Monday, 24 October 2011

मैथिली गजल


पिया हमर रूसल जाइत किछ नै बजै छैथ।
करब हम कोन उपाय ककरो नै सुनै छैथ।

बड्ड जतन सँ कोठा बनल जे सून पडल छै,
कत' सँ भेंटल हकार पिया घुरि नै तकै छैथ।

आउ सखि शृंगार करू मोर पिया केँ मोन भावै,
कोन निन्न मे सूतला हमरा किया नै देखै छैथ।

चानन काठ केर महफा छै बहुत सजाओल,
ओहि मे ल' चलल पिया केँ कनियो नै कनै छैथ।

सासुरक सनेस पर "ओम" केँ लागल उजाही,
नैहरक सखा सभ छूटल यादि नै आबै छैथ।
----------------वर्ण १८-----------------

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