Thursday 29 September 2011

मैथिली गजल



थान केँ नापबाक फेर मे गज फेंकल जाइ ए।
आकाश छूबाक फेर मे जमीन छूटल जाइ ए।

भाँति-भाँति के सुन्नर फूल लागल फुलवारी मे,
कमल लगेबाक फेर मे गेना टूटल जाइ ए।

चानी सँ संतोख भेल नै, आब सोनक पाँछा भागू,
सोन कीनबाक फेर मे इ चानी रूसल जाइ ए।

दूरक चमकैत वस्तु अंगोरा भय सकै अछि,
मृगतृष्णाक फेर मे देखू मृग कूदल जाइ ए।

चानक इजोरिया मे काज "ओम"क होइते छल,
भोर-इजोरियाक फेर मे चान डूबल जाइ ए।
------------- वर्ण १८ -----------------

Wednesday 28 September 2011

मैथिली गजल


समाज छै थाकल, बड्ड शांत लगैए इ।
विचार छै भूखल, बड्ड क्लांत लगैए इ।

द्रौपदीक भ' रहल चीरहरण देखू,
छै कौरवक बडका बैसार लगैए इ।

सीता कानथि अशोकक छाहरि मे किया,
छै रावणक अशोक वाटिका लगैए इ।

धेने रहू इजोरिया के नांगरि कहुना,
पसरल अन्हरिया केँ बाट लगैए इ।

बान्ह बनौने रूकत नै "ओम" सँ इ धार,
छै हहराइत राक्षसी धार लगैए इ।

मैथिली गजल


हवा मे अहाँ लात चलबैत रहू, हमरा की।
आकाश पर भात बनबैत रहू, हमरा की।

हम गामक पोखरि मे माछ मारैत रहब,
जाउ अहाँ समुद्र उपछैत रहू, हमरा की।

एखन धरि हम खम्भा गाडै मे परेशान छी,
बडका महल अहाँ ठोकैत रहू, हमरा की।

हमर आँखिक सपना आँखिये मे मरि गेल,
अहाँ जागले सपना देखैत रहू, हमरा की।

"ओम" कहैत रहत अहिना सोझ-सोझ गप्प,
अहाँ सभ केँ टेढे सुनाबैत रहू, हमरा की।

Tuesday 27 September 2011

मैथिली गजल


हम कात सँ सदिखन देखते रहलियै।
हम नै बजलियै, अहुँ किछ नै सुनेलियै।

नैनक धार अहाँ केँ जे उफनैत रहल,
चुप रहि हम ओहि मे हेलैत रहलियै।

मदमस्त नैना अहाँक जुलुम क' रहल,
बिजुरी खसेनाई अहाँ कत' सँ सीखलियै।

शुरू भेल इ खिस्सा हमर जे अहीं सँ प्रिये,
सब किछ बूझैत किया अहाँ नै बूझलियै।

एना अन्हार केने "ओम"क प्रेम-संसार मे,
मुख-चान कत' अहाँ नुकबैत रहलियै।

Monday 26 September 2011

मैथिली गजल


टूटल मोन केँ हम बुझावैत रहि गेलौं।
एक मीसिया हँसी हम ताकैत रहि गेलौं।

फूलक मुस्की कैद छै काँटक महाजाल मे,
जाल सँ मुस्की केँ हम छोडाबैत रहि गेलौं।

सूरज केँ हँसी हरायल मेघ केँ ओट मे,
फूँकि के मेघ हम उधियाबैत रहि गेलौं।

निर्झर अछि शांत भेल पाथरक चोट सँ,
चोटक दाग मोन सँ मेटाबैत रहि गेलौं।

छिडियायल छै हँसी, "ओम"क वश नै चलै
हाथक सफाई हम देखाबैत रहि गेलौं।

Friday 23 September 2011

मैथिली गजल


कियो किछ नै सुनै छै अहाँ करै छी बवाल।
अहाँ नै बूझै छी बहिरा नाचै अपने ताल।

ककरा सँ माँगै छी अहाँ अपन जबाव यौ,
बाजत कोना एखन नै बूझलक सवाल।

हुनकर मुस्की के देखि अहाँ की बूझि गेलौं,
चवन्नियाँ मुस्की हुनकर अदा के कमाल।

नीतिशास्त्र के हुनका पाठ बुझौने हैत की,
ओ जेबी मे रखै छथि नीति बूझि के रूमाल।

देखैत अछि नौटंकी "ओम" हुनकर चुप्पे,
लागै हुनका जे हम छी तिरपित निहाल।

Wednesday 21 September 2011

मैथिली गजल


डेग दैत पूरब अहाँ पच्छिम पताइत छी।
चढल मस्ती जवानी के अहाँ अगधाइत छी।

बिना पुजारी के मन्दिरक शोभा नै भावै अछि,
हम छी प्रेम-पुजारी अहाँ नै पतियाइत छी।

नैनक इशारा सँ जे अहाँ किछ कहि देलियै,
ओ सभक सोझाँ सुनाबै मे किया लजाइत छी।

संकेत अहाँ के हम अपन प्रेमक पठेलौं,
कहलौं अहाँ, देखू किया एना भसियाइत छी।

"ओम" लुटेने अछि पूरा जिनगी अहीं पर यै,
मोन-आँगन मे रहियौ किया खिसियाइत छी।

Tuesday 20 September 2011

मैथिली गजल


माटिक बासन मे भय गेल भूर, ओकरा फोडिये देनाई नीक।
जखन विश्वास भय गेल चूर, ओ रिश्ता के तोडिये देनाई नीक।

फरियाद सुनावैत पूरा जीवन ताकैत छी किया रखने आस,
कान मे ठूँसने रहैथ जे तुर, ओ हाकिम छोडिये देनाई नीक।

बिना मिलेने ताल-मात्रा कखनो सु-संगीत कहाँ अछि निकलल,
ककरो सँ मिलल नहि जे सुर, महफिल छोडिये देनाई नीक।

अपस्याँत भेल छी मरखाह बडद के खूँटा मे बान्हि राखय मे,
बेसी चलबय लागै जे खुर, ओ बडद के खोलिये देनाई नीक।

फाटल वस्त्र कहुना पैबंद लगा के पहरि सकैत अछि "ओम",
मुदा जाहि मे सगरो अछि भूर, ओ कपडा फेंकिये देनाई नीक।

Monday 19 September 2011

मैथिली गजल


अहाँ कतेक बहायब अपन नोर, दुख कियो नहि बाँटत।
जाहि खदहा के ओर नञ छोर, ओकरा कोना के पाटत।

देखू गुलाब के चिर-मुस्की उपवन के भेल छै शोभा,
डारि मे काँट छै पोरे-पोर, इ दुख ककरा से बाजत।

टूटल माला के मोती तकै मे बालु किया फँकैत छी,
कतबो कियो लगाबय जोर, मोती घुरि नहि आयत।

लड्डू, बर्फी, रसगुल्ला सन मधुर के लागल चस्का,
चखियो कनी पटुआ के झोर, मधुर बेसी मीठ लागत।

घुप्प अन्हरिया राति मे "ओम" के मोन मे छै इ आस,
साँझ के पाछाँ हेतै भोर, अन्हरिया कोना नहि फाटत।