकै नूनू, आब हमर सबहक राज भेल, हम सब फरिछा लेब।" तीनू गोटे हमरे पर भिड गेलाह। हम तुरत ओहिठाम सँ गाछी दिस निकलि गेलौं, जतय बुढिया मैंया केँ जराओल गेल छलैन्हि। साराझपी नै भेल छल। ओहि स्थान पर छाउर छल, जतय हुनका जराओल गेल छल। हमरा लागल जेना बुढिया मैंया ओहि छाउर मे सँ निकलि हमरा सामने ठाढ भ' गेलीह आ कह' लागलीह- "बउआ अही माटि सँ एकदिन हम निकलल छलौं आ अही माटि मे फेर सँ चलि एलहुँ। अहाँ कथी लेल चिन्तित होइ छी। हमर स्मृति अहाँक मोन मे अछि, सैह हमर पैघ स्मृति अछि। जखन पुरना घर खसै छै ने, त' ओकर मलबा एहिना कात क' देल जाइ छै। ओहि जगह पर नबका घर बनाओल जाइत अछि। हम पुरान घर छलहुँ, खसि परलौं, अहाँ सब नब घर छी, जाउ उठै जाउ आ नाम करू। एहि सँ हमरो आत्मा तृप्त रहत। बिसरि गेलौं, बच्चा मे अहाँ सब केँ घुआँ मुआँ खेलबैत छलौं त' की कहै छलौं नब घर उठै, पुरान घर खसै।" हमरा अपन नेनपनक खेल मोन पडय लागल। बुढिया मैंया अपन ठेहुँन पर चढा केँ घुआँ मुआँ खेलबै छलीह। की इ संसार एकटा घुआँ मुआँक खेल थीक। एहि मे एहिना पुरना घर खसा केँ बिसरि देल जाइ ए आ नबका घर सभ अपन चमक देखबैत रहै ए। हम ओहिठाम सँ सोझे बाजार दिस विदा भ' गेलौं इ बडबडाईत जे नब घर उठै, पुरान घर खसै।

मैथिली गजल


हमरा सँ की नै करेलक सिहन्ता हमर।
सदिखन खाली कनेलक सिहन्ता हमर।

अहाँ भेंटतौं, से हमर कहाँ इ भाग्य छलै,
मुदा अहीं दिस बढेलक सिहन्ता हमर।

सुरूजक आगि सँ बचू, यैह जमाना कहै,
बाट सुरूजक धरेलक सिहन्ता हमर।

चान मुट्ठी मे बन्न कैल ककरो सँ नै भेलै,
हमरा यैह नै सिखेलक सिहन्ता हमर।

"ओम"क सिहन्ता जेना कतौ मरि-हरि गेलै,
सबटा सिहन्ता जरेलक सिहन्ता हमर।
--------------- वर्ण १६ ---------------

Friday 2 December 2011

मैथिली गजल


आउ मजा लिय' शुरू फेर खेल भ' गेलै।
देखू खेलनिहार सब मे मेल भ' गेलै।

कोनो नियम-निष्ठाक जरूरति नै एत',
कोनो दोग सँ ढुकु, ठेलम-ठेल भ' गेलै।

जकरा किछ लागल नै हाथ, हल्ला करै,
जे लेलक मजा ओकरा त' जेल भ' गेलै।

टिकट बाँटै आ काटै केर कबड्डी शुरू,
चुनाव भेलै नै जेना कोनो रेल भ' गेलै।

जीतला पर सुन्नर कोठा-गाडी भेंटत,
बाटक इ धूरि जनताक लेल भ' गेलै।
-------------- वर्ण १५ ------------