Wednesday 8 March 2017

कविता

उन्मुक्त विचारक धार
छेक लेलक कोनो बान्ह
लकवाग्रस्त भेल मोन
सुरविहीन संगीतक
वाद्य भेल अछि जेना
पाथरो लजाइत अछि
देखि करेजक ताल
आबो मोनक मोर
नाचैए पंख पसारि
मुदा अपने रचल
विचारक जंगलमे
आओर प्रस्तुत करैए
तमाशा वएह पुरान सन
जकर नायकक मूँह
झमाएल अछि
सुखाएल अछि
सुर ताल मिलबैत
जिनगीक शुष्क संगीतसँ।
-ओम प्रकाश

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