Sunday 26 February 2012

कविता


मनुक्ख (कविता)
जिनगीक कैनभस पर,
अपन कर्मक कूची सँ,
चित्र बनेबा मे अपस्याँत मनुक्ख,
भरिसक आइयो अपन हेबाक
अर्थ खोजि रहल अछि।

हजारो-लाखो बरख सँ,
बहैत इ जिनगीक धार,
कतेक बिडरो केँ छाती मे नुकेने,
भरिसक आइयो अपन सृजनक
अर्थ खोजि रहल अछि।

राजतन्त्र सँ प्रजातन्त्र धरि,
ऊँच-नीचक गहीर खाधि,
सुरसाक मुँह जकाँ बढले अछि,
भरिसक आइयो इ तन्त्र सभक
अर्थ खोजि रहल अछि।

कखनो करेजक बरियारी,
कखनो मोनक राज सहैत,
बढले जाइ छै मनुक्खक जिनगी,
भरिसक आइयो मोन आ करेजक
अर्थ खोजि रहल अछि।

मैथिली गजल


कहैए राति सुनि लिअ सजन, आइ अहाँ तँ जेबाक जिद जूनि करू।
इ दुनियाक डर फन्दा बनल, इ बहाना बनेबाक जिद जूनि करू।

अहाँ बिन सून पडल भवन बलम, रूसल किया हमरा सँ हमर मदन,
अहाँ नै यौ मुरूत बनि कऽ रहू, हमरा हरेबाक जिद जूनि करू।

इ चानक पसरल इजोत नस-नस मे ढुकल, मोनक नेह छै जागल,
सिनेह सँ सींचल हमर नयन कहल, अहाँ कनेबाक जिद जूनि करू।

अहाँ प्रेम हमर जुग-जुग सँ बनल, हम खोलि कहब अहाँ सँ कहिया धरि,
अहाँ संकेत बूझू, सदिखन इ गप केँ कहेबाक जिद जूनि करू।

कहै छै मोन "ओम"क पाँति भरल प्रेम सँ, सुनि अहाँ चुप किया छी,
इ नोत कते हम पठैब, उनटा गंगा बहेबाक जिद जूनि करू।
(बहरे-हजज)

Thursday 23 February 2012

मैथिली गजल


हमर मुस्कीक तर झाँपल करेजक दर्द देखलक नहि इ जमाना।
सिनेहक चोट मारूक छल पीडा जकर बूझलक नहि इ जमाना।

हमर हालत पर कहाँ नोर खसबैक फुरसति ककरो रहल कखनो,
कहैत रहल अहाँ छी बेसम्हार, मुदा सम्हारलक नहि इ जमाना।

करैत रहल उघार प्रेमक इ दर्द भरल करेज हमरा सगरो,
हमर घावक तँ चुटकी लैत रहल, कखनहुँ झाँपलक नहि इ जमाना।

मरूभूमि दुनिया लागैत रहल, सिनेहक बिला गेल धार कतौ,
करेज तँ माँगलक दू ठोप टा प्रेमक, किछ सुनलक नहि इ जमाना।

कियो "ओम"क सिनेहक बूझतै कहियो सनेस पता कहाँ इ चलै,
करेजक हमर टुकडी छींटल, मुदा देखि जोडलक नहि इ जमाना।
(बहरे-हजज)

Tuesday 21 February 2012

रूबाइ


कोना कऽ रंगलक करेज केँ इ रंगरेज, रंग छूटै नै।
नैन पियासल छोडि गेल, मुदा आस मिलनक टूटै नै।
हमरा छोडि तडपैत पिया अपने जा बसला मोरंग,
बूझथि विरहक नै मोल, भाग्य इ ककरो एना फूटै नै।

Monday 20 February 2012

गीत


शिवरात्रिक अवसर पर एकटा प्रस्तुति-

गौरी रहि-रहि देखथि बाट, कखन एता भोलेनाथ।

आंगन मे मैना कानि रहल छथि,
मुनि नारद केँ कोसि रहल छथि।
ताकि अनलाह केहन बर बौराह,
गौराक जिनगी भेल आब तबाह।
मैना पीटै छथि अपन माथ, कखन एता....................

भूत-बेतालक लागल अछि मेला,
प्रेत पिशाचक अछि ठेलम ठेला।
पूडी पकवान कियो नै तकै छै,
सब भाँग धथूरक खोज करै छै।
कियो नंगटे, कियो ओढने टाट, कखन एता...................

कोना कऽ गौरी अपन सासुर बसतीह,
विषधर साँप सँ कोना कऽ बचतीह।
पिताक घरक छलीह जे बनल रानी,
कोना लगेतीह आब ओ बडदक सानी।
आब तऽ किछ नै रहलै हाथ, कखन एता.....................

गौरीक मोनक आस आइ पूरा हएत,
बर बनि अयलाह शम्भू त्रिभुवन नाथ।
जगज्जननी माँ गौरी शंकर छथि स्वामी,
जग उद्धारक शिव छथि अन्तर्यामी।
फेरियो हमरो माथ पर हाथ, कखन एता.......................

"ओम" बुझाबै, सुनू हे मैना महारानी,
इ छथि जगतक स्वामी औढरदानी।
भोला नाथक छथि नाथ कहाबथि,
सबहक ओ बिगडल काज बनाबथि।
शिव छथि एहि सृष्टि केर नाथ, कखन एता...................

मैथिली गजल


कतौ बैसार मे जँ अहाँक बात चलल।
तँ हमर करेज मे ठंढा बसात चलल।

विरह देख हमर झरल पात सब गाछ सँ,
सनेस प्रेमक लऽ गाछक इ पात चलल।

मदन-मुस्की सँ भरल अहाँक अछि चितवन,
करेजक दुखक भारी बोझ कात चलल।

बुझाबी मोन केँ कतबो, इ नै मानै,
अहीं लेल सब आइ धरि शह-मात चलल।

छल घर हमर इजोत सँ भरल जे सदिखन,
जखन गेलौं अहाँ, "ओम"क परात चलल।
(बहरे हजज)

मैथिली गजल


किछ हमर मोन आइ बस कहऽ चाहै ए।
अहींक बनि कऽ सदिखन तँ इ रहऽ चाहै ए।

इ लाली ठोरक तँ अछि जानलेवा यै,
अछि इ धार रसगर, संग बहऽ चाहै ए।

अहाँ काजर लगा कऽ अन्हार केने छी,
बरखत सिनेह घन कखन दहऽ चाहै ए।

अहाँ फेंकू नहि इ मारूक सन मुस्की,
बिना मोल हमर करेज ढहऽ चाहै ए।

बिन अहाँ "ओम"क सुखो छै दुख बरोबरि,
सब दुख अहाँक इ करेज सहऽ चाहै ए।
(बहरे-हजज)

Wednesday 15 February 2012

गहीर आँखिक व्यथा (कथा)


आइ-काल्हि शहरी मध्यवर्गक भोरका रूटीन सब ठाम एक्के रहै ए। चाहे ओ छोट शहर हुए वा महानगर। जँ घर मे स्कूल जाइवाला बच्चा आछि तँ भोरे-भोर उठू आ बच्चा केँ तैयारी मे लागि जाउ। एक नजरि घडी दिस रहै छै जे कहीं लेट नै भऽ जाइ। बस स्टाप पर अलगे भीड आ जे अपने सँ स्कूल पहुँचाबै छथि, हुनकर सभक भीड स्कूल गेट पर। कम बेसी सभ शहरक हाल एहने रहै ए। भागलपुर सेहो एहि सब सँ फराक नै छै। भोर मे सात बजे सँ लऽ कऽ साढे आठ बजे तक सौंसे ट्रैफिक जाम आ भीड भाड रहै छै। संजोग सँ हमहुँ एहि भीड भाडक एकटा हिस्सा रहै छी। छोटकी बेटी केँ स्कूल पहुँचेबाक हमरे ड्यूटी रहै ए। अलार्म लगा कऽ भोरे भोर छह बजे उठि जाइ छी। जौं छह सँ आगू सुतल रहलौं, तँ श्रीमतीजीक सुभाषितानि शुरू भऽ जाइ छै जे हे देखियौ आइ स्कूल छोडेलखिन्ह। जखन सात पर घडीक काँटा आबि जाइ ए तखन हबड हबड बेटीक डैन पकडने स्कूल दिस भागै छी आ जँ समय पर गेटक भीतर ढुका देलियै, तँ बुझाइत अछि जे दुनिया जीत लेलौं। इ तँ भेल नित्यक कार्यक्रम। आब किछ विशेष। स्कूलक इलाका मे नित्य भोरे बहुत रास अभिभावकक जुटान हेबाक कारणेँ गपक छोट छोट ढेरी टोल बनल रहै ए। सभक अपन अपन ग्रुप छै आ इ ग्रुप सभक जुटान हेबा लेल ढेरी चाह आ पानक दोकान सभ सेहो। अस्तु, तँ हमरो एकटा ग्रुप बनि गेल अछि, जाहि मे ब्लाक वाला ठाकुरजी, कालेजक प्रोफेसर दासजी, पोस्ट आफिस वाला शर्माजी, कपडा दोकान वाला मोहन सेठ, सर्वे वाला मेहताजी आ आरो किछ गोटे शामिल छथि। हम सब नित्य बच्चा केँ स्कूल छोडलाक बाद ओतुक्का घनश्यामक चाह दोकान पर जुटै छी आ चाहक संग भरि पोख गपक सेहो रसास्वादन करै छी। निजी समस्या सँ लऽ कऽ देशक राजनीति, अमेरिकाक दादागीरी, सचिनक सेनचुरी, आर्थिक समस्या, टूटल रोड, बिजलीक कमी, मँहगीक मारि, कम दरमाहा आदि बहुते विषय सब पर नित्य अंतहीन बहस होइत रहै ए। कहियो काल जँ बेसी लेट भऽ जाइ ए तँ घरनीक तामस सँ भरल फोन हमर सभक सभा भंग कऽ दैत ए। कखनो कऽ मोबाईल फोन पर तामसो होइ ए जे केहन सुन्नर बहस चलै छल आ बहसक असमय मृत्यु भऽ जाइ ए एकटा फोन काल पर। खैर इ भेल हमर भोरका नित्य कार्य। आब हम मूल कथा दिस बढै छी।

घनश्यामक चाह दोकान पर एकटा छोट बच्चा काज करै छल। नाम छलै बिनोद आ हमरा सब लेल ओ छल छोटू। घनश्याम कहै छलै बिनोदबा। इ बिनोद, बिनोदबा वा छोटू जे कहियै दस बरखक हएत। एक दिन बहसक विषय वस्तु छल चाइल्ड लेबर। हम सब अपन चिन्ता प्रकट करै छलौं। ठाकुरजी बजलाह जे यौ ऐ दोकान मे जतय छाह पीबै छी सेहो एकटा बाल मजदूर काज करै ए। एकाएक हमरा सभक धेआन छोटू पर चलि गेल। एतेक दिन सँ इ गप नजरि मे किया नै आबै छल, यैह सोचऽ लगलौं। ठाकुरजी घनश्याम केँ कहलखिन्ह जे बाउ इ गलती काज केने छी अहाँ। पुलिस पकडत आ मोकदमा सेहो हएत। घनश्याम बाजल जे अहाँ जूनि चिन्ता करू। हमर पूरा सेटिंग अछि। लेबर आफिसक बडा बाबू हमर ग्राहक छथि आ कोतवालीक दरोगा सेहो एतय आबै छथि। आइ तक तँ किछ नै कहलाह आ आगू देखल जेतै। हम बजलौं- "से तँ ठीक ए, मुदा इ कहू जे एते छोट बच्चा सँ काज करेनाई अहाँ के नीक लगै ए।" घनश्याम- "जखन एकर बापे केँ नीक लगै छै तखन हमरा की जाइ ए। तीन सय टाका महीनवारी दय छियै।"

हम धेआन सँ बिनोद केँ देखलौं। ओकर आँखि बड्ड गहीर छलै। कोनो सुखायल सपना जकाँ ओकर आँखि मे काँची सुखा कऽ सटल छलै। हमर हृदय करूणा सँ भरि गेल। हमरा रहल नै गेल। हम ओकरा लग बजेलियै आ पूछलियै- "बउआ कोन गाम घर छौ।" बिनोद बाजल- "हम्मे जगतपुरो केँ छियै।" हम- "बाबूक की नाम ए।" बिनोद- "हमरो बाबूरो नाम जीबछ दास छै।" हम- "पढै नै छी अहाँ? किया काज करै छी?।" बिनोद- "हमरो बाबू कहलकौं जे काम नै करभीं, त घरो मे चूल्ही नै जरथौं। ऐ सँ हम्मे काम पकडी लेलियै।" हम- "हम अहाँक बाबू सँ भेंट करऽ चाहै छी।" बिनोद ताबत हमरा सँ नीक जकाँ गप करऽ लागल छल आ मुस्की दैत कहलक- "हमरो बाबू आज अइथौं। थोडा देर रूकी जा, भेंट होइ जेथौं।"

हम ओतै बिलमि गेलौं। कनी काल मे कनियाँ फोन केलथि- "आइ आफिस नै जेबाक ए।" हम- "बस आधा घण्टा मे आबै छी।" कनियाँ- "इ महफिल आ चौकडी अहाँ केँ बरबादे कऽ कऽ छोडत। जे फुराइ ए सैह करू।" हम देखलौं जे मण्डलीक सब सदस्यक मोबाईल टुनटुनाईत छल। खैर कनी कालक बाद एकटा दीन हीन व्यक्ति दोकान पर आयल। बिनोद कहलक- "हमरो बाबू आबी गेल्हौं। जे गप करना छौं, करी लए।" हम ओहि व्यक्ति सँ पूछलौं- "अहीं जीबछ दास थिकौं।" ओ बाजल- "जी मालिक। केहनौ खोजी रहलौं छलियै हमरा।" हम- "अहाँ अपन छोट बच्चा सँ मजदूरी कियाक करबै छियै? ओकर पढै लिखैक उमरि छै। आओर सरकारी कानून सेहो बनि गेल अछि जे अहाँ बच्चा सँ मजदूरी नै करा सकै छी।" जीबछ- "अरे मालिक सरकारो की करतै? फाँसी लटकाय देतै? घरो रहतै त भूखले मरी जेतै।" हम- "कतेक बाल बच्चा अछि अहाँक?" जीबछ- "पाँच गो बेटा औरो दू गो बेटी छै।" हम- "ककरो पढबै छियै की नै?" जिबछ बिहुँसैत कहलक- "पहीले खाना पीना पूरा होतै तभें नी पढाई होतै।" हम- "एते जनसंख्या कियाक बढेने छी?" जीबछ- "आब होइ गेलै त की करभौं। हमे भी बच्चा मे मजदूरीये केलियौं मालिक। हमरा और के भाग मे यही लिखलो छौं।" हम- "देखू जे भेल से भेल। बच्चा केँ मजदूरी छोडाउ आ स्कूल मे भर्ती करू। सरकार दुपहरियाक खेनाई सेहो दै छै। नै तँ हम लेबर विभाग मे खबरि कऽ देब। कनी एक बेर बिनोदक आँखिक सपना दिस देखियौ। ओकर की दोख छै? कमे अवस्था मे केहन लागै छै। अहाँक दया नामक वस्तु नै ए की? अहींक बच्चा थीक। सरकारक ढेरी योजना छै। अहाँ लोन लऽ सकै छी। अपन कारोबार कऽ सकै छी। नरेगा मे रोजगारक गारण्टी छै। इंदिरा आवास मे मकान लऽ सकैत छी।" पता नै हम की सब कहैत चलि गेलौं। हमरा चुप भेलाक बाद जीबछ बाजल- "मालिक अपने सब ठीके कहलियै। लेकिन सबे जगहो पर कमीशनो खोजै छै। हमे कहाँ से देभौं कमीशन। ढेरी इनक्वाइरी औरो चिट्ठी पतरी होइ छौं। एतना लिखा पढी औरो दौडा दौडी हमरा से नै सपरथौं।" हम- "ठीक छै, एखन तँ हम जाइ छी, मुदा अहाँ केँ जे कहलौं से करब आ कोनो दिक्कत हएत तँ हमरा सँ भेंट करब। हम अहाँक चिट्ठी बना देब आ जतय कहऽ पडत कहि देब।" फेर हम घर चलि गेलौं। सभा विसर्जित भऽ गेल छल।

दोसर दिन जखन स्कूल गेलौं, तँ फेर सँ घनश्यामक दोकान पर चाहक जुटान भेल। आइ बिनोद दोकान पर नै छल। हम गर्व सँ बाजलौं- "देखलियै बिनोदक मुक्ति भऽ गेल। आब ओकर गहीर आँखिक सपना फेर सँ हरिआ जाएत।" घनश्याम कहलक- "नै सर, बिनोदबाक बाप अहाँ सब सँ डरि गेल आ हमरा ओतय सँ हटा लेलक। कहै छल जे कहीं साहब सब पकडबा नै दैथ, तैं एकरा कोनो दोसर ठाम रखबा दैत छियै।" हम अवाक रहि गेलौं। बिनोदक गहीर आँखिक सपना हमरा नजरिक सामने ठाढ भेल हमरा पर हँसि कऽ कहै छल- "सब सपना पूरा होइ लेल थोडे होई छै। किछ सपनाक अकाल मृत्यु भऽ जाइ छै। हमरो अकाल मृत्यु भऽ गेल अछि। अहाँ व्यर्थ हमरा जीयेबाक प्रयास कऽ रहल छी।" हम हताश भऽ गेलौं। ओहि दिन सँ बिनोद केँ बहुत ताकलियै, मुदा पूरा भागलपुर मे ओ कतौ नै भेंटल। बच्चा सबहक बडा दिनक छुट्टी मे एकटा भाडाक गाडी सँ गाम जाइ छलौं। बाट मे नारायणपुर मे चाह पीबा लेल गाडी रोकलौं, तँ देखै छी जे बिनोद ओहि चाहक दोकान पर काज करैत छल। हम ओकरा दिस बढलौं की ओ जोर सँ कानऽ लागल। दोकानक मालिक हमरा कहलक- "बच्चा केँ किया डरबै छियै?" हम- "नै डरबै नै छियै। हम ओकरा जानै छियै।" दोकानक मालिक- "से तँ हम देखिये रहल छी। चुपचाप चाह पीबू आ अपन गाम दिस जाउ।" ताबत कनियाँ सेहो आबि गेली आ कहऽ लागली- "अहाँ केँ बताह हेबा मे आब कोनो कसरि नै रहि गेल। चलू तँ चुपचाप।" हम देखलौं जे बिनोद कतौ नुका गेल छल अपन गहीर आँखिक सपना समेटने आ हम चुप भऽ गाडी मे बैसि गेलौं।

मैथिली गजल


बाहरक शत्रु हारि गेल मुदा मोन एखनहुँ कारी अछि।
नांगरि नहि कटा कऽ मुडी कटबै कऽ हमर बेमारी अछि।

तेल सँ पोसने सींग रखै छी व्यर्थ कोना हम होबय देबै,
खुट्टा अपन गाडब ओतै जतऽ सभक सँझिया बाडी अछि।

पेट भरल अछि तैं खूब भेजा चलै ए, नै तऽ हम थोथ छी,
ढोलक कियो बजाबै, मस्त भेल बाजैत हमर थारी अछि।

जीतबा लेल ढेरी रण बाँचल, एखन कहाँ निचेन हम,
केहनो इ व्यूह होय, टूटबे करतै जँ पूरा तैयारी अछि।

डाह-घृणा केँ अहाँ कात करू, इ अस्त्र शस्त्र नै कमजोरी छै,
आउ सब ओहिठाम जतय रहै "ओम" प्रेम-पुजारी अछि।
सरल वार्णिक बहर वर्ण २२

Tuesday 14 February 2012

मैथिली गजल


मधुर साँझक इ बाट तकैत कहुना कऽ जिनगी बीतैत रहल हमर।
पहिल निन्नक बनि कऽ सपना सदिखन इ आस टा टूटैत रहल हमर।

कछेरक नाव कोनो हमर हिस्सा मे कहाँ रहल कहियो कखनो,
सदिखन इ नाव जिनगीक अपने मँझधार मे डूबैत रहल हमर।

करेज हमर छलै झाँपल बरफ सँ, कियो कहाँ देखलक अंगोरा,
इ बासी रीत दुनियाक बुझि कऽ करेज नहुँ नहुँ सुनगैत रहल हमर।

रहै ए चान आकाश, कखनो उतरल कहाँ आंगन हमर देखू,
जखन देखलक छाहरि, चान मोन तँ ओकरे बूझैत रहल हमर।

अहाँ कहने छलौं जिनगीक निर्दय बाट मे संग रहब हमर यौ,
अहाँक गप हम बिसरलहुँ नहि, मोन रहि रहि ओ छूबैत रहल हमर।
मफाईलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) - ५ बेर प्रत्येक पाँति मे।

Friday 10 February 2012

मैथिली गजल


चढल फागुन हमर मोन बड्ड मस्त भेल छै।
पिया बूझै किया नै संकेत केहन बकलेल छै।

रस सँ भरल ठोर हुनकर करै ए बेकल,
तइयो हम छी पियासल जिनगी लागै जेल छै।

कोयली मधुर गीत सुना दग्ध केलक करेज,
निर्मोही हमर प्रेम निवेदन केँ बूझै खेल छै।

मद चुबै आमक मज्जर सँ निशाँ चढै हमरा,
रोकू जुनि इ कहि जे नै हमर अहाँक मेल छै।

प्रेमक रंग अबीर सँ भरलौं हम पिचकारी,
छूटत नै इ रंग, ऐ मे करेजक रंग देल छै।
सरल वार्णिक बहर वर्ण १८
फागुनक अवसर पर विशेष प्रस्तुति।

Tuesday 7 February 2012

मैथिली गजल


चलल बाण एहन इ नैनक अहाँक, मरलौं हम।
सुनगल इ करेज हमर सिनेह सँ बस जरलौं हम।

भिडत आबि हमरा सँ, औकाति ककरो कहाँ छै,
जखन-जखन लडलौं, हरदम अपने सँ लडलौं हम।

हम उजडल बस्ती बनल छी अहाँक इ सिनेह सँ,
सिनेहक नगर मे सदिखन बसि-बसि उजडलौं हम।

हम तँ देखबै छी अपन जोर मुँहदुब्बरे पर,
कियो जँ कमजोर छल, पीचि कऽ बहुत अकडलौं हम।

अहाँ डरि-डरि कऽ देखलौं जाहि धार दिस सुनि लिअ,
सब दिन उफनल एहने धार मे उतरलौं हम।
फऊलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)--- ५ बेर प्रत्येक पाँति मे।

Monday 6 February 2012

मैथिली गजल


अहाँ केँ हमर इ करेज बिसरत कोना।
छवि बसल मोन मे आब झहरत कोना।

हवा सेहो सुगंधक लेल तऽ जरूरी,
बिन हवा फूलक सुगंध पसरत कोना।

अहीं टा नै, इ दुनिया छै पियासल यौ,
बिन बजेने इ चान घर उतरत कोना।

जवानी होइ ए नाव बिन पतवारक,
कहू पतवारक बिना इ सम्हरत कोना।

हमर मोन ककरो लेल पजरै नै ए,
बनल छै पाथर करेज पजरत कोना।
मफाईलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) ३ बेर प्रत्येक पाँति मे।

Friday 3 February 2012

मैथिली गजल


अन्हारक की सुख बुझथिन इ इजोतक गाम मे सदिखन रहै वाला।
दुखे केँ सुख बना लेलक करेजक घातक दुख चुपे सहै वाला।

जमानाक नजरिक खिस्सा बनल ए आब तऽ करेज हमर सुनू यौ,
हुनकर नजरि कहाँ देखलक हमर करेजक इ शोणित बहै वाला।

कहै छै लाजक नुआ मे मुँह नुकौने रहल दुनियाक डर सँ अपन,
इ रीत अछि दुनियाक, तऽ एतऽ किछ सँ किछ कहबे करतै कहै वाला।

करू नै प्रकट अपन सिनेह मोनक, यैह हमरा ओ कहैत रहल,
किया हम राखब उठा केँ समाजक जर्जर रिवाज इ ढहै वाला।

अहाँ डेग अपन उठेबे करब कहियो हमर मोनक दुआरि दिसक,
बहुत "ओम"क बहल नोर, दुखक गरम धार मे गाम इ दहै वाला।
मफाईलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) ५ बेर प्रत्येक पाँति मे।