Friday 14 November 2014

गजल

अपन मोनक कहल मारि बैसल छी
छलै खिस्सा लिखल फाडि बैसल छी

हँसी हुनकर हमर मोनमे गाडल
करेजा अपन हम हारि बैसल छी

पढू भाषा नजरि बाजि रहलै जे
किए हमरा अहाँ बारि बैसल छी

सिनेहक बूझलौं मोल नै कहियो
अहाँ गर्दा जकाँ झारि बैसल छी

जमाना कहल मानैत छी सदिखन
कहल "ओम"क अहाँ टारि बैसल छी
- ओम प्रकाश
मफाईलुन-फऊलुन-मफाईलुन (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)

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