O. P. Jha
Thursday, 5 November 2015
रुबाई
बहैत धार हमर जिनगी आ कछेर अहाँ
सुनबै छी जिनगीक तान बेर बेर अहाँ
आँखि मूनल रहै वा फूजले रहै हमर
हमर सपनामे कएने छी घरेर अहाँ
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