Monday 2 April 2012

मैथिली गजल


मूर्ख दिवस (०१ अप्रैल) के अवसर पर हमर विशेष प्रस्तुति

मूर्ख दिवस पर पता चलल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।
आइ धरि इ कियो कहाँ कहल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।

जिनगीक चुल्हि मे जरि गेल सबटा कथा कविता आर गजल,
देखू एको शेर नै ठीक बनल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।

हमरा "फूल"* बूझि क' ओ फूल पठौलनि झुठक मुस्की मे सानल,
बूझलौँ ओकरे हृदय कमल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।

मुँह मे राम बगल मे छूरी .इ हमरा सँ कहियो नै सपरल,
बनि नै सकल हमर महल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।

सुनलौं सब ठाम खूब माखै छथि बुधियार टोलक रहबैया,
एहि दुनियाँ मे "ओम" मूर्खे भल, हम सब सँ बड़का मूर्ख थिकौँ।
सरल वार्णिक २४ वर्ण
*एहिठाम "फूल" माने अंग्रेजीक फूल अर्थात मूर्ख।

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