Thursday, 30 June 2016

विहनि कथा

विहनि कथा
विछोहक नोर
पछिला साल कोचिंग करै लेल बेटीक नाम कोटामे लिखौने छलौं। जखन ओकरा कोटामे छोड़ि क' आबैत रही तखन ओ बड्ड उदास छल। ओकरा बुझेलियै जे हम नियमित रूप सँ आबि भेंट करैत रहबै। मुदा नौकरीक झमेलामे फुरसति नै भेंटल आ हम कहियो नै जा सकलौं। साल पूरा भेला पर ओ डेढ़ मासक छुट्टी पर गाम आएल छल। ऐ बेर ओकरा कोटा छोड़ै लेल फेर हमहीं गेलियै। ओकरा छोड़लाक उपरान्त जखन वापसीक ट्रेन पकड़बा लेल हम टीसन आबैत रही तखन ओ कातर दृष्टिसँ हमरा दिस ताकि रहल छल एकदम चुपचाप। हमहुँ ओकरासँ नजरि चोरेने औटोमे बैसि गेलौं। ओ हमरा गोर लागलक आ बेछोह कानय लागल। हमर आँखिमे सेहो जेना मेघ उमड़ि गेल मुदा ओइ मेघकेँ रोकैत ओकरा बूझबय लागलौं। रामायणक चौपाई मोन पड़ि गेल:-
लोचन जल रहे लोचन कोना
जैसे रहे कृपण घर सोना।
खैर टीसन आबि ट्रेनमे बैसि गेलौं। जखने ट्रेन टीसनसँ घुसकल तखने ओकर कातर नजरि मोन पड़ि गेल आ लागल जे करेज फाटि जायत। नोरक मेघ ऐ बेर नै मानलक। हम सहयात्री सबसँ नजरि चोरबैत ट्रेनक बाथरूममे ढुकि गेलौं । बाथरूमक भीतर हमर मेघ बान्ह तोड़ि देलक आ हम पुक्की पारि क' कानय लागलौं। विछोहक नोर आवाजक संग पूर्ण गतिसँ बहय लागल मुदा हमर क्रन्दन ट्रेनक धड़धड़ीक आवाजमे विलीन भ' गेल।
ओम प्रकाश

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