Friday 14 November 2014

गजल

अपन मोनक कहल मारि बैसल छी
छलै खिस्सा लिखल फाडि बैसल छी

हँसी हुनकर हमर मोनमे गाडल
करेजा अपन हम हारि बैसल छी

पढू भाषा नजरि बाजि रहलै जे
किए हमरा अहाँ बारि बैसल छी

सिनेहक बूझलौं मोल नै कहियो
अहाँ गर्दा जकाँ झारि बैसल छी

जमाना कहल मानैत छी सदिखन
कहल "ओम"क अहाँ टारि बैसल छी
- ओम प्रकाश
मफाईलुन-फऊलुन-मफाईलुन (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)

गजल

कानैत आँखिक आगिमे जरल आकाशक शान छै
बेथा करेजक लहकि गेलैसभक झरकल मान छै

बैसल रहै छी प्रभुक दरबारमे न्यायक आसमे
हम बूझलौं नै बातभगवान ऐ नगरक आन छै

सदिखन रहैए मगन अपने बुनल ऐ संसारमे
चमकैत मोनक गगनमे जे विचारक ई चान छै

आसक दुआरिक माटि कोडैत रहलौं आठो पहर
सुनगैत मोनक साज पर नेहमे गुंजित गान छै

सूखल मुँहक खेती सगर की कहू धरती मौन छै
मुस्की सभक ठोरक रहै यैह "ओम"क अभिमान छै
- ओम प्रकाश
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घदीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घदीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घदीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ,
मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)

Friday 7 March 2014

गजल

हमरा अहाँमे जे मेल छल
ओ ओहिना कोनो खेल छल

बान्हल सिनेहक हम डोरि जे
हुनका किया लागल जेल छल

पिछरल हमर डेगक की कहू
पघिलल करेजक से तेल छल

ककरो कियो किछु सुनलक कहाँ
एहन मचल रेलमपेल छल

"ओम"क करेजा सदिखन कहल
मुस्की हुनक हमरे लेल छल

(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व, दीर्घ)- प्रत्येक पाँतिमे एक बेर

Thursday 6 February 2014

गजल

राम जपैत छी रहम करू
कृष्ण सुमरि अहाँ करम करू

कष्ट अनकर बूझिकऽ सदिखन
धन्य कनी अपन जनम करू

कानि रहल बहिन-माय अपन
अंतरमे कनी शरम करू

पजरत आगि ठंढा हियमे
अपन विचारकेँ गरम करू

"ओम"क बात राजा सुनि लिअ
राजक आब किछु धरम करू

दीर्घ, ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ(मुतफाइलुन), दीर्घ, ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ
२-११२१२-२-११२ (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)

Friday 31 January 2014

गजल

हेतै खतम गुटबाज बेबस्था
बनतै सभक आवाज बेबस्था

भेलै बहुत चीरहरणक खेला
राखत निर्बलक लाज बेबस्था

देसक आँखिमे नोर नै रहतै
सजतै माथ बनि ताज बेबस्था

मिलतै सभक सुर ताल यौ ऐठाँ
एहन बनत ई साज बेबस्था

"ओम"क मोन कहि रहल छै सबकेँ
करतै आब किछु काज बेबस्था

दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-लघुदीर्घ-दीर्घ-लघु-दीर्घदीर्घ-दीर्घ प्रत्येक पाँतिमे एक बेर।

२२२१-२२१२-२२