एक कविता प्रस्तुत हैः-
अधूरी प्यास की गाथा क्या सुनाऊँ मैं।
सुलगते विचारों की गर्मी से हलकान हूँ,
निर्जीव संबंधों के वार से लहूलुहान हूँ,
अपने बनाये बंदिशों से परेशान हूँ,
रूँधे हुए कण्ठ से कब तक गाऊँ मैं।
अधूरी प्यास.........................................
'बेहतर' की उम्मीद में 'अच्छा' छूटता गया,
दिल की धडकनों से दिल ही टूटता गया,
जिसे समझा अपना वो ही लूटता गया,
क्षितिज की आस में यूँ ही चलता जाऊँ मैं।
अधूरी प्यास............................................
- ओम प्रकाश।
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