Wednesday, 8 March 2017

गजल

गमक' लागलै बसंती हवा
चहक' लागलै बसंती हवा
करेजाक टीस बढ़बै हमर
चमक' लागलै बसंती हवा
चलल झूमि मस्त हाथी जकाँ
बहक' लागलै बसंती हवा
अगिनबाण मारलक बीच हिय
दहक' लागलै बसंती हवा
चिड़ै गीत गाब' लागल मधुर
ठहक' लागलै बसंती हवा
मात्राक्रम (1-2-2, 1-2) दू बेर प्रत्येक पाँतिमे।
-ओम प्रकाश

गजल

पायल एक बेर झनझना तँ दियौ
चूड़ी एक बेर खनखना तँ दियौ
शब्दक बान्ह आइ टूटबे करतै
आँचर एक बेर सनसना तँ दियौ
मुस्की ठोर तर दबा क' नै रखियौ
दुनिया एक बेर गनगना तँ दियौ
एखन धरि करेज सूतले रहलै
आबो एक बेर हनहना तँ दियौ
'ओम'क मोन बाट जोहि थाकल छै
घंटी एक बेर घनघना तँ दियौ
2-2-2-1, 2-1-2, 1-2-1, 1-2

गजल

कहियो तँ ई बात हेतै
जिनगीसँ शह मात हेतै
तांडव शुरू भेल फेरसँ
दू, पाँच की सात हेतै
ऐ गाछकेँ काटि देलक
नै आब नब पात हेतै
छै राति कारी भयावह
कहियो कतौ प्रात हेतै
'ओम'क गजल नै सुनू यौ
सुर-ताल-लय कात हेतै
-ओम प्रकाश
मात्राक्रम अछि 2-2-1-2, 2-1-2-2 प्रत्येक पाँतिमे एक बेर। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

कविता

उन्मुक्त विचारक धार
छेक लेलक कोनो बान्ह
लकवाग्रस्त भेल मोन
सुरविहीन संगीतक
वाद्य भेल अछि जेना
पाथरो लजाइत अछि
देखि करेजक ताल
आबो मोनक मोर
नाचैए पंख पसारि
मुदा अपने रचल
विचारक जंगलमे
आओर प्रस्तुत करैए
तमाशा वएह पुरान सन
जकर नायकक मूँह
झमाएल अछि
सुखाएल अछि
सुर ताल मिलबैत
जिनगीक शुष्क संगीतसँ।
-ओम प्रकाश

गजल

सिनेहक धधरा पजरल किए नै
उछेहक सागर उमड़ल किए नै
किछो नै रहलौं हम आब ओकर
तखन ओ हमरा बिसरल किए नै
कतेको धक्का सहि सहि बचल छै
नगर ई यादिक उजड़ल किए नै
हमर आँखिसँ खूनक नोर झहरै
हुनक छवि मोनसँ ससरल किए नै
जरै छी हम दिन आ राति सदिखन
करेजा 'ओम'क कुहरल किए नै
-ओम प्रकाश
मात्राक्रम अछि 1-2-2-2, 2-2-2, 1-2-2 प्रत्येक पाँतिमे एक बेर। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

Wednesday, 28 September 2016

बीहनि कथा

सामंत
साहेब आफिससँ निकलि क' कतौ जाइत छलाह। चपरासी हुनकर वातानुकूलित कक्षक दरबज्जा खोलि क' ठाढ़ भ' गेल। दोसर चपरासी हुनकर बैग ल' कए चलल। बाहर बत्ती लागल कार लागल छल। कारक चालक कारक गेट खोलि ठाढ़ छल। अप्पन कक्षसँ कार धरि पच्चीस मीटरक दूरी साहेब पाँच मिनटमे पहुँचि गेलाह।ओतबा दूरमे कतेको मुलाजिम ठाढ़ छल आ सलामी ठोकने जा रहल छल।साहेब मूड़ी हिला क' जबाब दैत कार धरि गेला आ शानसँ गाड़ीमे बैसि गेला। कार ओतयसँ चलि क' शहरक टाउन हाल पहुँचल। साहेब गाड़ीसँ उतरलाह तँ ढ़ेरी लोक सलामी ठोकै...त आगाँ पाछाँ करैत हुनका भीतर ल' कए चलि गेल। आइ ओतय "सामंतवादक प्रभाव आ नब सामंतवाद" विषयपर एकटा गोष्ठी छल आ साहेब मुख्य अतिथि छलाह।सामंतवादक दुष्प्रभाव आ ओकर आतंकसँ जकड़ल समाजकेँ नब रस्ता देखेबा लेल साहेबक भाषणक प्रतीक्षामे हुनकर जिंदाबादक नारासँ पूरा हाल गुंजायमान भ' गेल।
-ओम प्रकाश

बीहनि कथा

जस जस सुरसा बदनु बढ़ाबा
रामलाल आइ बड्ड खुश छल। कंपनी ओकर दरमाहा बीस हजारसँ बढ़ा क' बाईस हजार क' देलकै। ओ कनी मधुर कीनलक आ घर आबि ई सूचना अपन घरनीकेँ देलक। घरनी खुश होइत बाजलीह -"ई तँ बड्ड नीक भेल। दुनू बच्चाक इसकूलक फीस अही माससँ दू दू सय टका बढ़ा देलकैए। हमर होली आ दीवाली दुनूकेँ साड़ी बकियौता अछि। माँजीक दवाय पछिला मास नै कीनाएल छल सेहो कीना जेतैक। बनियाक बकियौता सेहो........."...
"हे यै चुप रहू।" रामलाल घरनीकेँ बीचहिमे टोकलनि-"एखन धरि अहाँ तीन हजारसँ ऊपरक खरचा जोड़ा देलौं, जखन की दरमाहा दूइये हजार बढ़ल अछि।"
घरनी कहलकनि-"एखन तँ आरो खरचा सब छै।"
रामलाल चुप भ' मूड़ी पर हाथ ध' बैसि रहलाह। हुनका रामचरितमानसक चौपाई मोन पड़ि गेलनि-
जस-जस सुरसा बदनु बढ़ाबा
तासु दुगुन कपि रूप देखाबा

-ओम प्रकाश

Thursday, 30 June 2016

गजल

कुछ दर्द भी जिन्दगी में शामिल चाहिए
मजा आएगा, बस राह मुश्किल चाहिए
कैसे जानोगे तुम मेरे दिल के दर्द को
महसूस करने को एक दिल चाहिए
गजल ही काफी नहीं है शायर के लिए
उसको सुनने को भी महफिल चाहिए
चल पड़ा हूँ मैं तो क्षितिज के राह पर
जिद है मेरी कि मुझको मंजिल चाहिए
अपने सर को रखूँ कांधे पर किसी के
मुझको कांधा भी तो ऐसा काबिल चाहिए

गजल

आज मैं अपने लिखे एक मैथिली गजल का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ। शायद आप लोगों को पसंद आ जाए।
भीख नहीं, मुझको अपना अधिकार चाहिए
मेरे कर्म से जो बने, उपहार चाहिए
कान खोल कर रखना पड़ेगा हर पल
सुन सके जो सबकी वो सरकार चाहिए
प्रेम ही है सब रोगों की दवा यहाँ पर
दुख से बोझिल मन को उपचार चाहिए
मन की इच्छा अभी पूरी न हुई है
मेरे मन की राह को मनुहार चाहिए
दरबार करेगा 'ओम' सदा आपका
स्नेह फूल से सजा हुआ दरबार चाहिए

गजल

ढूँढते हुए जिन्दगी का पता हम खुद लापता हो गए
महफिल में थे शायर हम ही, सारे शेर फ़ना हो गए
उनको छूने की ललक ऐसी हुई हमको दोस्तों
भूल के मंजिल का पता, क्या से क्या हो गए
मेरे शहर में अब सूरज की किरणें मद्धिम हुईं हैं
आँखों से बरसते सावन ही नभ की घटा हो गए
जिसने सीखा नहीं सज़दे में कभी सर को झुकाना
आज बन्दों से घिर कर सारे जग के ख़ुदा हो गए
थी रौशन चिरागों से ये महफिल "ओम" की बहुत
आग भड़की ऐसी कि ये महफिल चिता हो गए
-ओम प्रकाश

शायरी

इजहार-ए-मुहब्बत का तरीका ना आया
मुझको कभी जीने का सलीका ना आया

शायरी

समझते रहे सवाल मुझे तुम, पर मैं एक जवाब हूँ
मेरा नशा कहाँ समझोगे, बोतल में बंद शराब हूँ
अच्छे बुरे की पैमाईश में व्यर्थ करूँ क्यों खुद को
तेरी नज़र के सदके जाऊँ, जिसने कहा खराब हूँ

गजल

पी लेते हैं तेरी आँखों से सुबह शाम
हमें भला इस दारू से है क्या काम
बोतल की मय को बंद कर दो अब
पीना ही है तो पियो आँखों के जाम
जिगर को जलाया करते थे खुद ही
अब ये जिगर कर दो उनके नाम
करते थे कभी जो मय से दिल्लगी
बैठ कर जपिये अल्लाह या राम
बस मुहब्बत ही चाहिए यहाँ "ओम"
नहीं चाहिए मुझे कोई ताम झाम
बिहार में लागू हुए शराबबन्दी को समर्पित।

गजल

कभी तो पास आओ जिन्दगी
आँखों से मुस्कुराओ जिन्दगी
उलझे हुए विचारों से हैरान हूँ
इसको जरा सुलझाओ जिन्दगी
मेरे अंदर हैं सवालों के गोले
जवाब तुम ही बताओ जिन्दगी
तड़पता सदियों से हूँ तेरे लिए
अब ना मुझे तड़पाओ जिन्दगी
"ओम" के होम से हो यदि राजी
आकर ये भी कर जाओ जिन्दगी
ओम प्रकाश

मन का बात

जहिया भागलपुर से पटना या पटना से भागलपुर ट्रेन से जर्नी करते हैं ना तो कुछ बात हर जर्नी में कौमन होती है। जैसे ठसमठस पसिन्जर, रिजर्वेशन बौगी में जेनरल टिकट या बिना टिकट का पसिन्जर, औरडिनरी पास लेकर ए सी बौगी में सफर करते रेलवे करमचारी, ई सब देख के कुढ़ते हुए बोनाफाईड पसिन्जर, बीच बीच में भैकम आदि आदि। सच तो ई है कि आब जिस दिन ई सब में से कोनो बात नै होता है तो हम डर जाते हैं कि कहीं हम सूतले सूतले बिहार से बाहर तो नै चल गए। देखिए ई सब बात जो ट्रेन में होता है, ई सब के पीछु लौजिक है ने भाय। तखनियो कुछ लोग ई बात नै समझते हैं और सुधार का बात करने लगते हैं फोकट में। देखिए ई सब चीज से फायदा ये होता है कि बिना एडभरटाईजमेंटे के ई बूझे में आ जाता है कि बिहार के इलाका शुरू हो गया है। अपना एडभरटाईजमेंट करने में हरजा का है। हमनियो का तो अपना ब्रांड है भाई। भैकम ठीक से काम करता है कि नै इहो जाँच हो जाता है फ्री में। रिजर्वेशन बौगी में जेनरल टिकट ले के चढ़िए तो आधा पैसा ले के टी टी साहब बैठा के लैइये जाते हैं। ई तो अच्छा है ना जी। पसिन्जरवन के भी आधा पैसा में ए सी का मजा आ जाता है अउर टी टी साहब लोग के घर खरचा निकल जाता है। अब रेलवे तो समुन्दर है, एक लोटा पानिए खींच लिया तो का हो गया। एक बात तो है जकर प्रशंसा होना चाहिए कि यदि आपके पास रिजर्वेशन है तो आपको बैठने के लिए एक बित्ता जगह मिलिए जाता है। कभी कभी ऊपर का बात सब यू पी में भी देखाई पड़ता है लेकिन इस मामला में ब्रांड अमबसडर हमही लोग हैं जी। हम ई पोस्टवा के माध्यम से तमाम बेटिकट यात्री सब के साथ साथ बिहार के इलाके में ट्रेन में चलने वाले टी टी लोग के डंडवत करते हैं काहे कि पैसा बचत के साथ साथ अपना ब्रांड भी ई लोग बचा के रखने का अमोल काम कर रहे हैं। ई हमरा मोन का बात था जो आपलोगों से शेयर कर लिए। कोई गोसाइयेगा नै।