Thursday 6 February 2014

गजल

राम जपैत छी रहम करू
कृष्ण सुमरि अहाँ करम करू

कष्ट अनकर बूझिकऽ सदिखन
धन्य कनी अपन जनम करू

कानि रहल बहिन-माय अपन
अंतरमे कनी शरम करू

पजरत आगि ठंढा हियमे
अपन विचारकेँ गरम करू

"ओम"क बात राजा सुनि लिअ
राजक आब किछु धरम करू

दीर्घ, ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ(मुतफाइलुन), दीर्घ, ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ
२-११२१२-२-११२ (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)