Friday 30 March 2012

घोघ उठबैत मैथिली गजल


घोघ उठबैत मैथिली गजल
मैथिली गजलक पहिलुक प्रकाशित पोथी "उठा रहल घोघ तिमिर" पढबाक सौभाग्य भेंटल। ऐ गजल संग्रहक गजलकार श्री विभूति आनन्द छथि। एहि पोथी मे कुल चौंतीस गोट गजल अछि। पूरा पोथी केँ एकहि बैसार मे पढि गेलहुँ आ बेर-बेर पढलहुँ। सबसे पहिने हम श्री विभूति आनन्दजी केँ मैथिली गजलक पहिलुक संग्रह प्रकाशित करबा लेल धन्यवाद दैत छियैन्हि।
एहि पोथीक भूमिका मे गजलकार कहै छथि जे "मैथिलीक गजल सोझे-सोझ हिन्दी सँ प्रभावित अछि मुदा हिन्दी जकाँ जमल नञि अछि एखनो धरि।" आगू हुनकर कहनाई छैन्हि- "पारम्परिक व्याकरण सम्बन्धित अगणित त्रुटि सभ ठाम लक्षित होएत। ओना हम दुस्साहसपूर्वक साहस करैत रहलहुँ अछि जे कथ्य-सामंजस्य लए व्याकरण दिस सँ यदि मूँहो घूमा लेल जाए तँ कोनो हर्ज नञि। किए तँ हम मानैत छी जे ई पाठ्यक्रमक वस्तु नञि अछि। विद्यार्थी मूर्ख नञि बनत। तैं की ------------------------ व्याकरण सँ भयभीत भऽ नञि लिखल जाए।" गजलकारक पहिलुक कथनक सम्बन्ध मे हमर निवेदन अछि जे गजलक परम्परा अरबी-फारसी सँ शुरू भेल अछि आ ओतहि सँ आन भारतीय भाषा मे पसरल अछि। हिन्दी-उर्दू मे गजल कहबाक परम्परा मैथिली सँ पहिने शुरू भेल, तैं बहुसंख्य लोक दिग्भ्रमित भऽ जाइत छथि जे मैथिलीक गजल हिन्दी गजलक नकल छी वा ओइ सँ प्रभावित भेल अछि। गजलकार सेहो एहि मिथ्या धारणा सँ प्रभावित छथि। आब गजलक व्याकरण थोड-बहुत समन्जनक संग सब भाषा मे तँ एक्के रहत। ऐ स्थिति केँ हमरा हिसाबेँ "प्रभावित भेनाई" कहबाक कोनो औचित्य नै अछि। गजलकारक दोसर कथन देखि हम निराश भेल छी। पता नै किया एखन धरि जे दुनू गजल संग्रह (सबसँ पहिलुक आ सबसँ अंतिम प्रकाशित) पढलहुँ, एहि दुनू मे गजलकार कथ्य-सामंजस्यक आगू व्याकरण केँ कोनो मोजर नै देबऽ चाहैत छथि। एकटा गप मोन रखबाक चाही जे साहित्यक निर्माण वैयाकरणिक अनुशासनक बादे सफल भेल अछि। इ फराक गप अछि जे समय-काल आ स्थानक हिसाबेँ सर्वमान्य परिवर्तन व्याकरण मे होइत रहल छैक। बिना वैयाकरणिक अनुशासनक भाषा पढबा, लिखबा आ बाजबा जोग रहत? जिनका मे साहित्य निर्माणक माद्दा छैन्हि, हुनका मे व्याकरण केँ पालनक साहस अबस्स हेबाक चाही।
आब हम एहि संग्रहक गजलक सम्बन्ध मे किछु गप कहऽ चाहब। इ गजल संग्रह ओहि समय मे लिखल गेल अछि जखन मैथिली गजलक व्याकरण आ बहरक सम्बन्ध मे बहुत बेसी जनतब सार्वजनिक नै छल। हम एकरा एना कहऽ चाहब जे इ गजल संग्रह "अनचिन्हार आखर" जुग सँ पूर्वक गजल अछि जखन बहर, रदीफ आ काफियाक नियमक पालनक विषय मे बहुत रास गप सर्वजन सुलभ नै छल। एहि हिसाबेँ जँ ऐ संग्रहक गजल सभ मे बहरक दोख छैक तँ इ स्वभाविक बुझाईत अछि। एहि संग्रहक कोनो टा गजल कोनो बहर मे नै अछि। तैं ऐ संग्रहक वैध गजल (जाहि मे काफियाक नियमक पालन भेल हुए) सभ केँ "आजाद-गजल"क श्रेणी मे राखल जा सकैए। आब गजलक काफिया आ रदीफक सम्बन्ध मे किछु गप। एहि संग्रहक बहुत रास गजल मे काफिया आ रदीफक नियमक पालन भेल अछि। मुदा कएक गजल मे रदीफ आ काफियाक गलती अछि। जेना पृष्ठ चौदह पर मतला देखला पर बुझाईत अछि जे "इ मौसम" रदीफ अछि आ "लागैए" आओर "उलाबैए" काफियायुक्त शब्द अछि। मुदा दोसर शेर आ आगूक आन शेर मे एकर पालन नै भेल अछि आओर शेर सभ बिना रदीफक "अ" काफियायुक्त अछि। पृष्ठ पन्द्रह पर सेहो यैह दोख अछि, जाहि मे मतला मे रदीफ "कहाँ रहल"क प्रयोग अछि आ आन शेर सभ बिना रदीफक "अल" काफियायुक्त अछि। एहने दोख पृष्ठ सोलह मे देखल जा सकैत अछि, जतय मतला मे "करै छह" रदीफ मानल जयबाक चाही। ओना ऐ गजलक आन शेर सभ मे दू टा काफियाक सुन्नर प्रयोग अछि, जे नीक लागैए। हमरा हिसाबेँ काफियाक दोख पृष्ठ बीस, बाईस, चौबीस, पचीस, अट्ठाईस, उनतीस(संयुक्ताक्षर काफियाक नियमक दोख), बत्तीस आ सैंतीस मे सेहो अछि। एकर सबहक विस्तृत वर्णन देब हम अपेक्षित नै बूझि रहल छी, कियाक तँ इ हमर उद्देश्य कथमपि नै अछि। गजल संग्रहक सब गजलक विषय-वस्तु नीक अछि आ गजलकार अपन भावना नीक जकाँ प्रकट केने छथि।
किछु गजलक काफिया आ रदीफक दोख जँ कात कऽ कऽ देखी, तँ इ गजल-संग्रह एकटा नीक गजल-संग्रह अछि। गजलकारक गजल कहबाक क्षमता सेहो नीक बुझाईत अछि। हमरा ई अचरज लागि रहल अछि जे ऐ संग्रहक बाद गजलकारक दोसर गजल-संग्रह किया नै आएल अछि। एकर कारण तँ गजलकारे केँ पता हेतैन्हि, मुदा अपन अनुभवक आधार पर हम कहऽ चाहै छी जे श्री विभूति आनन्द नीक गजल लिख सकैत छथि। जँ बहरक विचार नै करी, तँ २०१२ मे आएल श्री अरविन्द ठाकुरजीक गजल-संग्रह सँ करीब एकतीस बर्ख पहिने १९८१ मे लिखल गेल एहि संग्रहक गजल सब उम्दा कहल जा सकैत अछि। एकर कारण इ जे एहि संग्रहक गजल सब मे काफियाक नियम-पालनक प्रतिशत वर्तमान समयक संग्रह सब सँ बेसी अछि। कथ्यक मजबूती सेहो नीक कोटिक अछि। खाली कुहरल तुकमिलानी केने गजल नै कहल जा सकैत अछि, इ गप एहि संग्रह केँ पढलाक बाद एखुनका गजलकार सभ केँ सेहो बुझेतन्हि, इ आशा अछि। इहो एकटा अचरजक विषय अछि जे जखन मैथिली मे नीक गजल एतेक साल पहिनो कहल गेल छल, तखन एकर बाद गजलक विकास-यात्रा पचीस-तीस बर्ख धरि कतऽ आ किया ठमकि गेल। बीचक अवधि मे मैथिली गजलक विकासक धार मे बान्ह किया बनि गेल छल, इ विचारणीय गप अछि। ओना आब इ बान्ह टूटि रहल अछि आ आशाक नब जोति मे मैथिली गजलक घोघ उठि रहल अछि।

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