वाह कतेक मजा अबै छै उठा-पटक मे।
नब-नब दाँव देखबै छै उठा-पटक मे।
सभक मुँह भेलै लाल-लाल कुश्ती लडैत,
सब जोर कते लगबै छै उठा-पटक मे।
छै के संगी, के शत्रु बनल, इ पता नै चलै,
छै अपन मुदा खसबै छै उठा-पटक मे।
प्राण हतने कोना सभ भिडल छै देखियो,
कियो माल देखू बनबै छै उठा-पटक मे।
ककरो हारि गेला सँ बन्न नै भेल दंगल,
हारि झट मुँह उठबै छै उठा-पटक मे।
----------- वर्ण १६ ---------------
जबर्दस्त गजल..सुन्दर
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