Monday 30 January 2012

मैथिली गजल


कुशल आबि देख लिअ, एतऽ सबटा आँखि नोर सँ भरल छै।
विकास कतऽ भेलै, विकासक दिस इ बाट चोर सँ भरल छै।

चिडै सभ कतौ गेल की, मोर घूमैत अछि गाम सगरो,
इ बगुला तँ पंख अछि रंगि कऽ, सभा वैह मोर सँ भरल छै।

सब नजरि पियासल छल तकैत आकाश चानक दरस केँ,
निकलतै इ चान कहिया, आसक धरा चकोर सँ भरल छै।

उजाही उठल गाम मे, नै कनै छै करेज ककरो यौ,
हमर गाम एखनहुँ खुश गीत गाबैत ठोर सँ भरल छै।

कहै छल कियो गौर वर्णक गौरवक एहन अन्हार इ,
सब दिस तँ अछि स्याह मोन जखन इ भूमि गोर सँ भरल छै।
फऊलुन(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)- ६ बेर प्रत्येक पाँति मे

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