Wednesday 9 November 2011

मैथिली गजल


हमर हृदयक कुंज-गली मे विचरैत मोनक मीत अहीं छी।
गाबि-गाबि जे मोन सुनाबै सदिखन ओ राग अहीं गीत अहीं छी।

जिनगी हमर पहिने कहियो एते सोअदगर किया नै छल,
सबटा सोआद अहीं मे छै बसल, मीठ, नोनगर, तीत अहीं छी।

आँखिक बाट मोन मे ढुकि केँ प्रेमक घर आलीशान बनेलियै,
ओहि घरक कण-कण मे छै नाम अहींक, ओकर भीत अहीं छी।

जुग-जुग सँ प्रेमक धार मे अहीं हमर पतवार बनल छी,
हमर प्रेमक दुनियाक सुन्नर रंग सबटा आ रीत अहीं छी।

"ओम"क मोन केर कोन-कोन मे बसल रहै छै अहींक सुरभि,
आब ई जमाना सँ की लेनाई प्रिये, हमर हार आ जीत अहीं छी।
------------------------- वर्ण २४ --------------------------

No comments:

Post a Comment