धार नहि होइ ए मुक्त, बान्ह केँ कोना के तोडब।
बहैत हवा मुट्ठी मे बन्न हम कोना के करब।
सपना होइ छै सपना कतबो सोहाओन हुए,
निन्न टूटै पर ओकरा अपन कोना के कहब।
अनकर आस बेनियाक बसात सत्ते कहै छै,
ककरो मुँह केँ ताकैत आस मे कोना के रहब।
नोंचि लेलियै कियाक अहाँ सुन्नर पंख चिडै केँ,
बिन पंख आकाशक नोत आब कोना के पूरब।
बिलमि जइयो कनी "ओम"क गाम मे किछ खन,
केहन छै गाम हमर से अहाँ कोना के बूझब।
-----------------वर्ण १८-----------------
No comments:
Post a Comment