Friday 27 April 2012

गजल


तकियो कनी कानैए उघारल लोक
गाडब कते, दुख मे बड्ड गाडल लोक

धरले रहत सब हथियार शस्त्रागार
बनलै मिसाइल भूखे झमारल लोक

छै भरल चिनगीये टा करेजा जरल
अहुँ केँ उखाडत सबठाँ, उखाडल लोक

लोकक बले राजभवन, इ गेलौं बिसरि
खाली करू आबैए खिहारल लोक

माँगी अहाँ "ओम"क वोट मुस्की मारि
पटिया सकत नै एतय बिसारल लोक
बहरे-सलीम
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व, दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व
मुस्तफइलुन-मफऊलातु-मफऊलातु (पाँति मे एक बेर)

Friday 20 April 2012

विहनि कथा


विहनि कथा
कपारक लिखल
शर्माजीक आफिस शनि आओर रवि सप्ताह मे दू दिन बन्न रहै छैन्हि। आइ शनि छल। आफिस बन्न छल आ शर्माजी दरबज्जा पर बैसल छलाह। तावत एकटा भिखमंगा दरबज्जा पर आएल आ बाजल- "मालिक दस टाका दियौ। बड्ड भूख लागलए।" शर्माजी बजलाह- "लाज नै होइ छौ। हाथ पएर दुरूस्त छौ। भीख माँगै छैं। छी छी छी।" भिखमंगा बाजल- "यौ मालिक, पाई नै देबाक हुए तँ नै दियऽ, एना दुर्दशा किएक करै छी। हम जाइ छी।" ओकरा गेलाक बाद शर्माजी खूब बडबडयला। देशक खराप स्थित सँ लऽ कऽ भिखमंगाक अधिकताक कारण आ नै जानि की की, सब विषय पर अपन मुख्य श्रोता कनियाँ केँ सुनबैत रहलाह।
दुपहर मे भोजन कएलाक उपरान्त आराम करै छला की कियो गेट ठकठकाबऽ लगलै। निकलि कऽ देखैत छथि एकटा त्रिपुण्ड धारी बबाजी ठाढ छल। हिनका देखैत ओ बबाजी बाजऽ लागल- "जय हो जजमान। दरिभंगा मे एकटा यज्ञक आयोजन अछि। अपन सहयोगक राशि पाँच सय टाका दऽ दियौक।" शर्माजी- "हम किया देब?" बबाजी- "राम राम एना नै बाजी। पुण्यक भागी बनू। फलाँ बाबू सेहो पाँच सय देलखिन्ह। अहूँ पुण्यक भागी लेल टाका दियौ।" शर्मा जी- "हमरा पुण्य नै चाही। हम नरक जाइ चाहै छी। अहाँ केँ कोनो दिक्कत? बडका ने एला हमरा पुण्य दियाबैबला।" ओ बबाजी बूझि गेल जे किछु नै भेंटत आ ओतय सँ पडा गेल।
साँझ मे शर्माजी लाउन मे टहलै छलाह। सामने सँ तीन टा खद्दरधारी ढुकल आ हुनका प्रणाम कऽ कहलक- "विधान सभाक चुनाव छैक। दिल्ली सँ फलाँ बाबू एकटा रैली निकालबाक लेल आबि रहल छथि। ऐ मे बड्ड खरचा छैक। अपने सँ निवेदन जे दस हजार टाकाक सहयोग करियौक।" शर्माजी बिदकैत बाजलाह- "एहि लाउन मे टाकाक एकटा गाछ छै। अहाँ सब ओहि मे सँ टाका झारि लियऽ।" एकटा खद्दरधारी बाजल- "हम सब मजाक नै कऽ रहल छी आ आइ कोनो बहन्ना नै चलत। टाका दियौ अहाँ। अहाँक बूझल अछि ने जे हमरे सभक पार्टीक सरकार छै। अहाँक बदली तेहन ठाम भऽ जायत जे माथ धुनबाक अलावा कोनो काज नै रहत।" शर्माजी गरमाइत बाजलाह- "ठीक छै हम माथ धुनबा लेल तैयार छी। अहाँ सब जाउ आ बदली करबा दियऽ। निकलै छी की पुलिस बजाबी।" खद्दरधारी सब धमकी दैत ओतय सँ भागि गेल।
रातिक तेसर पहर छल। शर्माजी निसभेर सुतल छलाह। एकाएक हुनकर निन्न ठकठक आवाज पर उचटि गेलैन्हि। कनियाँ केँ उठा कऽ कहलखिन्ह जे कियो दरबज्जाक गेट तोडि रहल अछि। दुनू परानी डरे ओछाओन मे दुबकि गेलैथ। तावत गेट टूटबाक आवाज भेलै आ टूटलहा गेट दऽ कऽ सात टा मोस्चंड शर्माजी केँ गरियाबैत भीतर ढुकि गेलै। सब अपन मूँह गमछी सँ लपेटने छल। एकटाक हाथ मे नलकटुआ सेहो छलै। बाकी दराती, कुरहरि, कचिया आ लाठी रखने छल। एकटा लाठी बला आबि कऽ हुनका जोरगर लाठी पीठ पर दैत कहलकन्हि- "सार, सबटा टाका आ गहना निकालि कऽ सामने राख। नै तँ परान लैत देरी नै लगतौ।" शर्माजी गोंगयाइत बजलाह- "हमरा नै मारै जाउ। हम हार्टक पेशेन्ट छी। इ लियऽ चाबी आ आलमीरा मे सँ सब लऽ जाउ।" ओ सब पूरा घर हसौथि लेलक। पचास हजार टाका आ दस भरि गहना भेंटलै। फेर हिनकर घेंट धरैत डकूबाक सरदार बाजल- "तौं तँ परम कंजूस थीकैं। कतौ खरचो तक नै करै छैं। एतबी टाका छौ। सत बाज, नै तँ नलकटुआ मूँह मे ढुका कऽ फायर कऽ देबौ।" इ कहैत ओ नलकटुआ हुनकर मूँह मे ढुकेलक। ओ थर थर काँपैत बाजऽ लगलाह लैट्रिनक उपरका दूछत्ती मे दू लाख टाका आ बीस भरि गहना राखल छै। लऽ लियऽ आ हमरा छोडि दियऽ। सरदार दू जोरगर थापर दैत कहलकैन्हि आब लैन पर एले ने, आर कतऽ छौ बाज। शर्माजी किरिया खाइत बजलाह आब किछो नै छै बाबू, छोडि दियऽ हमरा। डकैत सब सबटा सामान समटि कऽ विदा भऽ गेल। थोडेक कालक बाद हिम्मति कऽ कऽ ओ चिचियाबऽ लगलाह- "बचाबू, बचाबू डकूबा........।" अडोसी पडोसी दौगल एलथि। कियो पुलिस बजा लेलक। पुलिस खानापूर्ति कऽ कऽ चारि बजे भोरबा मे चलि गेलै। शर्माजी अपन माथ पीटैत बाजै छलाह- "आइ भोरे सँ शनिक कुदृष्टि पडि गेल छल। कतेको सँ लुटाई सँ बचलौं, मुदा कपारक लिखल छल लुटेनाई से लुटाइये गेलौं।"

मैथिली गजल


गजल
नैनक छुरी नै चलाबू यै सजनियाँ
कोना कऽ जीयब बताबू यै सजनियाँ

नै चोरि केलौं किया डरबै हम-अहाँ
सुनतै जमाना सुनाबू यै सजनियाँ

छी हम पियासल अहाँ प्रेमक धार छी
आँजुर सँ हमरा पियाबू यै सजनियाँ

बेथा करेजक किया नै सुनलौं अहाँ
हमरा सँ नेहा लगाबू यै सजनियाँ

छटपट करै प्राण तकियो एम्हर अहाँ
"ओम"क करेजा जुडाबू यै सजनियाँ
बहरे-सगीर
मुस्तफइलुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ

कुण्डलिया


आइ-काल्हि बाबा सभक लोकप्रियताक देखैत एकटा रचना प्रस्तुत अछि।
निर्मल मोन सँ बाबाजी दए छथि आशीष।
खाता नंबर अहाँ लिखू, जमा कराबू फीस।
जमा कराबू फीस, बिगडल काज बनत,
केनेए जे हरान, से सबटा कष्ट जरत।
कहैए "ओम" धरू बाबाक चरण-कमल,
फीसक लियौ रसीद, भेंटत कृपा-निर्मल।

Monday 9 April 2012

समीक्षा


विदेह ई-पत्रिकाक १ अप्रैल २०१२ केर नब अंक मे प्रकाशित श्री प्रेमचन्द्र पंकजजीक दू टा गजल पढलौं। एहि दूनू गजल केँ हम गजलक व्याकरणक आधार पर देखबाक प्रयास कएलौं। हम दूनू गजल पर आ प्रत्येक पाँति पर अपन विचार राखि रहल छी।
गजल १
हम बात अहीं केर मीत कहब, नहि गजल कहब
बरु कहब मीठ नहि, तीत कहब, नहि गजल कहब

चाङुर अपन पसारि रहल अछि माथापर सम्बन्धक बाज
कोन विधि बाँचत प्रीत कहब, नहि गजल कहब

कतबो माँटि सुँघाएब तैओ नहि मानब हम अप्पन हारि
चारु नाल पछाड़ि अपन हम जीत करब नहि गजल कहब

गगनक मुँहकेँ चूमए कतबो ठाढ़ अहाँ केर शीसमहल
बस कखनहुँ बालुक भीत करब नहि गजल कहब

हाथ पसारब रहत पसरले, मुँहे टेढ़ करब तँ की
कनि दूसि मुँह विपरीत चलब, नहि गजल कहब

पहिल गजलक मतला पढला पर बुझाइए जे रदीफ "कहब, नहि गजल कहब" अछि आ काफिया मे "ईत" प्रयोग भेल अछि। दोसर शेर मे यैह रदीफ आ काफिया लेल गेल अछि। मुदा तेसर आ चारिम शेर मे आबि कऽ रदीफक "कहब"क बदला मे "करब" उपयोग कएल गेल अछि। पाँचम शेर मे एकरा बदलि कऽ "चलब" कऽ देल गेल अछि। ऐ सँ इ बुझा लगैए जे रदीफ "नहि गजल कहब" अछि आ दू टा काफिया "ईत" युक्त शब्द आ "अब" युक्त शब्द अछि। जँ गजलकार यैह रदीफ आ काफिया मानि कऽ चलल छथि तँ हुनका प्रत्येक शेर मे एकरे प्रयोग करबाक चाही। तखन रदीफ आ काफियाक दोख नै रहितै। रदीफक नियमक मोताबिक प्रत्येक गजलक एकेटा रदीफ होइत अछि आ एकर पालन ओहि गजलक प्रत्येक शेर मे होयबाक चाही। तहिना काफियाक नियमक मोताबिक प्रत्येक शेर मे काफिया एके हेबाक चाही। आब कनी बहर पर चर्च करी। ई गजल सरल वार्णिक बहर वा वार्णिक बहर पर नै लिखल गेल अछि। अरबी बहर मे अछि की नै ई जनबा लेल हम सब एक एक टा पाँतिक विश्लेषण करी। जँ ह्रस्व केँ १ आ दीर्घ केँ २ मानी तँ पहिल शेर मे देखल जाओः-
हम बात अहीं केर मीत कहब, नहि गजल कहब
११   २१ १२   २१ २१   १११  ११   १११   १११
आब दोसर पाँति
बरु कहब मीठ नहि, तीत कहब, नहि गजल कहब
१२ १११   २१  ११   २१  १११   ११  १११   १११
ऊपर दूनू पाँति मे देखि सकै छी जे ह्रस्वक नीचा ह्रस्व आ दीर्घक नीचा दीर्घ नै आएल अछि आ तैं इ शेर कोनो बहर मे नै अछि। जखन मतले कोन बहर मे नै अछि, तखन आन शेर सब पर विचार करबाक कोनो प्रयोजन नै अछि। निष्कर्ष यैह जे गजल कोनो बहर मे नै अछि। आन शेरक विश्लेषण पाठक अपने ऐ आधार पर कऽ सकैत छथि।

आब दोसर गजल देखल जाओः-
गजलक बहन्ने हम आंगन- घर- दुआरि लिखब
बाध-बन- कलमबाग-बेख –बसबारि लिखब

साँढ़ छैक छुट्टा आ पाड़ा मरखाह कतैक
बाँचल फसिलकेर सुरजाक रखबारि लिखब

थानामे नाङट भेलि रमियाक हाकरोस-
सुननिहार केओ नहि तकरे पुछारि लिखब

बारल खेलौनासँ, पोथीसँ दूर कएल
जिनगीक बोझ उघैत नेनाक भोकारि लिखब

नाचि रहल लोक आइ असली नचनिञा सभ
नचा रहल परदासँ केओ परतारि लिखब

फाटल अकास छै सीअत के-कते कोना
लिखब जे “पंकज” बेर-बेर विचारि लिखब
एहि गजल मे काफिया "आरि" युक्त अछि आ रदीफ "लिखब" अछि। ऐ हिसाबेँ रदीफ आ काफिया ठीक अछि। सरल वार्णिक बाहर वा वार्णिक बहर वा अरबी बहर मे इहो गजल नै अछि। ह्रस्व केँ १ आ दीर्घ केँ २ मानि कऽ मतला केँ देखल जाओः-
गजलक बहन्ने हम आंगन- घर- दुआरि लिखब
११११    १२२  ११  २११    ११   १२१   १११
बाध-बन- कलमबाग-बेख –बसबारि लिखब
२१  ११   १११२१    २१   ११२१    १११
इहो गजलक मतला मे ह्रस्वक नीचा ह्रस्व आ दीर्घक नीचा दीर्घ नै आएल अछि आ इ कोनो बहर मे नै अछि। इहो गजल मे जखन मतले बहर मे नै अछि तखन आन शेर सब पर विचार करबाक कोनो प्रयोजन नै अछि। एहि आधार पर इ निष्कर्ष निकलैए जे इहो गजल कोनो बहर मे नै अछि। एहि तरहेँ देखल जा सकैए जे दूनू गजलक बहर दुरूस्त नै छै। ऐठाँ ई बता दी की संयुक्ताक्षर सँ पूर्वक वर्ण दीर्घ मानल जाइए आ अनुस्वार बला वर्ण सेहो दीर्घ मानल जाइए।
गजलक विषयवस्तु नीक अछि। दोसर गजल "आजाद गजलक"क श्रेणी मे अछि आ पहिलुक गजल काफिया दोखक कारण गजल नै अछि। सादर।

Monday 2 April 2012

मैथिली गजल


मूर्ख दिवस (०१ अप्रैल) के अवसर पर हमर विशेष प्रस्तुति

मूर्ख दिवस पर पता चलल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।
आइ धरि इ कियो कहाँ कहल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।

जिनगीक चुल्हि मे जरि गेल सबटा कथा कविता आर गजल,
देखू एको शेर नै ठीक बनल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।

हमरा "फूल"* बूझि क' ओ फूल पठौलनि झुठक मुस्की मे सानल,
बूझलौँ ओकरे हृदय कमल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।

मुँह मे राम बगल मे छूरी .इ हमरा सँ कहियो नै सपरल,
बनि नै सकल हमर महल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।

सुनलौं सब ठाम खूब माखै छथि बुधियार टोलक रहबैया,
एहि दुनियाँ मे "ओम" मूर्खे भल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।
सरल वार्णिक २४ वर्ण
*एहिठाम "फूल" माने अंग्रेजीक फूल अर्थात मूर्ख।