Tuesday 27 March 2012

बीहनि कथा


बीहनि कथा
स्पेशल परमिट
एक दिन सिनेमा देखबा लेल सिनेमा हाल सपरिवार गेल रही। ओतय सिनेमाघरक मैनेजर गाडी सँ उतरैत देरी स्वागत मे लागि गेल। ओ हमरा चिन्हैत छल। सिनेमा शुरू हएबा मे किछु देरी छल। ओ हमरा अपन कक्ष मे बैसा कऽ चाह-पान करबऽ लागल। सिनेमाक शो शुरू भेलाक बादो हाल मे बीच बीच मे नाश्ता पानी पूछैत रहल। हमर छोटकी बेटी इ सब अचरज सँ देखैत छल। सिनेमा समाप्त भेलाक बाद मैनेजर आदरपूर्वक हमरा गाडी तक अरियाइति देलक। डेराक बाट मे हमर छोटकी बेटी हमरा पूछलक- "पापा, इ मैनेजर अहाँक एतेक खातिर बात कियेक करै छल? ओतय तँ आरो लोक सब छल, मुदा ककरो दिस ताकबो नै करैत छल।" हम बजलहुँ- "बेटी, अहाँ नै बूझब। हमरा स्पेशल परमिट अछि।" छोटकी बाजल- "तखन तँ अहाँ केँ आरो ठाम इ स्पेशल परमिट भेंटैत हएत।" हम अपन बहादुरी मे कहलौं- "हाँ-हाँ, आरो ठाम भेंटैए।" ऐ पर छोटकी बाजल- "तखन काल्हि सँ हमरा अहाँ इसकूलक भीतर तक गाडी सँ छोडू। प्रसून नित्य गाडी सँ भीतर तक आबै छै आ बड्ड शान देखाबै छै। अहाँ तँ हमरा बाहरे गाडी सँ उतारि दैत छी।" हम सकपकाईत बजलौं- "बेटी प्रसून कलक्टरक बेटा अछि। कलक्टर केँ हमरा सँ पैघ स्पेशल परमिट भेंटल छैक। हमरा अहाँक इसकूलक स्पेशल परमिट नै भेंटल अछि।" छोटकी रूसि गेल आ कहलक- "नै अहाँ हमरा फूसि कहै छी। हमहुँ गाडी सँ इसकूलक भीतर तक जायब।" हम आब ओकरा की बूझैबतियेक। हम चुप रहि गेलौं।

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