आगि पजरलै जखन, धुआँ उठबे करत यौ।
इ प्रेम मे डूबल मोन खिस्सा रचबे करत यौ।
किया करेज पर खंजर नैनक अहाँ चलेलौं,
ककरो खून भेलै इ दुनिया बूझबे करत यौ।
होइ छै प्रेमक डोरी तन्नुक, एकरा जूनि तोडू,
जोडबै तोडल डोरी गिरह बनबे करत यौ।
राम-नाम मुख रखने प्रेमक बाट नै धेलियै,
प्रेमक बाट जे चलबै मुक्ति भेंटबे करत यौ।
बीत-बीत दुनियाक प्रेमक रंग मे रंगि दियौ,
"ओम"क इ सपना अहाँ संग पूरबे करत यौ।
---------------- वर्ण १८ ----------------