Wednesday 28 September 2011

मैथिली गजल


हवा मे अहाँ लात चलबैत रहू, हमरा की।
आकाश पर भात बनबैत रहू, हमरा की।

हम गामक पोखरि मे माछ मारैत रहब,
जाउ अहाँ समुद्र उपछैत रहू, हमरा की।

एखन धरि हम खम्भा गाडै मे परेशान छी,
बडका महल अहाँ ठोकैत रहू, हमरा की।

हमर आँखिक सपना आँखिये मे मरि गेल,
अहाँ जागले सपना देखैत रहू, हमरा की।

"ओम" कहैत रहत अहिना सोझ-सोझ गप्प,
अहाँ सभ केँ टेढे सुनाबैत रहू, हमरा की।

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