Monday 14 November 2011

मैथिली गजल


घोघ तर सँ चान उगल, अँगना मे इजोर पसरि गेलै।
मोन हमर छल बान्हल, किया आइ अपने पिछडि गेलै।

मृगनयनी, मोनमोहनी, चंचल नयन सँ प्राण हतल,
मुख पर नयन-कमल, जै सुरभि सँ मोन पजरि गेलै।

सुनि अहाँक वचन, भ' प्रेम मगन, मोन-मयूर नाचल,
प्रेम-बोली तोहर सुनल, इ हृदय नाचि केँ ससरि गेलै।

हिय-आँगन, पायल झन-झन, संगीत मधुर छै बाजल,
रोकि कोना जे मोन नाचल, नै कहब किया नै सम्हरि गेलै।

अहाँक अजगुत रूप देखि केँ, भाव "ओम" रोकि नै सकल,
जे किछ छल मोन राखल, कोना देखू सबटा झहरि गेलै।
---------------------- वर्ण २२ ---------------------

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