Thursday 30 June 2016

गजल

कुछ दर्द भी जिन्दगी में शामिल चाहिए
मजा आएगा, बस राह मुश्किल चाहिए
कैसे जानोगे तुम मेरे दिल के दर्द को
महसूस करने को एक दिल चाहिए
गजल ही काफी नहीं है शायर के लिए
उसको सुनने को भी महफिल चाहिए
चल पड़ा हूँ मैं तो क्षितिज के राह पर
जिद है मेरी कि मुझको मंजिल चाहिए
अपने सर को रखूँ कांधे पर किसी के
मुझको कांधा भी तो ऐसा काबिल चाहिए

गजल

आज मैं अपने लिखे एक मैथिली गजल का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ। शायद आप लोगों को पसंद आ जाए।
भीख नहीं, मुझको अपना अधिकार चाहिए
मेरे कर्म से जो बने, उपहार चाहिए
कान खोल कर रखना पड़ेगा हर पल
सुन सके जो सबकी वो सरकार चाहिए
प्रेम ही है सब रोगों की दवा यहाँ पर
दुख से बोझिल मन को उपचार चाहिए
मन की इच्छा अभी पूरी न हुई है
मेरे मन की राह को मनुहार चाहिए
दरबार करेगा 'ओम' सदा आपका
स्नेह फूल से सजा हुआ दरबार चाहिए

गजल

ढूँढते हुए जिन्दगी का पता हम खुद लापता हो गए
महफिल में थे शायर हम ही, सारे शेर फ़ना हो गए
उनको छूने की ललक ऐसी हुई हमको दोस्तों
भूल के मंजिल का पता, क्या से क्या हो गए
मेरे शहर में अब सूरज की किरणें मद्धिम हुईं हैं
आँखों से बरसते सावन ही नभ की घटा हो गए
जिसने सीखा नहीं सज़दे में कभी सर को झुकाना
आज बन्दों से घिर कर सारे जग के ख़ुदा हो गए
थी रौशन चिरागों से ये महफिल "ओम" की बहुत
आग भड़की ऐसी कि ये महफिल चिता हो गए
-ओम प्रकाश

शायरी

इजहार-ए-मुहब्बत का तरीका ना आया
मुझको कभी जीने का सलीका ना आया

शायरी

समझते रहे सवाल मुझे तुम, पर मैं एक जवाब हूँ
मेरा नशा कहाँ समझोगे, बोतल में बंद शराब हूँ
अच्छे बुरे की पैमाईश में व्यर्थ करूँ क्यों खुद को
तेरी नज़र के सदके जाऊँ, जिसने कहा खराब हूँ

गजल

पी लेते हैं तेरी आँखों से सुबह शाम
हमें भला इस दारू से है क्या काम
बोतल की मय को बंद कर दो अब
पीना ही है तो पियो आँखों के जाम
जिगर को जलाया करते थे खुद ही
अब ये जिगर कर दो उनके नाम
करते थे कभी जो मय से दिल्लगी
बैठ कर जपिये अल्लाह या राम
बस मुहब्बत ही चाहिए यहाँ "ओम"
नहीं चाहिए मुझे कोई ताम झाम
बिहार में लागू हुए शराबबन्दी को समर्पित।

गजल

कभी तो पास आओ जिन्दगी
आँखों से मुस्कुराओ जिन्दगी
उलझे हुए विचारों से हैरान हूँ
इसको जरा सुलझाओ जिन्दगी
मेरे अंदर हैं सवालों के गोले
जवाब तुम ही बताओ जिन्दगी
तड़पता सदियों से हूँ तेरे लिए
अब ना मुझे तड़पाओ जिन्दगी
"ओम" के होम से हो यदि राजी
आकर ये भी कर जाओ जिन्दगी
ओम प्रकाश

मन का बात

जहिया भागलपुर से पटना या पटना से भागलपुर ट्रेन से जर्नी करते हैं ना तो कुछ बात हर जर्नी में कौमन होती है। जैसे ठसमठस पसिन्जर, रिजर्वेशन बौगी में जेनरल टिकट या बिना टिकट का पसिन्जर, औरडिनरी पास लेकर ए सी बौगी में सफर करते रेलवे करमचारी, ई सब देख के कुढ़ते हुए बोनाफाईड पसिन्जर, बीच बीच में भैकम आदि आदि। सच तो ई है कि आब जिस दिन ई सब में से कोनो बात नै होता है तो हम डर जाते हैं कि कहीं हम सूतले सूतले बिहार से बाहर तो नै चल गए। देखिए ई सब बात जो ट्रेन में होता है, ई सब के पीछु लौजिक है ने भाय। तखनियो कुछ लोग ई बात नै समझते हैं और सुधार का बात करने लगते हैं फोकट में। देखिए ई सब चीज से फायदा ये होता है कि बिना एडभरटाईजमेंटे के ई बूझे में आ जाता है कि बिहार के इलाका शुरू हो गया है। अपना एडभरटाईजमेंट करने में हरजा का है। हमनियो का तो अपना ब्रांड है भाई। भैकम ठीक से काम करता है कि नै इहो जाँच हो जाता है फ्री में। रिजर्वेशन बौगी में जेनरल टिकट ले के चढ़िए तो आधा पैसा ले के टी टी साहब बैठा के लैइये जाते हैं। ई तो अच्छा है ना जी। पसिन्जरवन के भी आधा पैसा में ए सी का मजा आ जाता है अउर टी टी साहब लोग के घर खरचा निकल जाता है। अब रेलवे तो समुन्दर है, एक लोटा पानिए खींच लिया तो का हो गया। एक बात तो है जकर प्रशंसा होना चाहिए कि यदि आपके पास रिजर्वेशन है तो आपको बैठने के लिए एक बित्ता जगह मिलिए जाता है। कभी कभी ऊपर का बात सब यू पी में भी देखाई पड़ता है लेकिन इस मामला में ब्रांड अमबसडर हमही लोग हैं जी। हम ई पोस्टवा के माध्यम से तमाम बेटिकट यात्री सब के साथ साथ बिहार के इलाके में ट्रेन में चलने वाले टी टी लोग के डंडवत करते हैं काहे कि पैसा बचत के साथ साथ अपना ब्रांड भी ई लोग बचा के रखने का अमोल काम कर रहे हैं। ई हमरा मोन का बात था जो आपलोगों से शेयर कर लिए। कोई गोसाइयेगा नै।

विहनि कथा

विहनि कथा
विछोहक नोर
पछिला साल कोचिंग करै लेल बेटीक नाम कोटामे लिखौने छलौं। जखन ओकरा कोटामे छोड़ि क' आबैत रही तखन ओ बड्ड उदास छल। ओकरा बुझेलियै जे हम नियमित रूप सँ आबि भेंट करैत रहबै। मुदा नौकरीक झमेलामे फुरसति नै भेंटल आ हम कहियो नै जा सकलौं। साल पूरा भेला पर ओ डेढ़ मासक छुट्टी पर गाम आएल छल। ऐ बेर ओकरा कोटा छोड़ै लेल फेर हमहीं गेलियै। ओकरा छोड़लाक उपरान्त जखन वापसीक ट्रेन पकड़बा लेल हम टीसन आबैत रही तखन ओ कातर दृष्टिसँ हमरा दिस ताकि रहल छल एकदम चुपचाप। हमहुँ ओकरासँ नजरि चोरेने औटोमे बैसि गेलौं। ओ हमरा गोर लागलक आ बेछोह कानय लागल। हमर आँखिमे सेहो जेना मेघ उमड़ि गेल मुदा ओइ मेघकेँ रोकैत ओकरा बूझबय लागलौं। रामायणक चौपाई मोन पड़ि गेल:-
लोचन जल रहे लोचन कोना
जैसे रहे कृपण घर सोना।
खैर टीसन आबि ट्रेनमे बैसि गेलौं। जखने ट्रेन टीसनसँ घुसकल तखने ओकर कातर नजरि मोन पड़ि गेल आ लागल जे करेज फाटि जायत। नोरक मेघ ऐ बेर नै मानलक। हम सहयात्री सबसँ नजरि चोरबैत ट्रेनक बाथरूममे ढुकि गेलौं । बाथरूमक भीतर हमर मेघ बान्ह तोड़ि देलक आ हम पुक्की पारि क' कानय लागलौं। विछोहक नोर आवाजक संग पूर्ण गतिसँ बहय लागल मुदा हमर क्रन्दन ट्रेनक धड़धड़ीक आवाजमे विलीन भ' गेल।
ओम प्रकाश

विहनि कथा

विहनि कथा
मातृवत परदारेषु
इसकूलेक समैसँ ओ पढ़ैत छल "मातृवत परदारेषु"। श्लोकक ई अंश ओ सबकेँ सुनाबैत छल। आब ओ नौकरी करैए। ओ एखनो धरि ई श्लोक अंश दोहराबैत रहैए। मुदा सड़क पर, बसमे वा ट्रेनमे कोनो स्त्री वा बालिकाकेँ देखैत देरी ओकर आँखिमे एकटा चमक आबि जाइ छै आ ओ अपन नजरिसँ ओकर सभक देह ऊपरसँ नीचा धरि नापि लैत अछि। कतेको बेर ओ ऐ कलाक प्रदर्शनक बाद स्त्रिगण सभक कोपभाजन सेहो बनि चुकल अछि। मुदा आदतिमे कोनो बदलाव नै। कहल गेल अछि जे चालि, प्रकृति, बेमाय, तीनू संगे लागल जाय। आइ चौक पर जखन ओ अपन कलाक प्रदर्शन करैत छल तखन पीड़ित स्त्रीक हल्ला करै पर भीड़ ओकर पूजा क' देलकै लात जूतासँ। जावत किछु लोक ओकरा बचेलकै तावत ओकर मुँह कान फूलि चुकल रहै। हम जखन चौक पर पहुँचलौं तँ ओ अपन पूजा करबा क' चलि आबैत छल। हम पूछलिए की हाल चाल मीता। ओ कहरैत बाजल हाल देखिये रहल छह आ चालि हमर बूझले छह जे मातृवत परदारेषु।

कविता

कविता
मधुमास
सुनलियै मधुमास आएल छै।
दमकैत रंगल मुँह चारू कात
पिपही बाजाक सुर ताल
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
भौजी दियरक ठट्ठा
सारि बहिनोईक मजाक
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
जुआनक मचल जोगीरा
बूढ़क चमकैत मुखारविंद
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
आमक मज्जरक सुगंध
सरिसबक पीयर कुसुम
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
उत्साह आ जोशक धार
पसरल गाम आ नगर
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
मुदा की सबहक छै मधुमास?
कियो बुतातक जोगाड़मे लागल
लोक व्यस्त अछि कोदारि धएने
ओकर छै खरमास सब दिन
मधुमासक आसमे।
मुदा कहियो अएबे करतै
ओकरो आँगनमे मधुमास
ई सोचैत लागल अछि
ओ मधुमासक स्वागतमे।
यावत नै पसरत मधुमास
सबहक आँगनमे,
तावत ऐ मधुमासमे
रंग किछु कमे रहत।

मन का बात

बहुत पहिले हम ई सुनते थे कि किसान लोग बैंक से जे लोन लेगा ऊ बाद में माफ हो जाएगा। बस फेर क्या था, ढेरी किसान सब लोन ले लिया बैंकवन सब से। बहुते दिन तक तो लोन वसूली खातिर बैंकवन सब खूबे प्रयास किया। पर जब वसूली में फेल हो गिया तो ई लोनमा सब के नन परफार्मिंग एसेट घोषित कर दिया। तभीये हमहूँ ई जाने कि नन परफार्मिंग एसेट भी एकठो बैंकिंग टर्म है। खैर बाद में देखे कि ठीके में किसान सब के लोन माफ हो गिया। अब तो जे सब लोन नै लिया था ऊ सब अफसोस करे लगा कि हमहूँ सब काहे नहीं लोनमा ले लिए थे। खैर ई तो हुआ किसान लोन के गप। इधर कुछ समय से ई ट्रेन्ड देखते हैं कि बड़को लोग सब बैंकवन सब से लोन ले ले के खएले जा रहा है। ई बात पर बहुते हंगामा भी हो रहा है। हमको ई में हंगामा के कोई बात नै समझ में आता है। बड़कन लोग सब बैंक से लोन थोड़े लेता है। ऊ सब तो बैंक से फाइनेंस करवाता है जी। ऊ सब लोन काहे नै लेगा। सब लोग के बैंक से लोन लेबे के हक है कि नहीं। इहो हो सकता है कि ऊ लोग ई सोचा होगा कि किसाने लोन के जैसन ई बिजनेसो लोन न कहीं माफ हो जाए। या दीर्घायु होने के लिए भी लोन लिया होगा। काहे कि पहले से ई कहा गिया है-
करजा ले ले चाटिए जब लगे घट में प्राण
देने वाला रोएगा जब मरने पर श्रीमान
कि जैसे बाप मरा हो।
अब अगर ककरो बेसी दिन तक जीबे के इच्छा है तो करजा ले के चाटना ही चाहिए। काहे कि करजा देबे वाला सब भगवान से ओकर लंबा उमर के प्रार्थना करबे करेगा जी। कुछ भायजी लोग बैंकवन सब पर आरोप लगा रहा है कि एतना एतना लोन कैसे दे दिया बिना भेरिफाई कएले। अरे भाई अपना बैंकवन सब एतना काम में लगल रहता है कि बड़कन लोग सब के भेरिफाई करे में टाइम वेस्ट काहे करेगा। पूरा मार्केट में एतना हाउसिंग, गाड़ी और बिजनेस लोन देले है ई बैंकवा सब कि पूरा टाइम तो उधरे इनभेस्ट हो जाता है। बड़कन लोग सब के चेहरबो के तो कुछ फेस भैल्यू होता है जी। हम ई पोस्टवा के माध्यम से तमाम बैंकवन के डंडवत करते हैं कि ऊ सब पक्का समाजवादी हैं। छोटकन लोग सब के जेतना नन परफार्मिंग एसेट बेस तैयार किए थे ऊ सब, ओतने बड़कन लोग सब के भी तैयार कर लिए। वाह, परफार्मेन्स इसी को कहते हैं ऊ भी समाजवादी ईस्टाईल में। हम उन तमाम बड़कन लोग सब के भी डंडवत करते हैं जो समाजवाद को पूरा फौलो करने में बैंकवन सब के मदद किए हैं ताकि बैंकवन सब जेतना नन परफारमिंग एसेट किसान लोन में तैयार किया था ओतना ई लोगन के भी लोन देने में तैयार कर लिया है। अंत में, हमको कोई भायजी या बहिनजी ई समझाएँगे कि ई बड़कन लोग सब जे लोन लिया ऊ केने घुसड़ गिया काहे कि बैंकवन सब के वसूली के लिए कोनो एसेटे नै भेंटाता है। ई कोश्चन हमको बहुते परेशान किए हुए है। ई हमर मोन का बात था जे आप लोगन से शेयर किए और जिनको गोस्सा और तकलीफ हुआ हो तो उनसे माफियो माँगिये रहे हैं।

गजल

ताकै छी, अपन पता चाही
जिनगी जे कहै, कथा चाही
हम छी खोलने करेजाकेँ
छै गुमकी, कनी हवा चाही
नै चाही जगतसँ किछु हमरा
हमरा बस सभक दुआ चाही
लूटलकै मजा बहुत सब यौ
हमरो आब ई मजा चाही
"ओम"क छै करेज ई पजरल
नेहक एकरा सजा चाही

गजल

हारल करेजक हाल की कहू
जागल सिनेहक हाल की कहू
प्रेमक नगरमे अछि बसल हिया
बारल विदेहक हाल की कहू
सदिखन लिखै छी नेह हम अपन
राखल सनेसक हाल की कहू
कोना क' बीतल राति ई हमर
काटल बिदेसक हाल की कहू
बेकल बनल "ओम"क करेज ई
मारल उछेहक हाल की कहू

गजल

अहाँ तोड़ैत रहू, हम जोड़ाइते रहब
नशा छी एहन, सबकेँ सोहाइते रहब
रहत छाती पर छापल ई नाम टा हमर
कते पोछब हमरा, हम ठोकाइते रहब
अहाँ कोड़ू हमरा नै बाजब किछो सुनू
बनल छी सागक बाड़ी, कोड़ाइते रहब
किया छी बारल नजरिसँ हम देखियौ कनी
सुनब चर्चा हमरो आ नोराइते रहब
करेजा 'ओम'क करबै टुकड़ी कतेक यौ
भ' गेलौं तार करेजक, मोड़ाइते रहब
-ओम प्रकाश,