Wednesday 28 September 2016

बीहनि कथा

जस जस सुरसा बदनु बढ़ाबा
रामलाल आइ बड्ड खुश छल। कंपनी ओकर दरमाहा बीस हजारसँ बढ़ा क' बाईस हजार क' देलकै। ओ कनी मधुर कीनलक आ घर आबि ई सूचना अपन घरनीकेँ देलक। घरनी खुश होइत बाजलीह -"ई तँ बड्ड नीक भेल। दुनू बच्चाक इसकूलक फीस अही माससँ दू दू सय टका बढ़ा देलकैए। हमर होली आ दीवाली दुनूकेँ साड़ी बकियौता अछि। माँजीक दवाय पछिला मास नै कीनाएल छल सेहो कीना जेतैक। बनियाक बकियौता सेहो........."...
"हे यै चुप रहू।" रामलाल घरनीकेँ बीचहिमे टोकलनि-"एखन धरि अहाँ तीन हजारसँ ऊपरक खरचा जोड़ा देलौं, जखन की दरमाहा दूइये हजार बढ़ल अछि।"
घरनी कहलकनि-"एखन तँ आरो खरचा सब छै।"
रामलाल चुप भ' मूड़ी पर हाथ ध' बैसि रहलाह। हुनका रामचरितमानसक चौपाई मोन पड़ि गेलनि-
जस-जस सुरसा बदनु बढ़ाबा
तासु दुगुन कपि रूप देखाबा

-ओम प्रकाश

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