Wednesday 7 November 2012

गजल


करेजक बात नै कहियो बनल एतय
कियो सुनलक कहाँ मोनक कहल एतय

सुखायल गाछकेँ पटबैसँ की हेतै
फरत कोना जखन गाछे जरल एतय

हँसी कीनैत रहलौं सदिखने ऐठाँ
लए छी हम नुका आत्मा मरल एतय

लिखलकै भाग्य बिधि सबहक अलग कलमसँ
कपारक गप कियो नै पढि सकल एतय

गडै पर शूल "ओम"क आह नै निकलै
भऽ गेलौं सुन्न काँटे टा गडल एतय
बहरे-हजज
मफाईलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) - ३ बेर प्रत्येक पाँतिमे

Tuesday 30 October 2012

गजल


आँखिसँ नोर खसाबै छी किया एना
मोती अपन लुटाबै छी किया एना

खाली बातसँ भेंटत नै किछो एतय
तखनो बात बनाबै छी किया एना

सुनि बेथा तँ मजा लेबे करत दुनिया
बेथा अपन सुनाबै छी किया एना

अपने सीबऽ पडत फाटल करेजा ई
अनकर आस लगाबै छी किया एना

अमृतक घाट तकै छी बिखक पोखरिमे
अचरज "ओम" कराबै छी किया एना

(दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व) + (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) + (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ)
(मफऊलातु-मफाईलुन-मफाईलुन)- १ बेर प्रत्येक पाँतिमे

Friday 28 September 2012

विहनि कथा


प्रोग्रेसिभ
                              शर्माजी आ हुनकर कनियाँ पूरा समाजमे प्रोग्रेसिभ कहाबैत छलथि। एकर कारण ई छल जे दूटा बेटीक जन्मक उपरान्त शर्माजी बिना बेटाक लालसा केने फैमिली पलानिंगक आपरेशन करा लेने छलाह आ दूनू बेकती बेटी सभक लालन पालनमे कोनो कसरि नै छोडने छलखिन्ह। बेटी सबकेँ पढेबा लिखेबामे पूरा धेआन देने छलखिन्ह आ ओकरा सभकेँ तमाम सुख सुविधा देबामे पाँछा नै रहैत छलखिन्ह। समाजमे शर्माजी दूनू बेकती बहुत आदरणीय आ उदाहरण छलथि। बेटी सभकेँ आ शर्माजीक कनियाँकेँ कोनो दिक्कत नै होई, ऐ लेल शर्माजी किछो करबा लेल तैयार रहैत छलाह। घरक काजमे मदतिक लेल एकटा दाई राखल गेल छल जे चौबीसो घण्टा हुनकर घरे पर रहैत छलैन्हि। ओकर नाँउ छलै मीतू आ ओ बयसमे बारह-तेरह बरखक छल। ऐ हिसाबेँ ओ एखन बच्चे छलै आ पेटक मजबूरीमे हुनकर घरमे काज करबा लेल बाध्य छलै। घरक पूरा साफ सफाई, पोछा, बासन माँजनाई आ कपडा धोनाई ओकरे जिम्मा छलै। दिन भरि खटिकऽ ओ थाकि जाईत छल आ साँझुक बाद झपकी लेबऽ लागैत छल। जखने ओकरा झपकी आबै की मलकिनीक प्रवचन ओकर निन्न तोडि दैत छलै। रातिमे सभक खएलाक उपरान्त ओ सभटा बासन माँजि लैत छलै आ तकर बादे खाई लेल बैसै छलै। खएबामे सबहक बचल खुचल ओकरा नसीब होईत छलै।

                              शर्माजी अपन बेटी सभक सब फरमाईश पूरा करैत छलखिन्ह आ कोनो वस्तुक माँग भेला पर बाजारसँ तुरंत ओ वस्तु आनैत छलथि, चाहे ओ कोनो खेलौनाक फरमाईश होई वा कोनो भोज्य सामग्रीक। जँ कखनो मीतू बाल सुलभ लालसामे ओइ वस्तु सभ दिस ताकियो दैत छलै की शर्माजीक कनियाँ अनघोल उठा दैत छलखिन्ह जे आब हमर बेटी सभकेँ ई वस्तु सब नै पचतै, देखू कोना नजरि लगा देलक ई निराशी। एकर अलावे आरो ढेरी गपक प्रसाद मीतूकेँ भेंट जाईत छलै, तैं बेचारी ऐ सब फरमाईशी वस्तु दिस धेआन नै देबाक प्रयास करैत छल, मुदा बच्चे छलै तैँ कखनो कालकेँ गलती भइये जाईत छलै।

                              एकदिन शर्माजीक बडकी बेटी गुलाबजामुनक फरमाईश केलकै। शर्माजी साँझमे घर आबैत काल बीसटा गुलाबजामुन सबसँ नीक मधुरक दोकानसँ कीनिकऽ नेने अएलाह। पहिने तँ दूनू बेटी आ हुनकर कनियाँ दू-दूटा गुलाबजामुनक भोग लगेलखिन्ह आ तकर बाद बचलाहा मधुरकेँ फ्रिजमे राखि देल गेलै। मीतू कुवाचक डरे ऐ मधुर दिस ताकबो नै केलक आ नै ओकरा खएबा लेल भेंटलै। मुदा मधुरक सुगंध ओकरा बेर-बेर अपना दिस आकर्षित करऽ लागलै। ओ एकटा योजना मोने मोन बनेलक आ चुपचाप घरक काज करऽ लागल। रातिमे भोजन कएलाक उपरान्त शर्माजीक कनियाँ ओकरासँ बासन मँजबेलखिन्ह आ एकर बाद ओकरा खएबा लेल बचलाहा सोहारी आ तरकारी दैत ई ताकीद केलखिन्ह जे हम सुतै लेल जाई छियौ, तूँ खा कऽ अपन छिपली माँजि सुतै लए जइहैं। ओ स्वीकृतिमे अपन मुडी हिलेलक आ खएबा लेल बैसि गेल। शर्माजीक कनियाँ तकर बाद सुतै लए चलि गेलीह। आब मीतू मधुर खएबाक अपन योजना पर काज शुरू केलक। पहिने तँ जल्दीसँ सोहारी तरकारी समाप्त कएलक आ तकर बाद नहुँ नहुँ डेगे फ्रिज दिस बढल। एकदम स्थिरसँ ओ फ्रिजक फाटक खोललक आ फ्रिजसँ मधुरक पैकेट निकालि कऽ एकटा गुलाबजामुन मुँहमे राखलक। फेर ओ सोचऽ लागल जे जखन एकटा खाइये लेलौं तखन एकटा आर खा लेबामे कोनो हर्ज नै छै। तैँ ओ एकटा आर गुलाबजामुन निकालि मुँहमे धरिते छल की पाँछासँ शर्माजीक कनियाँ ओकर केश पकडि घीचि लेलखिन्ह। असलमे खटपटक आवाज सुनि हुनकर निन्न टूटि गेल छलैन्हि। आब तँ मीतूक जे हाल भेलै से जूनि पूछू। मुँहमे गुलाबजामुन ठूँसल छलै तैँ ओ गोंगिया लागल। शर्माजीक कनियाँ ओकरा पर थापड आ लातक बौछार कए देलखिन्ह। संगे अपशब्दक नब महाकाव्यक रचना सेहो करैत पूरा घरकेँ जगा देलखिन्ह। सब मिलिकऽ मीतूक अपशब्द आ थापडक खोराक दए गेलखिन्ह। जखन ओ सब गारिक पूरा शब्दकोश पढि गेलखिन्ह आ मारैत हाथ दुखाबऽ लागलैन्हि तखन ओ सब हँपसैत ठाढ भऽ गेलथि। शर्माजीक कनियाँ मीतूक झोंटा घीचैत कहलखिन्ह जे हम सब प्रोग्रेसिभ छी, तैं छोडि देलियौ नै तँ आन रहितौ ने तँ बलि चढेने बिना नै छोडितौ। ई कहि ओ सब अपन बेडरूम दिस विदा भेलथि आ मीतू कानैत अपन बोरा लेने ओसारा दिस सुतै लेल बढि गेल।

Thursday 27 September 2012

गजल


अपन छाहरिक डरसँ सदिखन पडाईत रहलौं
पता नै किया खूब हम छटपटाईत रहलौं

कियो नै सुनै गप करेजक हमर आब एतय
करेजक कहै लेल गप हडबडाईत रहलौं

अपस्याँत छी जे चिन्हा जाइ नै भीडमे हम
मनुक्खक डरे दोगमे हम नुकाईत रहलौं

अपन पीठ अपने थपथपा मजा लैत छी हम
बजा अपन थपडी सगर ओंघराईत रहलौं

कतौ भेंटलै नै सुखक बाट "ओम"क नगरमे
सुखक खोजमे बाटमे ढनमनाईत रहलौं

बहरे-मुतकारिब

Thursday 13 September 2012

गजल


भीख नै हमरा अपन अधिकार चाही
हमर कर्मसँ जे बनै उपहार चाही

कान खोलिकऽ राखने रहऽ पडत हरदम
सुनि सकै जे सभक से सरकार चाही

प्रेम टा छै सभक औषध एहिठाँ यौ
दुखक मारल मोनकेँ उपचार चाही

सभ सिहन्ता एखनो पूरल कहाँ छै
हमर मोनक बाटकेँ मनुहार चाही

"ओम" करतै हुनकरे दरबार सदिखन
नेह-फूलसँ सजल ओ दरबार चाही
बहरे-रमल
दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ (फाइलातुन) - प्रत्येक पाँतिमे तीन बेर

Tuesday 11 September 2012

समालोचना


भोथ हथियार
श्री सुरेन्द्र नाथक कहल मैथिली गजलक संग्रह अछि "गजल हमर हथियार थिक"। ऐ पोथी मे हुनकर अडसठि टा गजल प्रकाशित भेल अछि। ई संग्रह २००८ मे आएल अछि जकर आमुख श्री अजीत आजाद जी लिखने छथि। ऐ पोथी केँ आदि सँ अन्त धरि पढबाक बाद हमर यैह अभिमत अछि जे गजलक व्याकरणक दृष्टिसँ ऐ संग्रह मे अनेको कमी अछि, जाहि सँ बचल जा सकैत छल।

पृष्ठ संख्या १३, ६७ आ ७० परहक गजल मे चारिये टा शेर छै, जखन की कोनो गजल मे कम सँ कम पाँच टा शेर हेबाक चाही। संग्रहक कोनो गजल बहर मे नै अछि। हमर ई स्पष्ट मनतब अछि जे गजलकार केँ प्रत्येक गजल मे बहरक उल्लेख करबाक चाही आ जँ आजाद गजल कहने छथि तँ इहो स्पष्ट रूपेँ लिखबाक चाही।

ऐ पोथी मे काफियाक गलती भरमार अछि। कतौ कतौ तँ ई बूझना जाइ छै जे गजलकार बिना काफिया आ रदीफक मतलब बूझने गजल कहबा लेल बैस गेल छथि। एकर उदाहरण पृष्ठ १५ परहक गजल पढबा पर भेंट जाइ छै। ई तँ हम एकटा उदाहरण कहि रहल छी। आरो गजल ऐ दोख सँ प्रभावित छै, जतय काफियाक नियमक धज्जी उडा देल गेल अछि। जेना पृष्ठ १८, १९, २०, २१, २७, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३९, ४०, ४१, ४३, ४४, ४५, ४६, ४७, ५२, ५३, ५६, ५७, ५८, ६६, ६७, ६८,७०, ७१, ७२, ७४, ७५,७७, ७९ आदिमे काफिया तकलासँ नै भेंटैत अछि आ ऐ खोजमे मोन अकच्छ भऽ जाइत छै। ओना आनो पृष्ठ काफिया दोखसँ ग्रसित अछि, मुदा ई उदाहरण हम ओइ पृष्ठ सभक देने छी, जतय काफियाक झलकियो तक नै भेंटै छै। मैथिली गजल आइ जाहि सोपान पर चढि चुकल अछि, ओइ हिसाबेँ ऐ तरहक रचना गजलक नामसँ स्वीकृत होइ बला नै अछि। कियाक तँ बिना दुरूस्त काफियाक गजल नै भऽ सकैत अछि। ई संग्रह "अनचिन्हार आखर" युगक शुरूआत भेलाक बाद लिखल गेल अछि, तैँ हमरा ई आस छल जे गजलकार कमसँ कम काफिया आ रदीफक नियमक पालन ठीकसँ केने हेताह, कियाक तँ "अनचिन्हार आखर" जुग मे आब गजलक व्याकरणक सभ नियम चिन्हार भऽ चुकल अछि। मुदा गजलकार काफिया आ रदीफक नियम पालन करबामे पूरा असफल रहलथि। ओना ऐ संग्रहक काफिया दोखकेँ पोथीक आमुख लेखक श्री अजीत आजाद पोथीक आमुखमे दाबल आवाजमे स्वीकार करैत कहै छथि जे कतेको ठाम काफिया "गडबडायल सन" बुझना जाइत अछि। ओना ई अलग गप थिक जे काफिया "गडबडायल सन" नै अपितु पूरा पूरी गडबडायल अछि। फेर श्री आजाद ऐ गलतीकेँ झाँपबा लेल इहो कहैत छथि जे "रचनाकारकेँ अपन सीमासँ बाहर आबि शब्द-व्यापार करबाक चाही"। मुदा गजलक अपन व्याकरण छै, जकर पालन केने बिना रचना गजल नै भऽ कऽ पद्य मात्र रहि जाइत छै। गजल आ कविताक बीचक अंतर जे अंतर छै, से ऐ तरहक तर्कसँ समाप्त नै भऽ जाइ छै। काफिया, रदीफ आ गजलक व्याकरणक अनुपालन नै हेबाक कारणेँ श्री सुरेन्द्र नाथक ई संग्रह गजल संग्रह नै भऽ कऽ एकटा पद्यक संग्रह भऽ कऽ रहि गेल अछि।

संवेदनाक स्तर पर किछु रचना नीक अछि आ जँ गजलकार गजलक व्याकरण पर धेआन देने रहतथिन्ह, तँ नीक गजल लिखि सकैत छलाह। गजलकारक ई पहिलुक मैथिली गजल संग्रह बहुत आस तँ नै जगबैत अछि, मुदा हुनकर संवेदनात्मक प्रतिभा देखैत हम ई आस जरूर करै छी जे ओ गजलक व्याकरणक पालन करैत आगू नीक गजल कहताह आ "गजल हमर हथियार थिक" केँ चरितार्थ करताह। गजल तँ हथियार होइते अछि, मुदा बिनु काफिया, रदीफ आ बहरक नियमक पालन केने रचना गजल नै होइत अछि आ भोथ हथियार भऽ जाइत अछि। पद्यक हथियार पर काफिया आ बहरक सान चढल हुनकर नब गजल-हथियारक प्रतीक्षा रहत।

Thursday 6 September 2012

विहनि कथा


विहनि कथा
बीस टाका
हम भोरे भोर उठि कऽ अपन बगीचा मे फूलक गाछ सब केँ पटबै छलहुँ। करीब सात-सवा सात बाजैत हेतै। तावत सडक दिस सँ हो-हल्ला सुनायल। हमर निवास मुख्य सडकक काते मे अछि, तैं सडक पर होय बला सब घटना आ दुर्घटना देखाइत आ सुनाइत रहैए। हम हल्ला सुनि सडक दिस ताकलहुँ। देखै छी जे हमर फाटकक ठीक सामने मे एकटा मिनी ट्रक लागल अछि आ ओकरा आगाँ एकटा सिपाही मोटरसाईकिल लगा कऽ ठाढ अछि। ओ सिपाही ट्रकक ड्राईवर केँ गरियौने जाईत छल आ ट्रक जब्त करबाक धमकी सेहो दऽ रहल छल। सिपाही कहलक- "नो इंट्रीक टाईम भऽ गेल छै आ तों सब ट्रक शहर मे ढुका देलही। आब चल थाना, जब्ती हेतौ ट्रकक। तोरा सबकेँ बूझल नै छौ जे सात बजेक बाद नो इंट्री भऽ जाइ छै।" ट्रक पर पाछाँ मे एकटा महीस छल आ ओइ महीसक संग एक गोटे ठाढ छल जे कने कडगर भऽ बाजल- "यौ सिपाही जी, एखनी सात बाजि कऽ पाँचे मिनट भेल छै आ हम सब शहर मे जखन ढुकल छलियै तखनी पौने साते बाजै छलै। आब ई नो इंट्री कोना भऽ गेलै। शहर मे ढुकबा काल ओतुक्का सिपाही जी केँ नजराना सेहो देने छियै, अहाँ मोबाईल सँ फोन कऽ कऽ बूझि लियौ।" आब तँ सिपाही जे बमकल से नै पूछू। सोझे ड्राईवर लग गेल आ बाजल- "पाछाँ मे ओकील चढेने छी की? सार हमरा कानून झाडैए। ओकरा तँ जे हम करबै से केलाक बादे बूझतै ओ .................., तू चाभी ला, ट्रक जब्त हेतौ। सात बाजि कऽ दस मिनट भऽ गेल छै आ नो इंट्री मे ट्रक ढुका कऽ कानून छाँटै जाइए।" ड्राईवर ऐ लाइनक पुरान खेलाड छल। ओ हाथ जोडैत कहलकै- "सरकार, कथी लए तमसाई छी। ओ मूर्ख छै। अहाँ हमरा सँ गप करू ने। हे ई लियऽ दस टाका चाह पानक खर्चा आ हमरा जाई दियऽ बड्ड दूर जेबाक छै।" सिपाही कने नरम होईत ओकर हाथक टाका दिस लुब्धता सँ ताकैत कहलक- "हे रौ तू होशियार बूझाईत छैं, मुदा दस टाका सँ काज नै चलतौ। बड्ड महगी छै, बीस टाका निकाल।" ड्राईवर बाजल- "पछिलो चौक पर पाई लेलखिन्ह सिपाही जी आ अगिलो चौक पर लेबे करथिन्ह। एकटा महीसक पाछाँ कतेक जगह काटब अहाँ सब। सरकार पएर पकडै छी, अहाँ एहि सँ काज चला लियऽ।" सिपाही गरमाईत कहलक- "चल थाना। टाईम खराप नै कर। बोहनी बेर मे भोरे भोर सबटा नाश नै कर। तोहर दिमाग ठेकाना पर नै छौ।" आब ओ ड्राईवर बूझि गेल रहै जे ई सिपाही मानै बला नै छै। ओ तुरत बीस टाका निकाललक आ सिपाही दिस बढेलक। सिपाही चारू कात देखैत मुट्ठी मे बीस टाका दाबलक आ चेतावनि दएत कहलक- "जो भाग जल्दी, तोहर नसीब ठीक छौ। बडा बाबूक नजरि मे जँ आबि गेलही बाउ तँ ओ बिनु एक सय केँ नै छोडथुन्ह। हुनकर मौर्निंग वाकक समय भऽ गेल छैन्ह। आबिते हेथुन्ह केम्हरो सँ।" ई कहैत ओ सिपाही अपन मोटरसाईकिल इस्टार्ट कएलक आ विदा भेल आ ट्रक सेहो दस मिनटक घेंघाउज आ बीस टाकाक दक्षिणाक बाद गन्तव्य दिस चलि देलक।

कविता


एक कविता प्रस्तुत हैः-

अधूरी प्यास की गाथा क्या सुनाऊँ मैं।
सुलगते विचारों की गर्मी से हलकान हूँ,
निर्जीव संबंधों के वार से लहूलुहान हूँ,
अपने बनाये बंदिशों से परेशान हूँ,
रूँधे हुए कण्ठ से कब तक गाऊँ मैं।
अधूरी प्यास.........................................

'बेहतर' की उम्मीद में 'अच्छा' छूटता गया,
दिल की धडकनों से दिल ही टूटता गया,
जिसे समझा अपना वो ही लूटता गया,
क्षितिज की आस में यूँ ही चलता जाऊँ मैं।
अधूरी प्यास............................................

- ओम प्रकाश।

Monday 27 August 2012

गज़ल

मेरी तन्हाई मुझसे कभी ज़ुदा ना हुई
ख़ूब निभाया साथ मेरा, बेवफा ना हुई

अरमानों के पंख क़तर डाले हैं मैंने
उडते कैसे, इनके लिए फ़िजा ना हुई

लिपटते रहे दामन से गैरों के नाम
क्या करते अपनों से कभी वफा ना हुई

ना समझे हँसी की तिज़ारत का चलन
बेच के हँसी, वो कहते हैं ख़ता ना हुई

स्याह रातों से टपकी शबनम की बूँदें
ज़ज्ब हैं "ओम" के सीने में, ये फना ना हुई

गज़ल


तुम्हीं कह दो तेरे इश्क को भुलाऊँ कैसे
वज़ूद अपना मैं खुद ही मिटाऊँ कैसे

दिल के किले में महफूज हैं तेरी यादें
आदत बनी यादों से दूरी बनाऊँ कैसे

सर झुकाता रहा हूँ मुहब्बत के लिए
रंजिशों के बुत पर सर झुकाऊँ कैसे

कहने को बाकी बहुत हैं दर्द मुझमें
पर बेदर्द महफिल को सुनाऊँ कैसे

"ओम" को जमाने ने दीवाना नाम दिया है
जिन्दा हूँ दीवानगी से ही मैं बताऊँ कैसे

Saturday 18 August 2012

गजल


रमजान आ ईदक शुभ अवसर पर प्रस्तुत कऽ रहल छी एकटा गजल। ऐ गजलक प्रेरणा हम एकटा प्रसिद्ध कव्वाली सँ लेने छी।

मदीनाक मालिक अहाँ ई करा दिअ
करेजा हमर बस मदीना बना दिअ

हमर मोन निश्छल भऽ गमकै धरा पर
कृपा एतबा अपन हमरा पठा दिअ

बनै सगर दुनिया खुशी केर सागर
सभक ठोर एतेक मुस्की बसा दिअ

दया केर बरखा करू ऐ पतित पर
मनुक्खक कते मोल हमरा बता दिअ

दहा जाइ दुनिया सिनेहक नदीमे
अहाँ "ओम" केँ प्रेम-कलमा पढा दिअ
बहरे-मुतकारिब
फऊलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ) - ४ बेर प्रत्येक पाँति मे

Sunday 29 July 2012

बाल गजल


प्रस्तुत कऽ रहल छी हम अपन पहिल बाल गजल। ई गजल एकटा बाल मजदूरक पीडा पर आधारित अछि। अहाँ सभक प्रतिक्रियाक आकांक्षी छी।
बाल गजल
करबा नै मजूरी माँ पढबै हमहूँ
नै रहबै कतौ पाछू बढबै हमहूँ

हम छी छोट सपना पैघ हमर छै गे
कीनब कार जकरा पर चढबै हमहूँ

टूटल छै मडैया आस मुदा ई छै
सोना अपन छत कहियो मढबै हमहूँ

चारू कात पसरल दुखक अन्हरिया छै
कटतै ई अन्हरिया आ बढबै हमहूँ

पढि-लिख खूब सब तरि नाम अपन करबै
जिनगी "ओम" सुन्नर ई गढबै हमहूँ
दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ
(मफऊलातु-मफाऊलातु-मफाईलुन)- एक बेर प्रत्येक पाँति मे
ओम प्रकाश, बाल गजल

आलेख, बाल गजल


मैथिली बाल गजलक अवधारणा
जेना कि नाम सँ स्पष्ट अछि, बाल गजल माने भेल नेना-भुटकाक लेल गजल। बाल गजलक अवधारणा मैथिली मे एकदम नब अछि आ पहिल बेर २४ मार्च २०१२ केँ श्री आशीष अनचिन्हार ऐ अवधारणा केँ सामने आनलथि। बहुत अल्प समय मे बाल गजल बहुत प्रसिद्धि पओलक आ बाल गजल कहनिहार गजलकार सभक एकटा विशाल पाँति ठाढ भऽ गेल। ऐ मे सर्वश्री गजेन्द्र ठाकुर आ आशीष अनचिन्हार जकाँ स्थापित गजलकार तँ छथि, एकर अलावे नब गजलकार सब सेहो बाल गजल कहबा मे विशेष अभिरूचि देखौलन्हि। बाल गजल कहनिहार नब गजलकार सभ मे सर्वश्री मिहिर झा, मुन्ना जी, इरा मल्लिक, अमित मिश्रा, चन्दन झा, पंकज चौधरी 'नवलश्री', राजीव रंजन झा, जगदानंद झा 'मनु', रूबी झा, प्रशांत मैथिल आदि अनेको गजलकार छथि। "अनचिन्हार आखर", जे मैथिली गजलक एकमात्र ब्लाग अछि, देखला पर पता लागैत अछि जे बाल गजलक अवधारणा अयलाक बाद सँ एखन धरि(ई आलेख लिखबा तक) ७३(तिहत्तरि) टा बाल गजल ऐ ब्लाग पर पोस्ट भऽ चुकल अछि, जे अपने आप मे एकटा कीर्तिमान अछि। खास कऽ एतेक कम समय मे एतेक पोस्ट आएब बाल गजलक लोकप्रियताक खिस्सा कहि रहल अछि। बाल गजलक विधा एकटा स्वतन्त्र विधा बनबाक बाट मे अग्रसर अछि, जे एतेक कम समय मे एतेक संख्या मे बाल गजल कहनिहार गजलकार आ बाल गजलक संख्या सँ स्पष्ट अछि। संगहि किछु लोक केँ मिरचाई सेहो लागब शुरू अछि आ ओ लोकनि बाल गजलक सम्पूर्ण अवधारणा केँ नकारबाक कुत्सित असफल प्रयास मे जत्र कुत्र अंट शंट पोस्ट देबऽ लागलाह। ई गप आर स्पष्ट करैत अछि जे बाल गजलक विधा मजबूती सँ स्थापित भऽ रहल अछि। कियाक तँ सफल व्यक्ति आ विधा सभक आकर्षणक केन्द्र बनैत अछि आ बाल गजल सेहो सभक आकर्षणक केन्द्र बनि चुकल अछि, चाहे ओ गजलकार होईथि, पाठक होईथि, आलोचक होईथि वा जरनिहार लोक सभ होईथि। जखन मैथिलि गजलक चर्च भऽ रहल अछि, तखन श्री आशीष अनचिन्हारक चर्चा स्वभाविक अछि। मैथिली गजलक विकास मे हुनकर योगदान हुनकर धुर विरोधी लोकनि सेहो मानैत छथिन्ह। मैथिली बाल गजलक अवधारणा लेल श्री आशीष अनचिन्हार मैथिली साहित्य मे अपन अनुपम स्थान बना चुकल छथि। बाल गजलक अवधारणा सेहो हुनके छैन्हि, जे बहुत सफल भेल अछि।
आब किछु गप करी मैथिली बाल गजलक रचना सभक संबंध मे। हमरा विचार सँ बाल गजल नेना भुटकाक लेल रूचिगर तँ हेबाके चाही, संगहि ऐ मे कोनो स्पष्ट सामाजिक सनेस होइ तँ ई सोन मे सोहाग जकाँ हएत। ओना तँ सभ बाल गजल कहनिहार गजलकार सभ ऐ मे सक्षम छथि आ नीक सँ नीक बाल गजल लिख रहल छथि, मुदा ऐ सन्दर्भ मे हम श्री गजेन्द्र ठाकुरजीक बाल गजलक उल्लेख करब उचित बूझि रहल छी। हुनकर एकटा बाल गजलक मतला अछिः-

कनियाँ पुतरा छोड़ू आनू बार्बी
जँ रंग गुलाबी छै तँ जानू बार्बी

ऐ गजल केँ पूरा पढि कऽ कने देखियौ। ई गजल कनिया पुतराक उल्लेख करैत नेना-भुटकाक मनोरंजन तँ करिते अछि, संगहि अजुका बाजारवादक बलिवेदी पर कुर्बान भेल मनुक्खक मार्मिक विवेचना सेहो करैत अछि। एहन आरो कतेको बाल गजल सभ "अनचिन्हार आखर" पर भेंटैत अछि, जकरा ऐ ब्लाग पर पढल जा सकैत अछि। ई गजलकार सभक सामाजिक संवेदना केँ प्रकट करैत अछि आ हम ऐ लेल सभ गजलकार केँ साधुवाद दैत छियैन्हि। हम एहने बाल गजलक आस गजलकार सभ सँ लगओने छी। कियाक तँ गजलकारक सामाजिक दायित्व सेहो छै, जे पूरा हेबाक चाही। आधुनिक मैथिली गजलकार सब मे ई क्षमता अछि आ ओ दिन दूर नै अछि जखन एक सँ एक सुन्नर आ बालोपयोगीक संगे सामाजिक समस्या पर बाल गजलक भरमार हएत। व्याकरणक हिसाबेँ मैथिली बाल गजल नीक बाट धएने अछि। अनचिन्हार आखरक टीमक परिश्रमक कारणेँ मैथिली मे बहरयुक्त गजलक काल शुरू भऽ चुकल अछि आ सरल वार्णिक बहर(जकर अवधारणा श्री गजेन्द्र ठाकुरजी देलखिन्ह) केर अलावे आब अरबी बहर मे गजल कहनिहार गजलकारक कमी नै छै। बाल गजल अपन शुरूआते सँ बहरयुक्त अछि, जे बाल गजलक लेल शुभ संकेत अछि। शुरूआतिए समय मे जे आ जतबा बाल गजल लिखल गेल अछि, ओ सभ बहर मे अछि, चाहे सरल वार्णिक बहर होइ वा अरबी बहर। बहरक अलावे रदीफ आ काफियाक नियमक पालन सेहो पूरा पूरा भऽ रहल अछि। व्याकरण पालनक ई प्रतिबद्धता निश्चित रूपे बाल गजलक सफलताक गाथा लिखबा मे सहायक हएत।
मैथिली गजलक बढैत डेग संग आब मैथिली बाल गजलक डेग सेहो उठि गेल अछि। मैथिली बाल गजल जाहि द्रुत गति सँ अपन डेग उठओलक अछि, ऐ सँ तँ यैह लागैत अछि जे अगिला साल आबैत आबैत मैथिली बाल गजलक पोथी प्रकाशित भऽ सकैत अछि। संगहि इसकूलक पाठ्यक्रम मे बाल गजल सम्मिलित हेबाक संभावना सेहो साकार रूप लऽ सकत। पाठ्यक्रम मे सम्मिलित हेबाक बाद मैथिली बाल गजल सभ पढनिहार-पढौनिहारक संज्ञान मे नीक जकाँ आओत आ सामाजिक विकासक संरचना मे अपन महत्वपूर्ण योगदान, जे अपेक्षित अछि, सेहो दऽ सकत।

Sunday 15 July 2012

रूबाइ


जागल आँखि केर सपना बनल जिनगी
कुहरल आश केर झपना बनल जिनगी
फाटल छल करेज हम सीबैत रहलौँ
रूसल सुखक आब नपना बनल जिनगी

गजल


चमकल मुख अहाँक इजोर भऽ गेलै
अधरतिए मे लागै जेना भोर भऽ गेलै

काजर बूझि हमरा नैन मे बसा लिअ
अहाँक नैना मारूक चितचोर भऽ गेलै

कुचरै कौआ रहि रहि मोर आंगन मे
जानि अबैया अहाँक मोन मोर भऽ गेलै

नैनक इशारा दैए प्रेमक निमन्त्रण
आब लाजे कठुआ कऽ बन्न ठोर भऽ गेलै

बनल नाम अहींक "ओम"क प्राण-डोरी
अहाँक आस मे करेज चकोर भऽ गेलै
सरल वार्णिक- १५ वर्ण

गजल


जन-गणक सेवक भेल देशक भार छै
जनताक मारि टका बनल बुधियार छै

चुप छी तँ बूझथि ओ, अहाँ कमजोर छी
मुँह ताकला सँ कहाँ मिलल अधिकार छै

बिन दाम नै वर केर बाप हिलैत अछि
घर मे गरीबक सदिखने अतिचार छै

हक नै गरीबक मारियौ सुनि लियऽ अहाँ
जरि रहल पेटक आगि बनि हथियार छै

झरकल सिनेहक बात "ओम"क की कहू
सगरो पसरल जरल हँसी भरमार छै
(बहरे-कामिल)
मुतफाइलुन(ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)- ३ बेर प्रत्येक पाँति मे

Wednesday 23 May 2012

रूबाई


कखनो तँ हम अहाँ केँ मोन पडिते हैब
यादिक दीप बनि करेज मे जरिते हैब
बनि सकलहुँ नै हम फूल अहाँक कहियो यै
मुदा काँट बनि नस नस मे तँ गडिते हैब

Thursday 3 May 2012

मैथिली गजल


कहू की, कियो बूझि नै सकल हमरा
हँसी सभक लागल बहुत ठरल हमरा

कियो पूछलक नै हमर हाल एतय
कपारे तँ भेंटल छलै जरल हमरा

करेजा सँ शोणित बहाबैत रहलौं
विरह-नोर कखनो कहाँ खसल हमरा

तमाशा बनल छी, अपन फूँकि हम घर
जरै मे मजा आबिते रहल हमरा

रहल "ओम" सदिखन सिनेहक पुजारी
इ दुनिया तँ 'काफिर' मुदा कहल हमरा
बहरे-मुतकारिब
फऊलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ) - प्रत्येक पाँति मे चारि बेर

Friday 27 April 2012

गजल


तकियो कनी कानैए उघारल लोक
गाडब कते, दुख मे बड्ड गाडल लोक

धरले रहत सब हथियार शस्त्रागार
बनलै मिसाइल भूखे झमारल लोक

छै भरल चिनगीये टा करेजा जरल
अहुँ केँ उखाडत सबठाँ, उखाडल लोक

लोकक बले राजभवन, इ गेलौं बिसरि
खाली करू आबैए खिहारल लोक

माँगी अहाँ "ओम"क वोट मुस्की मारि
पटिया सकत नै एतय बिसारल लोक
बहरे-सलीम
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व, दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व
मुस्तफइलुन-मफऊलातु-मफऊलातु (पाँति मे एक बेर)

Friday 20 April 2012

विहनि कथा


विहनि कथा
कपारक लिखल
शर्माजीक आफिस शनि आओर रवि सप्ताह मे दू दिन बन्न रहै छैन्हि। आइ शनि छल। आफिस बन्न छल आ शर्माजी दरबज्जा पर बैसल छलाह। तावत एकटा भिखमंगा दरबज्जा पर आएल आ बाजल- "मालिक दस टाका दियौ। बड्ड भूख लागलए।" शर्माजी बजलाह- "लाज नै होइ छौ। हाथ पएर दुरूस्त छौ। भीख माँगै छैं। छी छी छी।" भिखमंगा बाजल- "यौ मालिक, पाई नै देबाक हुए तँ नै दियऽ, एना दुर्दशा किएक करै छी। हम जाइ छी।" ओकरा गेलाक बाद शर्माजी खूब बडबडयला। देशक खराप स्थित सँ लऽ कऽ भिखमंगाक अधिकताक कारण आ नै जानि की की, सब विषय पर अपन मुख्य श्रोता कनियाँ केँ सुनबैत रहलाह।
दुपहर मे भोजन कएलाक उपरान्त आराम करै छला की कियो गेट ठकठकाबऽ लगलै। निकलि कऽ देखैत छथि एकटा त्रिपुण्ड धारी बबाजी ठाढ छल। हिनका देखैत ओ बबाजी बाजऽ लागल- "जय हो जजमान। दरिभंगा मे एकटा यज्ञक आयोजन अछि। अपन सहयोगक राशि पाँच सय टाका दऽ दियौक।" शर्माजी- "हम किया देब?" बबाजी- "राम राम एना नै बाजी। पुण्यक भागी बनू। फलाँ बाबू सेहो पाँच सय देलखिन्ह। अहूँ पुण्यक भागी लेल टाका दियौ।" शर्मा जी- "हमरा पुण्य नै चाही। हम नरक जाइ चाहै छी। अहाँ केँ कोनो दिक्कत? बडका ने एला हमरा पुण्य दियाबैबला।" ओ बबाजी बूझि गेल जे किछु नै भेंटत आ ओतय सँ पडा गेल।
साँझ मे शर्माजी लाउन मे टहलै छलाह। सामने सँ तीन टा खद्दरधारी ढुकल आ हुनका प्रणाम कऽ कहलक- "विधान सभाक चुनाव छैक। दिल्ली सँ फलाँ बाबू एकटा रैली निकालबाक लेल आबि रहल छथि। ऐ मे बड्ड खरचा छैक। अपने सँ निवेदन जे दस हजार टाकाक सहयोग करियौक।" शर्माजी बिदकैत बाजलाह- "एहि लाउन मे टाकाक एकटा गाछ छै। अहाँ सब ओहि मे सँ टाका झारि लियऽ।" एकटा खद्दरधारी बाजल- "हम सब मजाक नै कऽ रहल छी आ आइ कोनो बहन्ना नै चलत। टाका दियौ अहाँ। अहाँक बूझल अछि ने जे हमरे सभक पार्टीक सरकार छै। अहाँक बदली तेहन ठाम भऽ जायत जे माथ धुनबाक अलावा कोनो काज नै रहत।" शर्माजी गरमाइत बाजलाह- "ठीक छै हम माथ धुनबा लेल तैयार छी। अहाँ सब जाउ आ बदली करबा दियऽ। निकलै छी की पुलिस बजाबी।" खद्दरधारी सब धमकी दैत ओतय सँ भागि गेल।
रातिक तेसर पहर छल। शर्माजी निसभेर सुतल छलाह। एकाएक हुनकर निन्न ठकठक आवाज पर उचटि गेलैन्हि। कनियाँ केँ उठा कऽ कहलखिन्ह जे कियो दरबज्जाक गेट तोडि रहल अछि। दुनू परानी डरे ओछाओन मे दुबकि गेलैथ। तावत गेट टूटबाक आवाज भेलै आ टूटलहा गेट दऽ कऽ सात टा मोस्चंड शर्माजी केँ गरियाबैत भीतर ढुकि गेलै। सब अपन मूँह गमछी सँ लपेटने छल। एकटाक हाथ मे नलकटुआ सेहो छलै। बाकी दराती, कुरहरि, कचिया आ लाठी रखने छल। एकटा लाठी बला आबि कऽ हुनका जोरगर लाठी पीठ पर दैत कहलकन्हि- "सार, सबटा टाका आ गहना निकालि कऽ सामने राख। नै तँ परान लैत देरी नै लगतौ।" शर्माजी गोंगयाइत बजलाह- "हमरा नै मारै जाउ। हम हार्टक पेशेन्ट छी। इ लियऽ चाबी आ आलमीरा मे सँ सब लऽ जाउ।" ओ सब पूरा घर हसौथि लेलक। पचास हजार टाका आ दस भरि गहना भेंटलै। फेर हिनकर घेंट धरैत डकूबाक सरदार बाजल- "तौं तँ परम कंजूस थीकैं। कतौ खरचो तक नै करै छैं। एतबी टाका छौ। सत बाज, नै तँ नलकटुआ मूँह मे ढुका कऽ फायर कऽ देबौ।" इ कहैत ओ नलकटुआ हुनकर मूँह मे ढुकेलक। ओ थर थर काँपैत बाजऽ लगलाह लैट्रिनक उपरका दूछत्ती मे दू लाख टाका आ बीस भरि गहना राखल छै। लऽ लियऽ आ हमरा छोडि दियऽ। सरदार दू जोरगर थापर दैत कहलकैन्हि आब लैन पर एले ने, आर कतऽ छौ बाज। शर्माजी किरिया खाइत बजलाह आब किछो नै छै बाबू, छोडि दियऽ हमरा। डकैत सब सबटा सामान समटि कऽ विदा भऽ गेल। थोडेक कालक बाद हिम्मति कऽ कऽ ओ चिचियाबऽ लगलाह- "बचाबू, बचाबू डकूबा........।" अडोसी पडोसी दौगल एलथि। कियो पुलिस बजा लेलक। पुलिस खानापूर्ति कऽ कऽ चारि बजे भोरबा मे चलि गेलै। शर्माजी अपन माथ पीटैत बाजै छलाह- "आइ भोरे सँ शनिक कुदृष्टि पडि गेल छल। कतेको सँ लुटाई सँ बचलौं, मुदा कपारक लिखल छल लुटेनाई से लुटाइये गेलौं।"

मैथिली गजल


गजल
नैनक छुरी नै चलाबू यै सजनियाँ
कोना कऽ जीयब बताबू यै सजनियाँ

नै चोरि केलौं किया डरबै हम-अहाँ
सुनतै जमाना सुनाबू यै सजनियाँ

छी हम पियासल अहाँ प्रेमक धार छी
आँजुर सँ हमरा पियाबू यै सजनियाँ

बेथा करेजक किया नै सुनलौं अहाँ
हमरा सँ नेहा लगाबू यै सजनियाँ

छटपट करै प्राण तकियो एम्हर अहाँ
"ओम"क करेजा जुडाबू यै सजनियाँ
बहरे-सगीर
मुस्तफइलुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ

कुण्डलिया


आइ-काल्हि बाबा सभक लोकप्रियताक देखैत एकटा रचना प्रस्तुत अछि।
निर्मल मोन सँ बाबाजी दए छथि आशीष।
खाता नंबर अहाँ लिखू, जमा कराबू फीस।
जमा कराबू फीस, बिगडल काज बनत,
केनेए जे हरान, से सबटा कष्ट जरत।
कहैए "ओम" धरू बाबाक चरण-कमल,
फीसक लियौ रसीद, भेंटत कृपा-निर्मल।

Monday 9 April 2012

समीक्षा


विदेह ई-पत्रिकाक १ अप्रैल २०१२ केर नब अंक मे प्रकाशित श्री प्रेमचन्द्र पंकजजीक दू टा गजल पढलौं। एहि दूनू गजल केँ हम गजलक व्याकरणक आधार पर देखबाक प्रयास कएलौं। हम दूनू गजल पर आ प्रत्येक पाँति पर अपन विचार राखि रहल छी।
गजल १
हम बात अहीं केर मीत कहब, नहि गजल कहब
बरु कहब मीठ नहि, तीत कहब, नहि गजल कहब

चाङुर अपन पसारि रहल अछि माथापर सम्बन्धक बाज
कोन विधि बाँचत प्रीत कहब, नहि गजल कहब

कतबो माँटि सुँघाएब तैओ नहि मानब हम अप्पन हारि
चारु नाल पछाड़ि अपन हम जीत करब नहि गजल कहब

गगनक मुँहकेँ चूमए कतबो ठाढ़ अहाँ केर शीसमहल
बस कखनहुँ बालुक भीत करब नहि गजल कहब

हाथ पसारब रहत पसरले, मुँहे टेढ़ करब तँ की
कनि दूसि मुँह विपरीत चलब, नहि गजल कहब

पहिल गजलक मतला पढला पर बुझाइए जे रदीफ "कहब, नहि गजल कहब" अछि आ काफिया मे "ईत" प्रयोग भेल अछि। दोसर शेर मे यैह रदीफ आ काफिया लेल गेल अछि। मुदा तेसर आ चारिम शेर मे आबि कऽ रदीफक "कहब"क बदला मे "करब" उपयोग कएल गेल अछि। पाँचम शेर मे एकरा बदलि कऽ "चलब" कऽ देल गेल अछि। ऐ सँ इ बुझा लगैए जे रदीफ "नहि गजल कहब" अछि आ दू टा काफिया "ईत" युक्त शब्द आ "अब" युक्त शब्द अछि। जँ गजलकार यैह रदीफ आ काफिया मानि कऽ चलल छथि तँ हुनका प्रत्येक शेर मे एकरे प्रयोग करबाक चाही। तखन रदीफ आ काफियाक दोख नै रहितै। रदीफक नियमक मोताबिक प्रत्येक गजलक एकेटा रदीफ होइत अछि आ एकर पालन ओहि गजलक प्रत्येक शेर मे होयबाक चाही। तहिना काफियाक नियमक मोताबिक प्रत्येक शेर मे काफिया एके हेबाक चाही। आब कनी बहर पर चर्च करी। ई गजल सरल वार्णिक बहर वा वार्णिक बहर पर नै लिखल गेल अछि। अरबी बहर मे अछि की नै ई जनबा लेल हम सब एक एक टा पाँतिक विश्लेषण करी। जँ ह्रस्व केँ १ आ दीर्घ केँ २ मानी तँ पहिल शेर मे देखल जाओः-
हम बात अहीं केर मीत कहब, नहि गजल कहब
११   २१ १२   २१ २१   १११  ११   १११   १११
आब दोसर पाँति
बरु कहब मीठ नहि, तीत कहब, नहि गजल कहब
१२ १११   २१  ११   २१  १११   ११  १११   १११
ऊपर दूनू पाँति मे देखि सकै छी जे ह्रस्वक नीचा ह्रस्व आ दीर्घक नीचा दीर्घ नै आएल अछि आ तैं इ शेर कोनो बहर मे नै अछि। जखन मतले कोन बहर मे नै अछि, तखन आन शेर सब पर विचार करबाक कोनो प्रयोजन नै अछि। निष्कर्ष यैह जे गजल कोनो बहर मे नै अछि। आन शेरक विश्लेषण पाठक अपने ऐ आधार पर कऽ सकैत छथि।

आब दोसर गजल देखल जाओः-
गजलक बहन्ने हम आंगन- घर- दुआरि लिखब
बाध-बन- कलमबाग-बेख –बसबारि लिखब

साँढ़ छैक छुट्टा आ पाड़ा मरखाह कतैक
बाँचल फसिलकेर सुरजाक रखबारि लिखब

थानामे नाङट भेलि रमियाक हाकरोस-
सुननिहार केओ नहि तकरे पुछारि लिखब

बारल खेलौनासँ, पोथीसँ दूर कएल
जिनगीक बोझ उघैत नेनाक भोकारि लिखब

नाचि रहल लोक आइ असली नचनिञा सभ
नचा रहल परदासँ केओ परतारि लिखब

फाटल अकास छै सीअत के-कते कोना
लिखब जे “पंकज” बेर-बेर विचारि लिखब
एहि गजल मे काफिया "आरि" युक्त अछि आ रदीफ "लिखब" अछि। ऐ हिसाबेँ रदीफ आ काफिया ठीक अछि। सरल वार्णिक बाहर वा वार्णिक बहर वा अरबी बहर मे इहो गजल नै अछि। ह्रस्व केँ १ आ दीर्घ केँ २ मानि कऽ मतला केँ देखल जाओः-
गजलक बहन्ने हम आंगन- घर- दुआरि लिखब
११११    १२२  ११  २११    ११   १२१   १११
बाध-बन- कलमबाग-बेख –बसबारि लिखब
२१  ११   १११२१    २१   ११२१    १११
इहो गजलक मतला मे ह्रस्वक नीचा ह्रस्व आ दीर्घक नीचा दीर्घ नै आएल अछि आ इ कोनो बहर मे नै अछि। इहो गजल मे जखन मतले बहर मे नै अछि तखन आन शेर सब पर विचार करबाक कोनो प्रयोजन नै अछि। एहि आधार पर इ निष्कर्ष निकलैए जे इहो गजल कोनो बहर मे नै अछि। एहि तरहेँ देखल जा सकैए जे दूनू गजलक बहर दुरूस्त नै छै। ऐठाँ ई बता दी की संयुक्ताक्षर सँ पूर्वक वर्ण दीर्घ मानल जाइए आ अनुस्वार बला वर्ण सेहो दीर्घ मानल जाइए।
गजलक विषयवस्तु नीक अछि। दोसर गजल "आजाद गजलक"क श्रेणी मे अछि आ पहिलुक गजल काफिया दोखक कारण गजल नै अछि। सादर।

Monday 2 April 2012

मैथिली गजल


मूर्ख दिवस (०१ अप्रैल) के अवसर पर हमर विशेष प्रस्तुति

मूर्ख दिवस पर पता चलल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।
आइ धरि इ कियो कहाँ कहल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।

जिनगीक चुल्हि मे जरि गेल सबटा कथा कविता आर गजल,
देखू एको शेर नै ठीक बनल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।

हमरा "फूल"* बूझि क' ओ फूल पठौलनि झुठक मुस्की मे सानल,
बूझलौँ ओकरे हृदय कमल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।

मुँह मे राम बगल मे छूरी .इ हमरा सँ कहियो नै सपरल,
बनि नै सकल हमर महल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।

सुनलौं सब ठाम खूब माखै छथि बुधियार टोलक रहबैया,
एहि दुनियाँ मे "ओम" मूर्खे भल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।
सरल वार्णिक २४ वर्ण
*एहिठाम "फूल" माने अंग्रेजीक फूल अर्थात मूर्ख।

Friday 30 March 2012

घोघ उठबैत मैथिली गजल


घोघ उठबैत मैथिली गजल
मैथिली गजलक पहिलुक प्रकाशित पोथी "उठा रहल घोघ तिमिर" पढबाक सौभाग्य भेंटल। ऐ गजल संग्रहक गजलकार श्री विभूति आनन्द छथि। एहि पोथी मे कुल चौंतीस गोट गजल अछि। पूरा पोथी केँ एकहि बैसार मे पढि गेलहुँ आ बेर-बेर पढलहुँ। सबसे पहिने हम श्री विभूति आनन्दजी केँ मैथिली गजलक पहिलुक संग्रह प्रकाशित करबा लेल धन्यवाद दैत छियैन्हि।
एहि पोथीक भूमिका मे गजलकार कहै छथि जे "मैथिलीक गजल सोझे-सोझ हिन्दी सँ प्रभावित अछि मुदा हिन्दी जकाँ जमल नञि अछि एखनो धरि।" आगू हुनकर कहनाई छैन्हि- "पारम्परिक व्याकरण सम्बन्धित अगणित त्रुटि सभ ठाम लक्षित होएत। ओना हम दुस्साहसपूर्वक साहस करैत रहलहुँ अछि जे कथ्य-सामंजस्य लए व्याकरण दिस सँ यदि मूँहो घूमा लेल जाए तँ कोनो हर्ज नञि। किए तँ हम मानैत छी जे ई पाठ्यक्रमक वस्तु नञि अछि। विद्यार्थी मूर्ख नञि बनत। तैं की ------------------------ व्याकरण सँ भयभीत भऽ नञि लिखल जाए।" गजलकारक पहिलुक कथनक सम्बन्ध मे हमर निवेदन अछि जे गजलक परम्परा अरबी-फारसी सँ शुरू भेल अछि आ ओतहि सँ आन भारतीय भाषा मे पसरल अछि। हिन्दी-उर्दू मे गजल कहबाक परम्परा मैथिली सँ पहिने शुरू भेल, तैं बहुसंख्य लोक दिग्भ्रमित भऽ जाइत छथि जे मैथिलीक गजल हिन्दी गजलक नकल छी वा ओइ सँ प्रभावित भेल अछि। गजलकार सेहो एहि मिथ्या धारणा सँ प्रभावित छथि। आब गजलक व्याकरण थोड-बहुत समन्जनक संग सब भाषा मे तँ एक्के रहत। ऐ स्थिति केँ हमरा हिसाबेँ "प्रभावित भेनाई" कहबाक कोनो औचित्य नै अछि। गजलकारक दोसर कथन देखि हम निराश भेल छी। पता नै किया एखन धरि जे दुनू गजल संग्रह (सबसँ पहिलुक आ सबसँ अंतिम प्रकाशित) पढलहुँ, एहि दुनू मे गजलकार कथ्य-सामंजस्यक आगू व्याकरण केँ कोनो मोजर नै देबऽ चाहैत छथि। एकटा गप मोन रखबाक चाही जे साहित्यक निर्माण वैयाकरणिक अनुशासनक बादे सफल भेल अछि। इ फराक गप अछि जे समय-काल आ स्थानक हिसाबेँ सर्वमान्य परिवर्तन व्याकरण मे होइत रहल छैक। बिना वैयाकरणिक अनुशासनक भाषा पढबा, लिखबा आ बाजबा जोग रहत? जिनका मे साहित्य निर्माणक माद्दा छैन्हि, हुनका मे व्याकरण केँ पालनक साहस अबस्स हेबाक चाही।
आब हम एहि संग्रहक गजलक सम्बन्ध मे किछु गप कहऽ चाहब। इ गजल संग्रह ओहि समय मे लिखल गेल अछि जखन मैथिली गजलक व्याकरण आ बहरक सम्बन्ध मे बहुत बेसी जनतब सार्वजनिक नै छल। हम एकरा एना कहऽ चाहब जे इ गजल संग्रह "अनचिन्हार आखर" जुग सँ पूर्वक गजल अछि जखन बहर, रदीफ आ काफियाक नियमक पालनक विषय मे बहुत रास गप सर्वजन सुलभ नै छल। एहि हिसाबेँ जँ ऐ संग्रहक गजल सभ मे बहरक दोख छैक तँ इ स्वभाविक बुझाईत अछि। एहि संग्रहक कोनो टा गजल कोनो बहर मे नै अछि। तैं ऐ संग्रहक वैध गजल (जाहि मे काफियाक नियमक पालन भेल हुए) सभ केँ "आजाद-गजल"क श्रेणी मे राखल जा सकैए। आब गजलक काफिया आ रदीफक सम्बन्ध मे किछु गप। एहि संग्रहक बहुत रास गजल मे काफिया आ रदीफक नियमक पालन भेल अछि। मुदा कएक गजल मे रदीफ आ काफियाक गलती अछि। जेना पृष्ठ चौदह पर मतला देखला पर बुझाईत अछि जे "इ मौसम" रदीफ अछि आ "लागैए" आओर "उलाबैए" काफियायुक्त शब्द अछि। मुदा दोसर शेर आ आगूक आन शेर मे एकर पालन नै भेल अछि आओर शेर सभ बिना रदीफक "अ" काफियायुक्त अछि। पृष्ठ पन्द्रह पर सेहो यैह दोख अछि, जाहि मे मतला मे रदीफ "कहाँ रहल"क प्रयोग अछि आ आन शेर सभ बिना रदीफक "अल" काफियायुक्त अछि। एहने दोख पृष्ठ सोलह मे देखल जा सकैत अछि, जतय मतला मे "करै छह" रदीफ मानल जयबाक चाही। ओना ऐ गजलक आन शेर सभ मे दू टा काफियाक सुन्नर प्रयोग अछि, जे नीक लागैए। हमरा हिसाबेँ काफियाक दोख पृष्ठ बीस, बाईस, चौबीस, पचीस, अट्ठाईस, उनतीस(संयुक्ताक्षर काफियाक नियमक दोख), बत्तीस आ सैंतीस मे सेहो अछि। एकर सबहक विस्तृत वर्णन देब हम अपेक्षित नै बूझि रहल छी, कियाक तँ इ हमर उद्देश्य कथमपि नै अछि। गजल संग्रहक सब गजलक विषय-वस्तु नीक अछि आ गजलकार अपन भावना नीक जकाँ प्रकट केने छथि।
किछु गजलक काफिया आ रदीफक दोख जँ कात कऽ कऽ देखी, तँ इ गजल-संग्रह एकटा नीक गजल-संग्रह अछि। गजलकारक गजल कहबाक क्षमता सेहो नीक बुझाईत अछि। हमरा ई अचरज लागि रहल अछि जे ऐ संग्रहक बाद गजलकारक दोसर गजल-संग्रह किया नै आएल अछि। एकर कारण तँ गजलकारे केँ पता हेतैन्हि, मुदा अपन अनुभवक आधार पर हम कहऽ चाहै छी जे श्री विभूति आनन्द नीक गजल लिख सकैत छथि। जँ बहरक विचार नै करी, तँ २०१२ मे आएल श्री अरविन्द ठाकुरजीक गजल-संग्रह सँ करीब एकतीस बर्ख पहिने १९८१ मे लिखल गेल एहि संग्रहक गजल सब उम्दा कहल जा सकैत अछि। एकर कारण इ जे एहि संग्रहक गजल सब मे काफियाक नियम-पालनक प्रतिशत वर्तमान समयक संग्रह सब सँ बेसी अछि। कथ्यक मजबूती सेहो नीक कोटिक अछि। खाली कुहरल तुकमिलानी केने गजल नै कहल जा सकैत अछि, इ गप एहि संग्रह केँ पढलाक बाद एखुनका गजलकार सभ केँ सेहो बुझेतन्हि, इ आशा अछि। इहो एकटा अचरजक विषय अछि जे जखन मैथिली मे नीक गजल एतेक साल पहिनो कहल गेल छल, तखन एकर बाद गजलक विकास-यात्रा पचीस-तीस बर्ख धरि कतऽ आ किया ठमकि गेल। बीचक अवधि मे मैथिली गजलक विकासक धार मे बान्ह किया बनि गेल छल, इ विचारणीय गप अछि। ओना आब इ बान्ह टूटि रहल अछि आ आशाक नब जोति मे मैथिली गजलक घोघ उठि रहल अछि।

बिहनि कथा


ढेपमारा गोसाईं
मोबाईलक अलार्मक घर-घरी सुनि कऽ मिश्राजीक निन्न टूटि गेलैन्हि। ओ मोबाईल दिस तकलाह आ अलार्म बन्न करैत फेर सुतबाक उपक्रम करऽ लागलाह। आ की कनियाँक कडगर आवाज कान मे ढुकलैन्हि- "यौ किया अनठा कऽ पडल छी? साढे पाँच बजै छै। उठू, नै तँ बच्चा सभ केँ इसकूल लेल के तैयार करओतैक। हम नस्ता बनाबै लेल जा रहल छी। भरि दिन तँ अहाँ आफिस मे कुर्सी तोडबे करै छी, कनी घरो पर धेआन दियौ।" मिश्राजी बिना कोनो विरोध केने पोस माननिहार माल जाल जकाँ चुपचाप बिछाओन सँ उतरि बाथरूम मे ढुकि गेलाह। निवृत भेलाक बाद बच्चा सब केँ उठाबऽ लगलाह। बच्चा सब हुनकर कुशल नेतृत्व मे इसकूल जयबा लेल तैयार हुए लागल। एकाएक बडका बेटा राजू बाजल- "पापा अहाँ हमर कापी आनलहुँ?" मिश्राजी- "नै, बिसरि गेलहुँ। काल्हि आफिस मे बड्ड काज छल।" राजू बाजल- "अहाँ तीन दिन सँ बिसरि रहल छी। रोज आफिसक काजक लाथे हमर कापी नै आबि रहल अछि। अहाँ केँ हमर काज मोन नै रहैए।" ओम्हर सँ कनियाँक स्वर भनसाघर सँ बहराएल- "इ तँ हिनकर पुरान आ पेटेण्ट बहाना अछि। घरक कोनो काज मे हिनकर कोनो अभिरूचि नै छैन्हि। आइ हम अपने तोहर कापी आनि देबह।" कहुना बच्चा सब केँ तैयार करा मिश्राजी बस-स्टाप धरि बच्चा सब केँ छोडि डेरा अएलाह तँ कनियाँ एकटा नमहर लिस्ट हाथ मे थमा देलखिन्ह। सब्जी, आटा, दूध आ आन वस्तु सबहक लिस्ट। मिश्राजी बजलाह- "कनी दम धरऽ दियऽ। हम बडद जकाँ भरि दिन लागल रहै छी, तइयो अहाँ सब केँ हमरे सँ सिकाईत रहैए।" कनियाँ कहलखिन्ह- "बियाहि कऽ अहाँ आनलहुँ आ सिकाईत करै लए भाडा पर लोक ताकी हम?" बेचारे मिश्राजी चुपचाप बाजार दिस ससरि गेलाह। बाट मे बाबूजीक फोन मोबाईल पर एलेन्हि- "हौ, मकानक देबाल नोनिया गेलैक। रंग करबाबै लए पाई कहिया पठेबहक?" मिश्राजी बिहुँसैत बजलाह- "अगिला मास पाई पठा सकब।" पिताजी खिसियाईत कहलखिन्ह- "कतेको मास सँ तौं अगिला मासक गप कहै छह। इ अगिला मास कहियो आओत की नै।" मिश्राजी केँ अपन गामक सीमान परहक ढेपमारा गोसाईं मोन पडि गेलैन्हि, जकरा पर सब कियो आबैत जाईत एकटा ढेपा फेंकि दैत छलै। हुनका बुझाइ लगलैन्हि जे ओ ढेपमारा गोसाईं भऽ चुकल छथि।
दस बजे मिश्राजी आफिस पहुँचलाह। कनी काल मे आफिसर अपना कक्ष मे बजा कऽ पूछलखिन्ह- "काल्हि एकटा अर्जेण्ट फाईल नोटिंग लए देने छलहुँ आ अहाँ बिना काज केने भागि गेलहुँ।" मिश्राजी- "सर, बिसरि गेलियै। एखन कऽ दैत छी।" आफिसर- "नित यैह बहाना रहैए। किछो यादि रहैए अहाँ केँ?" मिश्राजी सोचऽ लागलाह- "इहो नै छोडलक। कुर्सी पर बैसल अछि तँ हुकूमत देखबैए।" आफिसर हुनका चुप देखि कहलैथ- "की कोनो नब बहाना सोचै छी की? जाउ काज कऽ कऽ दियऽ।" मिश्राजी- "सर, कहलौं ने बिसरि गेल रही। तुरत कऽ दैत छी।" आफिसर- "अच्छा, रोज तँ यैह बहाना रहैए। किछो मोन रहैए की नै? अपन नाम तँ मोन हैत ने। की नाम अछि अहाँक श्रीमान विनय मिश्राजी।" मिश्राजीक मूँह सँ हरसट्ठे निकलल- "ढेपमारा गोसाईं।"

Tuesday 27 March 2012

बीहनि कथा


बीहनि कथा
स्पेशल परमिट
एक दिन सिनेमा देखबा लेल सिनेमा हाल सपरिवार गेल रही। ओतय सिनेमाघरक मैनेजर गाडी सँ उतरैत देरी स्वागत मे लागि गेल। ओ हमरा चिन्हैत छल। सिनेमा शुरू हएबा मे किछु देरी छल। ओ हमरा अपन कक्ष मे बैसा कऽ चाह-पान करबऽ लागल। सिनेमाक शो शुरू भेलाक बादो हाल मे बीच बीच मे नाश्ता पानी पूछैत रहल। हमर छोटकी बेटी इ सब अचरज सँ देखैत छल। सिनेमा समाप्त भेलाक बाद मैनेजर आदरपूर्वक हमरा गाडी तक अरियाइति देलक। डेराक बाट मे हमर छोटकी बेटी हमरा पूछलक- "पापा, इ मैनेजर अहाँक एतेक खातिर बात कियेक करै छल? ओतय तँ आरो लोक सब छल, मुदा ककरो दिस ताकबो नै करैत छल।" हम बजलहुँ- "बेटी, अहाँ नै बूझब। हमरा स्पेशल परमिट अछि।" छोटकी बाजल- "तखन तँ अहाँ केँ आरो ठाम इ स्पेशल परमिट भेंटैत हएत।" हम अपन बहादुरी मे कहलौं- "हाँ-हाँ, आरो ठाम भेंटैए।" ऐ पर छोटकी बाजल- "तखन काल्हि सँ हमरा अहाँ इसकूलक भीतर तक गाडी सँ छोडू। प्रसून नित्य गाडी सँ भीतर तक आबै छै आ बड्ड शान देखाबै छै। अहाँ तँ हमरा बाहरे गाडी सँ उतारि दैत छी।" हम सकपकाईत बजलौं- "बेटी प्रसून कलक्टरक बेटा अछि। कलक्टर केँ हमरा सँ पैघ स्पेशल परमिट भेंटल छैक। हमरा अहाँक इसकूलक स्पेशल परमिट नै भेंटल अछि।" छोटकी रूसि गेल आ कहलक- "नै अहाँ हमरा फूसि कहै छी। हमहुँ गाडी सँ इसकूलक भीतर तक जायब।" हम आब ओकरा की बूझैबतियेक। हम चुप रहि गेलौं।

मैथिली गजल


मोनक आस सदिखन बनि कऽ टूटैत अछि।
किछु एना कऽ जिनगी हमर बीतैत अछि।

मेघक घेर मे भेलै सुरूजो मलिन,
ऐ पर खुश भऽ देखू मेघ गरजैत अछि।

हम कोना कऽ बिसरब मधुर मिलनक घडी,
रहि-रहि यादि आबै, मोन तडपैत अछि।

देखै छी कते प्रलाप बिन मतलबक,
चुप अछि ठोढ, बाजै लेल कुहरैत अछि।

मुट्ठी मे धरै छी आगि दिन-राति हम,
जिद मे अपन, "ओम"क हाथ झरकैत अछि।
(बहरे-कबीर)

Friday 23 March 2012

बहुरूपिया रचना मे


गजल मे हम रूचि राखैत छी। संगहि मैथिली मे थोड बहुत गजल सेहो लिखै छी आ गजलक पोथी सब पढबाक इच्छा रहै ए। मैथिली मे बहुत कम गजल संग्रह अछि आ ओहो सुलभ नै होइत रहै ए। एहन परिस्थिति मे हमरा श्री अरविन्द ठाकुरजीक सद्यः प्रकाशित मैथिली गजल संग्रह "बहुरूपिया प्रदेश मे" पढबाक अवसर भेंटल आ हम एहि पोथी केँ आद्योपान्त पढलहुँ।

सबसे पहिने हम श्री अरविन्द ठाकुरजी केँ मैथिली गजलक पोथी लिखबाक लेल बधाई दैत छियैन्हि। मैथिली गजलक उत्थान लेल प्रत्येक डेग हमरा महत्वपूर्ण लागै ए। पोथीक गेट अप बड्ड सुन्नर अछि। टाईप आ कागतक कोटि सेहो उत्तम अछि। पोथीक भूमिका गजलकार अपने लिखने छथि आ ओहि मे गजल आ एहि संग्रहक सम्बन्ध मे बहुत रास गप सब कहने छथि। जेना पृष्ठ संख्या सातक दोसर पारा मे गजलकार कहैत छथि जे "मैथिलीक मिजाजक सीमा (इ मैथिलीक नहि, हमर अपन सीमा भऽ सकैत अछि) केँ देखैत गजलक व्याकरण (रदीफ, काफिया, मिसरा, मतला, मकता आदि)क स्थापित मापदंडक कसबट्टी पर हमर सभ गजल खरा उतरत तकर दाबी तऽ नहिए टा अछि बल्कि हम तँ इ सकारय चाहै छी जे--------------------------------- हमर सीमाक कारणेँ प्रस्तुत गजल मे कएक जगह सुधि पाठक लोकनि केँ त्रुटि भेटि सकैत छनि।" एहि पाराक अन्त मे ओ कहै छथि जे बहरक दोख किछु शेर मे भेटि सकैत अछि। हम गजलकारक सराहना करैत छी जे ओ भूमिका मे अपने कएक ठाम बहरक आ आन दोख हएब स्वीकार कएने छथि। पोथी केँ आद्योपान्त पढला पर हमरा इ नै बुझाएल जे एहि संग्रहक गजल सब कोन-कोन बहर मे लिखल गेल अछि। अरबीक कोनो टा बहर मे कोनो गजल नहिए अछि, मैथिली मे आइ-काल्हि प्रयुक्त होइ बला सरल वार्णिक बहर मे सेहो कोनो गजल नै अछि। गजलकार केँ प्रत्येक गजल मे इ लिखबाक चाही छल जे कोन बहर मे गजल लिखल गेल अछि। जँ इ "आजाद-गजल"क संग्रह थीक, तँ हुनका एहि बातक उल्लेख करबाक चाही छल। भूमिकाक उपरोक्त पाराक शुरू मे गजलकार कहै छथि जे मैथिलीक मिजाज केँ देखैत एहि मे उर्दू-हिन्दी गजलक मिजाजक नकल करबाक प्रयास कएल जाइत तँ एकरा बुधियारी नहिए टा कहल जायत आओर सफलता सेहो नहि भेंटत। हम हुनकर गप सँ सहमत छी जे नकल करब उचित नहि। मुदा एकटा गप हम कहऽ चाहैत छी जे प्रत्येक विधाक एकटा नियम होइत छै आओर जाहि क्षेत्र मे ओहि विधाक उदय भेल रहैत छै ओहि क्षेत्र मे स्थापित भेल नियमक पालन केने बिना कोनो रचना मूल विधा मे कोना भऽ सकैत अछि। जेना मैथिली मे समदाउन आ सोहरक परम्परा छैक आ जँ पंजाबी मे वा गुजराती मे वा की कोनो आन भाषा मे समदाउन आ सोहर गाबऽ चाही तँ नियम कोना बदलि जेतैक। जँ नियम बदलतै तँ ओ दोसर चीज भऽ जेतैक। तहिना गजल अरब क्षेत्र मे जन्म लेलक आ इ स्वाभाविक छै जे एकर नियम (व्याकरण) ओहि क्षेत्रक स्थापित मानदण्डक आधार पर बनल। स्थापित मानदण्डक पालन करब नकल नहि कहल जा सकैत अछि। आ जे नकलक गप करी तँ 'गजल' कहब अरबी-हिन्दीक नकल थीक। एक दिस गजलकार 'गजल' कहबाक लोभ नै छोडि रहल छथि आ दोसर दिस गजलक व्याकरणक नियम पालन केँ नकल कहै छथि, इ उचित नै बुझाएल। गजल स्थापित मानदण्ड पर जँ नै कहल गेल तँ रचना केँ गजलक स्थान पर दोसर नाम देल जा सकैत अछि।

पृष्ठ संख्या दस पर दोसर पारा मे गजलकार कहै छथि जे ओ जीवन सँ सिदहा लैत छथि। इ स्वागत योग्य गप भेल। जीवनक सिदहा सँ तैयार व्यंजन सोअदगर हेबे करतै। मुदा भोजन बनबै काल चाउरक सिदहा पानि मे सोझे फुला कऽ परसि देला सँ भात नहि कहाइत अछि। चाउरक सिदहा केँ अदहन मे देल जाइ छै तखन भात तैयार होइ छै। तहिना जीवनक सिदहा जँ व्याकरण, नियम आ चिन्तन-मननक अदहन मे पकाओल जाइत अछि तँ सोअदगर रचना भेटैत अछि। विधा विशेषक मापदण्ड तोडबाक क्रांतिकारी घोषणा कएला टा सँ किछु विशेष फायदा वा उमेद तँ नहिए जगै ए। जँ कियो मापदण्ड तोडै छथि, तँ मापदण्ड पर चलै बला केँ नकलची आ बाजीगर कहब उचित नहि। गजल आ फकरा आ दोहा मे थोडेक अन्तर तँ छै जे रहबे करतै। अस्तु, इ गजलकारक अपन विचार छैन्हि आ आब प्रकाशित सेहो छैन्हि।

गजल संग्रहक सब गजल पढलौं। विषय वस्तु सब नीके लागल। गजलक व्याकरणक आधार पर कहि सकैत छी जे बहरक दोख तँ प्रत्येक गजल मे छैक आ जँ इ आजाद-गजलक संग्रह थीक तँ गजलकार इ गप कतौ नै कहने छथि। गजलकार केँ स्पष्ट करबाक चाही छल जे कोन कोन बहर मे गजल सब लिखल गेल अछि। हमरा बुझने गजलक कोनो शीर्षक नै होइत अछि, मुदा प्रत्येक गजल केँ एकटा शीर्षक देल गेल अछि। बहरक अतिरिक्त रदीफ आ काफियाक नियमक सेहो कएक ठाम पालन नै भेल अछि आ इ गप गजलकार भूमिका मे सेहो स्वीकार कएने छथि। जेना पृष्ठ बाईस मे मतलाक दुनू पाँति, दोसर शेर आ पाँचम शेर मे काफिया मे 'आयब' प्रयोग भेल अछि, तँ दोसर आ चारिम शेर मे 'अब' क प्रयोग अछि। पृष्ठ चौबीस मे मतलाक पहिल पाँति मे काफिया मे 'अ' आयल अछि आ दोसर पाँति आ अन्य शेर मे 'आत' आयल अछि। पृष्ठ पच्चीस मे काफिया की छै, से नै बुझाएल। पृष्ठ तिरपन मे प्रत्येक पाँति मे काफिया एकदम फराक फराक अछि। पृष्ठ अनठाबन मे मतला, दोसर शेर आ चारिम शेर मे काफिया मे 'अल' प्रयुक्त अछि आ आन सब शेर मे काफिया मे 'अ' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ उनसठि मे सेहो रदीफ आ काफियाक स्पष्टता नै अछि। पृष्ठ छियासठि मे काफिया मे कतौ 'अल' आ कतौ 'आओल' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ सडसठि आ तिहत्तरि मे सेहो काफियाक नियमक उल्लंघन भेल अछि। तहिना संयुक्ताक्षर बला काफियाक नियम सेहो एक दू ठाम हमरा हिसाबेँ ठीक नै अछि। एकर अतिरिक्त आओर कएक ठाम काफियाक नियमक पालन नै भेल अछि। हम उदाहरण स्वरूप किछु पृष्ठक उल्लेख कएलहुँ। हमर इ उद्देश्य नै अछि जे खाली दोख ताकल जाय, मुदा जँ गजल कहै छियै तँ गजलक नियमक पालन हेबाक चाही। सब गोटे केँ जानकारी लेल इ बता दी की बिना रदीफक गजल तँ भऽ सकैत अछि, मुदा बिना दुरूस्त काफिया भेने गजल नै भऽ सकैत अछि।

भूमिका सँ एकटा बात आर स्पष्ट होइ ए जे गजलकार मई २००८ सँ मैथिली मे गजल लिखब शुरू केलथि, ओना ओ हिन्दी मे पहिनहुँ गजल लिखैत छलाह। एकर मतलब इ भेल जे गजलकार "अनचिन्हार आखर" (मैथिली गजल केँ समर्पित ब्लाग) सँ बहुत बाद मे मैथिली गजल लिखब शुरू कएने छथि आ मैथिली गजलक वरीयता मे बहुत बाद मे आयल छथि। "अनचिन्हार आखर" ब्लाग देखला सँ पता चलै छै जे गजलकार एहि ब्लाग पर सेहो अपन कएक टा गजल २००९ सँ एखन धरि देने छथि। ओ "अनचिन्हार आखर" ब्लाग सँ चिन्हार छथि, तैँ इ उमेद अछि जे एहि ब्लाग पर प्रकाशित मैथिली गजलक विस्तृत व्याकरण केँ जरूर देखने हेताह। इ उमेद छल जे प्रस्तुत गजल संग्रह मैथिली गजलक नब पीढी लेल एकटा उदाहरण बनत। मुदा एहि संग्रह मे गजलक व्याकरणक जे उपेक्षा भेल अछि, जे गजलकार भूमिका मे स्वयं स्वीकार कएने छथि, निराशा उत्पन्न करैत अछि। मुदा इ संग्रह गजलकारक पहिलुक मैथिली गजल संग्रह अछि, तैँ गजलक व्याकरणक गलती भेनाई स्वभाविक अछि। आशा व्यक्त करै छी जे हुनकर आगामी गजल संग्रह मैथिली गजल मे अपन अलग स्थान राखत।

गीत


बड्ड आस धेने हम एलौं शरण, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
रहऽ दियौ हमरा अपन चरण, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

लाल रंग अँचरी, लाले रंग टिकुली, माँ केर आसन लाले-लाल,
सिंहक सवारी शोभै, हाथ मे त्रिशूल, अहाँक चमकैए भाल।
करै छी वन्दना धरती सँ गगन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

आंगन नीपेलौं, अहाँक पीढी धोएलौं, छी फूल लेने ठाढ,
दियौ दरसन माँ, दुख करू संहार, भरू सुख सँ संसार।
अहीं कहू हम करी कोन जतन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

नै चाही अन धन, नै चाही जोबन, खाली शरण माँगै छी,
सुनू हमरो पुकार, भरू ज्ञानक भण्डार, एतबा वचन माँगै छी।
कहिया देबै अहाँ हमरा दर्शन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

जपै छी नाम अहींक, हम सब राति दिन, तकियौ एक बेर,
करू हमर उद्धार, लगाबू बेडा पार, नै ए कोनो कछेर।
अछि नोर भरल "ओम"क नयन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

Wednesday 21 March 2012

मैथिली गजल


जीनाइ भेलै महँग, एतय मरब सस्त छै।
महँगीक चाँगुर गडल, जेबी सभक पस्त छै।

जनता ढुकै भाँड मे, चिन्ता चुनावक बनल,
मुर्दा बनल लोक, नेता सब कते मस्त छै।

किछु नै कियो बाजि रहलै नंगटे नाच पर,
बेमार छै टोल, लागै पीलिया ग्रस्त छै।

खसि रहल देबाल नैतिकताक नित बाट मे,
आनक कहाँ, लोक अपने सोच मे मस्त छै।

चमकत कपारक सुरूजो, आस पूरत सभक,
चिन्तित किया "ओम" रहतै, भेल नै अस्त छै।
(बहरे-बसीत)

Sunday 11 March 2012

मैथिली गजल


धारक कात रहितो पियासल रहि गेल जिनगी हमर।
मोनक बात मोनहि रहल, दुख सहि गेल जिनगी हमर।

मुस्की हमर घर आस लेने आओत नै आब यौ,
पूरै छै कहाँ आस सबहक, कहि गेल जिनगी हमर।

सीखेलक इ दुनिया किला बचबै केर ढंगो मुदा,
बचबै मे किला अनकरे टा ढहि गेल जिनगी हमर।

पाथर बाट पर छी पडल, हमरा पूछलक नै कियो,
कोनो बन्न नाला जकाँ चुप बहि गेल जिनगी हमर।

जिनगी "ओम" बीतेलकै बीचहि धार औनाइते,
भेंटल नै कछेरो कतौ, बस दहि गेल जिनगी हमर।
(बहरे मुक्तजिब)

Friday 9 March 2012

निर्मोहिया (कथा)


हुनकर नाम छल सदानन्द मंडल। माता-पिता हुनका सदन कहैत छलखिन्ह। हुनका नेनपने सँ नाटक-नौटंकी सब मे पार्ट लेबाक शौक छलैन्हि। कनी कऽ कविता शेर सब मे सेहो हुनका मोन लागैत रहैन्हि। ओ अपन उपनाम निर्मोही राखि लेने छलैथ। नाम पूछबा पर अपन नाम सदन निर्मोही बताबैत छलाह। शनैः-शनैः हुनकर नाम निर्मोही जी, निर्मोही आ निर्मोहिया प्रसिद्ध भऽ गेल छलैन्हि। घर-परिवारक लोकक अलावे दोस्त महिम सब हुनका निर्मोही नाम सँ जानऽ लागल छल। हुनकर एकटा बाल सखा छलैथ जिनकर नाम छल घूरन सदा। घूरन सेहो निर्मोही जकाँ नाटक कविताक शौकीन छलाह आ एहि सब मे भाग लैत छलाह। ओ अपन नाम दीवाना राखने छलाह। निर्मोही-दीवानाक जोडी पूरा परोपट्टा मे प्रसिद्ध छल। दुर्गा पूजा मे गाम मे नाटक बिना निर्मोही-दीवाना केर सम्भव नै छल। कोनो आयोजन हुए वा ककरो एहिठाम बरियाती आबै आ की कतौ अष्टजाम होय, सबठाँ निर्मोही आ दीवानाक उपस्थिति परम आवश्यक रहै। निर्मोही-दीवाना गामक लेल नौशाद, खैय्याम, रफी, मुकेश, किशोर आदि सब छलाह। जखने गाम मे कोनो सान्स्कृतिक कार्यक्रम होय की लोक जल्दी सँ जा कऽ अगिला सीट लेबाक कोशिश करैत छल जाहि सँ निर्मोही-दीवानाक नीक जकाँ देख सकल जाइ। कहै केर इ तात्पर्य की निर्मोही आ दीवाना सबहक मनोरंजनक पूर्त्ति करैत छलाह। नाटकक आयोजन मे उद्घोषक जखने कहै की आब निर्मोही दीवाना मन्च पर आबि रहल छथि की तालीक गडगडी सँ पूरा आकाश बडी काल धरि गनगनाईत रहै छल। मन्च पर आबैत देरी दुनू गोटे जनता केँ नमस्कार कऽ कए शुरू करैत छलाह- "हम छी निर्मोही-दीवाना, सब दुख सँ अनजाना, लऽ कए आबि गेल छी, मनोरंजनक खजाना।" आ की लोक ताली बजबय लागै। तकर बाद फिल्मी गाना, पैरोडी, कविता, शाईरी आदि सँ ओ दुनू गोटे पूरा मनोरंजन करैत छलखिन्ह। तहिना गाम मे कोनो बरियाती आबै तऽ इ दुनू गोटे ओहि दरबज्जा पर पहुँचि जाइ छलाह। हुनकर सबहक इ सेवा निशुल्क रहैत छल। कियो भोजन करा दैत छल, तऽ ठीक, नै तऽ कोनो बात नै। हिनकर सबहक कोनो माँग नै छलैन्हि। नेनपने सँ हमरा मोन मे हिनका सबहक प्रति बड्ड आदर छल। हिनकर सबहक निस्वार्थ सेवा देखि हमरा सदिखन यैह लागल जे इ सब सही मे साधु छथि। हिनका सबहक परिवारक खर्चा कहुना कऽ चलैत छल। कखनो माता-पिताक हुथनाइ आ कखनो कनियाँक बात कथा। मुदा हिनका सब पर कोनो असर नै छल। साँझ होइत देरी दुनू मुखियाजीक पोखरिक भिंडा पर आबि जाइत छलाह, जतय पहिने सँ छौंडा आ जुआन सब हिनकर सबहक प्रतीक्षा मे बैसल रहैत छलाह। तकर बाद शुरू भऽ जाइत छल मुशायरा इ शायर-द्वय केर।

समयक गाडी तेजी सँ भागैत रहल। हम पढि कऽ किरानीक नौकरी करऽ लागलौं। गाम एनाई कम भऽ गेल। शुरु मे तऽ नियम बना कऽ होली, दुर्गा पूजा, छठि मे आबैत रहलौं। बाद मे इहो एनाई जेनाई बड्ड कम भऽ गेल। गाम मे धीरे धीरे सब किछ बदलि गेल। नाटकक चलन सेहो खतम भेल जाईत छल। ओकर बदला मे थेटर आ बाईजीक चलन बढल जाईत छल। बरियातीक स्वागत सत्कार मे अपनैतीक स्थान पर यान्त्रीकरण जकाँ बेबहार हुए लागल छल। निर्मोही आ दीवानाक पूछनिहारक संख्या सेहो घटल जाईत छल। घूरन सदा अपन परिवारक दारूण स्थिति देखि नौकरीक जोगाड मे लागि गेलाह आ कहुना कऽ एकटा प्राइवेट प्रेस मे दरिभंगा मे नौकरी करऽ लागलाह। ओ अपन बाल सखा सदानन्द मंडल उर्फ सदन निर्मोही केँ सेहो लऽ जेबाक प्रयास केलखिन्ह, मुदा निर्मोही नहि गेलथि। निर्मोहीक स्थिति आरो खराप भेल गेल आ तमाकूलक खर्ची तक निकलनाई भारी हुअ लागल। मुदा निर्मोही अपन कविता शाईरीक शौक नै छोडलैन्हि। एक बेर दुर्गा पूजा मे गाम एलहुँ। साँझ मे मेला घूमै लेल गेलौं। पता चलल जे एहि बेर एकटा पैघ थेटर आयल अछि। हम कक्का सँ निर्मोहीजी दिया पूछलियैन्हि। कक्का कहलथि जे ओ बताह भऽ गेल छथि। कतौ कोनटा मे ठाढ भऽ कऽ अपन बडबडाईत हेताह। हम चारू कात ताकऽ लागलौं। देखलौं जे मेलाक एकटा अन्हार कोन मे ओ वीर रसक कविता पूरा जोश मे पाठ करैत छलाह आ बच्चा सब हुनकर चारू कात घेरा बना कऽ ताली बजबैत छल। हम लग गेलौं। निर्मोहीजीक दाढी पूरा बढल छल। आँखि मे काँची, उजडल केश, फाटल कुरता.... हमर मोन करूणा सँ भरि गेल। हम गोर लागलियैन्हि आ पूछलियैन्हि- "कक्का चिन्हलौं?" ओ हमरा धेआन सँ देखि बजलाह- "अहाँ ओम थीकौं ने।" हम- "अहाँ अपन की हाल बना लेने छी। काकी आ बच्चा सबहक की हाल?" निर्मोही- "यौ सब कहुना कऽ जीबि रहल छै। खेनाईक जोगाड कहुना भऽ जाईत अछि।" हम- "कविता शाईरीक की हाल?" निर्मोही- "कियो पूछनिहार तऽ रहल नै। बस अपने रचना करैत छी आ नित्य साँझ मे पोखरिक भिंडा पर जा कऽ असगरे पाठ करैत छी। लोक बताह कहैत ए। सब बुडिबक छथि। साहित्य आ रचनाक महत्व की बूझताह।" हम- "कोनो नौकरी नै केलियै अहाँ?" निर्मोही- "हमर जन्म नौकरी करबा लेल नै भेल अछि। हम अपन जिनगी गीत-संगीत आ शाईरीक नाम लिख देने छी।" हम- "इ तऽ ठीक अछि। मुदा काकी आ बच्चा सभक तऽ सोचियौ।" निर्मोही- "अरे सभक देखनिहार भगवान छथि। भगवान सभक जोगाड करथिन्ह।" हमरा रहल नै गेल आ हम किछ आर्थिक मदति करबाक कोशिश केलौं, मुदा ओ लेबा सँ मनाही कऽ देलथि। कहलथि- "अहाँक चाह पीबि लेलौं, बस वैह बहुत अछि। हमरा कोनो मदति नै चाही।" हम हुनका सँ अनुमति लऽ कऽ मेला सँ गाम दिस चललहुँ। सोचऽ लागलहुँ जे इ कोन बतहपनी भेल। परिवारक विषय मे नै सोचबाक छलैन्हि तऽ बियाह किया केलाह निर्मोही जी। फेर इहो सोचऽ लागलौं की समाजक लोक मनोरंजन तऽ चाहै छथि, मुदा मनोरंजन पर पाई नै खर्च करऽ चाहै छथि, से किया। नीक सँ नीक कलाकार जँ अपन कोनो रोजगार नै करै तऽ भूखले मरि जाईत ए। समाज एहन निर्मोही कियाक अछि। जे कहियो सबहक तालीक केन्द्र रहैत छलाह, से आब सब केँ बताह किया बूझा रहल छथिन्ह। यैह सब सोचैत हम निर्मोहीजीक आंगन पहुँचि गेलौं। आंगन मे हुनकर कनियाँ बैसि कऽ तरकारी काटै छलीह। हम गोर लागैत कहलियैन्हि- "काकी की हाल चाल?" ओ फाटल आँचर सँ अपन माथ झाँपैत कहलथि- "कहुना कऽ जीबि रहल छी बउआ। तेहेन निर्मोही सँ बाबू बियाह करा देलथि, जिनका पर-परिवारक कोनो मोह नै छैन्हि।" हम- "काकी, कक्का तऽ साहित्य संगीत मे लागल छथि। हुनका एना निर्मोही जूनि कहू।" काकी- "जँ एहन गप अछि तँ साहित्ये संगीत सँ बियाह किया नै कऽ लेलथि? दू टा बेटा जुआन भऽ कऽ कतौ पलदारी करैत छैन्हि। बेटी केँ बियाहक कोनो चिन्ता नहि। एहन कोन साहित्य प्रेम? हमर ससुर बीमार भऽ कऽ दवाईक अभाव मे तडपि तडपि कऽ मरि गेलाह। हुनकर मरलाक बाद ओ केश आ दाढियो नै कटेलथि। इ कोन बतहपनी भेलै?" हम ओतय सँ चलि देलहुँ। सोचऽ लागलौं जे सब लेल ओ निर्मोही आ हुनका लेल सब निर्मोही।

समयक पहिया घूमैत रहल। १० बरख बीत गेल। गरमी छुट्टी मे बच्चा सब केँ लऽ कऽ गाम आयल छलहुँ। एक दिन दलान पर बैसल छलहुँ की रमन भाई कहैत अयलाह- "निर्मोही गोल भऽ गेलाह। किछ दिन सँ बिछौन धेने छलाह। कोनो गम्भीर रोग सँ पीडित भऽ गेल छलाह।" हम रमन भाईक संग निर्मोही जीक दलान पर गेलौं। ओतुक्का दृश्य बड्ड कारूणिक छल। काकी उठा उठा देह पटकै छलीह आ कानैत छलीह इ बाजि बाजि जे जिनगी भरि निर्मोहिया रहलौं आ आइयो निर्मोहिया बनि उडि गेलौं। हम आंगन मे पडल लहाश केँ देखलहुँ। बाँसक चचरी पर सदानन्द मंडल उर्फ सदन निर्मोही उर्फ निर्मोहिया शांति सँ पडल छलथि। एकदम शांत, बिना कोनो मोह केँ दीर्घ विश्राम मे छलाह निर्मोही जी। पूरा गाम ओतय जुटल छल आ निर्मोहीक संगीत कविताक चर्चा करैत छल। हम दलानक कोठरी मे गेलहुँ जतय निर्मोही रहै छलाह। एकटा टूटलाहा काठक अलमीरा मे हुनक हाथ सँ लिखल ढेरी पाण्डुलिपि पडल छल। किछ दीमक सँ खाएल छल आ किछ कागतक सियाही पसरि गेल छलै। हुनकर सिरमा तर मे एकटा कागत छल जै पर किछ लिखल छल। इ हुनकर अन्तिम रचना छल, जे पूरा नै छल। ऐ मे लिखल छलः-
इ जग छै निर्मोही, बन्धन तोडि कऽ उडि जाउ।
आब नै घूमू, कियो कतबो कहै जे घुरि जाउ।.............................................................................

Friday 2 March 2012

मैथिली गजल


करेज घँसै सँ साजक राग निखरै छै।
बिना धुनने तुरक नै ताग निखरै छै।

अहाँ मस्त अपने मे आन धिपल दुख सँ,
जँ लोकक दर्द बाँटब, लाग निखरै छै।

इ दुनिया मेहनतिक गुलाम छै सदिखन,
बहै घाम जखन, सुतल भाग निखरै छै।

हक बढै केर छै सबहक, इ नै छीनू,
बढत सब गाछ, तखने बाग निखरै छै।

कटऽ दियौ "ओम"क मुडी आब दुनिया ले,
जँ गाम बचै झुकै सँ, तँ पाग निखरै छै।
(बहरे-हजज)

Sunday 26 February 2012

कविता


मनुक्ख (कविता)
जिनगीक कैनभस पर,
अपन कर्मक कूची सँ,
चित्र बनेबा मे अपस्याँत मनुक्ख,
भरिसक आइयो अपन हेबाक
अर्थ खोजि रहल अछि।

हजारो-लाखो बरख सँ,
बहैत इ जिनगीक धार,
कतेक बिडरो केँ छाती मे नुकेने,
भरिसक आइयो अपन सृजनक
अर्थ खोजि रहल अछि।

राजतन्त्र सँ प्रजातन्त्र धरि,
ऊँच-नीचक गहीर खाधि,
सुरसाक मुँह जकाँ बढले अछि,
भरिसक आइयो इ तन्त्र सभक
अर्थ खोजि रहल अछि।

कखनो करेजक बरियारी,
कखनो मोनक राज सहैत,
बढले जाइ छै मनुक्खक जिनगी,
भरिसक आइयो मोन आ करेजक
अर्थ खोजि रहल अछि।

मैथिली गजल


कहैए राति सुनि लिअ सजन, आइ अहाँ तँ जेबाक जिद जूनि करू।
इ दुनियाक डर फन्दा बनल, इ बहाना बनेबाक जिद जूनि करू।

अहाँ बिन सून पडल भवन बलम, रूसल किया हमरा सँ हमर मदन,
अहाँ नै यौ मुरूत बनि कऽ रहू, हमरा हरेबाक जिद जूनि करू।

इ चानक पसरल इजोत नस-नस मे ढुकल, मोनक नेह छै जागल,
सिनेह सँ सींचल हमर नयन कहल, अहाँ कनेबाक जिद जूनि करू।

अहाँ प्रेम हमर जुग-जुग सँ बनल, हम खोलि कहब अहाँ सँ कहिया धरि,
अहाँ संकेत बूझू, सदिखन इ गप केँ कहेबाक जिद जूनि करू।

कहै छै मोन "ओम"क पाँति भरल प्रेम सँ, सुनि अहाँ चुप किया छी,
इ नोत कते हम पठैब, उनटा गंगा बहेबाक जिद जूनि करू।
(बहरे-हजज)

Thursday 23 February 2012

मैथिली गजल


हमर मुस्कीक तर झाँपल करेजक दर्द देखलक नहि इ जमाना।
सिनेहक चोट मारूक छल पीडा जकर बूझलक नहि इ जमाना।

हमर हालत पर कहाँ नोर खसबैक फुरसति ककरो रहल कखनो,
कहैत रहल अहाँ छी बेसम्हार, मुदा सम्हारलक नहि इ जमाना।

करैत रहल उघार प्रेमक इ दर्द भरल करेज हमरा सगरो,
हमर घावक तँ चुटकी लैत रहल, कखनहुँ झाँपलक नहि इ जमाना।

मरूभूमि दुनिया लागैत रहल, सिनेहक बिला गेल धार कतौ,
करेज तँ माँगलक दू ठोप टा प्रेमक, किछ सुनलक नहि इ जमाना।

कियो "ओम"क सिनेहक बूझतै कहियो सनेस पता कहाँ इ चलै,
करेजक हमर टुकडी छींटल, मुदा देखि जोडलक नहि इ जमाना।
(बहरे-हजज)

Tuesday 21 February 2012

रूबाइ


कोना कऽ रंगलक करेज केँ इ रंगरेज, रंग छूटै नै।
नैन पियासल छोडि गेल, मुदा आस मिलनक टूटै नै।
हमरा छोडि तडपैत पिया अपने जा बसला मोरंग,
बूझथि विरहक नै मोल, भाग्य इ ककरो एना फूटै नै।

Monday 20 February 2012

गीत


शिवरात्रिक अवसर पर एकटा प्रस्तुति-

गौरी रहि-रहि देखथि बाट, कखन एता भोलेनाथ।

आंगन मे मैना कानि रहल छथि,
मुनि नारद केँ कोसि रहल छथि।
ताकि अनलाह केहन बर बौराह,
गौराक जिनगी भेल आब तबाह।
मैना पीटै छथि अपन माथ, कखन एता....................

भूत-बेतालक लागल अछि मेला,
प्रेत पिशाचक अछि ठेलम ठेला।
पूडी पकवान कियो नै तकै छै,
सब भाँग धथूरक खोज करै छै।
कियो नंगटे, कियो ओढने टाट, कखन एता...................

कोना कऽ गौरी अपन सासुर बसतीह,
विषधर साँप सँ कोना कऽ बचतीह।
पिताक घरक छलीह जे बनल रानी,
कोना लगेतीह आब ओ बडदक सानी।
आब तऽ किछ नै रहलै हाथ, कखन एता.....................

गौरीक मोनक आस आइ पूरा हएत,
बर बनि अयलाह शम्भू त्रिभुवन नाथ।
जगज्जननी माँ गौरी शंकर छथि स्वामी,
जग उद्धारक शिव छथि अन्तर्यामी।
फेरियो हमरो माथ पर हाथ, कखन एता.......................

"ओम" बुझाबै, सुनू हे मैना महारानी,
इ छथि जगतक स्वामी औढरदानी।
भोला नाथक छथि नाथ कहाबथि,
सबहक ओ बिगडल काज बनाबथि।
शिव छथि एहि सृष्टि केर नाथ, कखन एता...................

मैथिली गजल


कतौ बैसार मे जँ अहाँक बात चलल।
तँ हमर करेज मे ठंढा बसात चलल।

विरह देख हमर झरल पात सब गाछ सँ,
सनेस प्रेमक लऽ गाछक इ पात चलल।

मदन-मुस्की सँ भरल अहाँक अछि चितवन,
करेजक दुखक भारी बोझ कात चलल।

बुझाबी मोन केँ कतबो, इ नै मानै,
अहीं लेल सब आइ धरि शह-मात चलल।

छल घर हमर इजोत सँ भरल जे सदिखन,
जखन गेलौं अहाँ, "ओम"क परात चलल।
(बहरे हजज)

मैथिली गजल


किछ हमर मोन आइ बस कहऽ चाहै ए।
अहींक बनि कऽ सदिखन तँ इ रहऽ चाहै ए।

इ लाली ठोरक तँ अछि जानलेवा यै,
अछि इ धार रसगर, संग बहऽ चाहै ए।

अहाँ काजर लगा कऽ अन्हार केने छी,
बरखत सिनेह घन कखन दहऽ चाहै ए।

अहाँ फेंकू नहि इ मारूक सन मुस्की,
बिना मोल हमर करेज ढहऽ चाहै ए।

बिन अहाँ "ओम"क सुखो छै दुख बरोबरि,
सब दुख अहाँक इ करेज सहऽ चाहै ए।
(बहरे-हजज)

Wednesday 15 February 2012

गहीर आँखिक व्यथा (कथा)


आइ-काल्हि शहरी मध्यवर्गक भोरका रूटीन सब ठाम एक्के रहै ए। चाहे ओ छोट शहर हुए वा महानगर। जँ घर मे स्कूल जाइवाला बच्चा आछि तँ भोरे-भोर उठू आ बच्चा केँ तैयारी मे लागि जाउ। एक नजरि घडी दिस रहै छै जे कहीं लेट नै भऽ जाइ। बस स्टाप पर अलगे भीड आ जे अपने सँ स्कूल पहुँचाबै छथि, हुनकर सभक भीड स्कूल गेट पर। कम बेसी सभ शहरक हाल एहने रहै ए। भागलपुर सेहो एहि सब सँ फराक नै छै। भोर मे सात बजे सँ लऽ कऽ साढे आठ बजे तक सौंसे ट्रैफिक जाम आ भीड भाड रहै छै। संजोग सँ हमहुँ एहि भीड भाडक एकटा हिस्सा रहै छी। छोटकी बेटी केँ स्कूल पहुँचेबाक हमरे ड्यूटी रहै ए। अलार्म लगा कऽ भोरे भोर छह बजे उठि जाइ छी। जौं छह सँ आगू सुतल रहलौं, तँ श्रीमतीजीक सुभाषितानि शुरू भऽ जाइ छै जे हे देखियौ आइ स्कूल छोडेलखिन्ह। जखन सात पर घडीक काँटा आबि जाइ ए तखन हबड हबड बेटीक डैन पकडने स्कूल दिस भागै छी आ जँ समय पर गेटक भीतर ढुका देलियै, तँ बुझाइत अछि जे दुनिया जीत लेलौं। इ तँ भेल नित्यक कार्यक्रम। आब किछ विशेष। स्कूलक इलाका मे नित्य भोरे बहुत रास अभिभावकक जुटान हेबाक कारणेँ गपक छोट छोट ढेरी टोल बनल रहै ए। सभक अपन अपन ग्रुप छै आ इ ग्रुप सभक जुटान हेबा लेल ढेरी चाह आ पानक दोकान सभ सेहो। अस्तु, तँ हमरो एकटा ग्रुप बनि गेल अछि, जाहि मे ब्लाक वाला ठाकुरजी, कालेजक प्रोफेसर दासजी, पोस्ट आफिस वाला शर्माजी, कपडा दोकान वाला मोहन सेठ, सर्वे वाला मेहताजी आ आरो किछ गोटे शामिल छथि। हम सब नित्य बच्चा केँ स्कूल छोडलाक बाद ओतुक्का घनश्यामक चाह दोकान पर जुटै छी आ चाहक संग भरि पोख गपक सेहो रसास्वादन करै छी। निजी समस्या सँ लऽ कऽ देशक राजनीति, अमेरिकाक दादागीरी, सचिनक सेनचुरी, आर्थिक समस्या, टूटल रोड, बिजलीक कमी, मँहगीक मारि, कम दरमाहा आदि बहुते विषय सब पर नित्य अंतहीन बहस होइत रहै ए। कहियो काल जँ बेसी लेट भऽ जाइ ए तँ घरनीक तामस सँ भरल फोन हमर सभक सभा भंग कऽ दैत ए। कखनो कऽ मोबाईल फोन पर तामसो होइ ए जे केहन सुन्नर बहस चलै छल आ बहसक असमय मृत्यु भऽ जाइ ए एकटा फोन काल पर। खैर इ भेल हमर भोरका नित्य कार्य। आब हम मूल कथा दिस बढै छी।

घनश्यामक चाह दोकान पर एकटा छोट बच्चा काज करै छल। नाम छलै बिनोद आ हमरा सब लेल ओ छल छोटू। घनश्याम कहै छलै बिनोदबा। इ बिनोद, बिनोदबा वा छोटू जे कहियै दस बरखक हएत। एक दिन बहसक विषय वस्तु छल चाइल्ड लेबर। हम सब अपन चिन्ता प्रकट करै छलौं। ठाकुरजी बजलाह जे यौ ऐ दोकान मे जतय छाह पीबै छी सेहो एकटा बाल मजदूर काज करै ए। एकाएक हमरा सभक धेआन छोटू पर चलि गेल। एतेक दिन सँ इ गप नजरि मे किया नै आबै छल, यैह सोचऽ लगलौं। ठाकुरजी घनश्याम केँ कहलखिन्ह जे बाउ इ गलती काज केने छी अहाँ। पुलिस पकडत आ मोकदमा सेहो हएत। घनश्याम बाजल जे अहाँ जूनि चिन्ता करू। हमर पूरा सेटिंग अछि। लेबर आफिसक बडा बाबू हमर ग्राहक छथि आ कोतवालीक दरोगा सेहो एतय आबै छथि। आइ तक तँ किछ नै कहलाह आ आगू देखल जेतै। हम बजलौं- "से तँ ठीक ए, मुदा इ कहू जे एते छोट बच्चा सँ काज करेनाई अहाँ के नीक लगै ए।" घनश्याम- "जखन एकर बापे केँ नीक लगै छै तखन हमरा की जाइ ए। तीन सय टाका महीनवारी दय छियै।"

हम धेआन सँ बिनोद केँ देखलौं। ओकर आँखि बड्ड गहीर छलै। कोनो सुखायल सपना जकाँ ओकर आँखि मे काँची सुखा कऽ सटल छलै। हमर हृदय करूणा सँ भरि गेल। हमरा रहल नै गेल। हम ओकरा लग बजेलियै आ पूछलियै- "बउआ कोन गाम घर छौ।" बिनोद बाजल- "हम्मे जगतपुरो केँ छियै।" हम- "बाबूक की नाम ए।" बिनोद- "हमरो बाबूरो नाम जीबछ दास छै।" हम- "पढै नै छी अहाँ? किया काज करै छी?।" बिनोद- "हमरो बाबू कहलकौं जे काम नै करभीं, त घरो मे चूल्ही नै जरथौं। ऐ सँ हम्मे काम पकडी लेलियै।" हम- "हम अहाँक बाबू सँ भेंट करऽ चाहै छी।" बिनोद ताबत हमरा सँ नीक जकाँ गप करऽ लागल छल आ मुस्की दैत कहलक- "हमरो बाबू आज अइथौं। थोडा देर रूकी जा, भेंट होइ जेथौं।"

हम ओतै बिलमि गेलौं। कनी काल मे कनियाँ फोन केलथि- "आइ आफिस नै जेबाक ए।" हम- "बस आधा घण्टा मे आबै छी।" कनियाँ- "इ महफिल आ चौकडी अहाँ केँ बरबादे कऽ कऽ छोडत। जे फुराइ ए सैह करू।" हम देखलौं जे मण्डलीक सब सदस्यक मोबाईल टुनटुनाईत छल। खैर कनी कालक बाद एकटा दीन हीन व्यक्ति दोकान पर आयल। बिनोद कहलक- "हमरो बाबू आबी गेल्हौं। जे गप करना छौं, करी लए।" हम ओहि व्यक्ति सँ पूछलौं- "अहीं जीबछ दास थिकौं।" ओ बाजल- "जी मालिक। केहनौ खोजी रहलौं छलियै हमरा।" हम- "अहाँ अपन छोट बच्चा सँ मजदूरी कियाक करबै छियै? ओकर पढै लिखैक उमरि छै। आओर सरकारी कानून सेहो बनि गेल अछि जे अहाँ बच्चा सँ मजदूरी नै करा सकै छी।" जीबछ- "अरे मालिक सरकारो की करतै? फाँसी लटकाय देतै? घरो रहतै त भूखले मरी जेतै।" हम- "कतेक बाल बच्चा अछि अहाँक?" जीबछ- "पाँच गो बेटा औरो दू गो बेटी छै।" हम- "ककरो पढबै छियै की नै?" जिबछ बिहुँसैत कहलक- "पहीले खाना पीना पूरा होतै तभें नी पढाई होतै।" हम- "एते जनसंख्या कियाक बढेने छी?" जीबछ- "आब होइ गेलै त की करभौं। हमे भी बच्चा मे मजदूरीये केलियौं मालिक। हमरा और के भाग मे यही लिखलो छौं।" हम- "देखू जे भेल से भेल। बच्चा केँ मजदूरी छोडाउ आ स्कूल मे भर्ती करू। सरकार दुपहरियाक खेनाई सेहो दै छै। नै तँ हम लेबर विभाग मे खबरि कऽ देब। कनी एक बेर बिनोदक आँखिक सपना दिस देखियौ। ओकर की दोख छै? कमे अवस्था मे केहन लागै छै। अहाँक दया नामक वस्तु नै ए की? अहींक बच्चा थीक। सरकारक ढेरी योजना छै। अहाँ लोन लऽ सकै छी। अपन कारोबार कऽ सकै छी। नरेगा मे रोजगारक गारण्टी छै। इंदिरा आवास मे मकान लऽ सकैत छी।" पता नै हम की सब कहैत चलि गेलौं। हमरा चुप भेलाक बाद जीबछ बाजल- "मालिक अपने सब ठीके कहलियै। लेकिन सबे जगहो पर कमीशनो खोजै छै। हमे कहाँ से देभौं कमीशन। ढेरी इनक्वाइरी औरो चिट्ठी पतरी होइ छौं। एतना लिखा पढी औरो दौडा दौडी हमरा से नै सपरथौं।" हम- "ठीक छै, एखन तँ हम जाइ छी, मुदा अहाँ केँ जे कहलौं से करब आ कोनो दिक्कत हएत तँ हमरा सँ भेंट करब। हम अहाँक चिट्ठी बना देब आ जतय कहऽ पडत कहि देब।" फेर हम घर चलि गेलौं। सभा विसर्जित भऽ गेल छल।

दोसर दिन जखन स्कूल गेलौं, तँ फेर सँ घनश्यामक दोकान पर चाहक जुटान भेल। आइ बिनोद दोकान पर नै छल। हम गर्व सँ बाजलौं- "देखलियै बिनोदक मुक्ति भऽ गेल। आब ओकर गहीर आँखिक सपना फेर सँ हरिआ जाएत।" घनश्याम कहलक- "नै सर, बिनोदबाक बाप अहाँ सब सँ डरि गेल आ हमरा ओतय सँ हटा लेलक। कहै छल जे कहीं साहब सब पकडबा नै दैथ, तैं एकरा कोनो दोसर ठाम रखबा दैत छियै।" हम अवाक रहि गेलौं। बिनोदक गहीर आँखिक सपना हमरा नजरिक सामने ठाढ भेल हमरा पर हँसि कऽ कहै छल- "सब सपना पूरा होइ लेल थोडे होई छै। किछ सपनाक अकाल मृत्यु भऽ जाइ छै। हमरो अकाल मृत्यु भऽ गेल अछि। अहाँ व्यर्थ हमरा जीयेबाक प्रयास कऽ रहल छी।" हम हताश भऽ गेलौं। ओहि दिन सँ बिनोद केँ बहुत ताकलियै, मुदा पूरा भागलपुर मे ओ कतौ नै भेंटल। बच्चा सबहक बडा दिनक छुट्टी मे एकटा भाडाक गाडी सँ गाम जाइ छलौं। बाट मे नारायणपुर मे चाह पीबा लेल गाडी रोकलौं, तँ देखै छी जे बिनोद ओहि चाहक दोकान पर काज करैत छल। हम ओकरा दिस बढलौं की ओ जोर सँ कानऽ लागल। दोकानक मालिक हमरा कहलक- "बच्चा केँ किया डरबै छियै?" हम- "नै डरबै नै छियै। हम ओकरा जानै छियै।" दोकानक मालिक- "से तँ हम देखिये रहल छी। चुपचाप चाह पीबू आ अपन गाम दिस जाउ।" ताबत कनियाँ सेहो आबि गेली आ कहऽ लागली- "अहाँ केँ बताह हेबा मे आब कोनो कसरि नै रहि गेल। चलू तँ चुपचाप।" हम देखलौं जे बिनोद कतौ नुका गेल छल अपन गहीर आँखिक सपना समेटने आ हम चुप भऽ गाडी मे बैसि गेलौं।

मैथिली गजल


बाहरक शत्रु हारि गेल मुदा मोन एखनहुँ कारी अछि।
नांगरि नहि कटा कऽ मुडी कटबै कऽ हमर बेमारी अछि।

तेल सँ पोसने सींग रखै छी व्यर्थ कोना हम होबय देबै,
खुट्टा अपन गाडब ओतै जतऽ सभक सँझिया बाडी अछि।

पेट भरल अछि तैं खूब भेजा चलै ए, नै तऽ हम थोथ छी,
ढोलक कियो बजाबै, मस्त भेल बाजैत हमर थारी अछि।

जीतबा लेल ढेरी रण बाँचल, एखन कहाँ निचेन हम,
केहनो इ व्यूह होय, टूटबे करतै जँ पूरा तैयारी अछि।

डाह-घृणा केँ अहाँ कात करू, इ अस्त्र शस्त्र नै कमजोरी छै,
आउ सब ओहिठाम जतय रहै "ओम" प्रेम-पुजारी अछि।
सरल वार्णिक बहर वर्ण २२

Tuesday 14 February 2012

मैथिली गजल


मधुर साँझक इ बाट तकैत कहुना कऽ जिनगी बीतैत रहल हमर।
पहिल निन्नक बनि कऽ सपना सदिखन इ आस टा टूटैत रहल हमर।

कछेरक नाव कोनो हमर हिस्सा मे कहाँ रहल कहियो कखनो,
सदिखन इ नाव जिनगीक अपने मँझधार मे डूबैत रहल हमर।

करेज हमर छलै झाँपल बरफ सँ, कियो कहाँ देखलक अंगोरा,
इ बासी रीत दुनियाक बुझि कऽ करेज नहुँ नहुँ सुनगैत रहल हमर।

रहै ए चान आकाश, कखनो उतरल कहाँ आंगन हमर देखू,
जखन देखलक छाहरि, चान मोन तँ ओकरे बूझैत रहल हमर।

अहाँ कहने छलौं जिनगीक निर्दय बाट मे संग रहब हमर यौ,
अहाँक गप हम बिसरलहुँ नहि, मोन रहि रहि ओ छूबैत रहल हमर।
मफाईलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) - ५ बेर प्रत्येक पाँति मे।

Friday 10 February 2012

मैथिली गजल


चढल फागुन हमर मोन बड्ड मस्त भेल छै।
पिया बूझै किया नै संकेत केहन बकलेल छै।

रस सँ भरल ठोर हुनकर करै ए बेकल,
तइयो हम छी पियासल जिनगी लागै जेल छै।

कोयली मधुर गीत सुना दग्ध केलक करेज,
निर्मोही हमर प्रेम निवेदन केँ बूझै खेल छै।

मद चुबै आमक मज्जर सँ निशाँ चढै हमरा,
रोकू जुनि इ कहि जे नै हमर अहाँक मेल छै।

प्रेमक रंग अबीर सँ भरलौं हम पिचकारी,
छूटत नै इ रंग, ऐ मे करेजक रंग देल छै।
सरल वार्णिक बहर वर्ण १८
फागुनक अवसर पर विशेष प्रस्तुति।

Tuesday 7 February 2012

मैथिली गजल


चलल बाण एहन इ नैनक अहाँक, मरलौं हम।
सुनगल इ करेज हमर सिनेह सँ बस जरलौं हम।

भिडत आबि हमरा सँ, औकाति ककरो कहाँ छै,
जखन-जखन लडलौं, हरदम अपने सँ लडलौं हम।

हम उजडल बस्ती बनल छी अहाँक इ सिनेह सँ,
सिनेहक नगर मे सदिखन बसि-बसि उजडलौं हम।

हम तँ देखबै छी अपन जोर मुँहदुब्बरे पर,
कियो जँ कमजोर छल, पीचि कऽ बहुत अकडलौं हम।

अहाँ डरि-डरि कऽ देखलौं जाहि धार दिस सुनि लिअ,
सब दिन उफनल एहने धार मे उतरलौं हम।
फऊलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)--- ५ बेर प्रत्येक पाँति मे।

Monday 6 February 2012

मैथिली गजल


अहाँ केँ हमर इ करेज बिसरत कोना।
छवि बसल मोन मे आब झहरत कोना।

हवा सेहो सुगंधक लेल तऽ जरूरी,
बिन हवा फूलक सुगंध पसरत कोना।

अहीं टा नै, इ दुनिया छै पियासल यौ,
बिन बजेने इ चान घर उतरत कोना।

जवानी होइ ए नाव बिन पतवारक,
कहू पतवारक बिना इ सम्हरत कोना।

हमर मोन ककरो लेल पजरै नै ए,
बनल छै पाथर करेज पजरत कोना।
मफाईलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) ३ बेर प्रत्येक पाँति मे।

Friday 3 February 2012

मैथिली गजल


अन्हारक की सुख बुझथिन इ इजोतक गाम मे सदिखन रहै वाला।
दुखे केँ सुख बना लेलक करेजक घातक दुख चुपे सहै वाला।

जमानाक नजरिक खिस्सा बनल ए आब तऽ करेज हमर सुनू यौ,
हुनकर नजरि कहाँ देखलक हमर करेजक इ शोणित बहै वाला।

कहै छै लाजक नुआ मे मुँह नुकौने रहल दुनियाक डर सँ अपन,
इ रीत अछि दुनियाक, तऽ एतऽ किछ सँ किछ कहबे करतै कहै वाला।

करू नै प्रकट अपन सिनेह मोनक, यैह हमरा ओ कहैत रहल,
किया हम राखब उठा केँ समाजक जर्जर रिवाज इ ढहै वाला।

अहाँ डेग अपन उठेबे करब कहियो हमर मोनक दुआरि दिसक,
बहुत "ओम"क बहल नोर, दुखक गरम धार मे गाम इ दहै वाला।
मफाईलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) ५ बेर प्रत्येक पाँति मे।

Monday 30 January 2012

मैथिली गजल


कुशल आबि देख लिअ, एतऽ सबटा आँखि नोर सँ भरल छै।
विकास कतऽ भेलै, विकासक दिस इ बाट चोर सँ भरल छै।

चिडै सभ कतौ गेल की, मोर घूमैत अछि गाम सगरो,
इ बगुला तँ पंख अछि रंगि कऽ, सभा वैह मोर सँ भरल छै।

सब नजरि पियासल छल तकैत आकाश चानक दरस केँ,
निकलतै इ चान कहिया, आसक धरा चकोर सँ भरल छै।

उजाही उठल गाम मे, नै कनै छै करेज ककरो यौ,
हमर गाम एखनहुँ खुश गीत गाबैत ठोर सँ भरल छै।

कहै छल कियो गौर वर्णक गौरवक एहन अन्हार इ,
सब दिस तँ अछि स्याह मोन जखन इ भूमि गोर सँ भरल छै।
फऊलुन(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)- ६ बेर प्रत्येक पाँति मे

Friday 27 January 2012

मैथिली गजल


कहि कऽ नै मोनक हम तँ बड्ड भेल तबाह छी बाबू।
कहब जे मोनक, अहीं बाजब हम बताह छी बाबू।

हुनकर गप हम रहलौं जे सुनैत तँ बनल नीक छलौं,
गप हुनकर हम नै सुनल, कहथि हम कटाह छी बाबू।

सदिखन रहलथि मूतैत अपने आगि सभ केँ दबने,
हम कनी डोलि गेलौं, ओ कहै अगिलाह छी बाबू।

बनल छल काँचक गिलास हुनके मोनक विचार सुनू,
इ अनघोल सगरो भेलै हम तँ टुनकाह छी बाबू।

सचक रहि गेल नै जुग, सच कहि कऽ हम छी बनल बुरबक,
गप कहल साँच तऽ अहीं कहब "ओम" धराह छी बाबू।
(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ)--- ४ बेर

Monday 23 January 2012

मैथिली गजल


टूटि-टूटि क' हम त' जोडाइत रहै छी।
मोनक विचार सुनि पतियाइत रहै छी।

गौरवे आन्हर पडल अपने घरारी,
सदिखन मुँह उठा क' अगधाइत रहै छी।

हाट मे प्रेमक खरीद करै सब किया,
बूझि नै, आब त' हम बिकाइत रहै छी।

फहरतै झंडा हमर सब दिस हवा मे,
एहि आसेँ खूब फहराइत रहै छी।

"ओम"क कपार पर कानि क' की करत ओ,
फूसियों हम ताकि औनाइत रहै छी।

Tuesday 17 January 2012

मैथिली गजल


मुस्की सँ झाँपि रखने छी जरल करेज अपन।
सब सँ नुकेने छी दुख भरल करेज अपन।

दिल्लगी करै लेल चाही एकटा जीबैत करेज,
ककरा परसियै हम मरल करेज अपन।

मोहक जुन्ना मे बान्हल हम जोताईत रहै छी,
देखैत रहै छी माया मे गडल करेज अपन।

कियो देखै नै, तैं केने छी करेज केँ ताला मे बन्न,
देखबियै ककरा आब डरल करेज अपन।

कोनो गप पर नै चिहुँकै आब करेज "ओम"क,
अपने सँ हम घोंटै छी ठरल करेज अपन।
---------------- वर्ण १८ ---------------

Thursday 12 January 2012

मैथिली गजल


कखनो छूबि दियौ हमरो फुलवारीक फूल बूझि क'।
किया केने छी यै कात हमरा करेजक शूल बूझि क'।

हमरा सँ नीक झूलनियाँ, जे बनल अहाँक सिहन्ता,
हमरो दिस फेरू नजरि झूलनियाँक झूल बूझि क'।

अहाँक नैनक मस्ती बनल प्रेमक पोथी सब लेल,
हमहुँ पढब प्रेम-पाठ अहाँ सँ इसकूल बूझि क'।

बहत प्रेमक पवित्र धार, करेज बनत संगम,
प्रेम छै पूजा, नै छोडू एकरा जिनगीक भूल बूझि क'।

प्रेमक घर अहाँक अछि किया फूजल केवाडी बिना,
ठोकि लियौ "ओम"क प्रेम ओहि केवाडीक चूल बूझि क'।
----------------------- वर्ण २० -----------------------

Wednesday 11 January 2012

मैथिली गजल


हम सब पूछी अहाँ सँ एकेटा सवाल, किछ बाजू ने।
अहाँ केलियै किया देशक एहेन हाल, किछ बाजू ने।

आसक धार मे हेलैत मनुक्खक कोनो हेतै कछेर,
आस पूरत, कहियो एतै एहन साल, किछ बाजू ने।

भूखल आँखिक नोर सुखा केँ बनि गेल अछि यौ नून,
वादाक अचार चटा, करब कते ताल, किछ बाजू ने।

कदम ताल करै सँ कतौ देशक भ्रष्टाचार मेटेतै,
गुमस बेसी हेतै त' भ' जैत यौ बवाल, किछ बाजू ने।

राशन होय की शासन अहाँ सभ ठाँ पेंच लगौने छी,
कर जोडि कहै ए "ओम", तोडू इ जंजाल, किछ बाजू ने।
------------------- वर्ण २० ---------------------

मैथिली गजल


जिनगीक गीत अहाँ सदिखन गाबैत रहू।
एहिना इ राग अहाँ अपन सुनाबैत रहू।

ककरो कहै सँ कहाँ सरगम रूकै कखनो,
कहियो कियो सुनबे करत बजाबैत रहू।

खनकैत पायल रातिक तडपाबै हमरा,
हम मोन मारि कते दिन धरि दाबैत रहू।

हमरा कहै छथि जे फुरसति नै भेंटल यौ,
घर नै, अहाँ कखनो सपनहुँ आबैत रहू।

सुनियौ कहै इ करेजक दहकै भाव कनी,
कखनो त' नैन सँ देखि हिय जुराबैत रहू।
------------- वर्ण १७ ---------------

Thursday 5 January 2012

मैथिली गजल


करेज मे काढल छै अहाँक छवि, नै मेटैत कखनो।
मोन मे बन्न अहाँक प्रेम कियो कोना चोरैत कखनो।

अहाँ खुश रहू यैह छै आब हमर दर्दक इलाज,
इ दर्द फुरसति मे हमर करेज सुनैत कखनो।

असगर बैसल अहाँक यादि मे हम हँसि लैत छी,
हँसीक राज भेंटला सँ हमर मोन बतैत कखनो।

मोन मे बसल अहाँक छवि नै भीजै, तैं नै कानैत छी,
मुदा रोकी कते, अहाँक यादि हमरा कनैत कखनो।

एक बेर कहि दितिये अहाँ हमरे लेल बनल छी,
गीत प्रेमक "ओम"क मोन हँसि गुनगुनैत कखनो।
--------- सरल वार्णिक बहर वर्ण २० ----------

Tuesday 3 January 2012

मैथिली गजल


आबि गेलै बहुत मस्ती थोड़बे पीबि कऽ।
आब डोलै सगर बस्ती थोड़बे पीबि कऽ।

जे करी, की करत थौआ भेल छै लोकक,
खूब हेतै जबरदस्ती थोड़बे पीबि कऽ।

चोरबा केँ चलल डंटा, साधु बैसै चुप,
हैत आगू मटर-गश्ती थोड़बे पीबि कऽ।

बाजबै जे मुँहक छै, चाहे कहू मातल,
की कहू छै मुँहक सस्ती थोड़बे पीबि कऽ।

आब नेता बनि खजाना लूटबै देशक,
"ओम" केँ की बढल हस्ती थोड़बे पीबि कऽ।
------------- वर्ण १५ ----------------
वर्ण क्रम I U I I U U U I I I U I I U U

Monday 2 January 2012

मैथिली गजल

केहन मीठ विरह मे झोरि गेलौं अहाँ हमरा।
नोरक झोर विकट छै बोरि गेलौं अहाँ हमरा।

नीक कहै छल सभ ठाँ, फूल भेंटै छलै सगरो,
आब कहै हम वहशी, घोरि गेलौं अहाँ हमरा।

लोक बजै छल हमरा प्रेम मे जोडि देल अहाँ,
टूटल टाट बनल छी, तोडि गेलौं अहाँ हमरा।

देल करेज अपन सौंसे अहाँ केर हाथ प्रिये,
सौंस करेजक टुकडी छोडि गेलौं अहाँ हमरा।

"ओम"क मोन बुझलकै नै, बनेलौं अहाँ घिरनी,
नाच करी बनि घिरनी, गोडि गेलौं अहाँ हमरा।
------------------ वर्ण १८ ----------------

Sunday 1 January 2012

मैथिली गजल


नबका बर्खक नब उमंग सगरो छै।
खुशी जतबा ओम्हर ओतबा एम्हरो छै।

बर्ख-बर्ख सँ दुख सँ छौंकल सब आत्मा,
हेतै तृप्त जरूर, इ उमेद हमरो छै।

नब बर्ख बनै प्रेम-नाव दुख-धार मे,
सब प्रेम करू, बिसरू कोनो झगडो छै।

बन्न करियौ नै उत्सव ऊँच अटारी मे,
असंख्य भूखल आँखि, सिहन्ता ओकरो छै।

असल आजादी भेंटै, यैह "ओम"क दुआ,
बिला जाइ भ्रष्ट आचरण जे ककरो छै।
--------------- वर्ण १५ -------------