Thursday 30 June 2016

कविता

कविता
मधुमास
सुनलियै मधुमास आएल छै।
दमकैत रंगल मुँह चारू कात
पिपही बाजाक सुर ताल
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
भौजी दियरक ठट्ठा
सारि बहिनोईक मजाक
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
जुआनक मचल जोगीरा
बूढ़क चमकैत मुखारविंद
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
आमक मज्जरक सुगंध
सरिसबक पीयर कुसुम
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
उत्साह आ जोशक धार
पसरल गाम आ नगर
कहि रहलए चिकरि क'
मधुमास आएल छै।
मुदा की सबहक छै मधुमास?
कियो बुतातक जोगाड़मे लागल
लोक व्यस्त अछि कोदारि धएने
ओकर छै खरमास सब दिन
मधुमासक आसमे।
मुदा कहियो अएबे करतै
ओकरो आँगनमे मधुमास
ई सोचैत लागल अछि
ओ मधुमासक स्वागतमे।
यावत नै पसरत मधुमास
सबहक आँगनमे,
तावत ऐ मधुमासमे
रंग किछु कमे रहत।

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