Wednesday 28 September 2016

बीहनि कथा

सामंत
साहेब आफिससँ निकलि क' कतौ जाइत छलाह। चपरासी हुनकर वातानुकूलित कक्षक दरबज्जा खोलि क' ठाढ़ भ' गेल। दोसर चपरासी हुनकर बैग ल' कए चलल। बाहर बत्ती लागल कार लागल छल। कारक चालक कारक गेट खोलि ठाढ़ छल। अप्पन कक्षसँ कार धरि पच्चीस मीटरक दूरी साहेब पाँच मिनटमे पहुँचि गेलाह।ओतबा दूरमे कतेको मुलाजिम ठाढ़ छल आ सलामी ठोकने जा रहल छल।साहेब मूड़ी हिला क' जबाब दैत कार धरि गेला आ शानसँ गाड़ीमे बैसि गेला। कार ओतयसँ चलि क' शहरक टाउन हाल पहुँचल। साहेब गाड़ीसँ उतरलाह तँ ढ़ेरी लोक सलामी ठोकै...त आगाँ पाछाँ करैत हुनका भीतर ल' कए चलि गेल। आइ ओतय "सामंतवादक प्रभाव आ नब सामंतवाद" विषयपर एकटा गोष्ठी छल आ साहेब मुख्य अतिथि छलाह।सामंतवादक दुष्प्रभाव आ ओकर आतंकसँ जकड़ल समाजकेँ नब रस्ता देखेबा लेल साहेबक भाषणक प्रतीक्षामे हुनकर जिंदाबादक नारासँ पूरा हाल गुंजायमान भ' गेल।
-ओम प्रकाश

बीहनि कथा

जस जस सुरसा बदनु बढ़ाबा
रामलाल आइ बड्ड खुश छल। कंपनी ओकर दरमाहा बीस हजारसँ बढ़ा क' बाईस हजार क' देलकै। ओ कनी मधुर कीनलक आ घर आबि ई सूचना अपन घरनीकेँ देलक। घरनी खुश होइत बाजलीह -"ई तँ बड्ड नीक भेल। दुनू बच्चाक इसकूलक फीस अही माससँ दू दू सय टका बढ़ा देलकैए। हमर होली आ दीवाली दुनूकेँ साड़ी बकियौता अछि। माँजीक दवाय पछिला मास नै कीनाएल छल सेहो कीना जेतैक। बनियाक बकियौता सेहो........."...
"हे यै चुप रहू।" रामलाल घरनीकेँ बीचहिमे टोकलनि-"एखन धरि अहाँ तीन हजारसँ ऊपरक खरचा जोड़ा देलौं, जखन की दरमाहा दूइये हजार बढ़ल अछि।"
घरनी कहलकनि-"एखन तँ आरो खरचा सब छै।"
रामलाल चुप भ' मूड़ी पर हाथ ध' बैसि रहलाह। हुनका रामचरितमानसक चौपाई मोन पड़ि गेलनि-
जस-जस सुरसा बदनु बढ़ाबा
तासु दुगुन कपि रूप देखाबा

-ओम प्रकाश

Thursday 30 June 2016

गजल

कुछ दर्द भी जिन्दगी में शामिल चाहिए
मजा आएगा, बस राह मुश्किल चाहिए
कैसे जानोगे तुम मेरे दिल के दर्द को
महसूस करने को एक दिल चाहिए
गजल ही काफी नहीं है शायर के लिए
उसको सुनने को भी महफिल चाहिए
चल पड़ा हूँ मैं तो क्षितिज के राह पर
जिद है मेरी कि मुझको मंजिल चाहिए
अपने सर को रखूँ कांधे पर किसी के
मुझको कांधा भी तो ऐसा काबिल चाहिए

गजल

आज मैं अपने लिखे एक मैथिली गजल का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ। शायद आप लोगों को पसंद आ जाए।
भीख नहीं, मुझको अपना अधिकार चाहिए
मेरे कर्म से जो बने, उपहार चाहिए
कान खोल कर रखना पड़ेगा हर पल
सुन सके जो सबकी वो सरकार चाहिए
प्रेम ही है सब रोगों की दवा यहाँ पर
दुख से बोझिल मन को उपचार चाहिए
मन की इच्छा अभी पूरी न हुई है
मेरे मन की राह को मनुहार चाहिए
दरबार करेगा 'ओम' सदा आपका
स्नेह फूल से सजा हुआ दरबार चाहिए

गजल

ढूँढते हुए जिन्दगी का पता हम खुद लापता हो गए
महफिल में थे शायर हम ही, सारे शेर फ़ना हो गए
उनको छूने की ललक ऐसी हुई हमको दोस्तों
भूल के मंजिल का पता, क्या से क्या हो गए
मेरे शहर में अब सूरज की किरणें मद्धिम हुईं हैं
आँखों से बरसते सावन ही नभ की घटा हो गए
जिसने सीखा नहीं सज़दे में कभी सर को झुकाना
आज बन्दों से घिर कर सारे जग के ख़ुदा हो गए
थी रौशन चिरागों से ये महफिल "ओम" की बहुत
आग भड़की ऐसी कि ये महफिल चिता हो गए
-ओम प्रकाश

शायरी

इजहार-ए-मुहब्बत का तरीका ना आया
मुझको कभी जीने का सलीका ना आया

शायरी

समझते रहे सवाल मुझे तुम, पर मैं एक जवाब हूँ
मेरा नशा कहाँ समझोगे, बोतल में बंद शराब हूँ
अच्छे बुरे की पैमाईश में व्यर्थ करूँ क्यों खुद को
तेरी नज़र के सदके जाऊँ, जिसने कहा खराब हूँ

गजल

पी लेते हैं तेरी आँखों से सुबह शाम
हमें भला इस दारू से है क्या काम
बोतल की मय को बंद कर दो अब
पीना ही है तो पियो आँखों के जाम
जिगर को जलाया करते थे खुद ही
अब ये जिगर कर दो उनके नाम
करते थे कभी जो मय से दिल्लगी
बैठ कर जपिये अल्लाह या राम
बस मुहब्बत ही चाहिए यहाँ "ओम"
नहीं चाहिए मुझे कोई ताम झाम
बिहार में लागू हुए शराबबन्दी को समर्पित।

गजल

कभी तो पास आओ जिन्दगी
आँखों से मुस्कुराओ जिन्दगी
उलझे हुए विचारों से हैरान हूँ
इसको जरा सुलझाओ जिन्दगी
मेरे अंदर हैं सवालों के गोले
जवाब तुम ही बताओ जिन्दगी
तड़पता सदियों से हूँ तेरे लिए
अब ना मुझे तड़पाओ जिन्दगी
"ओम" के होम से हो यदि राजी
आकर ये भी कर जाओ जिन्दगी
ओम प्रकाश

मन का बात

जहिया भागलपुर से पटना या पटना से भागलपुर ट्रेन से जर्नी करते हैं ना तो कुछ बात हर जर्नी में कौमन होती है। जैसे ठसमठस पसिन्जर, रिजर्वेशन बौगी में जेनरल टिकट या बिना टिकट का पसिन्जर, औरडिनरी पास लेकर ए सी बौगी में सफर करते रेलवे करमचारी, ई सब देख के कुढ़ते हुए बोनाफाईड पसिन्जर, बीच बीच में भैकम आदि आदि। सच तो ई है कि आब जिस दिन ई सब में से कोनो बात नै होता है तो हम डर जाते हैं कि कहीं हम सूतले सूतले बिहार से बाहर तो नै चल गए। देखिए ई सब बात जो ट्रेन में होता है, ई सब के पीछु लौजिक है ने भाय। तखनियो कुछ लोग ई बात नै समझते हैं और सुधार का बात करने लगते हैं फोकट में। देखिए ई सब चीज से फायदा ये होता है कि बिना एडभरटाईजमेंटे के ई बूझे में आ जाता है कि बिहार के इलाका शुरू हो गया है। अपना एडभरटाईजमेंट करने में हरजा का है। हमनियो का तो अपना ब्रांड है भाई। भैकम ठीक से काम करता है कि नै इहो जाँच हो जाता है फ्री में। रिजर्वेशन बौगी में जेनरल टिकट ले के चढ़िए तो आधा पैसा ले के टी टी साहब बैठा के लैइये जाते हैं। ई तो अच्छा है ना जी। पसिन्जरवन के भी आधा पैसा में ए सी का मजा आ जाता है अउर टी टी साहब लोग के घर खरचा निकल जाता है। अब रेलवे तो समुन्दर है, एक लोटा पानिए खींच लिया तो का हो गया। एक बात तो है जकर प्रशंसा होना चाहिए कि यदि आपके पास रिजर्वेशन है तो आपको बैठने के लिए एक बित्ता जगह मिलिए जाता है। कभी कभी ऊपर का बात सब यू पी में भी देखाई पड़ता है लेकिन इस मामला में ब्रांड अमबसडर हमही लोग हैं जी। हम ई पोस्टवा के माध्यम से तमाम बेटिकट यात्री सब के साथ साथ बिहार के इलाके में ट्रेन में चलने वाले टी टी लोग के डंडवत करते हैं काहे कि पैसा बचत के साथ साथ अपना ब्रांड भी ई लोग बचा के रखने का अमोल काम कर रहे हैं। ई हमरा मोन का बात था जो आपलोगों से शेयर कर लिए। कोई गोसाइयेगा नै।

विहनि कथा

विहनि कथा
विछोहक नोर
पछिला साल कोचिंग करै लेल बेटीक नाम कोटामे लिखौने छलौं। जखन ओकरा कोटामे छोड़ि क' आबैत रही तखन ओ बड्ड उदास छल। ओकरा बुझेलियै जे हम नियमित रूप सँ आबि भेंट करैत रहबै। मुदा नौकरीक झमेलामे फुरसति नै भेंटल आ हम कहियो नै जा सकलौं। साल पूरा भेला पर ओ डेढ़ मासक छुट्टी पर गाम आएल छल। ऐ बेर ओकरा कोटा छोड़ै लेल फेर हमहीं गेलियै। ओकरा छोड़लाक उपरान्त जखन वापसीक ट्रेन पकड़बा लेल हम टीसन आबैत रही तखन ओ कातर दृष्टिसँ हमरा दिस ताकि रहल छल एकदम चुपचाप। हमहुँ ओकरासँ नजरि चोरेने औटोमे बैसि गेलौं। ओ हमरा गोर लागलक आ बेछोह कानय लागल। हमर आँखिमे सेहो जेना मेघ उमड़ि गेल मुदा ओइ मेघकेँ रोकैत ओकरा बूझबय लागलौं। रामायणक चौपाई मोन पड़ि गेल:-
लोचन जल रहे लोचन कोना
जैसे रहे कृपण घर सोना।
खैर टीसन आबि ट्रेनमे बैसि गेलौं। जखने ट्रेन टीसनसँ घुसकल तखने ओकर कातर नजरि मोन पड़ि गेल आ लागल जे करेज फाटि जायत। नोरक मेघ ऐ बेर नै मानलक। हम सहयात्री सबसँ नजरि चोरबैत ट्रेनक बाथरूममे ढुकि गेलौं । बाथरूमक भीतर हमर मेघ बान्ह तोड़ि देलक आ हम पुक्की पारि क' कानय लागलौं। विछोहक नोर आवाजक संग पूर्ण गतिसँ बहय लागल मुदा हमर क्रन्दन ट्रेनक धड़धड़ीक आवाजमे विलीन भ' गेल।
ओम प्रकाश

विहनि कथा

विहनि कथा
मातृवत परदारेषु
इसकूलेक समैसँ ओ पढ़ैत छल "मातृवत परदारेषु"। श्लोकक ई अंश ओ सबकेँ सुनाबैत छल। आब ओ नौकरी करैए। ओ एखनो धरि ई श्लोक अंश दोहराबैत रहैए। मुदा सड़क पर, बसमे वा ट्रेनमे कोनो स्त्री वा बालिकाकेँ देखैत देरी ओकर आँखिमे एकटा चमक आबि जाइ छै आ ओ अपन नजरिसँ ओकर सभक देह ऊपरसँ नीचा धरि नापि लैत अछि। कतेको बेर ओ ऐ कलाक प्रदर्शनक बाद स्त्रिगण सभक कोपभाजन सेहो बनि चुकल अछि। मुदा आदतिमे कोनो बदलाव नै। कहल गेल अछि जे चालि, प्रकृति, बेमाय, तीनू संगे लागल जाय। आइ चौक पर जखन ओ अपन कलाक प्रदर्शन करैत छल तखन पीड़ित स्त्रीक हल्ला करै पर भीड़ ओकर पूजा क' देलकै लात जूतासँ। जावत किछु लोक ओकरा बचेलकै तावत ओकर मुँह कान फूलि चुकल रहै। हम जखन चौक पर पहुँचलौं तँ ओ अपन पूजा करबा क' चलि आबैत छल। हम पूछलिए की हाल चाल मीता। ओ कहरैत बाजल हाल देखिये रहल छह आ चालि हमर बूझले छह जे मातृवत परदारेषु।

कविता

कविता
मधुमास
सुनलियै मधुमास आएल छै।
दमकैत रंगल मुँह चारू कात
पिपही बाजाक सुर ताल
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
भौजी दियरक ठट्ठा
सारि बहिनोईक मजाक
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
जुआनक मचल जोगीरा
बूढ़क चमकैत मुखारविंद
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
आमक मज्जरक सुगंध
सरिसबक पीयर कुसुम
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
उत्साह आ जोशक धार
पसरल गाम आ नगर
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
मुदा की सबहक छै मधुमास?
कियो बुतातक जोगाड़मे लागल
लोक व्यस्त अछि कोदारि धएने
ओकर छै खरमास सब दिन
मधुमासक आसमे।
मुदा कहियो अएबे करतै
ओकरो आँगनमे मधुमास
ई सोचैत लागल अछि
ओ मधुमासक स्वागतमे।
यावत नै पसरत मधुमास
सबहक आँगनमे,
तावत ऐ मधुमासमे
रंग किछु कमे रहत।

मन का बात

बहुत पहिले हम ई सुनते थे कि किसान लोग बैंक से जे लोन लेगा ऊ बाद में माफ हो जाएगा। बस फेर क्या था, ढेरी किसान सब लोन ले लिया बैंकवन सब से। बहुते दिन तक तो लोन वसूली खातिर बैंकवन सब खूबे प्रयास किया। पर जब वसूली में फेल हो गिया तो ई लोनमा सब के नन परफार्मिंग एसेट घोषित कर दिया। तभीये हमहूँ ई जाने कि नन परफार्मिंग एसेट भी एकठो बैंकिंग टर्म है। खैर बाद में देखे कि ठीके में किसान सब के लोन माफ हो गिया। अब तो जे सब लोन नै लिया था ऊ सब अफसोस करे लगा कि हमहूँ सब काहे नहीं लोनमा ले लिए थे। खैर ई तो हुआ किसान लोन के गप। इधर कुछ समय से ई ट्रेन्ड देखते हैं कि बड़को लोग सब बैंकवन सब से लोन ले ले के खएले जा रहा है। ई बात पर बहुते हंगामा भी हो रहा है। हमको ई में हंगामा के कोई बात नै समझ में आता है। बड़कन लोग सब बैंक से लोन थोड़े लेता है। ऊ सब तो बैंक से फाइनेंस करवाता है जी। ऊ सब लोन काहे नै लेगा। सब लोग के बैंक से लोन लेबे के हक है कि नहीं। इहो हो सकता है कि ऊ लोग ई सोचा होगा कि किसाने लोन के जैसन ई बिजनेसो लोन न कहीं माफ हो जाए। या दीर्घायु होने के लिए भी लोन लिया होगा। काहे कि पहले से ई कहा गिया है-
करजा ले ले चाटिए जब लगे घट में प्राण
देने वाला रोएगा जब मरने पर श्रीमान
कि जैसे बाप मरा हो।
अब अगर ककरो बेसी दिन तक जीबे के इच्छा है तो करजा ले के चाटना ही चाहिए। काहे कि करजा देबे वाला सब भगवान से ओकर लंबा उमर के प्रार्थना करबे करेगा जी। कुछ भायजी लोग बैंकवन सब पर आरोप लगा रहा है कि एतना एतना लोन कैसे दे दिया बिना भेरिफाई कएले। अरे भाई अपना बैंकवन सब एतना काम में लगल रहता है कि बड़कन लोग सब के भेरिफाई करे में टाइम वेस्ट काहे करेगा। पूरा मार्केट में एतना हाउसिंग, गाड़ी और बिजनेस लोन देले है ई बैंकवा सब कि पूरा टाइम तो उधरे इनभेस्ट हो जाता है। बड़कन लोग सब के चेहरबो के तो कुछ फेस भैल्यू होता है जी। हम ई पोस्टवा के माध्यम से तमाम बैंकवन के डंडवत करते हैं कि ऊ सब पक्का समाजवादी हैं। छोटकन लोग सब के जेतना नन परफार्मिंग एसेट बेस तैयार किए थे ऊ सब, ओतने बड़कन लोग सब के भी तैयार कर लिए। वाह, परफार्मेन्स इसी को कहते हैं ऊ भी समाजवादी ईस्टाईल में। हम उन तमाम बड़कन लोग सब के भी डंडवत करते हैं जो समाजवाद को पूरा फौलो करने में बैंकवन सब के मदद किए हैं ताकि बैंकवन सब जेतना नन परफारमिंग एसेट किसान लोन में तैयार किया था ओतना ई लोगन के भी लोन देने में तैयार कर लिया है। अंत में, हमको कोई भायजी या बहिनजी ई समझाएँगे कि ई बड़कन लोग सब जे लोन लिया ऊ केने घुसड़ गिया काहे कि बैंकवन सब के वसूली के लिए कोनो एसेटे नै भेंटाता है। ई कोश्चन हमको बहुते परेशान किए हुए है। ई हमर मोन का बात था जे आप लोगन से शेयर किए और जिनको गोस्सा और तकलीफ हुआ हो तो उनसे माफियो माँगिये रहे हैं।

गजल

ताकै छी, अपन पता चाही
जिनगी जे कहै, कथा चाही
हम छी खोलने करेजाकेँ
छै गुमकी, कनी हवा चाही
नै चाही जगतसँ किछु हमरा
हमरा बस सभक दुआ चाही
लूटलकै मजा बहुत सब यौ
हमरो आब ई मजा चाही
"ओम"क छै करेज ई पजरल
नेहक एकरा सजा चाही

गजल

हारल करेजक हाल की कहू
जागल सिनेहक हाल की कहू
प्रेमक नगरमे अछि बसल हिया
बारल विदेहक हाल की कहू
सदिखन लिखै छी नेह हम अपन
राखल सनेसक हाल की कहू
कोना क' बीतल राति ई हमर
काटल बिदेसक हाल की कहू
बेकल बनल "ओम"क करेज ई
मारल उछेहक हाल की कहू

गजल

अहाँ तोड़ैत रहू, हम जोड़ाइते रहब
नशा छी एहन, सबकेँ सोहाइते रहब
रहत छाती पर छापल ई नाम टा हमर
कते पोछब हमरा, हम ठोकाइते रहब
अहाँ कोड़ू हमरा नै बाजब किछो सुनू
बनल छी सागक बाड़ी, कोड़ाइते रहब
किया छी बारल नजरिसँ हम देखियौ कनी
सुनब चर्चा हमरो आ नोराइते रहब
करेजा 'ओम'क करबै टुकड़ी कतेक यौ
भ' गेलौं तार करेजक, मोड़ाइते रहब
-ओम प्रकाश,

Thursday 10 March 2016

गजल

रूप मदिर, मदिराएल नैन
मेघ सनक करियाएल नैन
बालम बसि गेला कोन देस
राति बढ़ल अगुताएल नैन
चान पिया भेलौं हम चकोर
कानि कहल बिसराएल नैन
ओकर छवि देखै भोर-साँझ
यादि भरल सपनाएल नैन
"ओम" पिया अउता आइ सुनि क'
नाचि उठल हरखाएल नैन
मात्राक्रम 2-1, 1-2, 2-2-2-1, 2-1 प्रत्येक पाँतिमे एक बेर। सुझाव सादर आमंत्रित।
-ओम प्रकाश

मन का बात

बचपन में हम सोचते थे कि आखिर मछली कैसे पकड़ाता है। बाबूजी से पूछे तो ऊ डाँट दिए। कहे कि बड़ा हो के मछलिए मारेगा का। हम सकदम चुप हो गए। एक बार जखनी गाम गए ना तो उहाँ पर अलग अलग ईस्टाईल में मछलिया पकड़ते देखे। जब कक्का से पूछे तो ऊ हमको सब ईस्टाईलबा के बारे में बताए। बंसी से बोर देके नेन्हकी मछलिया सब धराता था। बड़की मछलिया सब जाल फेंक के धराता था। जाल में एकदिन एकठो दस से पन्द्रह किलो का मछली धराया था जो जाले फाड़ के भाग गया। कक्का समझाए कि बड़का मछलिया पकड़ना एतना आसान नै है से बूझ लो। छोटकी मछलिया आरामे से पकड़ा जाता है। खैर जब गाम से घूर के आ गए तब इसी फिराक में रहते थे कि मछली पकड़न ज्ञान का पिरेकटीकल किया जाय। लेकिन स्साला कोनो जोगाड़े नै भेंटता था। एक रोज इसकूल से आने टाईम एकठो खंता में मछलिए जैसन चीज देखे। फिर क्या था उतर गए खंता में और दनादन दस ठो छोटकी मछलिया पकड़े और कौपी से पन्ना फाड़ के ठोंगा बनाए जिसमें मछलिया सबको रखकर घर ले आए। पूरा कपडा में कादो लगल देखके माय जो बमकी सो का कहें। ऊ घड़ी 'दाग अच्छे हैं' बला परचरबो तो नै आया था। मछली देखके तो माय आरो गोस्सा गई। बोली कि एक तो कपड़बा गंदा कर लिया और ऊपर से बेंगमछली पकड़ के ले आया। ऊ घड़ी हमरा मछली आ बेंगमछली के अंतर थोड़े बूझल था। खैर एतना दिन बाद ई प्रसंग इसलिए मोन पड़ गिया कि समाचार में एक जगह पढ़े कि बड़ी मछली पुलिस के पकड़ से बाहर। ई कहना आसान है कि पुलिस बड़ा मछली नै पकड़ता है पर बड़ा मछली पकड़ने में केतना कष्ट है ई हम अपन आँख से देखे हैं जी। या तो जाले फाड़ देगा नै तो पूछरी से मार मार के देह फोड़ देगा।एही से कहते हैं कि खंता में जा के बेंगमछलियन सब के धरना चाहिए जो ऊ लोग कर रहे हैं। उन सबको हमर डंडवत है काहे कि मछलिया पकड़ तो रहे हैं ना, भले बेंगमछलिए हो। आशा है कि हमरा मोन का बात सुन के ऊ लोग गोसियायेंगे नै।

शायरी

नारीकेँ नै वस्तु बुझू, नारीक सम्मान करू
माए, बेटी, बहिन हमर, नै कोनो अपमान करू

मन का बात

हम जहिया स्टुडेन्ट थे, तहिया बाबूजी पढ़ते रहने के लिए एक्के ठो धमकी देते थे। कहते थे कि रे गदहा ठीक से पढ़, नै तो एक ठो भैंस कीन देंगे आ तू भैंस चराना। ऊ ई बात एतना आथेन्टिकली कहते थे कि हमरा सब.के सपनो में भैंस देखाता था। ऊ एकठो बात औरो कहते थे कि व्यस्क होने का उमर पहले 21 था और अब 18 है और जब तू व्यस्क हो जाएगा तब पिछवाड़ा पर लात दे के बाहर कर देंगे। बाद में उन्होंने लात मारने की उमर बढ़ा के 25 कर दिया। और ई भी कहा कि 25 बरस के बाद पढ़ाई नहीं होती है। हमहू सब जोड़ घटाव कर के देखे कि आई. ए. बी. ए. एम. ए. आदि करने में 25 बरस तक होइए जाता है अगर सेशन लेटो हो जाए तैयो। अगर पी. एच. डी. करेगा तो दू साल औरो जायेगा। खैर बाबूजी के धमकी का ई रिजल्ट हुआ कि बाईसे बरस में नौकरी करने लगे। इधर यूनिवर्सिटी सब का बवाल समाचार में आया तो ई देखे कि हुआँ तो स्टुडेन्टवन सब पैंतीस आ चालीसो के उमर में पढ़िये रहा है। उनका बाबूजी लोग केतना अच्छा है। नौकरिया में लग जाएगा तो देश में हलचल कैसे मचाएगा। हम आज इस पोस्टवा के माध्यम से ऐसन सब स्टुडेन्टवन सब के डंडवत करते हैं जो नौकरिया के चिन्ता छोड़ के बुढ़ारी तक पढाई में लगल है आ देश में हलचल मचइले है।उनकर बाबूओजी सब के डंडवत करते हैं। आप लोग हमरे मन का बात सुन के गोसियाइएगा नहीं से प्रार्थना है।

गजल

आजकल मजमे में जाने से डरता हूँ
गूँज रहे नारों के फ़साने से डरता हूँ
बंद मुट्ठी आया था फैले हाथ ही जाऊँगा
फिर भी जाने क्यों मैं ज़माने से डरता हूँ
हौसला बहुत है, ऐसा दिल कहता है
यहाँ पे ख़ुद को आज़माने से डरता हूँ
सब की क़िस्मत की अपनी ही कहानी है
खुदी है पेशानी पर, सुनाने से डरता हूँ
जाने हुए चेहरे अजनबी से लगते हैं
अब तो इनको मैं अपनाने से डरता हूँ
-ओम प्रकाश

गजल

रंगि दिय' हमरा रंग बसंती
आब चाही हम अंग बसंती
ओकरे नामे लीखल जिनगी
भेल छै ओकर संग बसंती
ढंग एहन बनि जाय हमर जे
सब कहै देखू ढंग बसंती
जोश जे नबका फेरसँ चढ़लै
विस्मयसँ भेलै दंग बसंती
शत्रु "ओम"क रण छोड़ि पड़ायत
हम लड़ब एहन जंग बसंती
मात्राक्रम 2-1-2, 2-2-2-1, 1-2-2 सब पाँतिमे एक बेर। सुझाव सादर आमंत्रित।

गजल

आसक डोरि टूटि चुकल अछि
भाग्यक घैल फूटि चुकल अछि
आबो मोन बाट तकै छै
रस्ता कहिये छूटि चुकल अछि
की कहियै समैक ई लीला
प्रेमक गीत कूटि चुकल अछि
छलियै प्रिय हुनकर कहियो
खिस्सा बनि क' छूटि चुकल अछि
"ओम"क मोन मोर बनल छै
मोनक तान लूटि चुकल अछि
दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व, दीर्घ-ह्रस्व, ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ प्रत्येक पाँतिमे एक बेर। दोसर शेरक दोसर पाँतिमे आ तेसर शेरक पहिल पाँतिमे एकटा दीर्घकेँ ह्रस्व मानबाक छूट लेल गेल अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

गजल

सुनते कभी तुम तो हम भी सुनाते
मुहब्बत की प्यारी बातें बताते
जुल्फों की लट है कि काली घटा है
उलझन दिलों की है, ये सुलझाते
आँखों की मदिरा बहुत है नशीली
नशा इन आँखों का दिल को पिलाते
तुम्हारी हमारी मुलाकात को हम
किताबों का प्यारा पन्ना बनाते
गुजरते कभी "ओम" की गली से भी
तो कदमों में तेरी ये दुनिया लुटाते
ओम प्रकाश

कविता

चिड़ै आ बहेलिया
भोरे-भोर आँगनमे
उतरि जाइए चिड़ै।
चुहचुहाइत, फुदकैत,
पसारल अनाज पर
लोल मारैत चिड़ै।
हाँटबै जखने
तँ फुर्र उड़ि जाइए
आकाशक पसरल आँचरमे।
आजादीक उत्कर्षक
परम विमर्श अछि चिड़ै।
ओकर उड़ानमे लय छै,
जिनगीक संगीतक लय,
नब आसक लय,
नब बासक लय।
मुदा ओ बेखबर अछि
बहेलियाक नजरिसँ।
चंडाल बहेलिया
अट्टहास करैए
आकाशसँ ऊँच।
सौंसे सृष्टिमे पसरल
ओकर वीभत्स अट्टहास।
अट्टहासक पाछू
नुकाएल छै
ओकर शिकारी आँखि।
गुलामीक उत्कर्षक
परम विमर्श अछि बहेलिया।
ओकर अट्टहासमे छै
समेटल क्रूर चालि,
मारि खसेबाक चालि,
शांत क' देबाक चालि।
ठाँय।
ई थीक गोलीक आवाज।
खसि पड़ल चिड़ै भू-लुंठित।
ओकर माटिमे सानल
निष्प्राण देह
द' रहल अछि
बहेलियाक करतूतक गवाही।
मुदा आजादीक उत्कर्षक
विमर्श खतम नै भेल।
एखनो उड़िये रहल अछि
एकटा आर चिड़ै
नीलगगनक छाती पर।
एखनो ताकिये रहल अछि
बहेलियाक नजरि
क्रूर अट्टहासक संग।
ओम प्रकाश

कविता

दोसराइत
असगरूआ माए जोहैत अछि बाट
अपन बेटाक गाममे।
असगरूआ कनियाँ जोहैत अछि बाट
अपन वरक किरायाक खोलीमे।
असगरूआ बच्चा जोहैत अछि बाट
अपन बापक इसकूलक होस्टलमे।
ओ बेटा, ओ वर, ओ बाप
अपसियाँत भेल जिनगीक मारामारीमे
जोहैत अछि बाट शान्तिक
आ संतोषक जीवनमे।
सबकेँ चाही दोसराइत
असगरूआ मरूभूमिमे।
बालु आ गरमीसँ औनाएल मोन
दोसराइतक बाट जोहैत रहैए।

कविता

रातिक खाधि
कारी रातिक गहीर खाधिमे
मोन उतरि जाइए कखनो।
ओहि खाधिमे ताकैत रहै छी
कोनो चिन्हार चेहरा,
जे हुलसि पकड़ि क' बाँहि हमर
निकालि लेत हमरा
ओहि भयाओन खाधिसँ।
मुदा ई की देखै छी हम
जे हाथे नै छै ओकरा।
छै तँ खाली एकटा निर्विकार मुँह।
झमाएल पितियाएल मुँह।
सुखाएल गन्हाएल मुँह।
आँय ई के छी
पूछि बैसैत छी अपन करेजसँ।
करेज हँसैत अछि हमरा पर
उपेक्षा आ तिरस्कारसँ
आ कहैत अछि गंभीर भावसँ
जे आब अपनेकेँ बिसरि गेलही तूँ।
ई तूँ छैं महकैत सड़ल गन्हाएल फूल
जकर कोनो कीमत नै।
सड़ि क' समाहित भ' जएबही
ऐ माटिमे
जतय तोरे जकाँ असंख्य लोक
जुग जुगसँ समाहित अछि
छटपटा कए ऐ रातिक खाधिमे।
ओम प्रकाश

गजल

छै मुद्दा बहुत गरम छै
छै बाझल सभक धरम छै
आँखिसँ कान पैघ भेलै
छै पसरल कते भरम छै
हुड़दंगक बजल बिगुल छै
छै बिगुलक किछो मरम छै
नै जानी मुँहसँ खसत की
छै लहकल हमर शरम छै
"ओम"क टोलमे रहत के
छै फूटल जकर करम छै
दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व + दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ प्रत्येक पाँतिमे एक बेर।
सुझाव सादर आमंत्रित।

शायरी

बन जाऊँ तेरा आईना, यही हसरत थी मेरे दिल में
एक सुलगती आग सी तेरी उलफत थी मेरे दिल में
माना तू चाँद है, रहा करता है कहीं दूर गगन में
पर एक बार तुझे छू लेने की चाहत थी मेरे दिल में

कुण्डलिया

शरम कभी ना कीजिए जब कुछ पाने की हो बात
अगर दुधारू भैंस हो तो सहना चाहिए उसकी लात
सहना चाहिए उसकी लात जो कभी दो चार पड़े
खिदमत में उसके रहिए हरदम आठों पहर खड़े
कहे ओम कवि आपसे कि अब छोड़ के सारे भरम
सकुचाना किस बात का माँग के खाने में कैसी शरम

कुण्डलिया

हुनकर रूप देखि कए नैन जुराईत रहैए
लग जखन अबै छथि किछु नै फुराईत रहैए
किछु नै फुराईत रहैए बन्न भ' जाईए बोली
सदिखन यैह सोचै छी ई भेद कोना हम खोली
कहलनि कवि ओम जखन ओ भेंटथि असगर
सबटा भेद कहि दियौन देखि कए आँखिमे हुनकर

Thursday 21 January 2016

शायरी

दिल के आइने में एक तस्वीर बंद है
मेरे लब पे आज कोई तकरीर बंद है
सजा कर रखता हूँ दिल को काँटों से
क्योंकि फूलों की इसमें जागीर बंद है

शायरी

आज मेरे हाल पर नभ इतना तरस गया
बेमौसम ही सही वो दिल से बरस गया

शायरी

तुम्हीं मेरी शब हो, सुबह तुम्हीं हो
अब तो मेरे जीने की वजह तुम्हीं हो
आते हो नजर तुम्हीं तुम दुआओं में
जिंदगी है जंग और सुलह तुम्हीं हो

कुण्डलिया

मैदान सजल छल जैमे भिड़ल छल सब लोक
किछु छल अपसियाँत किछु पर लागल रोक
किछु पर लागल रोक जे मुँहदुब्बर छल खेलाड़
ओकरा पर लागल पेनाल्टी देखू बहुत प्रकार
कहै छथि ओम कवि सुनि लिअ लगा क' ध्यान
जँ अछि किछु पैरवी अहाँ तखने उतरू मैदान

कविता

दुख ऐ बातक नैए जे ओ हमरा नै चिन्हलथि
मुदा हम दुखी छी जे ओ हमरा नै बूझलथि
विष भरल सुन्नर मुस्की चिन्हबामे नै आएल
मुस्कीक पाछू की नुकाएल हमरा नै कहलथि
हुनकर छनि फहराइत पताका सर सर सगरो
हमर झूस ध्वजा अछि से हमरा नै बजलथि
केहेन केहेन लोकक ओ बनल रहै छथि संगी
हम बनेलौं चिक्कन मुँह तइयो हमरा नै सहलथि
समर्पित अछि ओइ मित्रकेँ जे हमरा गलत बूझलथि। आशा अछि जे ओ हमर उदगार पढ़ि क' अपन मोन साफ करताह।

शायरी

आज दिल जज्बात में यूँ बह रहा है
जज्ब थीं बातें जो दिल में कह रहा है
गौर करते आप कभी जौ मेरी आँखों को
जो आपके ही सहारे अब रह रहा है

रूबाइ

रूबाइ

जिनगी धार जकाँ बहि रहल अछि
दुखक पाथरक चोट सहि रहल अछि
तइयो नब उमंगसँ भरल धार नित
जीबै लेल हमरा कहि रहल अछि

रूबाइ

रूबाइ

पाथर पर बैसल मोम हृदय
हमरा लेल केलनि होम हृदय
सुख दुखक हमर अहाँ संगी
अहीं छी हमर सोम हृदय

गजल

कखनो सुखक भोर लिखै छी
कखनो खसल नोर लिखै छी
मिठगर रसक बात कहै छी
संगे करू झोर लिखै छी
कारी करेजक कहबै की
बिहुँसैत ई ठोर लिखै छी
सोनक हिरण देखि क' दौड़ल
लोकक अजब होड़ लिखै छी
"ओम"क गजल की सुनबै यौ
खटगर बनल घोर लिखै छी
2-2-1-2, 2-1, 1-2-2 प्रत्येक पाँतिमे एक बेर
ओम प्रकाश