Friday 28 October 2011

मैथिली गजल


आगि पजरलै जखन, धुआँ उठबे करत यौ।
इ प्रेम मे डूबल मोन खिस्सा रचबे करत यौ।

किया करेज पर खंजर नैनक अहाँ चलेलौं,
ककरो खून भेलै इ दुनिया बूझबे करत यौ।

होइ छै प्रेमक डोरी तन्नुक, एकरा जूनि तोडू,
जोडबै तोडल डोरी गिरह बनबे करत यौ।

राम-नाम मुख रखने प्रेमक बाट नै धेलियै,
प्रेमक बाट जे चलबै मुक्ति भेंटबे करत यौ।

बीत-बीत दुनियाक प्रेमक रंग मे रंगि दियौ,
"ओम"क इ सपना अहाँ संग पूरबे करत यौ।
---------------- वर्ण १८ ----------------

Tuesday 25 October 2011

मैथिली गजल


मुस्की अहाँक हमर काल बनल अछि।
नैनक चालि जी केँ जंजाल बनल अछि।

अहाँ केँ देखि सुरूज कोनटा नुका गेल,
लाल अहाँक एहन गाल बनल अछि।

लिखते रहै छी पाती अहाँ केँ प्रिये हम,
राखै छी घरे पातीक टाल बनल अछि।

हमरो सुधि कखनो लियौ ने प्रियतम,
अहीं केँ सुमिरैत की हाल बनल अछि।

"ओम" दीप बनि जरै इजोत अहीं लग,
देखू प्रेमक खिस्सा विशाल बनल अछि।
-------------------वर्ण १५--------------------

मैथिली गजल


आउ मिल मोनक दीप जराबी दियाबाती आबि गेलै।
सिनेह तेल, हिया बाती बनाबी दियाबाती आबि गेलै।

अंगना मे फेरता ऊक बाबा दुख रोग भगाबै लेल,
डाह-घृणा केँ हम ऊक घुमाबी दियाबाती आबि गेलै।

दरिद्रा आब कतौ नै रहतै जे सूप डेंगाओल जैत,
मैंया संगे सगरो सूप डेंगाबी दियाबाती आबि गेलै।

हलुआ-पूडी, लड्डू-बताशा सबहक घर बनल छै,
आइ खूब प्रेम-मधुर खुआबी दियाबाती आबि गेलै।

मँहगी, गरीबी, बेरोजगारी, हिंसा केँ नाच पसरल,
"ओम" संग इ सब दूर भगाबी दियाबाती आबि गेलै।
-------------------वर्ण २०--------------------

Monday 24 October 2011

मैथिली गजल


पिया हमर रूसल जाइत किछ नै बजै छैथ।
करब हम कोन उपाय ककरो नै सुनै छैथ।

बड्ड जतन सँ कोठा बनल जे सून पडल छै,
कत' सँ भेंटल हकार पिया घुरि नै तकै छैथ।

आउ सखि शृंगार करू मोर पिया केँ मोन भावै,
कोन निन्न मे सूतला हमरा किया नै देखै छैथ।

चानन काठ केर महफा छै बहुत सजाओल,
ओहि मे ल' चलल पिया केँ कनियो नै कनै छैथ।

सासुरक सनेस पर "ओम" केँ लागल उजाही,
नैहरक सखा सभ छूटल यादि नै आबै छैथ।
----------------वर्ण १८-----------------

मैथिली गजल


धार नहि होइ ए मुक्त, बान्ह केँ कोना के तोडब।
बहैत हवा मुट्ठी मे बन्न हम कोना के करब।

सपना होइ छै सपना कतबो सोहाओन हुए,
निन्न टूटै पर ओकरा अपन कोना के कहब।

अनकर आस बेनियाक बसात सत्ते कहै छै,
ककरो मुँह केँ ताकैत आस मे कोना के रहब।

नोंचि लेलियै कियाक अहाँ सुन्नर पंख चिडै केँ,
बिन पंख आकाशक नोत आब कोना के पूरब।

बिलमि जइयो कनी "ओम"क गाम मे किछ खन,
केहन छै गाम हमर से अहाँ कोना के बूझब।
-----------------वर्ण १८-----------------

Thursday 20 October 2011

हिन्दी गजल


रुखसत की इजाजत क्यों हमसे माँगते हैं वो।
नहीं रुखसत का चलन यहाँ ये जानते हैं वो।

चस्पा हैं उनकी यादें दिल के अन्दर करीने से,
इन यादों को दिल से मिटाना कहाँ जानते हैं वो।

उनके रहते हम बहुत निश्चिन्त रहते थे,
अब होगा क्या मेरा खूब मुझे पहचानते हैं वो।

खुश रहें फूले-फलें, हमको याद करते रहें,
यकीन है कि हमको अपना साया मानते हैं वो।

फूलों की तरह खिलते रहें, "ओम" की यही दुआ,
नम आँखों से निकली दुआ पढना जानते हैं वो।

Wednesday 19 October 2011

सफल अधिकारी


एकटा लघुकथा प्रस्तुत करैत छी। एहि कथाक सबटा पात्र आओर घटना काल्पनिक अछि। जौं किनको सँ कोनो साम्यता हैत त' इ मात्र संजोग हैत, जाहि लेल हम अग्रिम क्षमाप्रार्थी छी।

                                                    सफल अधिकारी
वातानूकुलित चैम्बरक शीतल हवा मे रिवॉल्विंग चेयर पर आराम से अर्द्धलेटल अवस्था मे बैसल छलाह श्री बिमलेश चन्द्र। जी हाँ श्री बिमलेश चन्द्र, जे हमर विभागक एकटा सफल आयकर अधिकारी मानल जायत छैथ। हुनकर प्रभावी व्यक्तित्वक आगाँ पूरा विभाग नतमस्तक रहैत अछि। जतय ककरो कोनो काज अटकल कि श्री बिमलेश तुरत यादि कैल जायत छैथ। की अधिकारी आओर की कर्मचारी, सभ गोटे हुनकर काज कराबै केर क्षमता आओर हुनकर व्यक्तित्वक लोहा मानैत छैथ। आई वैह बिमलेश जी किछ शोचपूर्ण मुद्रा मे अपन कुर्सी मे घोंसियायल छलाह। हम भीतर ढुकबाक आज्ञा माँगलियैन्ह त' बिना डोलल संकेत सँ बजेलाह आओर हम ओहि सुन्नर वातानूकुलित कक्ष मे प्रवेश कय गेलहुँ। एतय इ बता दी जे जहिया सँ हमर विभाग मे कम्प्यूटर जीक पदार्पण भेलन्हि, तहिया सँ सभ अधिकारीक कक्ष वातानूकुलित भ' गेल अछि। ओना इ अलग गप थीक जे इ वातानूकुलन कम्प्यूटर जी लेल भेल छैन्ह। हम बिमलेश जी सँ चिन्ताक कारण पूछलियैन्हि। ओ बजलाह- "जहिया सँ मयंक सर गेलाह आओर खगेन्द्र सर एलाह, तहिया सँ हम चिन्तित छी।" मयंक शेखर हमर सभक आयकर आयुक्त छलाह जिनकर बदली भ' गेलन्हि आओर हुनका स्थान पर खगेन्द्र नाथ जी नबका आयुक्तक पदभार ग्रहण केलखिन्ह। हम कहलियैन्ह- "यौ एहि गप सँ चिन्ताक कोन सम्बन्ध? कियो आयुक्त रहथि, अपना सभ केँ त' काज करै केँ अछि, से करैत रहब।" बिमलेश- "अहाँ एहि दुआरे फिसड्डी छी आओर सदिखन अहिना फिसड्डी रहब।" हम चुप रहि केँ पराजय स्वीकार केलहुँ आ एहि सँ आओर उत्साहित होयत ओ बजलाह- "अहाँ बुडिराज छी। इ जनतब राखनाई बड्ड जरूरी अछि जे नबका सर कोन मिजाजक लोक छैथ।" हम- "से कियाक?" ओ अपन ज्ञान सँ हमरा आलोकित करैत कहलाह- "मिजाजक पता रहत तहन ने ओहि अनुरूपे काज कैल जेतई।" फेर ओ सोझ भ' केँ बैस गेलाह आओर एकटा नम्बर दूरभाष पर डायल करैत बजलाह जे मयंक सर केँ फोन करै छियैन्हि। ओकरा बाद एकटा चुप्पी आओर फेर बिमलेश जी मुस्की दैत विनीत भाव मे दूरभाषक चोगा पर बाजलैथ- "प्रणाम सर। हम बिमलेश।"
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"जी सब नीके छै अपनेक आशीर्वाद सँ।"
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"जी अहाँ संगे काज करय केर आनन्द किछ आओर छल। अहाँक विषयक पकड आओर अहाँक ज्ञान------- ओह सभ मोन पडैत अछि।"
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"झूठ नै कहै छी। अच्छा सर अहाँक सामान सभ पहुँचल की नै? सॉरी सर, एक दिन बिलम्ब भ' गेल, ट्रान्सपोर्ट मे ट्रक खाली नै छल।"
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"जी इ अपनेक महानता अछि। नहि त' हम कोन जोगरक लोक छी। कोनो आओर काज हुए त' कहब जरूर सर।"
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"जी प्रणाम सर।" इ कहैत ओ दूरभाषक सम्बन्ध विच्छेद करैत हमरा पर विजयी मुस्की फेंकलैथ आओर अपन आँखि हमर आँखि मे ढुकबैत कहलैथ जे कहू आर की हाल चाल। हम- "नीके छी यौ। बजबय लेल आयल छलहुँ। चलू नबका आयुक्तक चैम्बर मे मीटिंग अछि।" ओ तुरत हमरा संगे चलि देलैथ आओर हम सब आयुक्त महोदयक चैम्बर पहुँचलहुँ जतय सभ अधिकारी बैसल छलाह। मीटिंग शुरू भेल। एकटा चुप्पी ओहि कक्ष मे पसरि गेल। हमरो विभाग मे आन सरकारी विभाग जकाँ भरि साल मीटिंग चलैत रहैत अछि। एहि विषय पर एकटा ग्रन्थ लिखल जा सकैत अछि जे मीटिंगक कतबा फायदा अछि। खैर मीटिंग मे आयुक्त महोदय अधिकारी सभ केँ खूब पानि पियेलखिन्ह आओर खराब प्रदर्शनक लेल पुरकस डाँट सेहो भेंटल। कहुना मीटिंग खतम भेल आओर हम सभ ओहिना पडेलहुँ जेना बिलाडिक डर सँ मूस परायत अछि। मुदा बिमलेश जी फेर सँ अनुमति ल' केँ भीतर ढुकलाह आओर आयुक्त सँ कहलखिन्ह- "प्रणाम सर, हम बिमलेश।" आयुक्त भावरहित बजलाह- "बैसू।" हमर विभाग मे कोनो नबका अफसर आबैत छैथ त' विभिन्न अधिकारी आओर कर्मचारी केर खासियत सँ हुनका परिचित करेबा मे किछ लोक आगाँ रहैत छैथ। बिमलेश जीक (कु)ख्याति सँ आयुक्त महोदय नीक जकाँ परिचित क' देल गेल छलाह। भाव विहीन चेहरा सँ आयुक्त महोदय बिमलेश जी केँ कहलखिन्ह- "अहाँक रेकॉर्ड त' बड्ड खराब अछि। किछ काज नै भेल अछि।" बिमलेश जी पैंतरा बदलैत बजलाह- "सच पूछू सर त' एहि लेल अपनेक मार्गदर्शन लेल हम आयल छी। एहि चार्ज मे कहियो ठीक सँ काज नहि भेल। आब अहाँ केँ अयला केँ बाद सभ ठीक भ' जेतै।" आयुक्त महोदय कनी नरम भेलाह आओर अपन योजना पर चर्चा करय लगलाह। बिमलेश जी मन्त्र मुग्ध भ' केँ मुस्की दैत हाँ हूँ करैत सुनैत रहलाह। गप खतम भेला केँ बाद बिमलेश जी कहलखिन्ह- "सर अहाँक डेरा पर सामान उतारबाक लेल ५ टा लोक पठा देने छी आओर रातिक खेनाई डिलाईट होटल मे आर्डर क' देने छी।" आयुक्त महोदय किछ नहि बजलाह। ओकर बाद पता चलल जे बिमलेश जी केँ नियमित बोलाहट होबय लागलैन्हि आयुक्त महोदय लग। दू मासक बाद आयकर अधिकारीक बदलीक आर्डर आयुक्त महोदय केँ आफिस सँ निकलल। श्री बिमलेश जी केँ अपन कार्यालय मे छोडैत एकटा आओर कार्यालय केर अतिरिक्त प्रभार देल गेलन्हि। संगहि आयकर अधिकारी (मुख्यालय) केँ अतिरिक्त प्रभार सेहो देल गेलन्हि। हमर पदस्थापन एकटा दूरक जिला मे क' देल गेल छल। साँझ मे बिधुआयल मुँह लेने घर पहुँचलहुँ। कनियाँ मुँह फुलेने बैसल छलीह, कियाक त' हुनका पहिने बदलीक समाचार भेंट गेल छलैन्हि। हमरा दिस तिरस्कार केँ संग देखैत बजलीह- "अहाँ त' ओहिना बुडिबक रहि गेलहुँ। बिमलेश जी केँ देखियौन्ह, कतेक सफल अधिकारी छैथ। सभक पसिन्न छैथ।" हम मौन रहि केँ हुनकर गप सुनैत अपन पराजय स्वीकार केलहुँ।

Monday 17 October 2011

मैथिली गजल


रूसल छै कपार कहियो बौंसेबे करतै।
मोन रहतै टूटल कते जोडेबे करतै।

सागरक कात सीप बिछैत रहब हम,
कोनो सीप मे कखनो मोती भेंटेबे करतै।

क्षितिजक बाट केँ हम धेने छी सदिखन,
आकाश मे हमरो हिस्सा कनी हेबे करतै।

सजबै छी अपन उपवन एहि आस मे,
उजडल घर मे सुगंध भरेबे करतै।

कियो मानै नै मानै "ओम" इ कहिते रहत,
नैन रहतै नै पियासल जुडेबे करतै।
.......................वर्ण १६.......................

Friday 14 October 2011

मैथिली गजल


जखन मोन मे प्रेमक आँकुर फूटल, तखन प्रेमक गाछ निकलबे करत।
जखन जवानीक ककरो लुत्ती लागल, तखन प्रेमक धधरा उठबे करत।

प्रेम छै रामायण, प्रेम छै गीता पुराण, प्रेम छै पूजा-पाठ, प्रेम ईश-भगवान,
जखन इ मोन पवित्र मंदिर बनल, तखन प्रेमक मुरूत बसबे करत।

जिनगी कछेर बनल इ प्रेम छै धार, प्रेम इ समाज बनबै प्रेम परिवार,
जखन हिय सिनेहक संगम रचल, तखन प्रेमक इ गंगा बहबे करत।

प्रेम केँ बान्हत डोरी एखन नै बनल, प्रेम मुक्त छै सदिखन सहज सरल,
जखन जिनगी-आकाशक सीमा हटल, तखन प्रेमक चिडैयाँ उडबे करत।

"ओम"क निवेदन अहाँ कते नै सुनब, एना अहाँ चुप रहि कते मूक बनब,
जखन याचना अहाँक मोन मे ढुकल, तखन प्रेमक भिक्षा त' भेटबे करत।

Wednesday 12 October 2011

मैथिली गजल


ताकलौं एना किया कोनो पैघ बात भय गेलै।
मोन डोलै हमर पीपरिक पात भय गेलै।

बिन पीने इ निशाँ किया हमरा लागै लागल,
हमरा बूझि केँ शराबी लोक कात भय गेलै।

हमरा हमरे सँ चोरी अहाँ कोना कय लेलौं,
बन्न छल हिय-खिडकी कोनो घात भय गेलै।

प्रेमक सींचल जिनगी आब भेलै रसगर,
सुखायल चाउर छलै मीठ भात भय गेलै।

सभ ओझरी सँ हम भिन्ने नीक रहैत रही,
नैन-ओझरी लागल "ओम"क मात भय गेलै।

Tuesday 11 October 2011

मैथिली गजल


आगि लागल मोनक धाह केँ रोकि देलियै।
कोनो दुख गहीर छल, मुस्की मारि देलियै।

अपन मोनक धार कियो कोना के रोकत,
इयाद जे हमरा करेज मे भोंकि देलियै।

आँखिक कोर भीजल नोर किया नै खसल,
कृपणक सोन जकाँ ओकरा राखि देलियै।

नोर इन्होर होइ छै एहि सँ बाँचि के रहू,
फेर कहब नै अहाँ किया नै टोकि देलियै।

"ओम"क फाटल छाती कियो देख नै सकल,
कोनो जतन सँ ओकरा हम सीबि देलियै।

Monday 3 October 2011

मैथिली गजल


मोनक आस आब टुअर भेल।
तृष्णा एखनहुँ नै दुब्बर भेल।

अन्हार सँ झरकैत रहलहुँ,
इजोत नै कखनो हमर भेल।

मधुमाछी मधु बनबैत रहै,
मधु सदिखन अनकर भेल।

कुहेसक मारल बाट कानैए,
रौद नै एखन सनगर भेल।

चीनी फाँकैत तबाह भेल "ओम",
मधुर कियाक नोनगर भेल।