Friday 28 September 2012

विहनि कथा


प्रोग्रेसिभ
                              शर्माजी आ हुनकर कनियाँ पूरा समाजमे प्रोग्रेसिभ कहाबैत छलथि। एकर कारण ई छल जे दूटा बेटीक जन्मक उपरान्त शर्माजी बिना बेटाक लालसा केने फैमिली पलानिंगक आपरेशन करा लेने छलाह आ दूनू बेकती बेटी सभक लालन पालनमे कोनो कसरि नै छोडने छलखिन्ह। बेटी सबकेँ पढेबा लिखेबामे पूरा धेआन देने छलखिन्ह आ ओकरा सभकेँ तमाम सुख सुविधा देबामे पाँछा नै रहैत छलखिन्ह। समाजमे शर्माजी दूनू बेकती बहुत आदरणीय आ उदाहरण छलथि। बेटी सभकेँ आ शर्माजीक कनियाँकेँ कोनो दिक्कत नै होई, ऐ लेल शर्माजी किछो करबा लेल तैयार रहैत छलाह। घरक काजमे मदतिक लेल एकटा दाई राखल गेल छल जे चौबीसो घण्टा हुनकर घरे पर रहैत छलैन्हि। ओकर नाँउ छलै मीतू आ ओ बयसमे बारह-तेरह बरखक छल। ऐ हिसाबेँ ओ एखन बच्चे छलै आ पेटक मजबूरीमे हुनकर घरमे काज करबा लेल बाध्य छलै। घरक पूरा साफ सफाई, पोछा, बासन माँजनाई आ कपडा धोनाई ओकरे जिम्मा छलै। दिन भरि खटिकऽ ओ थाकि जाईत छल आ साँझुक बाद झपकी लेबऽ लागैत छल। जखने ओकरा झपकी आबै की मलकिनीक प्रवचन ओकर निन्न तोडि दैत छलै। रातिमे सभक खएलाक उपरान्त ओ सभटा बासन माँजि लैत छलै आ तकर बादे खाई लेल बैसै छलै। खएबामे सबहक बचल खुचल ओकरा नसीब होईत छलै।

                              शर्माजी अपन बेटी सभक सब फरमाईश पूरा करैत छलखिन्ह आ कोनो वस्तुक माँग भेला पर बाजारसँ तुरंत ओ वस्तु आनैत छलथि, चाहे ओ कोनो खेलौनाक फरमाईश होई वा कोनो भोज्य सामग्रीक। जँ कखनो मीतू बाल सुलभ लालसामे ओइ वस्तु सभ दिस ताकियो दैत छलै की शर्माजीक कनियाँ अनघोल उठा दैत छलखिन्ह जे आब हमर बेटी सभकेँ ई वस्तु सब नै पचतै, देखू कोना नजरि लगा देलक ई निराशी। एकर अलावे आरो ढेरी गपक प्रसाद मीतूकेँ भेंट जाईत छलै, तैं बेचारी ऐ सब फरमाईशी वस्तु दिस धेआन नै देबाक प्रयास करैत छल, मुदा बच्चे छलै तैँ कखनो कालकेँ गलती भइये जाईत छलै।

                              एकदिन शर्माजीक बडकी बेटी गुलाबजामुनक फरमाईश केलकै। शर्माजी साँझमे घर आबैत काल बीसटा गुलाबजामुन सबसँ नीक मधुरक दोकानसँ कीनिकऽ नेने अएलाह। पहिने तँ दूनू बेटी आ हुनकर कनियाँ दू-दूटा गुलाबजामुनक भोग लगेलखिन्ह आ तकर बाद बचलाहा मधुरकेँ फ्रिजमे राखि देल गेलै। मीतू कुवाचक डरे ऐ मधुर दिस ताकबो नै केलक आ नै ओकरा खएबा लेल भेंटलै। मुदा मधुरक सुगंध ओकरा बेर-बेर अपना दिस आकर्षित करऽ लागलै। ओ एकटा योजना मोने मोन बनेलक आ चुपचाप घरक काज करऽ लागल। रातिमे भोजन कएलाक उपरान्त शर्माजीक कनियाँ ओकरासँ बासन मँजबेलखिन्ह आ एकर बाद ओकरा खएबा लेल बचलाहा सोहारी आ तरकारी दैत ई ताकीद केलखिन्ह जे हम सुतै लेल जाई छियौ, तूँ खा कऽ अपन छिपली माँजि सुतै लए जइहैं। ओ स्वीकृतिमे अपन मुडी हिलेलक आ खएबा लेल बैसि गेल। शर्माजीक कनियाँ तकर बाद सुतै लए चलि गेलीह। आब मीतू मधुर खएबाक अपन योजना पर काज शुरू केलक। पहिने तँ जल्दीसँ सोहारी तरकारी समाप्त कएलक आ तकर बाद नहुँ नहुँ डेगे फ्रिज दिस बढल। एकदम स्थिरसँ ओ फ्रिजक फाटक खोललक आ फ्रिजसँ मधुरक पैकेट निकालि कऽ एकटा गुलाबजामुन मुँहमे राखलक। फेर ओ सोचऽ लागल जे जखन एकटा खाइये लेलौं तखन एकटा आर खा लेबामे कोनो हर्ज नै छै। तैँ ओ एकटा आर गुलाबजामुन निकालि मुँहमे धरिते छल की पाँछासँ शर्माजीक कनियाँ ओकर केश पकडि घीचि लेलखिन्ह। असलमे खटपटक आवाज सुनि हुनकर निन्न टूटि गेल छलैन्हि। आब तँ मीतूक जे हाल भेलै से जूनि पूछू। मुँहमे गुलाबजामुन ठूँसल छलै तैँ ओ गोंगिया लागल। शर्माजीक कनियाँ ओकरा पर थापड आ लातक बौछार कए देलखिन्ह। संगे अपशब्दक नब महाकाव्यक रचना सेहो करैत पूरा घरकेँ जगा देलखिन्ह। सब मिलिकऽ मीतूक अपशब्द आ थापडक खोराक दए गेलखिन्ह। जखन ओ सब गारिक पूरा शब्दकोश पढि गेलखिन्ह आ मारैत हाथ दुखाबऽ लागलैन्हि तखन ओ सब हँपसैत ठाढ भऽ गेलथि। शर्माजीक कनियाँ मीतूक झोंटा घीचैत कहलखिन्ह जे हम सब प्रोग्रेसिभ छी, तैं छोडि देलियौ नै तँ आन रहितौ ने तँ बलि चढेने बिना नै छोडितौ। ई कहि ओ सब अपन बेडरूम दिस विदा भेलथि आ मीतू कानैत अपन बोरा लेने ओसारा दिस सुतै लेल बढि गेल।

Thursday 27 September 2012

गजल


अपन छाहरिक डरसँ सदिखन पडाईत रहलौं
पता नै किया खूब हम छटपटाईत रहलौं

कियो नै सुनै गप करेजक हमर आब एतय
करेजक कहै लेल गप हडबडाईत रहलौं

अपस्याँत छी जे चिन्हा जाइ नै भीडमे हम
मनुक्खक डरे दोगमे हम नुकाईत रहलौं

अपन पीठ अपने थपथपा मजा लैत छी हम
बजा अपन थपडी सगर ओंघराईत रहलौं

कतौ भेंटलै नै सुखक बाट "ओम"क नगरमे
सुखक खोजमे बाटमे ढनमनाईत रहलौं

बहरे-मुतकारिब

Thursday 13 September 2012

गजल


भीख नै हमरा अपन अधिकार चाही
हमर कर्मसँ जे बनै उपहार चाही

कान खोलिकऽ राखने रहऽ पडत हरदम
सुनि सकै जे सभक से सरकार चाही

प्रेम टा छै सभक औषध एहिठाँ यौ
दुखक मारल मोनकेँ उपचार चाही

सभ सिहन्ता एखनो पूरल कहाँ छै
हमर मोनक बाटकेँ मनुहार चाही

"ओम" करतै हुनकरे दरबार सदिखन
नेह-फूलसँ सजल ओ दरबार चाही
बहरे-रमल
दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ (फाइलातुन) - प्रत्येक पाँतिमे तीन बेर

Tuesday 11 September 2012

समालोचना


भोथ हथियार
श्री सुरेन्द्र नाथक कहल मैथिली गजलक संग्रह अछि "गजल हमर हथियार थिक"। ऐ पोथी मे हुनकर अडसठि टा गजल प्रकाशित भेल अछि। ई संग्रह २००८ मे आएल अछि जकर आमुख श्री अजीत आजाद जी लिखने छथि। ऐ पोथी केँ आदि सँ अन्त धरि पढबाक बाद हमर यैह अभिमत अछि जे गजलक व्याकरणक दृष्टिसँ ऐ संग्रह मे अनेको कमी अछि, जाहि सँ बचल जा सकैत छल।

पृष्ठ संख्या १३, ६७ आ ७० परहक गजल मे चारिये टा शेर छै, जखन की कोनो गजल मे कम सँ कम पाँच टा शेर हेबाक चाही। संग्रहक कोनो गजल बहर मे नै अछि। हमर ई स्पष्ट मनतब अछि जे गजलकार केँ प्रत्येक गजल मे बहरक उल्लेख करबाक चाही आ जँ आजाद गजल कहने छथि तँ इहो स्पष्ट रूपेँ लिखबाक चाही।

ऐ पोथी मे काफियाक गलती भरमार अछि। कतौ कतौ तँ ई बूझना जाइ छै जे गजलकार बिना काफिया आ रदीफक मतलब बूझने गजल कहबा लेल बैस गेल छथि। एकर उदाहरण पृष्ठ १५ परहक गजल पढबा पर भेंट जाइ छै। ई तँ हम एकटा उदाहरण कहि रहल छी। आरो गजल ऐ दोख सँ प्रभावित छै, जतय काफियाक नियमक धज्जी उडा देल गेल अछि। जेना पृष्ठ १८, १९, २०, २१, २७, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३९, ४०, ४१, ४३, ४४, ४५, ४६, ४७, ५२, ५३, ५६, ५७, ५८, ६६, ६७, ६८,७०, ७१, ७२, ७४, ७५,७७, ७९ आदिमे काफिया तकलासँ नै भेंटैत अछि आ ऐ खोजमे मोन अकच्छ भऽ जाइत छै। ओना आनो पृष्ठ काफिया दोखसँ ग्रसित अछि, मुदा ई उदाहरण हम ओइ पृष्ठ सभक देने छी, जतय काफियाक झलकियो तक नै भेंटै छै। मैथिली गजल आइ जाहि सोपान पर चढि चुकल अछि, ओइ हिसाबेँ ऐ तरहक रचना गजलक नामसँ स्वीकृत होइ बला नै अछि। कियाक तँ बिना दुरूस्त काफियाक गजल नै भऽ सकैत अछि। ई संग्रह "अनचिन्हार आखर" युगक शुरूआत भेलाक बाद लिखल गेल अछि, तैँ हमरा ई आस छल जे गजलकार कमसँ कम काफिया आ रदीफक नियमक पालन ठीकसँ केने हेताह, कियाक तँ "अनचिन्हार आखर" जुग मे आब गजलक व्याकरणक सभ नियम चिन्हार भऽ चुकल अछि। मुदा गजलकार काफिया आ रदीफक नियम पालन करबामे पूरा असफल रहलथि। ओना ऐ संग्रहक काफिया दोखकेँ पोथीक आमुख लेखक श्री अजीत आजाद पोथीक आमुखमे दाबल आवाजमे स्वीकार करैत कहै छथि जे कतेको ठाम काफिया "गडबडायल सन" बुझना जाइत अछि। ओना ई अलग गप थिक जे काफिया "गडबडायल सन" नै अपितु पूरा पूरी गडबडायल अछि। फेर श्री आजाद ऐ गलतीकेँ झाँपबा लेल इहो कहैत छथि जे "रचनाकारकेँ अपन सीमासँ बाहर आबि शब्द-व्यापार करबाक चाही"। मुदा गजलक अपन व्याकरण छै, जकर पालन केने बिना रचना गजल नै भऽ कऽ पद्य मात्र रहि जाइत छै। गजल आ कविताक बीचक अंतर जे अंतर छै, से ऐ तरहक तर्कसँ समाप्त नै भऽ जाइ छै। काफिया, रदीफ आ गजलक व्याकरणक अनुपालन नै हेबाक कारणेँ श्री सुरेन्द्र नाथक ई संग्रह गजल संग्रह नै भऽ कऽ एकटा पद्यक संग्रह भऽ कऽ रहि गेल अछि।

संवेदनाक स्तर पर किछु रचना नीक अछि आ जँ गजलकार गजलक व्याकरण पर धेआन देने रहतथिन्ह, तँ नीक गजल लिखि सकैत छलाह। गजलकारक ई पहिलुक मैथिली गजल संग्रह बहुत आस तँ नै जगबैत अछि, मुदा हुनकर संवेदनात्मक प्रतिभा देखैत हम ई आस जरूर करै छी जे ओ गजलक व्याकरणक पालन करैत आगू नीक गजल कहताह आ "गजल हमर हथियार थिक" केँ चरितार्थ करताह। गजल तँ हथियार होइते अछि, मुदा बिनु काफिया, रदीफ आ बहरक नियमक पालन केने रचना गजल नै होइत अछि आ भोथ हथियार भऽ जाइत अछि। पद्यक हथियार पर काफिया आ बहरक सान चढल हुनकर नब गजल-हथियारक प्रतीक्षा रहत।

Thursday 6 September 2012

विहनि कथा


विहनि कथा
बीस टाका
हम भोरे भोर उठि कऽ अपन बगीचा मे फूलक गाछ सब केँ पटबै छलहुँ। करीब सात-सवा सात बाजैत हेतै। तावत सडक दिस सँ हो-हल्ला सुनायल। हमर निवास मुख्य सडकक काते मे अछि, तैं सडक पर होय बला सब घटना आ दुर्घटना देखाइत आ सुनाइत रहैए। हम हल्ला सुनि सडक दिस ताकलहुँ। देखै छी जे हमर फाटकक ठीक सामने मे एकटा मिनी ट्रक लागल अछि आ ओकरा आगाँ एकटा सिपाही मोटरसाईकिल लगा कऽ ठाढ अछि। ओ सिपाही ट्रकक ड्राईवर केँ गरियौने जाईत छल आ ट्रक जब्त करबाक धमकी सेहो दऽ रहल छल। सिपाही कहलक- "नो इंट्रीक टाईम भऽ गेल छै आ तों सब ट्रक शहर मे ढुका देलही। आब चल थाना, जब्ती हेतौ ट्रकक। तोरा सबकेँ बूझल नै छौ जे सात बजेक बाद नो इंट्री भऽ जाइ छै।" ट्रक पर पाछाँ मे एकटा महीस छल आ ओइ महीसक संग एक गोटे ठाढ छल जे कने कडगर भऽ बाजल- "यौ सिपाही जी, एखनी सात बाजि कऽ पाँचे मिनट भेल छै आ हम सब शहर मे जखन ढुकल छलियै तखनी पौने साते बाजै छलै। आब ई नो इंट्री कोना भऽ गेलै। शहर मे ढुकबा काल ओतुक्का सिपाही जी केँ नजराना सेहो देने छियै, अहाँ मोबाईल सँ फोन कऽ कऽ बूझि लियौ।" आब तँ सिपाही जे बमकल से नै पूछू। सोझे ड्राईवर लग गेल आ बाजल- "पाछाँ मे ओकील चढेने छी की? सार हमरा कानून झाडैए। ओकरा तँ जे हम करबै से केलाक बादे बूझतै ओ .................., तू चाभी ला, ट्रक जब्त हेतौ। सात बाजि कऽ दस मिनट भऽ गेल छै आ नो इंट्री मे ट्रक ढुका कऽ कानून छाँटै जाइए।" ड्राईवर ऐ लाइनक पुरान खेलाड छल। ओ हाथ जोडैत कहलकै- "सरकार, कथी लए तमसाई छी। ओ मूर्ख छै। अहाँ हमरा सँ गप करू ने। हे ई लियऽ दस टाका चाह पानक खर्चा आ हमरा जाई दियऽ बड्ड दूर जेबाक छै।" सिपाही कने नरम होईत ओकर हाथक टाका दिस लुब्धता सँ ताकैत कहलक- "हे रौ तू होशियार बूझाईत छैं, मुदा दस टाका सँ काज नै चलतौ। बड्ड महगी छै, बीस टाका निकाल।" ड्राईवर बाजल- "पछिलो चौक पर पाई लेलखिन्ह सिपाही जी आ अगिलो चौक पर लेबे करथिन्ह। एकटा महीसक पाछाँ कतेक जगह काटब अहाँ सब। सरकार पएर पकडै छी, अहाँ एहि सँ काज चला लियऽ।" सिपाही गरमाईत कहलक- "चल थाना। टाईम खराप नै कर। बोहनी बेर मे भोरे भोर सबटा नाश नै कर। तोहर दिमाग ठेकाना पर नै छौ।" आब ओ ड्राईवर बूझि गेल रहै जे ई सिपाही मानै बला नै छै। ओ तुरत बीस टाका निकाललक आ सिपाही दिस बढेलक। सिपाही चारू कात देखैत मुट्ठी मे बीस टाका दाबलक आ चेतावनि दएत कहलक- "जो भाग जल्दी, तोहर नसीब ठीक छौ। बडा बाबूक नजरि मे जँ आबि गेलही बाउ तँ ओ बिनु एक सय केँ नै छोडथुन्ह। हुनकर मौर्निंग वाकक समय भऽ गेल छैन्ह। आबिते हेथुन्ह केम्हरो सँ।" ई कहैत ओ सिपाही अपन मोटरसाईकिल इस्टार्ट कएलक आ विदा भेल आ ट्रक सेहो दस मिनटक घेंघाउज आ बीस टाकाक दक्षिणाक बाद गन्तव्य दिस चलि देलक।

कविता


एक कविता प्रस्तुत हैः-

अधूरी प्यास की गाथा क्या सुनाऊँ मैं।
सुलगते विचारों की गर्मी से हलकान हूँ,
निर्जीव संबंधों के वार से लहूलुहान हूँ,
अपने बनाये बंदिशों से परेशान हूँ,
रूँधे हुए कण्ठ से कब तक गाऊँ मैं।
अधूरी प्यास.........................................

'बेहतर' की उम्मीद में 'अच्छा' छूटता गया,
दिल की धडकनों से दिल ही टूटता गया,
जिसे समझा अपना वो ही लूटता गया,
क्षितिज की आस में यूँ ही चलता जाऊँ मैं।
अधूरी प्यास............................................

- ओम प्रकाश।