Tuesday 22 December 2015

शायरी

आँखों से हुए कत्ल हम मगर इल्म ना हुआ
दिल से हुए रूबरू तो पता चला इस बात का

गजल

गजल
एके बेर ओ मारूक मुस्की मारि गेलै
हम नै बुझलियै आ ई करेजा हारि गेलै
चंचल मोन आसक दीप कहियो नै जरेलक
प्रेमक खड़रि माचिस ओकरा ओ बारि गेलै
बनलौं चित्र छी मदहोश बिनु पीने शराब
छातीमे हमर नैना अपन जे गाड़ि गेलै
दिन आ राति हुनके यादिमे जरि रहल छी हम
चर्चा सुनि हमर ओ देखियौ हँसि टारि गेलै
नै छै बचल कनिको प्रेम खिस्सामे हमर यौ
ओ 'ओम'क सिनेहसँ सजल पन्ना फाड़ि गेलै
2221-2221-2221-22 प्रत्येक पाँतिमे। तेसर शेरक पहिल पाँतिक अंतिम ह्रस्वकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि।
ओम प्रकाश

गजल

गजल
आँखिक मस्ती जे अपन ओ पिया देलक
बिनु पीने हमरा शराबी बना देलक
सम्हारल छल ई करेजा बहुत जतनसँ
नैनक संकेतसँ गगनमे उड़ा देलक
अनका नचबैमे छलौं मस्त एखन धरि
ता ता थैया नाच हमरा करा देलक
जे नै बुझतै बात तकरासँ आसे की
बेदर्दी दर्दे करेजक बढ़ा देलक
कोना भेंटत "ओम"केँ चैन एतय यौ
पर्दा प्रेमक आबि अपने हटा देलक
2222-2122-1222
प्रत्येक पाँतिमे एक बेर
ओम प्रकाश

व्यंग्य कथा

व्यंग्य कथा
एकटा मैथिली व्यंग्य श्रृंखला लिखि रहल छी। नाम छै "लाल कक्काक उकाठी"। आइ ओकर पहिल अध्याय प्रस्तुत अछि।
आइ लाल कक्का घूमैत घामैत पछबाय टोल दिस चलि गेलाह। ओतय बुधियार बाबा अपन मकान बनबाबैमे व्यस्त छलाह। पिलर पर मकान बनैत छलै। मुदा पिलर आ देबाल दुनू टेढ़ देखि क' लाल कक्का ठमकि गेलाह आ बुधियार बाबाकेँ कहलखिन-"यौ अहाँक मकान खसि पड़त। पिलर आ देबाल दुनू टेढ़ भेल अछि। एना किए बना रहल छी।" बुधियार बाबा जबाब देलखिन-"किछु नै हेतै। एक नम्बर ईंटा आ असली सीमटीक मदतिसँ मकान बना रहल छी।" लाल कक्का-"मुदा टेढ़ बाकुच देबाल आ पिलर रहत तँ कखनो खसि पड़त ई मकान। आ लोक की कहत जे भानुमतिक कुनबा जोड़ि लेने छी अहाँ।" बुधियार बाबा खिसिया क' बाजलाह-"अहाँ परम्परावादी लोक बूझना जाइत छी। हम ऐ अनुशासनकेँ नै मानैत छिए। जखने नीक ईंटा आ सीमटी भेंटल की ओकरा कहुना क' जोड़बा दैत छिए। भले ओ सूगरक खोभारी बनि जाय वा मालक बथान। रहतै तँ ओ मकाने ने।" लाल कक्का जबाब देलखिन-"हम परम्परावादी नै छी। बाबा झोपड़ीमे रहैत छलाह। बाबूजी खपड़ाक मकान बनेने छलाह। हम ढलाई बला मकान बनेलहुँ। मुदा देबाल सभक सोझे छलै। कनी अनुशासनक जरूरी तँ सब चीजमे छै ने यौ।" आब बुधियार बाबा बमकि उठलाह आ बाजलथि-"मास्टरसँ रिटायर हम भेलहुँ मुदा अहाँ हमरा मास्टरी झाड़ि रहल छी। जखन कि हम अपने मास्टर रहितो कहियो मास्टरी नै झाड़लौं। अहाँ हमर मकानक समीक्षा करबामे अक्षम छी। तैं एतयसँ जाउ।" आब लाल कक्काकेँ बुझबामे आबि गेल छलनि जे बुधियार बाबाक छात्र सब भोथ किए छलाह। कियाक तँ ओ कहियो मास्टरी झाड़बे नै कएने हेथिन। बिना बहस कएने लाल कक्का ओतयसँ घसकि गेलाह। मुदा ई चिन्तन करैत गेलाह जे बुधियार बाबा जँ अनुशासन नै मानैत छथिन तँ कहीं ओ काल्हि नंगटे गाममे घूम' नै लागथि। फेर सोचलनि जे मालो जाल तँ नंगटे घूमैत छै। कियो ओकर नोटिस कहाँ लैत छै। भ' सकैत छै जे आब मनुक्खो नंगटे घूम' लागत आ लोक नोटिस नै लेतै। ओना लाल कक्का टेढ़ बाकुच मकानक चिन्ता सेहो करैत गेलाह जे कहीं मकान खसि पड़लै तँ एक दू टा अकाल मृत्यु भइये जेतै। संगे इहो कल्पना करय लागलाह जे कहीं देखा देखी गाममे सभ टेढ़े बाकुच मकान नै बनाब' लागै। ई सब सोचैत गाम पर पहुँचलाह तँ बेटा कहलकनि-"बाबूजी एक नम्बर ईंटा आ सीमटी आनि लेने छी। कहियासँ शुरू करू मकानक जीर्णोद्धार।" लाल कक्का सिहरि गेलाह कियाक तँ हुनकर पुत्र बुधियारे बाबाक छात्र छलनि।

Wednesday 9 December 2015

गजल

देखियौ टुक टुक ताकै छै काठक बनल लोक
मोनमे सब किछु राखै छै काठक बनल लोक
पाँजरक हड्डी झलकै छै चामक तरसँ आब
नै किछो तइयो बाजै छै काठक बनल लोक
अपन फाटल बेमायक दर्दसँ नै कराहैत
महल अनकर टा साजै छै काठक बनल लोक
आगि छातीमे ठंढ़ा पड़ि गेलै लहकि लहकि
फूसियों मुस्की मारै छै काठक बनल लोक
कर्ज नोरक नै ककरो लग बाकी रहत आब
"ओम" कखनो नै कानै छै काठक बनल लोक
2-1-2-2, 2-2-2-2, 2-2-1-2, 2-1 मात्रा क्रम प्रत्येक पाँतिमे।
 ओम प्रकाश

Tuesday 8 December 2015

गजल

अपने सुरमे हम तँ गाबैत रहब
जिनगी बाजा छै बजाबैत रहब
बिरड़ो कतबो ई हिलाबै हमरा
सुन्नर फोटो नित बनाबैत रहब
कहियो बूझब हमर संकेत अहाँ
भाषा संकेतक बुझाबैत रहब
नोनी लागल जइ घरक देबालमे
एहन घरकेँ हम खसाबैत रहब
"ओमक" फुलवारी गमकतै सदिखन
ऐ फुलवारीकेँ सजाबैत रहब
2222-2122-112 प्रत्येक पाँतिमे एक बेर। चारिम शेरक पहिल पाँतिमे एकटा दीर्घकेँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि।
ओम प्रकाश

बिहनि कथा

बिहनि कथा
फोन
सावित्री भोरेसँ चिन्तित छलीह। दू दिनसँ बेटासँ कोनो गप नै भेल छलैन्हि। बेटा रमेश बंगलौरमे इंजीनियर छलाह।हुनका फुरसति कम होईत छलैन्हि। तैं ओ गाम नै आबैत छलाह। माता पिता सालमे एक दू बेर बंगलौर प्रवास क' कए हुनकासँ भेंट क' आबैत छलखिन्ह। मुदा फोन पर प्रतिदिन एक बेर गप भ' जाईत छलैन्हि। जहिया गप नै होइन्हि तहिया माताजी चिन्तित भ' जाईत छलखिन्ह। पछिला दू दिनसँ नै रमेशक फोन आएल छल आ नै ओ माएक फोन उठबै छलाह। तैं माए एते चिन्तित छलीह। ओ रमेशक बाबूकेँ कहलखिन्ह जे एक बेर फेरसँ फोन लगबियौ ने। ओ फेरसँ फोन लगा क' सावित्रीक हाथमे फोन द' देलखिन्ह। ऐ बेर रमेश फोन उठा लेलक। मुदा फोन उठबिते माएसँ कह' लागल जे दू दिनसँ आफिसक काजसँ अलगे परेशान छी आ अहाँक फोनसँ अलगे। माए कहलखिन्ह जे बउआ कमसँ कम एक बेर रोज अपन समाचार बता देल करू तँ हम निश्चिंत रहब। अहाँ परदेसमे रहै छी ने। पुत्र कहलखिन्ह जे नो न्यूज इज गुड न्यूज होइत छै से नै बूझै छिही। ई छुछका मोह देखेनाइ बन्न कर आ फोन राख। एखन ऊपरसँ टीम आएल छै आ बड्ड काज अछि। ई कहैत ओ फोन काटि देलक। माएक मुँह अप्रतिभ भ' गेलै। मुदा ओ अपन भावनाकेँ सम्हारैत फोन अपन पतिकेँ घूमबैत बाजलीह जे बउआ नीके छथि। हम हुनकर आवाज सुनि लेलियैन्हि। ई फोन बड्ड नीक होईत छै। जँ ई नै रहितै तँ बउआक कुशल क्षेम कोना बुझितौं। ई कहैत ओ भनसाघर दिस नोरियाएल आँखिये बढ़ि गेलीह।

Thursday 19 November 2015

गजल

मीता सूतल छी किए
एना रूसल  छी किए

दुनियादारी राग सुनि
एहन टूटल छी किए

सौंसे भूरे भूर अछि
एते फूटल छी किए

पुरना पुरना बात बनि
हमरा बूझल छी किए

"ओम"क मोनक फूल बनि
माला गूथल छी किए

२-२-२-२, २-१-२ प्रत्येक पाँति मे

Monday 16 November 2015

कविता

चिराग-ए-दिल की रौशनी भी मद्धम हुई जाती है।
तेरी तस्वीर मेरी यादों में धुंधली हुई जाती है।

कहा करते थे हाथ पकड़ मेरा अरमानों से,
चलते चले जाएंगे हम आगे आसमानों से।

पर दो क़दम पर ही फ़ासले दरम्यां हो गए,
गीत मोहब्बत के सारे फिज़ा में फ़ना हो गए।

तराश तराश के थक गए हम जज़्बातों को,
पर गिरा ना सके दुआ में उठे अपने हाथों को।

तेरी यादों को महफ़ूज़ कर रखा है क़रीने से,
कैसे निकाल फेंकूँ उन हसीन लम्हों को सीने से।

वफ़ा के किस्से तो क्या बेवफाई के फ़साने भी ना बने,
गा सकता कोई जो, मोहब्बत के वो तराने भी ना बने।

गजल

पेरिस होय वा मुम्बई, खूनक रंग लाल रहै
काटल थुरल लाशसँ लिखल धरतीपर सवाल रहै

धर्मक नामपर मचल तांडव, एना किए भ' रहल
मनुखक जन्म भेलै किए, बढ़ियाँ माल-जाल रहै

सुन्नर छै धरा ई, गगन सेहो बड्ड नीक रचल
चाही जन्म नै एत', मनुखे मनुखक जँ काल रहै

गीता वेद कुरआन पढ़लौं, बाईबिलो तँ पढ़ल
सबठाँ लिखल खिस्सा पवित्र प्रेमक विशाल रहै

अनका जीब' नै देब, की धर्मक यैह काज कहू
एहन धर्म "ओम"क कहाँ  छै, ई जकर हाल रहै

२ २ २ १, २ २ १ २, २ २ २ १, २ १ १ २    प्रत्येक पाँतिमे एक बेर

Thursday 5 November 2015

भगवती गीत

माँ माँ माँ हम सदिखन पुकारी
नाम अहींक हम सब उचारी
एक बेर तँ दर्शन दियौ माता
छी हम सब अहीं केर पुजारी
माँ माँ माँ........
अरजी सभक माँ सुनबे करती
दुखियाक सब दुःख हरबे करती
अहाँक आँचर तर माँ कियो नै दुखारी
माँ माँ माँ..........
खूब अहाँक दरबार सजलए
अहींक कृपासँ संसार सजलए
अहाँ छी रानी माँ हम सब छी दरबारी
माँ माँ माँ............
ओम प्रकाश

भगवती गीत

चलू मैयाक करू सिंगार, आश्विन आबि गेलै
आउ मंदिर करू तैयार, आश्विन आबि गेलै
हम सब दुखी छी, माँ अहाँ दुखहंता
आब नैए हमरा कोनो बातक चिंता
माँ सुनबे करती पुकार, आश्विन आबि गेलै
चलू मैयाक .................ै
बड्ड सोभैए माँ दरबार अहाँ केर
अछि सब पर उपकार अहाँ केर
छै भक्तक लागल कतार, आश्विन आबि गेलै
चलू मैयाक .................ै
गंगाजलसँ माँकेँ चरण पखारब
दुर्गा भवानी नित नाम उचारब
माँ केँ पूजा करैए संसार, आश्विन आबि गेलै

गीत

केलौं कोन कसूर जे हमरा बिसरि गेलियै
किए अहाँक चितसँ हम उतरि गेलियै
हमर नब परिधान सिंगार मनोहर
गम गम गमकै बगिया ओई पर
कतय हवा जकाँ अहाँ ससरि गेलियै
किए अहाँक चितसँ.............
नैनक काजर पूछि रहलए
निर्मोही नै किए आबि रहलए
नैनक नीर बनि क' अहाँ झहरि गेलियै
किए अहाँक चितसँ ...........

गीत

हमर करेजाकेँ एना धड़काबै छी किए
अहाँ दाँत तर ओढनी दबाबै छी किए
खिस्सा प्रेमक जानि गेल दुनिया
अप्पन सिनेहकेँ मानि गेल दुनिया
दुनियासँ ई खिस्सा नुकाबै छी किए
अहाँ दाँत तर................
रस भरल अछि अहाँकेँ ई मुस्की
मोनमे गड़ल अछि अहाँकेँ ई मुस्की
अप्पन मुस्की एना लुटाबै छी किए
अहाँ दाँत तर.............

गजल

अप्पन गाम बिसरल छी
गाछक आम बिसरल छी
नित नब खेलमे बाझल
माटिक दाम बिसरल छी
ठीकेदार हम धर्मक
रामक नाम बिसरल छी
गाँधी हम उचारै छी
हुनकर राम बिसरल छी
छाहरि "ओम" बाजल किछु
ककरो घाम बिसरल छी

रुबाई

बहैत धार हमर जिनगी आ कछेर अहाँ
सुनबै छी जिनगीक तान बेर बेर अहाँ
आँखि मूनल रहै वा फूजले रहै हमर
हमर सपनामे कएने छी घरेर अहाँ

रुबाई

कहियो तँ करेजासँ हमरा सटा क' देखियौ
हमर नैनासँ अपन नैना मिला क' देखियौ
बनि जेतै एकटा इतिहासे अमर प्रेमक
हमर प्रेमकेँ करेजामे ढुका क' देखियौ

रुबाई

विरहक हमर उपचार नै, अहाँ बिनु जीबि लए छी कहुना
देखलक कियो नै फाटल करेज, जकरा सीबि लए छी कहुना
सुखाएल नयनक ई घाट देखि लोक बूझै निसोख हमरा
कियो नै बूझै नोरक धार नयनसँ हम पीबि लए छी कहुना

गजल

हमर करेजक जान तिरंगा
भारत-भूमिक शान तिरंगा
शोषित लोकक आस बनल छै
आमजनक अरमान तिरंगा
नजरि उठेतै दुश्मन जखने
बनत हमर ई बाण तिरंगा
मोल मनुक्खक होइत की छै
गाबि कहै छै गान तिरंगा
राम-रहीमक बातसँ आगू
"ओम"क अछि सम्मान तिरंगा
मात्राक्रम दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ दू बेर प्रत्येक पाँतिमे।

कविता

राति कारी बीत चुकल, भेल जगतमे उज्जर बिहान।
सूतबै कतेक काल धरि, आब जागि जाउ अहाँ श्रीमान।
चिड़ै चुनमुन नीड़सँ निकसल, गाबि रहल अछि मंगलगान।
लागि रहल अछि सगरो जगतमे आबि गेल जेना नब प्राण।
रंग रंग केर फूल फुलाएल, बढ़ि गेल फुलवारीक शान।
नब प्रकाशसँ दमकै धरनी, सब दिस इजोतक छै गुणगान।
चलू उठू आइ करू प्रतिज्ञा राखब हम मिथिलाक मान।
देशक विकासक संग चलब हम, भारतक माथक छी हम चान।

रुबाई

चानक चमक बढ़ि गेल अछि
मोनक धमक बढ़ि गेल अछि
जहिया सँ हुनकर रूप देखल
गामक गमक बढ़ि गेल अछि

ओम प्रकाश

रुबाई

राति बीतल जाइए
मोन तीतल जाइए
हारि बैसल छी हिया
प्रेम जीतल जाइए

ओम प्रकाश

गजल

मोन वैह गलती बेर बेर करैए
चान केर चाहत आब फेर करैए
पूरलै कहाँ पहिलुक सबेरक सपना
आस नब किए एखनहुँ ढेर करैए
जीबि रहल मारल मोन भूमि धएने
सदिखने तँ ई जिनगी अन्हेर करैए
भाँग पीबि सनकल नाचि रहल मनुख ई
सनकि सनकि कोना ई घरेर करैए
मोन भरि छलै गप ओम केर हिया मे
ओहिना तँ नै गप सेर सेर करैए
ओम प्रकाश

गजल

हमर बात कियो बुझलक कहाँ
हमर मोन कियो तकलक कहाँ
चमकि गेल छलै बिजुरी कतौ
हमर अन्हार कियो हरलक कहाँ
बात सुनल सभक नमहर सदति
हमर छोट कियो सुनलक कहाँ
राखि हाथ मे बम आ पिस्तौल
हमर नाच कियो नचलक कहाँ
ओम जपि हरक नाम सदिखन
हमर नाम कियो जपलक कहाँँ

गजल

आब हम बहुत सुधरि गेल छी
कष्ट तँ अनकर बिसरि गेल छी
की समाज आ की सामाजिकता
ऐ सँ कहिये सँ ससरि गेल छी
कखन चमकतेै मेघ गगन मे
रातिये सँ हम उमरि गेल छी
जूनि चिकरबै सभक हाल पर
मारि खा क' सब कुहरि गेल छी
ओम निखरलै चुपे रहि बैसले
सब कियो अहूँ निखरि गेल छी