Friday 30 March 2012

घोघ उठबैत मैथिली गजल


घोघ उठबैत मैथिली गजल
मैथिली गजलक पहिलुक प्रकाशित पोथी "उठा रहल घोघ तिमिर" पढबाक सौभाग्य भेंटल। ऐ गजल संग्रहक गजलकार श्री विभूति आनन्द छथि। एहि पोथी मे कुल चौंतीस गोट गजल अछि। पूरा पोथी केँ एकहि बैसार मे पढि गेलहुँ आ बेर-बेर पढलहुँ। सबसे पहिने हम श्री विभूति आनन्दजी केँ मैथिली गजलक पहिलुक संग्रह प्रकाशित करबा लेल धन्यवाद दैत छियैन्हि।
एहि पोथीक भूमिका मे गजलकार कहै छथि जे "मैथिलीक गजल सोझे-सोझ हिन्दी सँ प्रभावित अछि मुदा हिन्दी जकाँ जमल नञि अछि एखनो धरि।" आगू हुनकर कहनाई छैन्हि- "पारम्परिक व्याकरण सम्बन्धित अगणित त्रुटि सभ ठाम लक्षित होएत। ओना हम दुस्साहसपूर्वक साहस करैत रहलहुँ अछि जे कथ्य-सामंजस्य लए व्याकरण दिस सँ यदि मूँहो घूमा लेल जाए तँ कोनो हर्ज नञि। किए तँ हम मानैत छी जे ई पाठ्यक्रमक वस्तु नञि अछि। विद्यार्थी मूर्ख नञि बनत। तैं की ------------------------ व्याकरण सँ भयभीत भऽ नञि लिखल जाए।" गजलकारक पहिलुक कथनक सम्बन्ध मे हमर निवेदन अछि जे गजलक परम्परा अरबी-फारसी सँ शुरू भेल अछि आ ओतहि सँ आन भारतीय भाषा मे पसरल अछि। हिन्दी-उर्दू मे गजल कहबाक परम्परा मैथिली सँ पहिने शुरू भेल, तैं बहुसंख्य लोक दिग्भ्रमित भऽ जाइत छथि जे मैथिलीक गजल हिन्दी गजलक नकल छी वा ओइ सँ प्रभावित भेल अछि। गजलकार सेहो एहि मिथ्या धारणा सँ प्रभावित छथि। आब गजलक व्याकरण थोड-बहुत समन्जनक संग सब भाषा मे तँ एक्के रहत। ऐ स्थिति केँ हमरा हिसाबेँ "प्रभावित भेनाई" कहबाक कोनो औचित्य नै अछि। गजलकारक दोसर कथन देखि हम निराश भेल छी। पता नै किया एखन धरि जे दुनू गजल संग्रह (सबसँ पहिलुक आ सबसँ अंतिम प्रकाशित) पढलहुँ, एहि दुनू मे गजलकार कथ्य-सामंजस्यक आगू व्याकरण केँ कोनो मोजर नै देबऽ चाहैत छथि। एकटा गप मोन रखबाक चाही जे साहित्यक निर्माण वैयाकरणिक अनुशासनक बादे सफल भेल अछि। इ फराक गप अछि जे समय-काल आ स्थानक हिसाबेँ सर्वमान्य परिवर्तन व्याकरण मे होइत रहल छैक। बिना वैयाकरणिक अनुशासनक भाषा पढबा, लिखबा आ बाजबा जोग रहत? जिनका मे साहित्य निर्माणक माद्दा छैन्हि, हुनका मे व्याकरण केँ पालनक साहस अबस्स हेबाक चाही।
आब हम एहि संग्रहक गजलक सम्बन्ध मे किछु गप कहऽ चाहब। इ गजल संग्रह ओहि समय मे लिखल गेल अछि जखन मैथिली गजलक व्याकरण आ बहरक सम्बन्ध मे बहुत बेसी जनतब सार्वजनिक नै छल। हम एकरा एना कहऽ चाहब जे इ गजल संग्रह "अनचिन्हार आखर" जुग सँ पूर्वक गजल अछि जखन बहर, रदीफ आ काफियाक नियमक पालनक विषय मे बहुत रास गप सर्वजन सुलभ नै छल। एहि हिसाबेँ जँ ऐ संग्रहक गजल सभ मे बहरक दोख छैक तँ इ स्वभाविक बुझाईत अछि। एहि संग्रहक कोनो टा गजल कोनो बहर मे नै अछि। तैं ऐ संग्रहक वैध गजल (जाहि मे काफियाक नियमक पालन भेल हुए) सभ केँ "आजाद-गजल"क श्रेणी मे राखल जा सकैए। आब गजलक काफिया आ रदीफक सम्बन्ध मे किछु गप। एहि संग्रहक बहुत रास गजल मे काफिया आ रदीफक नियमक पालन भेल अछि। मुदा कएक गजल मे रदीफ आ काफियाक गलती अछि। जेना पृष्ठ चौदह पर मतला देखला पर बुझाईत अछि जे "इ मौसम" रदीफ अछि आ "लागैए" आओर "उलाबैए" काफियायुक्त शब्द अछि। मुदा दोसर शेर आ आगूक आन शेर मे एकर पालन नै भेल अछि आओर शेर सभ बिना रदीफक "अ" काफियायुक्त अछि। पृष्ठ पन्द्रह पर सेहो यैह दोख अछि, जाहि मे मतला मे रदीफ "कहाँ रहल"क प्रयोग अछि आ आन शेर सभ बिना रदीफक "अल" काफियायुक्त अछि। एहने दोख पृष्ठ सोलह मे देखल जा सकैत अछि, जतय मतला मे "करै छह" रदीफ मानल जयबाक चाही। ओना ऐ गजलक आन शेर सभ मे दू टा काफियाक सुन्नर प्रयोग अछि, जे नीक लागैए। हमरा हिसाबेँ काफियाक दोख पृष्ठ बीस, बाईस, चौबीस, पचीस, अट्ठाईस, उनतीस(संयुक्ताक्षर काफियाक नियमक दोख), बत्तीस आ सैंतीस मे सेहो अछि। एकर सबहक विस्तृत वर्णन देब हम अपेक्षित नै बूझि रहल छी, कियाक तँ इ हमर उद्देश्य कथमपि नै अछि। गजल संग्रहक सब गजलक विषय-वस्तु नीक अछि आ गजलकार अपन भावना नीक जकाँ प्रकट केने छथि।
किछु गजलक काफिया आ रदीफक दोख जँ कात कऽ कऽ देखी, तँ इ गजल-संग्रह एकटा नीक गजल-संग्रह अछि। गजलकारक गजल कहबाक क्षमता सेहो नीक बुझाईत अछि। हमरा ई अचरज लागि रहल अछि जे ऐ संग्रहक बाद गजलकारक दोसर गजल-संग्रह किया नै आएल अछि। एकर कारण तँ गजलकारे केँ पता हेतैन्हि, मुदा अपन अनुभवक आधार पर हम कहऽ चाहै छी जे श्री विभूति आनन्द नीक गजल लिख सकैत छथि। जँ बहरक विचार नै करी, तँ २०१२ मे आएल श्री अरविन्द ठाकुरजीक गजल-संग्रह सँ करीब एकतीस बर्ख पहिने १९८१ मे लिखल गेल एहि संग्रहक गजल सब उम्दा कहल जा सकैत अछि। एकर कारण इ जे एहि संग्रहक गजल सब मे काफियाक नियम-पालनक प्रतिशत वर्तमान समयक संग्रह सब सँ बेसी अछि। कथ्यक मजबूती सेहो नीक कोटिक अछि। खाली कुहरल तुकमिलानी केने गजल नै कहल जा सकैत अछि, इ गप एहि संग्रह केँ पढलाक बाद एखुनका गजलकार सभ केँ सेहो बुझेतन्हि, इ आशा अछि। इहो एकटा अचरजक विषय अछि जे जखन मैथिली मे नीक गजल एतेक साल पहिनो कहल गेल छल, तखन एकर बाद गजलक विकास-यात्रा पचीस-तीस बर्ख धरि कतऽ आ किया ठमकि गेल। बीचक अवधि मे मैथिली गजलक विकासक धार मे बान्ह किया बनि गेल छल, इ विचारणीय गप अछि। ओना आब इ बान्ह टूटि रहल अछि आ आशाक नब जोति मे मैथिली गजलक घोघ उठि रहल अछि।

बिहनि कथा


ढेपमारा गोसाईं
मोबाईलक अलार्मक घर-घरी सुनि कऽ मिश्राजीक निन्न टूटि गेलैन्हि। ओ मोबाईल दिस तकलाह आ अलार्म बन्न करैत फेर सुतबाक उपक्रम करऽ लागलाह। आ की कनियाँक कडगर आवाज कान मे ढुकलैन्हि- "यौ किया अनठा कऽ पडल छी? साढे पाँच बजै छै। उठू, नै तँ बच्चा सभ केँ इसकूल लेल के तैयार करओतैक। हम नस्ता बनाबै लेल जा रहल छी। भरि दिन तँ अहाँ आफिस मे कुर्सी तोडबे करै छी, कनी घरो पर धेआन दियौ।" मिश्राजी बिना कोनो विरोध केने पोस माननिहार माल जाल जकाँ चुपचाप बिछाओन सँ उतरि बाथरूम मे ढुकि गेलाह। निवृत भेलाक बाद बच्चा सब केँ उठाबऽ लगलाह। बच्चा सब हुनकर कुशल नेतृत्व मे इसकूल जयबा लेल तैयार हुए लागल। एकाएक बडका बेटा राजू बाजल- "पापा अहाँ हमर कापी आनलहुँ?" मिश्राजी- "नै, बिसरि गेलहुँ। काल्हि आफिस मे बड्ड काज छल।" राजू बाजल- "अहाँ तीन दिन सँ बिसरि रहल छी। रोज आफिसक काजक लाथे हमर कापी नै आबि रहल अछि। अहाँ केँ हमर काज मोन नै रहैए।" ओम्हर सँ कनियाँक स्वर भनसाघर सँ बहराएल- "इ तँ हिनकर पुरान आ पेटेण्ट बहाना अछि। घरक कोनो काज मे हिनकर कोनो अभिरूचि नै छैन्हि। आइ हम अपने तोहर कापी आनि देबह।" कहुना बच्चा सब केँ तैयार करा मिश्राजी बस-स्टाप धरि बच्चा सब केँ छोडि डेरा अएलाह तँ कनियाँ एकटा नमहर लिस्ट हाथ मे थमा देलखिन्ह। सब्जी, आटा, दूध आ आन वस्तु सबहक लिस्ट। मिश्राजी बजलाह- "कनी दम धरऽ दियऽ। हम बडद जकाँ भरि दिन लागल रहै छी, तइयो अहाँ सब केँ हमरे सँ सिकाईत रहैए।" कनियाँ कहलखिन्ह- "बियाहि कऽ अहाँ आनलहुँ आ सिकाईत करै लए भाडा पर लोक ताकी हम?" बेचारे मिश्राजी चुपचाप बाजार दिस ससरि गेलाह। बाट मे बाबूजीक फोन मोबाईल पर एलेन्हि- "हौ, मकानक देबाल नोनिया गेलैक। रंग करबाबै लए पाई कहिया पठेबहक?" मिश्राजी बिहुँसैत बजलाह- "अगिला मास पाई पठा सकब।" पिताजी खिसियाईत कहलखिन्ह- "कतेको मास सँ तौं अगिला मासक गप कहै छह। इ अगिला मास कहियो आओत की नै।" मिश्राजी केँ अपन गामक सीमान परहक ढेपमारा गोसाईं मोन पडि गेलैन्हि, जकरा पर सब कियो आबैत जाईत एकटा ढेपा फेंकि दैत छलै। हुनका बुझाइ लगलैन्हि जे ओ ढेपमारा गोसाईं भऽ चुकल छथि।
दस बजे मिश्राजी आफिस पहुँचलाह। कनी काल मे आफिसर अपना कक्ष मे बजा कऽ पूछलखिन्ह- "काल्हि एकटा अर्जेण्ट फाईल नोटिंग लए देने छलहुँ आ अहाँ बिना काज केने भागि गेलहुँ।" मिश्राजी- "सर, बिसरि गेलियै। एखन कऽ दैत छी।" आफिसर- "नित यैह बहाना रहैए। किछो यादि रहैए अहाँ केँ?" मिश्राजी सोचऽ लागलाह- "इहो नै छोडलक। कुर्सी पर बैसल अछि तँ हुकूमत देखबैए।" आफिसर हुनका चुप देखि कहलैथ- "की कोनो नब बहाना सोचै छी की? जाउ काज कऽ कऽ दियऽ।" मिश्राजी- "सर, कहलौं ने बिसरि गेल रही। तुरत कऽ दैत छी।" आफिसर- "अच्छा, रोज तँ यैह बहाना रहैए। किछो मोन रहैए की नै? अपन नाम तँ मोन हैत ने। की नाम अछि अहाँक श्रीमान विनय मिश्राजी।" मिश्राजीक मूँह सँ हरसट्ठे निकलल- "ढेपमारा गोसाईं।"

Tuesday 27 March 2012

बीहनि कथा


बीहनि कथा
स्पेशल परमिट
एक दिन सिनेमा देखबा लेल सिनेमा हाल सपरिवार गेल रही। ओतय सिनेमाघरक मैनेजर गाडी सँ उतरैत देरी स्वागत मे लागि गेल। ओ हमरा चिन्हैत छल। सिनेमा शुरू हएबा मे किछु देरी छल। ओ हमरा अपन कक्ष मे बैसा कऽ चाह-पान करबऽ लागल। सिनेमाक शो शुरू भेलाक बादो हाल मे बीच बीच मे नाश्ता पानी पूछैत रहल। हमर छोटकी बेटी इ सब अचरज सँ देखैत छल। सिनेमा समाप्त भेलाक बाद मैनेजर आदरपूर्वक हमरा गाडी तक अरियाइति देलक। डेराक बाट मे हमर छोटकी बेटी हमरा पूछलक- "पापा, इ मैनेजर अहाँक एतेक खातिर बात कियेक करै छल? ओतय तँ आरो लोक सब छल, मुदा ककरो दिस ताकबो नै करैत छल।" हम बजलहुँ- "बेटी, अहाँ नै बूझब। हमरा स्पेशल परमिट अछि।" छोटकी बाजल- "तखन तँ अहाँ केँ आरो ठाम इ स्पेशल परमिट भेंटैत हएत।" हम अपन बहादुरी मे कहलौं- "हाँ-हाँ, आरो ठाम भेंटैए।" ऐ पर छोटकी बाजल- "तखन काल्हि सँ हमरा अहाँ इसकूलक भीतर तक गाडी सँ छोडू। प्रसून नित्य गाडी सँ भीतर तक आबै छै आ बड्ड शान देखाबै छै। अहाँ तँ हमरा बाहरे गाडी सँ उतारि दैत छी।" हम सकपकाईत बजलौं- "बेटी प्रसून कलक्टरक बेटा अछि। कलक्टर केँ हमरा सँ पैघ स्पेशल परमिट भेंटल छैक। हमरा अहाँक इसकूलक स्पेशल परमिट नै भेंटल अछि।" छोटकी रूसि गेल आ कहलक- "नै अहाँ हमरा फूसि कहै छी। हमहुँ गाडी सँ इसकूलक भीतर तक जायब।" हम आब ओकरा की बूझैबतियेक। हम चुप रहि गेलौं।

मैथिली गजल


मोनक आस सदिखन बनि कऽ टूटैत अछि।
किछु एना कऽ जिनगी हमर बीतैत अछि।

मेघक घेर मे भेलै सुरूजो मलिन,
ऐ पर खुश भऽ देखू मेघ गरजैत अछि।

हम कोना कऽ बिसरब मधुर मिलनक घडी,
रहि-रहि यादि आबै, मोन तडपैत अछि।

देखै छी कते प्रलाप बिन मतलबक,
चुप अछि ठोढ, बाजै लेल कुहरैत अछि।

मुट्ठी मे धरै छी आगि दिन-राति हम,
जिद मे अपन, "ओम"क हाथ झरकैत अछि।
(बहरे-कबीर)

Friday 23 March 2012

बहुरूपिया रचना मे


गजल मे हम रूचि राखैत छी। संगहि मैथिली मे थोड बहुत गजल सेहो लिखै छी आ गजलक पोथी सब पढबाक इच्छा रहै ए। मैथिली मे बहुत कम गजल संग्रह अछि आ ओहो सुलभ नै होइत रहै ए। एहन परिस्थिति मे हमरा श्री अरविन्द ठाकुरजीक सद्यः प्रकाशित मैथिली गजल संग्रह "बहुरूपिया प्रदेश मे" पढबाक अवसर भेंटल आ हम एहि पोथी केँ आद्योपान्त पढलहुँ।

सबसे पहिने हम श्री अरविन्द ठाकुरजी केँ मैथिली गजलक पोथी लिखबाक लेल बधाई दैत छियैन्हि। मैथिली गजलक उत्थान लेल प्रत्येक डेग हमरा महत्वपूर्ण लागै ए। पोथीक गेट अप बड्ड सुन्नर अछि। टाईप आ कागतक कोटि सेहो उत्तम अछि। पोथीक भूमिका गजलकार अपने लिखने छथि आ ओहि मे गजल आ एहि संग्रहक सम्बन्ध मे बहुत रास गप सब कहने छथि। जेना पृष्ठ संख्या सातक दोसर पारा मे गजलकार कहैत छथि जे "मैथिलीक मिजाजक सीमा (इ मैथिलीक नहि, हमर अपन सीमा भऽ सकैत अछि) केँ देखैत गजलक व्याकरण (रदीफ, काफिया, मिसरा, मतला, मकता आदि)क स्थापित मापदंडक कसबट्टी पर हमर सभ गजल खरा उतरत तकर दाबी तऽ नहिए टा अछि बल्कि हम तँ इ सकारय चाहै छी जे--------------------------------- हमर सीमाक कारणेँ प्रस्तुत गजल मे कएक जगह सुधि पाठक लोकनि केँ त्रुटि भेटि सकैत छनि।" एहि पाराक अन्त मे ओ कहै छथि जे बहरक दोख किछु शेर मे भेटि सकैत अछि। हम गजलकारक सराहना करैत छी जे ओ भूमिका मे अपने कएक ठाम बहरक आ आन दोख हएब स्वीकार कएने छथि। पोथी केँ आद्योपान्त पढला पर हमरा इ नै बुझाएल जे एहि संग्रहक गजल सब कोन-कोन बहर मे लिखल गेल अछि। अरबीक कोनो टा बहर मे कोनो गजल नहिए अछि, मैथिली मे आइ-काल्हि प्रयुक्त होइ बला सरल वार्णिक बहर मे सेहो कोनो गजल नै अछि। गजलकार केँ प्रत्येक गजल मे इ लिखबाक चाही छल जे कोन बहर मे गजल लिखल गेल अछि। जँ इ "आजाद-गजल"क संग्रह थीक, तँ हुनका एहि बातक उल्लेख करबाक चाही छल। भूमिकाक उपरोक्त पाराक शुरू मे गजलकार कहै छथि जे मैथिलीक मिजाज केँ देखैत एहि मे उर्दू-हिन्दी गजलक मिजाजक नकल करबाक प्रयास कएल जाइत तँ एकरा बुधियारी नहिए टा कहल जायत आओर सफलता सेहो नहि भेंटत। हम हुनकर गप सँ सहमत छी जे नकल करब उचित नहि। मुदा एकटा गप हम कहऽ चाहैत छी जे प्रत्येक विधाक एकटा नियम होइत छै आओर जाहि क्षेत्र मे ओहि विधाक उदय भेल रहैत छै ओहि क्षेत्र मे स्थापित भेल नियमक पालन केने बिना कोनो रचना मूल विधा मे कोना भऽ सकैत अछि। जेना मैथिली मे समदाउन आ सोहरक परम्परा छैक आ जँ पंजाबी मे वा गुजराती मे वा की कोनो आन भाषा मे समदाउन आ सोहर गाबऽ चाही तँ नियम कोना बदलि जेतैक। जँ नियम बदलतै तँ ओ दोसर चीज भऽ जेतैक। तहिना गजल अरब क्षेत्र मे जन्म लेलक आ इ स्वाभाविक छै जे एकर नियम (व्याकरण) ओहि क्षेत्रक स्थापित मानदण्डक आधार पर बनल। स्थापित मानदण्डक पालन करब नकल नहि कहल जा सकैत अछि। आ जे नकलक गप करी तँ 'गजल' कहब अरबी-हिन्दीक नकल थीक। एक दिस गजलकार 'गजल' कहबाक लोभ नै छोडि रहल छथि आ दोसर दिस गजलक व्याकरणक नियम पालन केँ नकल कहै छथि, इ उचित नै बुझाएल। गजल स्थापित मानदण्ड पर जँ नै कहल गेल तँ रचना केँ गजलक स्थान पर दोसर नाम देल जा सकैत अछि।

पृष्ठ संख्या दस पर दोसर पारा मे गजलकार कहै छथि जे ओ जीवन सँ सिदहा लैत छथि। इ स्वागत योग्य गप भेल। जीवनक सिदहा सँ तैयार व्यंजन सोअदगर हेबे करतै। मुदा भोजन बनबै काल चाउरक सिदहा पानि मे सोझे फुला कऽ परसि देला सँ भात नहि कहाइत अछि। चाउरक सिदहा केँ अदहन मे देल जाइ छै तखन भात तैयार होइ छै। तहिना जीवनक सिदहा जँ व्याकरण, नियम आ चिन्तन-मननक अदहन मे पकाओल जाइत अछि तँ सोअदगर रचना भेटैत अछि। विधा विशेषक मापदण्ड तोडबाक क्रांतिकारी घोषणा कएला टा सँ किछु विशेष फायदा वा उमेद तँ नहिए जगै ए। जँ कियो मापदण्ड तोडै छथि, तँ मापदण्ड पर चलै बला केँ नकलची आ बाजीगर कहब उचित नहि। गजल आ फकरा आ दोहा मे थोडेक अन्तर तँ छै जे रहबे करतै। अस्तु, इ गजलकारक अपन विचार छैन्हि आ आब प्रकाशित सेहो छैन्हि।

गजल संग्रहक सब गजल पढलौं। विषय वस्तु सब नीके लागल। गजलक व्याकरणक आधार पर कहि सकैत छी जे बहरक दोख तँ प्रत्येक गजल मे छैक आ जँ इ आजाद-गजलक संग्रह थीक तँ गजलकार इ गप कतौ नै कहने छथि। गजलकार केँ स्पष्ट करबाक चाही छल जे कोन कोन बहर मे गजल सब लिखल गेल अछि। हमरा बुझने गजलक कोनो शीर्षक नै होइत अछि, मुदा प्रत्येक गजल केँ एकटा शीर्षक देल गेल अछि। बहरक अतिरिक्त रदीफ आ काफियाक नियमक सेहो कएक ठाम पालन नै भेल अछि आ इ गप गजलकार भूमिका मे सेहो स्वीकार कएने छथि। जेना पृष्ठ बाईस मे मतलाक दुनू पाँति, दोसर शेर आ पाँचम शेर मे काफिया मे 'आयब' प्रयोग भेल अछि, तँ दोसर आ चारिम शेर मे 'अब' क प्रयोग अछि। पृष्ठ चौबीस मे मतलाक पहिल पाँति मे काफिया मे 'अ' आयल अछि आ दोसर पाँति आ अन्य शेर मे 'आत' आयल अछि। पृष्ठ पच्चीस मे काफिया की छै, से नै बुझाएल। पृष्ठ तिरपन मे प्रत्येक पाँति मे काफिया एकदम फराक फराक अछि। पृष्ठ अनठाबन मे मतला, दोसर शेर आ चारिम शेर मे काफिया मे 'अल' प्रयुक्त अछि आ आन सब शेर मे काफिया मे 'अ' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ उनसठि मे सेहो रदीफ आ काफियाक स्पष्टता नै अछि। पृष्ठ छियासठि मे काफिया मे कतौ 'अल' आ कतौ 'आओल' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ सडसठि आ तिहत्तरि मे सेहो काफियाक नियमक उल्लंघन भेल अछि। तहिना संयुक्ताक्षर बला काफियाक नियम सेहो एक दू ठाम हमरा हिसाबेँ ठीक नै अछि। एकर अतिरिक्त आओर कएक ठाम काफियाक नियमक पालन नै भेल अछि। हम उदाहरण स्वरूप किछु पृष्ठक उल्लेख कएलहुँ। हमर इ उद्देश्य नै अछि जे खाली दोख ताकल जाय, मुदा जँ गजल कहै छियै तँ गजलक नियमक पालन हेबाक चाही। सब गोटे केँ जानकारी लेल इ बता दी की बिना रदीफक गजल तँ भऽ सकैत अछि, मुदा बिना दुरूस्त काफिया भेने गजल नै भऽ सकैत अछि।

भूमिका सँ एकटा बात आर स्पष्ट होइ ए जे गजलकार मई २००८ सँ मैथिली मे गजल लिखब शुरू केलथि, ओना ओ हिन्दी मे पहिनहुँ गजल लिखैत छलाह। एकर मतलब इ भेल जे गजलकार "अनचिन्हार आखर" (मैथिली गजल केँ समर्पित ब्लाग) सँ बहुत बाद मे मैथिली गजल लिखब शुरू कएने छथि आ मैथिली गजलक वरीयता मे बहुत बाद मे आयल छथि। "अनचिन्हार आखर" ब्लाग देखला सँ पता चलै छै जे गजलकार एहि ब्लाग पर सेहो अपन कएक टा गजल २००९ सँ एखन धरि देने छथि। ओ "अनचिन्हार आखर" ब्लाग सँ चिन्हार छथि, तैँ इ उमेद अछि जे एहि ब्लाग पर प्रकाशित मैथिली गजलक विस्तृत व्याकरण केँ जरूर देखने हेताह। इ उमेद छल जे प्रस्तुत गजल संग्रह मैथिली गजलक नब पीढी लेल एकटा उदाहरण बनत। मुदा एहि संग्रह मे गजलक व्याकरणक जे उपेक्षा भेल अछि, जे गजलकार भूमिका मे स्वयं स्वीकार कएने छथि, निराशा उत्पन्न करैत अछि। मुदा इ संग्रह गजलकारक पहिलुक मैथिली गजल संग्रह अछि, तैँ गजलक व्याकरणक गलती भेनाई स्वभाविक अछि। आशा व्यक्त करै छी जे हुनकर आगामी गजल संग्रह मैथिली गजल मे अपन अलग स्थान राखत।

गीत


बड्ड आस धेने हम एलौं शरण, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
रहऽ दियौ हमरा अपन चरण, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

लाल रंग अँचरी, लाले रंग टिकुली, माँ केर आसन लाले-लाल,
सिंहक सवारी शोभै, हाथ मे त्रिशूल, अहाँक चमकैए भाल।
करै छी वन्दना धरती सँ गगन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

आंगन नीपेलौं, अहाँक पीढी धोएलौं, छी फूल लेने ठाढ,
दियौ दरसन माँ, दुख करू संहार, भरू सुख सँ संसार।
अहीं कहू हम करी कोन जतन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

नै चाही अन धन, नै चाही जोबन, खाली शरण माँगै छी,
सुनू हमरो पुकार, भरू ज्ञानक भण्डार, एतबा वचन माँगै छी।
कहिया देबै अहाँ हमरा दर्शन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

जपै छी नाम अहींक, हम सब राति दिन, तकियौ एक बेर,
करू हमर उद्धार, लगाबू बेडा पार, नै ए कोनो कछेर।
अछि नोर भरल "ओम"क नयन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

Wednesday 21 March 2012

मैथिली गजल


जीनाइ भेलै महँग, एतय मरब सस्त छै।
महँगीक चाँगुर गडल, जेबी सभक पस्त छै।

जनता ढुकै भाँड मे, चिन्ता चुनावक बनल,
मुर्दा बनल लोक, नेता सब कते मस्त छै।

किछु नै कियो बाजि रहलै नंगटे नाच पर,
बेमार छै टोल, लागै पीलिया ग्रस्त छै।

खसि रहल देबाल नैतिकताक नित बाट मे,
आनक कहाँ, लोक अपने सोच मे मस्त छै।

चमकत कपारक सुरूजो, आस पूरत सभक,
चिन्तित किया "ओम" रहतै, भेल नै अस्त छै।
(बहरे-बसीत)

Sunday 11 March 2012

मैथिली गजल


धारक कात रहितो पियासल रहि गेल जिनगी हमर।
मोनक बात मोनहि रहल, दुख सहि गेल जिनगी हमर।

मुस्की हमर घर आस लेने आओत नै आब यौ,
पूरै छै कहाँ आस सबहक, कहि गेल जिनगी हमर।

सीखेलक इ दुनिया किला बचबै केर ढंगो मुदा,
बचबै मे किला अनकरे टा ढहि गेल जिनगी हमर।

पाथर बाट पर छी पडल, हमरा पूछलक नै कियो,
कोनो बन्न नाला जकाँ चुप बहि गेल जिनगी हमर।

जिनगी "ओम" बीतेलकै बीचहि धार औनाइते,
भेंटल नै कछेरो कतौ, बस दहि गेल जिनगी हमर।
(बहरे मुक्तजिब)

Friday 9 March 2012

निर्मोहिया (कथा)


हुनकर नाम छल सदानन्द मंडल। माता-पिता हुनका सदन कहैत छलखिन्ह। हुनका नेनपने सँ नाटक-नौटंकी सब मे पार्ट लेबाक शौक छलैन्हि। कनी कऽ कविता शेर सब मे सेहो हुनका मोन लागैत रहैन्हि। ओ अपन उपनाम निर्मोही राखि लेने छलैथ। नाम पूछबा पर अपन नाम सदन निर्मोही बताबैत छलाह। शनैः-शनैः हुनकर नाम निर्मोही जी, निर्मोही आ निर्मोहिया प्रसिद्ध भऽ गेल छलैन्हि। घर-परिवारक लोकक अलावे दोस्त महिम सब हुनका निर्मोही नाम सँ जानऽ लागल छल। हुनकर एकटा बाल सखा छलैथ जिनकर नाम छल घूरन सदा। घूरन सेहो निर्मोही जकाँ नाटक कविताक शौकीन छलाह आ एहि सब मे भाग लैत छलाह। ओ अपन नाम दीवाना राखने छलाह। निर्मोही-दीवानाक जोडी पूरा परोपट्टा मे प्रसिद्ध छल। दुर्गा पूजा मे गाम मे नाटक बिना निर्मोही-दीवाना केर सम्भव नै छल। कोनो आयोजन हुए वा ककरो एहिठाम बरियाती आबै आ की कतौ अष्टजाम होय, सबठाँ निर्मोही आ दीवानाक उपस्थिति परम आवश्यक रहै। निर्मोही-दीवाना गामक लेल नौशाद, खैय्याम, रफी, मुकेश, किशोर आदि सब छलाह। जखने गाम मे कोनो सान्स्कृतिक कार्यक्रम होय की लोक जल्दी सँ जा कऽ अगिला सीट लेबाक कोशिश करैत छल जाहि सँ निर्मोही-दीवानाक नीक जकाँ देख सकल जाइ। कहै केर इ तात्पर्य की निर्मोही आ दीवाना सबहक मनोरंजनक पूर्त्ति करैत छलाह। नाटकक आयोजन मे उद्घोषक जखने कहै की आब निर्मोही दीवाना मन्च पर आबि रहल छथि की तालीक गडगडी सँ पूरा आकाश बडी काल धरि गनगनाईत रहै छल। मन्च पर आबैत देरी दुनू गोटे जनता केँ नमस्कार कऽ कए शुरू करैत छलाह- "हम छी निर्मोही-दीवाना, सब दुख सँ अनजाना, लऽ कए आबि गेल छी, मनोरंजनक खजाना।" आ की लोक ताली बजबय लागै। तकर बाद फिल्मी गाना, पैरोडी, कविता, शाईरी आदि सँ ओ दुनू गोटे पूरा मनोरंजन करैत छलखिन्ह। तहिना गाम मे कोनो बरियाती आबै तऽ इ दुनू गोटे ओहि दरबज्जा पर पहुँचि जाइ छलाह। हुनकर सबहक इ सेवा निशुल्क रहैत छल। कियो भोजन करा दैत छल, तऽ ठीक, नै तऽ कोनो बात नै। हिनकर सबहक कोनो माँग नै छलैन्हि। नेनपने सँ हमरा मोन मे हिनका सबहक प्रति बड्ड आदर छल। हिनकर सबहक निस्वार्थ सेवा देखि हमरा सदिखन यैह लागल जे इ सब सही मे साधु छथि। हिनका सबहक परिवारक खर्चा कहुना कऽ चलैत छल। कखनो माता-पिताक हुथनाइ आ कखनो कनियाँक बात कथा। मुदा हिनका सब पर कोनो असर नै छल। साँझ होइत देरी दुनू मुखियाजीक पोखरिक भिंडा पर आबि जाइत छलाह, जतय पहिने सँ छौंडा आ जुआन सब हिनकर सबहक प्रतीक्षा मे बैसल रहैत छलाह। तकर बाद शुरू भऽ जाइत छल मुशायरा इ शायर-द्वय केर।

समयक गाडी तेजी सँ भागैत रहल। हम पढि कऽ किरानीक नौकरी करऽ लागलौं। गाम एनाई कम भऽ गेल। शुरु मे तऽ नियम बना कऽ होली, दुर्गा पूजा, छठि मे आबैत रहलौं। बाद मे इहो एनाई जेनाई बड्ड कम भऽ गेल। गाम मे धीरे धीरे सब किछ बदलि गेल। नाटकक चलन सेहो खतम भेल जाईत छल। ओकर बदला मे थेटर आ बाईजीक चलन बढल जाईत छल। बरियातीक स्वागत सत्कार मे अपनैतीक स्थान पर यान्त्रीकरण जकाँ बेबहार हुए लागल छल। निर्मोही आ दीवानाक पूछनिहारक संख्या सेहो घटल जाईत छल। घूरन सदा अपन परिवारक दारूण स्थिति देखि नौकरीक जोगाड मे लागि गेलाह आ कहुना कऽ एकटा प्राइवेट प्रेस मे दरिभंगा मे नौकरी करऽ लागलाह। ओ अपन बाल सखा सदानन्द मंडल उर्फ सदन निर्मोही केँ सेहो लऽ जेबाक प्रयास केलखिन्ह, मुदा निर्मोही नहि गेलथि। निर्मोहीक स्थिति आरो खराप भेल गेल आ तमाकूलक खर्ची तक निकलनाई भारी हुअ लागल। मुदा निर्मोही अपन कविता शाईरीक शौक नै छोडलैन्हि। एक बेर दुर्गा पूजा मे गाम एलहुँ। साँझ मे मेला घूमै लेल गेलौं। पता चलल जे एहि बेर एकटा पैघ थेटर आयल अछि। हम कक्का सँ निर्मोहीजी दिया पूछलियैन्हि। कक्का कहलथि जे ओ बताह भऽ गेल छथि। कतौ कोनटा मे ठाढ भऽ कऽ अपन बडबडाईत हेताह। हम चारू कात ताकऽ लागलौं। देखलौं जे मेलाक एकटा अन्हार कोन मे ओ वीर रसक कविता पूरा जोश मे पाठ करैत छलाह आ बच्चा सब हुनकर चारू कात घेरा बना कऽ ताली बजबैत छल। हम लग गेलौं। निर्मोहीजीक दाढी पूरा बढल छल। आँखि मे काँची, उजडल केश, फाटल कुरता.... हमर मोन करूणा सँ भरि गेल। हम गोर लागलियैन्हि आ पूछलियैन्हि- "कक्का चिन्हलौं?" ओ हमरा धेआन सँ देखि बजलाह- "अहाँ ओम थीकौं ने।" हम- "अहाँ अपन की हाल बना लेने छी। काकी आ बच्चा सबहक की हाल?" निर्मोही- "यौ सब कहुना कऽ जीबि रहल छै। खेनाईक जोगाड कहुना भऽ जाईत अछि।" हम- "कविता शाईरीक की हाल?" निर्मोही- "कियो पूछनिहार तऽ रहल नै। बस अपने रचना करैत छी आ नित्य साँझ मे पोखरिक भिंडा पर जा कऽ असगरे पाठ करैत छी। लोक बताह कहैत ए। सब बुडिबक छथि। साहित्य आ रचनाक महत्व की बूझताह।" हम- "कोनो नौकरी नै केलियै अहाँ?" निर्मोही- "हमर जन्म नौकरी करबा लेल नै भेल अछि। हम अपन जिनगी गीत-संगीत आ शाईरीक नाम लिख देने छी।" हम- "इ तऽ ठीक अछि। मुदा काकी आ बच्चा सभक तऽ सोचियौ।" निर्मोही- "अरे सभक देखनिहार भगवान छथि। भगवान सभक जोगाड करथिन्ह।" हमरा रहल नै गेल आ हम किछ आर्थिक मदति करबाक कोशिश केलौं, मुदा ओ लेबा सँ मनाही कऽ देलथि। कहलथि- "अहाँक चाह पीबि लेलौं, बस वैह बहुत अछि। हमरा कोनो मदति नै चाही।" हम हुनका सँ अनुमति लऽ कऽ मेला सँ गाम दिस चललहुँ। सोचऽ लागलहुँ जे इ कोन बतहपनी भेल। परिवारक विषय मे नै सोचबाक छलैन्हि तऽ बियाह किया केलाह निर्मोही जी। फेर इहो सोचऽ लागलौं की समाजक लोक मनोरंजन तऽ चाहै छथि, मुदा मनोरंजन पर पाई नै खर्च करऽ चाहै छथि, से किया। नीक सँ नीक कलाकार जँ अपन कोनो रोजगार नै करै तऽ भूखले मरि जाईत ए। समाज एहन निर्मोही कियाक अछि। जे कहियो सबहक तालीक केन्द्र रहैत छलाह, से आब सब केँ बताह किया बूझा रहल छथिन्ह। यैह सब सोचैत हम निर्मोहीजीक आंगन पहुँचि गेलौं। आंगन मे हुनकर कनियाँ बैसि कऽ तरकारी काटै छलीह। हम गोर लागैत कहलियैन्हि- "काकी की हाल चाल?" ओ फाटल आँचर सँ अपन माथ झाँपैत कहलथि- "कहुना कऽ जीबि रहल छी बउआ। तेहेन निर्मोही सँ बाबू बियाह करा देलथि, जिनका पर-परिवारक कोनो मोह नै छैन्हि।" हम- "काकी, कक्का तऽ साहित्य संगीत मे लागल छथि। हुनका एना निर्मोही जूनि कहू।" काकी- "जँ एहन गप अछि तँ साहित्ये संगीत सँ बियाह किया नै कऽ लेलथि? दू टा बेटा जुआन भऽ कऽ कतौ पलदारी करैत छैन्हि। बेटी केँ बियाहक कोनो चिन्ता नहि। एहन कोन साहित्य प्रेम? हमर ससुर बीमार भऽ कऽ दवाईक अभाव मे तडपि तडपि कऽ मरि गेलाह। हुनकर मरलाक बाद ओ केश आ दाढियो नै कटेलथि। इ कोन बतहपनी भेलै?" हम ओतय सँ चलि देलहुँ। सोचऽ लागलौं जे सब लेल ओ निर्मोही आ हुनका लेल सब निर्मोही।

समयक पहिया घूमैत रहल। १० बरख बीत गेल। गरमी छुट्टी मे बच्चा सब केँ लऽ कऽ गाम आयल छलहुँ। एक दिन दलान पर बैसल छलहुँ की रमन भाई कहैत अयलाह- "निर्मोही गोल भऽ गेलाह। किछ दिन सँ बिछौन धेने छलाह। कोनो गम्भीर रोग सँ पीडित भऽ गेल छलाह।" हम रमन भाईक संग निर्मोही जीक दलान पर गेलौं। ओतुक्का दृश्य बड्ड कारूणिक छल। काकी उठा उठा देह पटकै छलीह आ कानैत छलीह इ बाजि बाजि जे जिनगी भरि निर्मोहिया रहलौं आ आइयो निर्मोहिया बनि उडि गेलौं। हम आंगन मे पडल लहाश केँ देखलहुँ। बाँसक चचरी पर सदानन्द मंडल उर्फ सदन निर्मोही उर्फ निर्मोहिया शांति सँ पडल छलथि। एकदम शांत, बिना कोनो मोह केँ दीर्घ विश्राम मे छलाह निर्मोही जी। पूरा गाम ओतय जुटल छल आ निर्मोहीक संगीत कविताक चर्चा करैत छल। हम दलानक कोठरी मे गेलहुँ जतय निर्मोही रहै छलाह। एकटा टूटलाहा काठक अलमीरा मे हुनक हाथ सँ लिखल ढेरी पाण्डुलिपि पडल छल। किछ दीमक सँ खाएल छल आ किछ कागतक सियाही पसरि गेल छलै। हुनकर सिरमा तर मे एकटा कागत छल जै पर किछ लिखल छल। इ हुनकर अन्तिम रचना छल, जे पूरा नै छल। ऐ मे लिखल छलः-
इ जग छै निर्मोही, बन्धन तोडि कऽ उडि जाउ।
आब नै घूमू, कियो कतबो कहै जे घुरि जाउ।.............................................................................

Friday 2 March 2012

मैथिली गजल


करेज घँसै सँ साजक राग निखरै छै।
बिना धुनने तुरक नै ताग निखरै छै।

अहाँ मस्त अपने मे आन धिपल दुख सँ,
जँ लोकक दर्द बाँटब, लाग निखरै छै।

इ दुनिया मेहनतिक गुलाम छै सदिखन,
बहै घाम जखन, सुतल भाग निखरै छै।

हक बढै केर छै सबहक, इ नै छीनू,
बढत सब गाछ, तखने बाग निखरै छै।

कटऽ दियौ "ओम"क मुडी आब दुनिया ले,
जँ गाम बचै झुकै सँ, तँ पाग निखरै छै।
(बहरे-हजज)