Sunday 1 January 2012

मैथिली गजल


नबका बर्खक नब उमंग सगरो छै।
खुशी जतबा ओम्हर ओतबा एम्हरो छै।

बर्ख-बर्ख सँ दुख सँ छौंकल सब आत्मा,
हेतै तृप्त जरूर, इ उमेद हमरो छै।

नब बर्ख बनै प्रेम-नाव दुख-धार मे,
सब प्रेम करू, बिसरू कोनो झगडो छै।

बन्न करियौ नै उत्सव ऊँच अटारी मे,
असंख्य भूखल आँखि, सिहन्ता ओकरो छै।

असल आजादी भेंटै, यैह "ओम"क दुआ,
बिला जाइ भ्रष्ट आचरण जे ककरो छै।
--------------- वर्ण १५ -------------

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