Wednesday 21 September 2011

मैथिली गजल


डेग दैत पूरब अहाँ पच्छिम पताइत छी।
चढल मस्ती जवानी के अहाँ अगधाइत छी।

बिना पुजारी के मन्दिरक शोभा नै भावै अछि,
हम छी प्रेम-पुजारी अहाँ नै पतियाइत छी।

नैनक इशारा सँ जे अहाँ किछ कहि देलियै,
ओ सभक सोझाँ सुनाबै मे किया लजाइत छी।

संकेत अहाँ के हम अपन प्रेमक पठेलौं,
कहलौं अहाँ, देखू किया एना भसियाइत छी।

"ओम" लुटेने अछि पूरा जिनगी अहीं पर यै,
मोन-आँगन मे रहियौ किया खिसियाइत छी।

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