Thursday 20 October 2011

हिन्दी गजल


रुखसत की इजाजत क्यों हमसे माँगते हैं वो।
नहीं रुखसत का चलन यहाँ ये जानते हैं वो।

चस्पा हैं उनकी यादें दिल के अन्दर करीने से,
इन यादों को दिल से मिटाना कहाँ जानते हैं वो।

उनके रहते हम बहुत निश्चिन्त रहते थे,
अब होगा क्या मेरा खूब मुझे पहचानते हैं वो।

खुश रहें फूले-फलें, हमको याद करते रहें,
यकीन है कि हमको अपना साया मानते हैं वो।

फूलों की तरह खिलते रहें, "ओम" की यही दुआ,
नम आँखों से निकली दुआ पढना जानते हैं वो।

No comments:

Post a Comment