Thursday 10 March 2016

मन का बात

बचपन में हम सोचते थे कि आखिर मछली कैसे पकड़ाता है। बाबूजी से पूछे तो ऊ डाँट दिए। कहे कि बड़ा हो के मछलिए मारेगा का। हम सकदम चुप हो गए। एक बार जखनी गाम गए ना तो उहाँ पर अलग अलग ईस्टाईल में मछलिया पकड़ते देखे। जब कक्का से पूछे तो ऊ हमको सब ईस्टाईलबा के बारे में बताए। बंसी से बोर देके नेन्हकी मछलिया सब धराता था। बड़की मछलिया सब जाल फेंक के धराता था। जाल में एकदिन एकठो दस से पन्द्रह किलो का मछली धराया था जो जाले फाड़ के भाग गया। कक्का समझाए कि बड़का मछलिया पकड़ना एतना आसान नै है से बूझ लो। छोटकी मछलिया आरामे से पकड़ा जाता है। खैर जब गाम से घूर के आ गए तब इसी फिराक में रहते थे कि मछली पकड़न ज्ञान का पिरेकटीकल किया जाय। लेकिन स्साला कोनो जोगाड़े नै भेंटता था। एक रोज इसकूल से आने टाईम एकठो खंता में मछलिए जैसन चीज देखे। फिर क्या था उतर गए खंता में और दनादन दस ठो छोटकी मछलिया पकड़े और कौपी से पन्ना फाड़ के ठोंगा बनाए जिसमें मछलिया सबको रखकर घर ले आए। पूरा कपडा में कादो लगल देखके माय जो बमकी सो का कहें। ऊ घड़ी 'दाग अच्छे हैं' बला परचरबो तो नै आया था। मछली देखके तो माय आरो गोस्सा गई। बोली कि एक तो कपड़बा गंदा कर लिया और ऊपर से बेंगमछली पकड़ के ले आया। ऊ घड़ी हमरा मछली आ बेंगमछली के अंतर थोड़े बूझल था। खैर एतना दिन बाद ई प्रसंग इसलिए मोन पड़ गिया कि समाचार में एक जगह पढ़े कि बड़ी मछली पुलिस के पकड़ से बाहर। ई कहना आसान है कि पुलिस बड़ा मछली नै पकड़ता है पर बड़ा मछली पकड़ने में केतना कष्ट है ई हम अपन आँख से देखे हैं जी। या तो जाले फाड़ देगा नै तो पूछरी से मार मार के देह फोड़ देगा।एही से कहते हैं कि खंता में जा के बेंगमछलियन सब के धरना चाहिए जो ऊ लोग कर रहे हैं। उन सबको हमर डंडवत है काहे कि मछलिया पकड़ तो रहे हैं ना, भले बेंगमछलिए हो। आशा है कि हमरा मोन का बात सुन के ऊ लोग गोसियायेंगे नै।

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