Thursday 12 January 2012

मैथिली गजल


कखनो छूबि दियौ हमरो फुलवारीक फूल बूझि क'।
किया केने छी यै कात हमरा करेजक शूल बूझि क'।

हमरा सँ नीक झूलनियाँ, जे बनल अहाँक सिहन्ता,
हमरो दिस फेरू नजरि झूलनियाँक झूल बूझि क'।

अहाँक नैनक मस्ती बनल प्रेमक पोथी सब लेल,
हमहुँ पढब प्रेम-पाठ अहाँ सँ इसकूल बूझि क'।

बहत प्रेमक पवित्र धार, करेज बनत संगम,
प्रेम छै पूजा, नै छोडू एकरा जिनगीक भूल बूझि क'।

प्रेमक घर अहाँक अछि किया फूजल केवाडी बिना,
ठोकि लियौ "ओम"क प्रेम ओहि केवाडीक चूल बूझि क'।
----------------------- वर्ण २० -----------------------

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